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राजस्थान के प्रमुख दुर्ग व किले

राजस्थान के प्रमुख दुर्ग व किले – इस पोस्ट में आज राजस्थान के rajasthan ke pramukh durg के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। इस में हम राजस्थान के स्थापत्य, गिरी दुर्ग, धन्वन दुर्ग, तथा जयपुर के प्रमुख दुर्ग आदि दुर्गों के बारे में पढ़ेंगे। यह टॉपिक राजस्थान जीके का अति महत्वपूर्ण topic है। यदि आप भी किसी government exams की तैयारी कर रहे है, तो हमारी वेबसाइट पर आप बिल्कल free में नोट्स पढ़ सकते हो। राजस्थान में सरकार द्वारा आयोजित सभी प्रकार के एग्जाम में यहां से प्रश्न पूछे जाते है। यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगी। यहां पर आपको राजस्थान के सभी टॉपिक्स के नोट्स उपलब्ध करवाए जा रहे। इन टॉपिक को पढ़कर आप अपनी तैयारी को और बेहतर बना सकते है। और government की सभी महत्वपूर्ण परीक्षाओं में सफलता प्राप्त कर सकते है।

राजा तथा महाराजाओं के रहने के लिए तथा खजाने को सुरक्षित रखने के लि गढ़,दुर्ग तथा किले का निर्माण किया जाता था। जिसमे कई महीनों का राशन और पानी का भण्डार होता था। दुर्ग में महल, शस्त्रगार, राजकीय, आवास सैनिक छावनियां, कुण्ड, छतरियां आदि होते थे।
सर्वप्रथम दुर्ग के अवशेष सिन्धु घाटी सभ्यता से मिले हैं।

दुर्गों का सर्वप्रथम वर्गीकरण मनुस्मृति में हुआ है। मनुस्मृति में दुर्गों को छः भाग बताए है।
1. गिरि दुर्
2. धानु दुर्ग 
3. नृ दुर्ग 
4. वृक्ष दुर्ग 
5. जल दुर्ग 
6. पत्थर दुर्ग 

मनु स्मृति तथा अर्थशास्त्र में गिरी दुर्ग को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।

शुक्र नीति के अनुसार दुर्ग के 9 प्रकार होते है।

1. ऐरण दुर्ग – 
‣ ऐसा दुर्ग जिसमें जाने के लिए काटो व पत्थरों दुर्गम पथ से होकर गुजरना पड़ता है। 
‣ यह दुर्ग वन दुर्ग व गिरि दुर्ग का मिश्रित दुर्ग होता है।
‣ उदाहरण – रणथम्भौर दुर्ग, चित्तौडगढ़ दुर्ग, जालौर दुर्ग आदि।

2. गिरि दुर्ग / पार्वत दुर्ग – 
‣ यह दुर्ग पहाड़ी पर बना होता है।
‣ राजस्थान में इस प्रकार के दुर्ग सर्वाधिक है।
‣ उदाहरण – सीवाणा दुर्ग, जालौर दुर्ग, रणथम्भौर दुर्ग, चित्तौड़गढ़ दुर्ग, मेहरानगढ़ दुर्ग, तारागढ़ दुर्ग, जयगढ़ दुर्ग आदि।

3. जल दुर्ग / औदुक दुर्ग – 
‣ नदी के किनारे या नदियों के संगम पर बना हुआ दुर्ग औदुक दुर्ग कहलाता है।
‣ उदाहरण – भैंसरोड़गढ़ ( चित्तौड़गढ़), गागरोन ( झालावाड़ )

4. वन दुर्ग – 
‣ ऐसा दुर्ग जो चारों ओर से वनों से घिरा होता है वन दुर्ग कहलाता है।
‣ उदाहरण – सिवाणा ( बाड़मेर ) 

5. सैन्य दुर्ग / सहाय दुर्ग – 
‣ वह दुर्ग जिसमें सैनिकों के निवास की व्यवस्था हो उसे सैन्य दुर्ग कहा जाता है।
‣ यह दुर्ग सर्वश्रेष्ठ दुर्ग माना जाता है।
‣ इस दुर्ग को नर दुर्ग भी कहा जाता है।
‣ उदाहरण – गागरोन दुर्ग, मेहरानगढ़ दुर्ग, सिवाणा दुर्ग आदि।

6. स्थल दुर्ग – 
‣ ऐसा दुर्ग जो समतल भूमि पर बना होता है।
‣ उदाहरण – जालौर दुर्ग, सिवाणा दुर्ग आदि।

7. पारिख दुर्ग – 
‣ वह दुर्ग जिसके चारों तरफ सुरक्षा के लिए गहरी खाई बनाई गई हो उसे पारिख दुर्ग कहा जाता है।
‣ उदाहरण – नागौर, बीकानेर, चित्तौड़ आदि।

