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गरीबी क्या है –
गरीबी बुनियादी मानवीय जरूरतों से – भोजन , वस्त्र ,मकान , सुरक्षित पेयजल जा आभाव होना।
गरीबी / निर्धनता से अभिप्राय है जीवन के लिये न्यूनतम उपभोग आवश्यकताओं को प्राप्त करने की अयोग्यता।
इस न्यूनतम आवश्यकताओं में भोजन, वस्त्र, मकान, शिक्षा तथा स्वास्थ्य संबंधी न्यूनतम मानवीय आवश्यकताएँ शामिल होती है।
गरीबी को अक्सर सामाजिक बहिष्कार निर्भरता व समाज में अन्य लोगों जे साथ सार्थक बंधन विकसित करने की क्षमता में कमी के रूप में अनुभव किया जाता हैं।
गरीबी के प्रकार (Types of Poverty)
सापेक्षिक गरीबी (Relative Poverty)
- सापेक्ष गरीबी एक ऐसी स्थिति हैं जब कोई व्यक्ति या परिवार समाज में न्यूनतम औसत जीवन स्तर तक पहुँचने में असमर्थ होता है।
- सापेक्षिक गरीबी की स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब किसी देश या क्षेत्र के कुछ लोगों की आय या जीवन का स्तर सामान्य लोगों से भिन्न होता है।
- समाज के औसत व्यक्ति की तलना में किसी व्यक्ति के उपभोग, आय व संपत्ति के अभाव को सापेक्षिक गरीबी कहते हैं।
निरपेक्ष/ गरीबी (Absolute Poverty)
- पूर्ण निर्धनता एक ऐसी अवस्था है जिसमें व्यक्ति या परिवार अपनी आजीविका को मुश्किल बनाकर बुनियादी जरूरतों से अत्यधिक वंचित हो जाते हैं।
- निरपेक्ष गरीबी की स्थिति में मनुष्य की बुनियादी आवश्यकताओं, • जैसे – भोजन, सुरक्षित पोयजल, स्वच्छता सुविधाएं, स्वास्थ्य एवं शिक्षा इत्यादि का अभाव होता है।
भारत में गरीबी से संबंधित सपीतियाँ
- भारत में गरीबी के निर्धारण हेतु राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) एक मुख्य संस्था के रूप में कार्य करता है।
- भारत में गरीबी को मापने के लिए खर्च अथवा उपभोग विधि का प्रयोग किया जाता है।
- भारत में गरीबी के निर्धारण हेतु 1997 में योजना आयोग द्वारा डॉ. वाई. के. अलघ की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया।
- इस कार्यदल द्वारा जनवरी 1979 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।
- जिसमें ग्रामीण क्षेत्र के लिये 2400 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन तथा शहरी क्षेत्र के लिये 2100 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन की संस्तुति की गई
लकड़ावाला समिति
- योजना आयोग द्वारा देश में निर्धनता को मापने के लिये 1989 में प्रो.डी.टी.
