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मारवाड़ के राठौड़ वंश का इतिहास PDF

मारवाड़ के राठौड़ वंश सूर्यवंशी हिन्दू थे।

राठौड़ की उत्पत्ति –
दक्षिण भारत – राष्ट्रकूट
कन्नौज – गहड़वाल

1. राव सीहा

संस्थापक पालीवाल ब्राह्मणों की सहायता के लिए 1240 में कन्नौज से मारवाड़ आया।

राजधानी – खेड (बाड़मेर)
छतरी – बीडू (पाली)

2. धूहड़

अपनी कुल देवी नागणेची माता की मूर्ति कर्नाटक से लेकर आया।
मन्दिर – नागाणा (बाड़मेर)

3. मल्लीनाथ

राजधानी – मेवानगर (बाड़मेर) (नाकोड़ा)

मल्लीनाथ जी राजस्थान के लोक देवता है।

मल्लीनाथ जी के कारण बाड़मेर अंत को मालागी कहा जाता है।

गणगौर पर गौंदोली का गीत गाया जाता है।

4. चूडा

प्रतिहार (इन्दा शाखा) शासकों ने पूंग से अपनी राजकुमारी की शादी की तथा मण्डौर दहेज में दिया। इसके बाद राजधानी मण्डौर को बनाया ।

5. जोबा

1459 में जोधपुर की स्थापना की। यहां मेहरानगढ़ किले का निर्माण करवाया। इस किले की नींव करणी माता’ ने लगायीजोधा के बेटे बीका ने बीकानेर की स्थापना की ।

6. मालदेव (1531-62)

अपने पिता गागा की हत्या करके राजा बना था ।
मालदेव जब राजा बना तब उसके पास दो परगने – सोजत जोधपुर बाद में मालदेव ने 52 युद्धों से 58 परगने जीते थे।

पाहेबा / सहिबा का युद्ध – 1541 जैतसी (बीकानेर) V/S मालदेव
मालदेव युद्ध जीत गया
जैतसी लड़ता हुआ मारा गया।’

जैतसी का होटा कल्यानमल शेरशाह सूरी के बात दिल्ली-चला गया । मालदेव ने मेड़ता पर अधिकार कर लिया। मेड़ता का राजा वीरमदेव शेरशाह सूरि के पास दिल्ली चला गया ।

हुमायूँ- मालदेव संबंध

वीरशाह सूरि से हारने के बाद जब हुमायूँ राजस्थान से होकर जा रहा था तब उसने जोगीठीर्थ नामक स्थान से मालदेव के पास सहायता के लिए तीन इत भेजे – अतका खा, मीर समंद, रायमल सोनी

मालदेव ने सकारात्मक उत्तर दिया तथा हुमायूँ को बीकानेर देने का वादा किया लेकिन हुमायूँ मालदेव पर विश्वास नहीं करता तथा अपने पुस्तकालय अध्यक्ष मुल्ला सूर्ख के कहने पर सिंध की तरफ चला जाता है।

यदि हुमायूँ व मालदेव थोड़ी समझदारी दिखाते तो शेरशाह सूरि के खिलाफ मुगल – राजपूत सम्बन्ध बना सकते थे तथा भारत से अफगान सत्ता को समाप्त कर सकते थे। कालान्तर में अकबर में मुगल – राजपूत सम्बन्ध स्थापित किये थे, वे इसी लमय शुरू हो जाते है।

गिरी-सुमेल का युद्ध (1544):- मालदेव V/S शेरशाह सूरि

जैतारण

कल्यानमल (बीकानेर)
वीरमदेव (मेड़ता)

जलाल खाँ जलवानी की सहायता से शेरशाह ने युद्ध जीत लिया ।2

शेरशाह की चालाकी के कारण मालदेव युद्ध से हट गया।

जैता तथा कुम्वा (मालदेव के सेनापति) ने शेरशाह के साथ लड़ाई की

जीतने के बाद शेरशाह ने कहा था- मुठ्ठी भर बाजरे के लिए हिन्दुस्तान की बादशाहत खो देता

शेरशाह ने जीधपुर, पर अधिकार कर लिया तथा खवान खाँ

मालदेव सिवाणा चला गया।

सिवाना को माखाड़ के राठौड़ो की शरणस्थली कहा जाता है।

थोड़े दिनों बाद मालदेव ने जोधपुर पर वापान अधिकार कर लिया ।

शेरशाह के साथ सम्बन्धों में मालडेव कुटनीतिक गलतियां करता है। उसने कल्याणमल व वीरमदेव को शेरशाह के पास जाने का अवसर दिया अन्यथा वह शेरशाह के खिलाफ राठौड़ों का गठबन्धन बना सकता था ।