8. पारिध दुर्ग – 
‣ वह दुर्ग जिसके चारो तरफ सुरक्षा के लिए दीवार/परकोटा बनाई गई हो।
‣ उदाहरण – मेहरानगढ़, जालौर, बीकानेर, जैसलमेर, गागरोन, लोहागढ़ आदि।

9. धान्वन दुर्ग – 
‣ धरातल या मरुस्थल में बना हुआ।
‣ उदाहरण – सुनारगढ़ ( जैसलमेर ) 

2013 में विश्व धरोहर सूची में राजस्थान के 6 दुर्ग शामिल किए गए है।
1. चित्तौड़ 
2. कुंभलगढ़ दुर्ग ( राजसमंद)
3. गागरोन दुर्ग ( झालावाड़)
4. जैसलमेर दुर्ग 
5. रणथंभौर दुर्ग ( सवाईमाधोपुर ) 
6. आमेर दुर्ग 

राजस्थान के प्रमुख दुर्ग – 

1. चित्तौड़गढ़ दुर्ग – 
‣ यह दुर्ग धान्वन दुर्ग को छोड़कर सभी श्रेणी में शामिल है।
‣ इस दुर्ग का निर्माण  7वीं शताब्दी में चित्रांग मौर्य ने करवाया था। 
‣ राणा कुम्भा को इस दुर्ग का आधुनिक निर्माता माना जाता है।
‣ यह दुर्ग अरावली पर्वत श्रृखला के मेशा के पठार पर धरती से 180 मीटर की ऊंचाई पर विस्तृत यह दुर्ग राजस्थान के क्षेत्रफल व आकार की दृष्टि से सबसे विसालकय दुर्ग है जिसकी तुलना बिट्रिश पुरातत्व दूत सर हुयूज केशर ने एक भीमकाय जहाज से की थी उन्होंने ने इस दुर्ग के बारे में यह लिखा है – 
‣ चित्तौड़गढ़ दुर्ग राज्य का एकमात्र ऐसा दुर्ग है जो शुक्रानिति में वर्णित दुर्गों के अधिकांश प्रकार के श्रेणी में  रखा जा सकता है।
‣ इस दुर्ग को चित्रकूट, राजस्थान का गौरव, सिरमौर दुर्ग, दक्षिणी-पूर्वी द्वार तथा दुर्गों का दुर्ग भी कहते है।
‣ यह दुर्ग मेसा के पठार पर स्थित है।
‣ इस दुर्ग की आकृति व्हेल मछली के समान है।
‣ अबुल- फजल ने इस दुर्ग इस दुर्ग के बारे में कहा है ” गढ़ तो चित्तौड़गढ़ बाकी सब गढ़ैया “
‣ यह दुर्ग गंभीर व बेचड़ नदी के संगम पर स्थित है। 
‣ यह दुर्ग की लंबाई 8 किलोमीटर तथा चौड़ाई 2 किलोमीटर की दूरी तक फला हुआ है।
‣ यह दुर्ग दिल्ली से मालवा व गुजरात के रास्ते पर स्थित है जिसका सामरिक महत्व सर्वाधिक है।
‣ यह एकमात्र ऐसा दुर्ग है जिसमे कृषि की जाती है।
‣ इस दुर्ग को 21 जून 2013 में विश्वधरोहर सूची में शामिल किया गया।
‣ चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर दिसंबर, 2018 में 12 रुपए डाक डिकिट जारी की गई।
‣ चित्तौड़गढ़ में प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण एकादशी को जौहर मेले का आयोजन किया जाता है।
‣ इस दुर्ग में फत्ता, जयमल, कल्ला राठौड़ रैदास, बाघसिंह की छतरियां बनी है।
‣ जयमल – फत्ता तालाब, घी – तेल बावड़ी, कातण बावड़ी, गौमुख कुण्ड, सूर्यकुण्ड, भीमतल कुण्ड, हाथीकुण्ड आदि दुर्ग में बावड़ी तथा तालाब बने है।
‣ इस दुर्ग को राजस्थान का प्रवेश द्वार तथा मालवा का प्रदेश द्वार कहते है।

इस दुर्ग में स्थित मन्दिर निम्न है – 
1. सताबीस देवरी मन्दिर –
‣ इस मन्दिर में 27 छोटी – छोटी देवरियां है जो जैन धर्म के 24 तीर्थ करों को समर्पित है।

2. समध्दिश्वर मन्दिर ( नीलकंठ महादेव का मन्दिर) –
‣ यह मन्दिर भगवान शिव को समर्पित है।
‣ इस मन्दिर का निर्माण मालवा के राजभोज ने नागर शैली में करवाया था।
‣ इस मन्दिर का पुनः निर्माण मोकल के द्वारा करवाया गया था। इस कारण से इस मन्दिर को मोकल का भी कहते है।