- लकड़ावाला की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ दल का गठन किया गया।
- 1993 में प्रस्तुत की गई अपनी रिपोर्ट में इस विशेषज्ञ दल ने प्रत्येक राज्य में ग्रामीण व शहरी निर्धनता के लिये अलग-अलग मूल्य सूचकांको की बात की।
सुरेश तेंदुलकर समिति
- वर्ष 2005 में योजना आयोग ने सुरेश तेंदुलकर की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ कार्यदल का गठन किया।
- सुरेश तेंदुलकर समिति ने प्रति व्यक्ति प्रतिदिन खर्च ग्रामीण क्षेत्रों में ₹ 27 तथा शहरी क्षेत्रों में ₹ 33 को अपनाया।
नीति आयोग के प्रथम उपाध्यक्ष
अरविद पनगड़िया टास्क फोर्स
- मार्च 2015 में नीति आयोग द्वारा हॉ. अरविद पनगड़िया की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स का गठन किया गया।
- इसका प्रमुख कार्य भारत में निर्धनता के आकलन हेतु विधि का सुझाव देना था।
सी. रंगाराजन समिति
- योजना आयोग ने वर्ष 2012 में सी. रंगाराजन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया।
- सी. रंगाराजन समिति द्वारा 2014 में अपनी रिपोर्ट सौंपी गई। सी. रंगाराजन समिति के आधार पर अखिल भारतीय स्तर पर ग्रामीण क्षेत्र के लिये ₹ 972 तथा शहरी क्षेत्र के लिये₹ 1407 पति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय को गरीबी रेखा के रूप में परिभाषित किया गया।
गरीबी के दुष्परिणाम
- भुखमरी, कुपोषण एवं खराब स्वास्थ्य की समस्याएँ
- आर्थिक संवृद्धि का निम्न होना
- समाज में असमानता में वृद्धि
- जनसंख्या वृद्धि में सहायक
- बालश्रम में वृद्धि
- अशिक्षा की समस्या में वृद्धि
- उत्पादन के संसाधनों पर अत्यधिक दबाव
- स्वच्छता का अभाव
- बढ़ती हुई आत्महत्या की घटनाएँ।
- गरीबी को दूर करने के उपाय
- सकल घरेलू उत्पाद में तीव्र वृद्धि
- जनसंख्या की वृद्धि दर को कम करना
- रोजगार के नए अवसरों का सृजन
- आर्थिक संवृद्धि की प्रक्रिया को अधिक समावेशी बनाना
- व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देना
- उत्पादन की तकनीक में परिवर्तन
- स्वरोजगार के लिये नये अवसरों का सृजन बचत एवं पूंबी निर्माण की दर को बढ़ावा देना
- आय के साधनों का समान वितरण कर प्रणाली में आवश्यक सुधार
- प्रभावपूर्ण सार्वजनिक वितरण प्रणाली
निर्धनता उन्मूलन हेतु सरकार द्वारा चलाए गए महत्वपूर्ण कार्यक्रम प्रधानमंत्नी उज्वला योजना
मई 2016 में केंद्र सरकार ने गरीबी रेखा के नींचे रहने वाले परिवारों की महिलाओं को निःशुल्क एलपीजी कनेक्शन प्रदान करने वाली ‘प्रधानमंत्री उज्वला योजना’ आरंभ की है।
• प्रधानमंत्नी उज्वला योजना के तहत बीपीएल परिवारों को एक भरा हुआ गैस सिलेंडर, रेगुलेटर व पाइप मुफ्त में दिया जाएगा।
दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना
25 सितंबर, 2014 को भारत सरकार द्वारा गरीब परिवारों के 15-35 वर्षों के ग्रामीण युवाओं के कौशल विकास और उत्पादन क्षमता के विकास पर बल देने के लिए ‘दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना’ का शुभारंभ किया गया।
इस योजना का उद्देश्य कौशल विकास और अन्य उपायों के माध्यम से आजीविका के अवसरों में वृद्धि कर ग्रामीण युवाओं के जीवन स्तर में सुधार लाना और उनका समावेशी विकास करना है
इस योजना का क्रियान्वयन ‘ग्रामीण’ विकास मंत्रालय’ द्वारा किया जा रहा है।
दीनदयाल उपाध्याय जत्योदय योजना
25 सितंबर, 2014 को भारत सरकार द्वारा शहरी गरीबों के कौशल विकास हेतु दीनदयाल उपाध्याय शहरी कौशल योजना आरंभ की गई।
• योजना का उद्देश्य, कौशल विकास और अन्य उपायों के माध्यम से अजीविका के अवसरों में वृद्धि कर शहरी गरीबी को कम करना है।