यदि वह शेरशाह की चालाकी में नहीं आता तो गिरी-सुमेल का युद्ध जीत सकता था।

Q . मालदेव के हुमायूँ व हशेरशाह के साथ सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए,

उमादे
जैसलमेर के राजा लूणकरण भाटी की बेटी थी
मालदेव की रानी थी।
भारमली नामक दासी के कारण मालदेव से नाराज हो गई थी। इसलिए इसे रूठी रानी कहा जाता है।

जला – बारात का डेरा देखने जाते समय महिलाओं द्वारा गाया जाने वाला

मालदेव के दरबारी विद्वान

1. ईसर दास की पुस्तके – हाला झाला री कुण्डलियां (सूर सतसई) , देवीयान, हरिरस

2. आशानन्द जी – उमादे भटियाणी रा कवित, बाबा भारमली रा दूहा
आशानन्द जी ने पाहेबा युद्ध में भाग लिया।

मालदेव ने जोधपुर में चार दीवारी का निर्माण करवायां ।’

मेड़ता, रीया (नागौर), सोजत, पोकरण इनमें किलो का निर्माण करवाया 1

उपाधियां :-

हिन्दु बादशाह
हशमत वाला राजा ( वैभव शाली राना)

मालदेव ने अपने बड़े बेटो राम व उदयसिंह को राजा नहीं बनाया बल्कि छोटे बेटे चन्द्रसेन को राजा बनाया इसलिए राम व उद‌यसिंह: अकबर के पास चले गये ।

7. चन्द्रसेन

अकबर ने राम की सहायता के लिए जोधपुर पर आक्रमण किया तो चन्द्रसेन भाद्वाजून (जालौर) चला गया।

चन्द्रसैन ने अकबर के नागौर दरबार (1570) में भाग लिया लेकिन वहाँ अकबर को अपने भाई उदयसिंह के से बिना मिले ही चला गया था । पद्म में देखकर अकबर

अकबर ने भाद्राजूण पर आक्रमण किया तो चन्द्रसेन सिवाणा चला जाता है।

चन्द्रसेन ने आजीवन संघर्ष किया एवं अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की।

1581 में सारण की पहाड़ियों में सिंचियाई (पाली) नामक स्थान पर चन्द्रसेन की मृत्यु हो गई ।

अकबर में बीकानेर के रायसिंह को 1672-74 तक जोधपुर का प्रशासक नियुक्त किया था।

उपाधिया
1. मारवाड़ प्रताप
2. प्रताप का अग्रगामी
3. मारवाड़ का भूला बिसरा राजा

चन्द्रसेन व प्रताप में समानताएं

1. दोनों ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की

2. दोनों ने छापामार युद्ध प्रणाली से संघर्ष किया।

3. दोनों को अपने भाइयों के विरोध का सामना करना पड़ाजैसे प्रताप को जगमाल का तथा चन्द्रसेन को राम व उदयसिहं का

4 दीनों के अधिकांश राज्य पर अकबर ने कब्जा कर लिया था । केवल थोड़ी सी भूमि के बल पर उन्होंने अकबर से संघर्ष किया

5. दोनों को अपने राज्य के बाहर शरण लेनी पड़ी। जैसे प्रताप को छप्पन के मैदान में (बांसवाड़ा) तथा चन्द्रसैन को ड्रॉरपुर के महारावल आसकरण के पास ।

असमानताएं :

1. प्रताप का मुगल विरोध उसके राज- विलक के साथ शुरू हो गया था जबकि चन्द्रसेन का मुगल विरोध नागौर दरबार के बाद शुरू हुआ था ।

2. प्रताप का मुगल विरोध उसकी मृत्यु के बाद उसके बेटे अमर सिंह ने जारी रखा जबकि चन्द्रसेन का मुगल विरोध उसकी मृत्यु के साथ समाप्त हो गया।

3. प्रताप ने हल्दीघाटी व दिवेर में प्रत्ष अकबर से आमने-सामने की लड़ाई लड़ी जबकि -चन्द्रसेन ऐसा नहीं कर पाया था।

4. प्रताप में चावण्ड में स्थायी केन्द्र स्थापित किया जबकि चन्द्रसेन ऐसा कोई केन्द्र नहीं बना पाया।

5. प्रताप ‘ने मेवाड में राष्ट्रवाद की भावना का संचार किया जबकि चन्दसे भारवाड़ में ऐसा नहीं कर पाया ।

इन असमानताओं के बावजूड चन्द्रसैन मारवाड़ का प्रताप है..