3. कालिका माता मन्दिर – 
‣ इस मन्दिर का निर्माण 8वीं सदी में मानमौरी के द्वारा करवाया गया था।
‣ यह मन्दिर मूल रूप से सूर्य को समर्पित है।
‣ इस मन्दिर में 12वीं सदी में कालका माता की मूर्ति स्थापित की गई थी।

4. कुंभश्याम माता का मन्दिर – 
‣ यह मन्दिर प्रारम्भमें तो शिव मन्दिर था। इस मन्दिर को बाद में विष्णु मन्दिर बना दिया गया।

5. तुलजा भवानी मन्दिर – 
‣ इस मन्दिर का निर्माण बनवीर के द्वारा करवाया गया था।
यह शिवाजी की कुलदेवी है।

1. कीर्ति स्तम्भ – 
‣ यह चित्तौड़गढ़ में स्थित है।
‣ इसको जैन स्तम्भ या मेरु कनक प्रभः भी कहा जाता है।
‣ यह भगवान आदिनाथ/ऋषभदेव को समर्पित है।
‣ कीर्ति स्तम्भ का निर्माण 12वीं सदी में बघेरवाल महाजन सानाय का पुत्र जैन व्यापारी जीजा शाह ने करवाया।
‣ कीर्ति स्तम्भ में जैन दिगंबर संप्रदाय की जातक नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है।
‣ इसमें आदित्यनाथ की मूर्ति बनी हुई है।
‣ इसकी ऊंचाई 75 फीट है तथा यह 7 मंजिला इमारत है।

2. विजय स्तम्भ – 
‣ यह चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित है।
‣ विजय स्तम्भ की आकृति डमरू के समान है।
‣ विजय स्तम्भ का 9 मंजिला होना नवनिधि का प्रतीक है।
‣ निर्माण – इसका निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया 1440-48 में करवाया था।
‣ यह 122 फिट ऊंची 9 मंजिला इमारत है।
‣ विजय स्तम्भ का निर्माण महाराणा कुम्भा ने सारंगपुर ( मालवा) युद्ध के विजय के उपलक्ष्य में करवाया था।
‣ इसमें 157 सीढियां है तथा इसके आधार की चौड़ाई 30 फूट है।
‣ विजय स्तम्भ की आठवी मंजिल पर कोई मूर्ति स्थित नहीं है ।
‣ इस इमारत का शिल्पी जैता था। जिसके सहयोग नाथा पामा पूंजा ने किया था।
‣ इसकी प्रथम मंजिल पर विष्णु/कुम्भस्वामी मन्दिर स्थित है, जिसके कारण उपेन्द्र नाथ डे ने इसको विष्णु ध्वज कहा है।
‣ विजय स्तम्भ भगवान विष्णु को समर्पित है।
‣ विजय स्तम्भ की तीसरी मंजिल पर 9 बार अरबी भाषा में अल्लाह शब्द लिखा गया है।
‣ इसके चारों तरफ मूर्तियां होने कारण इसे मूर्तियों का अजायबघर कहा जाता है।

इस दुर्ग में मुख्य रूप से सात प्रवेश द्वार है –
1. पाड़न पोल 
2. भैरव पोल
3. हनुमान पोल
4. गणेश पोल
5. जोड़ल पोल 
6. लक्ष्मण पोल 
7. राम पोल 

चित्तौड़गढ़ दुर्ग के साके – 
‣ राजस्थान में सर्वाधिक 3 साके हुए जो चित्तौड़गढ़ दुर्ग में हुवे।

1. प्रथम साका – 
‣ यह साका 1303 में राणा रतनसिंह के शासनकाल में अलाउद्दीन खिलजी के चित्तौड़ पर आक्रमण के समय हुआ था।
‣ इसमें रानी पद्मिनी सहित स्त्रियों ने जौहर किया था।

2. द्वितीय साका – 
‣ यह साका 1534-35 ई. में राणा विक्रमादित्य के शासनकाल में गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह के आक्रमण के समय हुआ था। राणा सांगा की रानी कर्मावती के नेतत्व में जौहर किया था।

3. तृतीय साका – 
‣ यह साका 1567-68 में राणा उदयसिंह के शासनकाल में अकबर के आक्रमण के समय हुआ था।
‣ जिसमे जयमल और पत्ता के नेतृत्व में चित्तौड़ की सेना ने मुगल सेना का जमकर मुकाबला किया था।
‣ राणा उदयसिंह के सेनापति जयमल – फत्ता के नेतृत्व में केसरिया तथा गुलाब कंवर व फूल कंवर के नेतृत्व में जौहर हुआ था।

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