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राज्य मंत्रिपरिष

राज्य मंत्रिपरिषद – दोस्तों आज हम इस पोस्ट में राज्य मंत्रिपरिषद के बारे में जानेंगे। इसमें हम राज्य मंत्रीपरिषद का गठन कब हुआ, राज्य मंत्रिपरिषद अध्यक्ष, राज्य मंत्रिपरिषद के कार्य तथा राज्य मंत्रिपरिषद से सम्बन्धित आर्टिकल के बारे में जानेंगे। यदि आप भी किसी government exams की तैयारी कर रहे है तो हमारी वेबसाइट पर आप बिल्कल free में नोट्स पढ़ सकते हो। राजस्थान में सरकार द्वारा आयोजित सभी प्रकार के एग्जाम में यहां से प्रश्न पूछे जाते है। यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगी। यहां पर आपको राजस्थान के सभी टॉपिक्स के नोट्स उपलब्ध करवाए जा रहे। इन टॉपिक को पढ़कर आप अपनी तैयारी को और बेहतर बना सकते है।

‣ हमारे संविधान के अनुच्छेद 163, 164 व 167 में राज्यों की मंत्रिपरिषद का उल्लेख किया गया है।

‣ संविधान के अनुसार राज्य में राज्यपाल को परामर्श देने के लिए मंत्रिपरिषद की व्यवस्था की गई है।

अनुच्छेद 163 (1) के अनुसार राज्यपाल को उसके कर्त्तव्यों के निर्वाहन में सहायता प्रदान करने के लिए राज्य में एक मंत्रिपरिषद होती है, जिसका प्रधान मुख्यमंत्री होता है।

‣ राज्य की समस्त कार्यपालिका की वास्तविक शक्तियां मुख्यमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिपरिषद में निहित होती है।

अनुच्छेद 163 – 
‣ हमारे संविधान में राज्यपाल को सहायता एवं सलाह देने लिए एक मंत्रिपरिषद होगी।

अनुच्छेद 164 – 
‣ मुख्यमंत्री के परामर्श पर राज्यपाल के द्वारा की जाती है।
‣ मुख्यमंत्री व मंत्रिपरिषद राज्यपाल के प्रसाद पर्यन्त पद पर बने रहते है।
‣ मुख्यमंत्री की सलाह से किसी भी मंत्री को राज्यपाल द्वारा कभी भी पद से हटाया जा सकता है।
‣ मंत्रिपरिषद का कोई मंत्री स्वंय लिखित में राज्यपाल को संबोधित कर अपना त्यागपत्र देकर पद मुक्तहो सकता है।

मंत्रियों के उत्तरदायित्व – 

सामूहिक उत्तरदायित्व
अनुच्छेद 164 (2) के अनुसार संसदीय व्यवस्था में मंत्रिपरिषद राज्य विधानसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होता है।
‣ यदि विधानसभा अविश्वास प्रस्ताव पास कर दे तो सम्पूर्ण मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है।

व्यक्तिगत उत्तरदायित्व – 
अनुच्छेद 164 (1) के अनुसार मंत्रीगण राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त पद धारण करते है।
‣ मंत्रिपरिषद के सभी सदस्य राज्यपाल के प्रति व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायि होते है।

राज्य के मंत्रिपरिषद की नियुक्ति – 
अनुच्छेद 164 के अनुसार राज्यपाल मुख्यमंत्री को तथा मुख्यमंत्री की सिफारिश पर अन्य मंत्रियों को नियुक्त करता है।
‣ उड़िसा, छत्तीसगढ़, झारखण्ड तथा मध्यप्रदेश राज्यों में एक जनजाति मंत्री की नियुक्ति 94वें संविधान संशोधन 2006 – 2007  बिहार जगह छत्तीसगढ़ और झारखंड
‣ मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होता है।

शपथ – 
‣ प्रत्येक मंत्री को पद ग्रहण करने से पहले राज्यपाल 3 अनुसूची के अनुसार पद व गोपनीयता की शपथ दिलाता है।

कार्यकाल – 
‣ राज्यपाल के प्रसाद पर्यन्त ( सामान्यतः 5 वर्ष )
‣ विधानसभा में बहुमत समाप्ति पर त्यागपत्र 
‣ अनुच्छेद 356 लागू होते ही मंत्रिपरिषद भंग हो जाती है।

संरचना – 
‣ मूल संविधान में मंत्रिपरिषद की संरचना का उल्लेख नहीं है लेकिन 91वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के अनुसार राज्य की मंत्रीपरिषद में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या उस राज्य की विधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या के 15 % से अधिक नहीं होगी किंतु राज्य मंत्रिपरिषद में सभी मंत्रियों की कुल संख्या 12 से कम नही होगी।