क्योंकि –
1. चन्द्रसेन की भौगोलिक परिस्थितियां प्रताप की तुलना में प्रतिकूल थी

2. प्रताप की भामाशाह व ताराचन्द जैसे दानवीर साथी मिल गये थे जबकि चन्द्रसेन को शुरू से अन्त तक जन-धन की कमी थी।

8. मोटा राजा उदयसिंह

जागौर दरबार (1570)

अकबर ने अकाल राहत कार्य शुरू करने के उद्देश्य से. नागौर में दरवार का आयोजन किया लेकिन उसका वास्तविक उद्देश्य राजस्थान के राजाओं को अधीनता स्वीकार करवाना था ।

कल्याणमल (बीकानेर), हरराज (जैसलमेर), उदयसिंह (चन्द्रसेन का भाई) इन्होने दरबार में अकबर की अधीनता स्वीकार की थी।

नागौर दरबार का महत्व :-

1. अकबर ने कूटनीति के माध्यम से बिना लड़े ही राजस्थान के राजाओं की अधीनता स्वीकार करवाई।

2. राजस्थान के राजाओं का स्पष्ट विभाजन हो गया था, मुगल सहयोगी ⅱ) मुगल विरोधी

3. प्रताप व चन्द्रसेन को छोड़कर मुगल आक्रित राजाओं की श्रृंखला, प्रारम्भ हुईजैसे मानसिंह, रायसिंह (बीकानेर) (आमेर,)

4. युद्ध समाप्त होने से शांति व्यवस्था स्थापित हुई जिससे कलात्मक गतिविधियों को बढ़ावा मिला।

नागौर दरबार –

ई अकबर ने इस समय नागौर में शुक्र तालाब का निर्माण करवाया 13

मोटा राजा उदयसिंह ने अपनी बेटी मानी बाई (जोधा बाई) की शादी जहांगीर से की। जहांगीर ने इसे जगत गोसाई की उपाधि दी। खुर्रम (शाहजहाँ) इसका बेटा था ।

कल्ला रथिमलौत

मोटा राजा उदयसिंह के भाई रायमल का बेटा था।

सिवाणा का सामन्त था।

1590 में अकबर के खिलाफ सिवाना में दूसरा साका किया। पृथ्वीराज राठौड़ (बीकानेर) ने इसके मरसिये लिखे थे।

9. गजसिंह

अनारा बेगम के कहने पर अपने छोटे बेटे जसवंत सिंह को जोधपुर का राजा बनाया तथा बड़े बेटे अमरसिंह को नागौर का राजा बनाया गया।

अमरसिंह राठौड़ :- नागौर का राजा

मतीर री राड़ (1644):- अमरसिंह (नागौर) VIS कर्णसिंह (बीकानेर) अमरसिंह राठौड़ ने शाहजहाँ के दरबार में उनके मीरबख्शी सलावत वर्षों को मार दिया था।

अमरसिंह राठौड़ को कटार का स्वामी कहा जाता है। नागौर में इसकी 16 खम्भों की छतरी है।

मरसिये लिखे बहादुरी पूर्वक लड़ते जाने वाले दोहे हुए मारे जाने सामिला – दुल्हन पक्ष द्वारा बारात का स्वागत करना

अमरसिंह की हत्या उसके साले अर्जुन सिंह गौड ने की थी । आगरा किले में अमरसिंह दरवाजा है जिसे शाहजहां ने बद कखा दिया था । कालान्तर में अग्रेंज अवसर जॉर्ज स्टील ने इसे खुलवाया ।

यवन – गैर हिन्दु काफिर – गैर मुस्लिम

10. जसवन्त सिंह

धरमत के युद्ध से वापस आने पर इसकी हाडी रानी जसवन्त देने किले के दरवाजे बंद कर दिये थे।

इसने खजुआ के युद्ध में भी भाग लिया था।

औरंगजेब ने इसे काबुल का गवर्नर बना दिया था । काबुल में जमरूद का थाना नामक स्थान पर मृत्यु हो गई

(1678) इसकी मृत्यु पर औरंगजेब ने कहा था “आज कुक्र का दरवाजा टूट गया । –

धर्म का विरोध

जसवन्तसिंह के बेटे पृथ्वीसिंह ने शेर के साथ लड़ाई की थी। औरंगजेब ने उसे जहरीली ड्रेस देकर मखा दिया ।

जसवन्तसिंह की पुस्तकें – आनन्द बिलास, भाषा भूषण प्रबोध चन्द्रोदय, अपरोक्ष सिद्धान्त सार

जोधपुर में राई का बाग महल का निर्माण करवाया

दरबारी विद्वान :
मुहणौत नैणसी
1. नैणसी री ख्यात
यह राजस्थान का पहला ख्यात गय है।
2. मारवाड़ रा परगना री बिगत राज यत्र
इस पुस्तक को मारवाह का गजत कहा जाता है।
इसमें जनगणना का उलेख है