• शहरी क्षेत्रों में इस योजना का कार्यान्वयन केंद्रीय आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण
• ‘प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण का उद्देश्य सभी बेघर परिवारों और कच्चे तथा टूटे-फूटे मकानो में रहने वाले परिवारों को 2022 तक बुनियादी सुविधाओं में युक्त पक्का मकान उपलब्ध कराना है।
• सब के लिये घर के उद्देश्य को पूरा करने के लिये वर्ष 2021-22 तक 2.95 करोड़ आवासों का निर्माण करने का लक्ष्य रखा गया है।
बेरोजगारी
• भारत में बेरोजगारी से संबंधित आँकड़े ‘राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office NSSO) द्वारा जारी किये जाते हैं।
भारत में बेरोजगारी का वर्गीकरण
• भारत में बेरोजगारी को मुख्यतया दो प्रकार से देखे जा सकते हैं –
बेरोजगारी के प्रकार
- ग्रामीण बेरोजगारी
- शहरी बेरोजगारी
- मौसमी बेरोजगारी
- शिक्षित बेरोजगारी
- औद्योगिक बेरोजगारी
- अदृश्य बेरोजगारी
1. शहरी बेरोजगारी – शहरी क्षेत्रों में मुख्य रूप से दो प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती है –
2. औद्योगिक बेरोजगारी – औद्योगिक बेरोजगारी में वे लोग शामिल होते है, जो लोग तकनीकी एवं गैर- तकनीकी रूप से कार्य करने की क्षमता तो रखते हैं, परंतु बेरोजगार है।
3. शिक्षित बेरोजगारी – पढ़े-लिखे लोगों द्वारा रोजार न प्राप्त कर पाना शिक्षित बेरोजगारी कहलाती है अर्थात् ऐसे श्रमिक जिनके शिक्षण-प्रशिक्षण में बड़ी मात्रा में संसाधन उपयोग किये जाते हैं तथा इन श्रमिकों की कार्य दक्षता भी अन्य श्रमिकों से अधिक होती है, ऐसे रोजगार विहीन श्रमिकों को ‘शिक्षित बेरोजगार कहते हैं।
4. ग्रामीण बेरोजगारी – ग्रामीण क्षेत्रों में मुख्यतः दो प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती है –
5. प्रच्छन / अदृश्य बेरोजगारी – कृषि क्षेत्र में प्रच्छन्न बेरोजगारी की समस्या अत्यधिक पाई जाती है।
प्रच्छन बेरोजगारी वह है, जिसमें किसी कार्य को करने के लिये जितने श्रमिकों की आवश्यकता होती है, उससे अधिक श्रमिक काम पर लगे हुए होते हैं। ‘अदृश्य बेरोजगार’ उसे कहते हैं।
6. मौसमी बेरोजगारी – एक वर्ष के किसी मौसम या कुछ महीनों के लिये किसी व्यक्ति को रोजगार मिलना तथा शेष महीनों या मौसम में कार्य नहीं मिलना ‘मौसमी बेरोजगारी’ कहलाता है।
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में मौसमी बेरोजगारी अधिक पाई जाती है।
भारत में बेरोजगारी के कारण
- भारतीय अर्थव्यवस्था की आर्थिक सवृद्धि दर का निम्न होना
- आर्थिक संवृद्धि में मुख्य रूप से सेवा क्षेत्र की भागीदारी अत्यधिक है, जबकि यह आनुपातिक रूप से रोजगार सृजित करने में विफल रहा है।
- LPG सुधारों के कारण MSMEs पर प्रतिकूल प्रभावा
- निजी क्षेत्र और विदेशी निवेश द्वारा स्वचालन तथा पूंजी गहन निवेश
- पूंजी की कमी, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में निवेश में कमी।
- अपर्याप्त बुनियादी ढांचा।
- शिक्षा व्यवस्था में व्यापक दृष्टिकोण की कमी तथा रोजगार नीति और
- बढ़ती जनसंख्या सहित नीतिगत मुद्दे।
- जनसंख्या मे तीव्र वृद्धि
- दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली
- बचत एवं निवेश का निम्न स्तर
- कृषि एक मौसमी व्यवसाय
- भूमि पर जनसंख्या का बढ़ता दबाव
- लघु एवं कुटीर उद्योगों का ह्रास
- कृषि आधारित उद्योगों का अभाव
- रोजगार विहीन संवृद्धि
- श्रमिकों की गतिशीलता का अभाव
- नागरिकों में उद्यमशीलता का अभाव
- नागरिको में कौशल एवं तकनकी ज्ञान का अभाव
- अपर्याप्त रोजगार योजनाएँ
- परंपरागत हस्तकला उद्योगों का ह्रास
- स्वरोजगार की इच्छा का अभाव