मंत्रिपरिषद में मंत्रियों के प्रकार – 

इसमें मंत्रियों के तीन वर्ग होते है।

इन मंत्रियों के बीच उनके पदक्रम, वेतन तथा राजनीतिक महत्व के आधार पर अंतर होता है।
1. कैबिनेट मंत्री
2. राज्य मंत्री
3. उपमंत्री 

1. कैबिनेट मंत्री/मंत्रिमण्डल –
‣ मंत्रिपरिषद का एक छोटा मुख्य भाग कैबिनेट/ मंत्रिमण्डल कहलाता है।
‣ यह वरिष्ठ राजनितिज्ञ व महत्वपूर्ण विभागों के प्रभारी मंत्री होते है। 
‣ कैबिनेट स्तर के मंत्रियों की सहायता के लाई उपमंत्री और राज्यमंत्री होते है।
‣ यह स्वंतत्र रूप से एक या अधिक विभागों के राजनीतिक प्रमुख के रूप में कार्य करते है।
‣ कैबिनेट शब्द का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 352 में किया गया है।
‣ सभी महत्वपूर्ण विभाग कैबिनेट मंत्रियों को दिए जाते है। तथा नीतियों के निधारण में भी कैबिनेट मंत्रियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

2. राज्य मंत्री – 
राज्य मंत्री को कैबिनेट के साथ संबद्ध किया जा सकता है तथा राज्य मंत्री को स्वंतत्र प्रभार भी दिया जा सकता है, ये मंत्रिमण्डल के सदस्य नहीं होते तथा कैबिनेट में तभी भागा ले सकते है, जब इनको बुलाया जाता है।

3. उपमंत्री – 
‣ उपमंत्री की भूमिका कैबिनेट मंत्री के कार्यभार को काम करना होता है।
‣ कैबिनेट के सदस्य नहीं होते तथा इन्हें स्वतंत्र प्रभार भी नहीं दिया जाता है।
‣ नए विधायकों को प्रशासनिक अनुभव प्रदान करने के उद्देश्य से उपमंत्री नियुक्त किया जाता है।

मंत्रिपरिषद शक्तियां व कार्य – 
‣ राज्य के मंत्रीपरिषद का कार्य संघीय मंत्रीपरिषद के समान है। इनकी शक्तियों व कार्य को निम्न प्रकार से समझ सकते है।

नीति निर्माण – 
‣ मंत्रिपरिषद राज्य का प्रशासन चलाने के लिए नीति का निर्धारण करती है।
‣ मंत्रिपरिषद राज्य की राजनीतिक आर्थिक और सामाजिक समस्याओं को संबोधित करती है।

कानून लागू करना – 
‣ राज्य विधानमण्डल द्वारा बनाए गए कानूनों को लागू करने की जिम्मेदारी मंत्रिपरिषद की होती है।
‣ जब तक इसे लागू नहीं किया जाता है तब तक कानून को कई महत्व नहीं होता है तथा यह मंत्रिपरिषद पर निर्भर होता है कि वह कानून को लागू करे।
‣ राज्य के अंदर शांति बनाए रखने का काम मंत्रीपरिषद का है।

नियुक्ति – 
‣ राज्यपाल सभी नियुक्तियां मंत्रिपरिषद के परामर्श से ही करता है। वास्तव में नियुक्तियों के बारे में सभी निर्णय मंत्री मण्डल द्वारा लिए जाते है तथा राज्यपाल उन सभी निर्णयों के अनुसार नियुक्तियां करता है।
‣ जैसे – राज्य लोक सेवा आयोग अध्यक्ष व सदस्य, महाधिवक्ता, वित्त आयोग, लोकायुक्त, निर्वाचन आयुक्त आदि।

वित्तीय शक्तियां – 
‣ राज्य का बजट मंत्रिपरिषद के द्वारा ही तैयार किया जाता है।

वैधानिक शक्तियां – 
कानून निर्माण का कार्य विधानमंडल का होता है। परंतु व्यवहार में इसे मंत्रीपरिषद द्वारा ही पूर्ण किया है।
‣ मंत्री परिषद के सभी सदस्य विधान मंडल के सदस्य है।
‣ वे विधान सभी बैठकों में भा लेते है मतदान करते है। सभी महत्वपूर्ण बिल मंत्रीपरिषद द्वारा तैयार किए जाते है तथा विधान मंडल में किसी मंत्री द्वारा पेश किया जाता है।

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