मैणसी ने अपने भाई सुन्दरदास के साथ आत्महत्या कर ली थी। (कर्जे के कारण)

मुंगी देवी प्रसाद ने नैणसी को राजपूताने का अबुल फजल कहा है।

औरगंजेब ने जसवन्तसिंह के बेटी अजीतसिंह व उलथम्भन को दिल्ली में रूपसिंह राठौड़ की हवेली में नजरबंद कर दिया ।

इन्द्रसिहं राठौड़ (नागौर) की 36 लाख रूपये लेकर जोधपुर का शामक बना दिया ।

11. अजीतसिंह

-दुर्गादास राठौड़, मुकुन्द द्वास खर्वांची व गौरा की सहायता से अजीतसि को लेकर जोधपुर आ जाता है।

गौरा को मारवाड़ की पन्नाधाय कहा जाता है।

मारवाड़ के राष्ट्रगीत घूंसो में गौरा का नाम लिया जाता था । जोधपुर में गौरा की छतरी है।

औरगंजेब ने नकली अजीतसिंह का नाम मोहम्मदीराज रखा तथा उगने अपनी बेटी लेबुन्निसा को दे दिया ।

दुर्गादास राठौड़ ने अजीतसिंह को कालिन्द्री (सिरोही) में जयदेव पुरोहित के यात रखा।

दुर्गादास राठौड़ ने मेवाड़ के राजसिंह के साथ मिलकर औरंगजेब के

बेटे अकबर से विद्रोह करवा दिया। औरगंजेब की चालाकी के कारण अकबर की शम्भाजी के पान दक्षिण भारत में जाना पड़ा। अकबर के बेटे बेटी बुलन्द अख्तर व सफीयतुनिशा की दुर्गादान ने अपने पास रखा । कालान्तर में ईश्वर दास नागर के कहने पर दुर्गादास ने इन्हें औरंगजन को सौंप दिया था |

1708 में अजीतसिंह जोधपुर का राजा बना

दुर्गादास के नेतृत्व में अजीतसिंह को राजा बनाने के लिए 30 वर्ष तक से प्रवास किये गये इसे मारवाड़ राठौड़ी का 30 वर्षीय संघर्ष कहा जाता है।

अजीत सिहं ने दुर्गादास की जोधपुर से निकाल दिया ।

अजीतसिंह ने अपनी बेटी इन्द्र कंवर की शादी मुगल बादशाह फर्रुखसियर के साथ की। यह अन्तिम हिन्दू राजकुमारी थी जिसकी शादी मुगल बादशाह से की थी।

अजीतसिंह की हत्या उसके बेटे बरख्तसिहं ने कर दी थी। अजीतसिहं के अन्तिम संस्कार में कई पशु-पक्षी जलकर मर गये थे ।

दुर्गादास राठौड़

जन्म – सालवा

पिता – आसकरण

जागीर – लूणेवा पिता ने दी।

मेवाड़ के अमरसिंह – ने दुर्गादास को रामपुरा व विजयपुर की जागीर दीं थी।

दुर्गादास की छतरी उज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे है।

उपाधियां -1. राठौड़ी का यूलीसेज (जेम्स हाँड)
2. राजपूताने का गेरीबाल्डी
3. मारवाडू का अणबिन्धिया, मोती

12. अभयसिंह

खेजड़‌ली घटना 1730 ई. (विक्रम सम्वत् 1787)

भाद्रपद शुक्ल दसमी – अमृता देवी विश्नोई के नेतृत्व, में 363 लोग, पेड़ों को बचाने के लिए शहीद हो गये थे। इनके नाम से पर्यावरण संरक्षण के अंत में पुरस्कार दिया जाता है।

खेजड़ली में वृक्ष, मेला लगाया जाता है।

दरबारी विद्वान :-

1. करणी दान सूरज प्रकास (बिड्दु सिनगार)

2. वीर भाग राजरूपक

इन दोनों पुस्तकों में अभयसिंह के अहमदाबाद आक्रमण का वर्णन किया गया है।

13. मानसिह

मानसिंह जब जालौर में था तो देवनाथ ने उसके राजा बनने की भविष्यवाणी की थी।

जोधपुर में नाथ सम्प्रदाय के लिए महामंदिर बनवाया।

पुस्तक – नाथचरित्र

जोधपुर में मान पुस्तकालय बनवाया (मान पुस्तक प्रकाश) 1818 में अंग्रेजो के साथ संधि की ।

दरबारी विद्वान – कवि राजा बोकीदास जी Books, बांकीदास री ख्यात मान जसो मण्उन कुकवि बतीती दातार बाबनी ( गीत – आयो अंग्रेज मुल्क र ऊपर इस गीत में अंग्रेजों का साथ दे देने बाने राजाओं की आलोचना की है

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