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नागर शैली –
- मंदिर वास्तुकला 3 की जिस शैली का विकास उत्तर भारत में हुआ उसे नागर शैली कहते हैं।
- इस शैली के मंदिर मुख्यतः हिमालय पर्वत से विंध्य पर्वत के मध्य देखने को मिलते हैं।
- 8वीं से 13वीं शताब्दी के मध्य उत्तर भारत के शासकों द्वारा इसे संरक्षित किया गया था।
- क्षेत्रीय आधार पर नागर शैली के मंदिरों में पर्याप्त भिन्त्रता देखने को मिलती है जिस कारण इस स्थापत्य कला को
- मुख्यतः 3 उप-शैली में विभाजित किया जाता है जैसे- ओडिशा उप-शैली, खजुराहो उप-शैली, सोलंकी उप- शैली।
नागर शैली की विशेषताएं-
- इस शैली के मंदिर का निर्माण पंचायतन शैली में हुआ है जिसमें मुख्य मंदिर के साथ सहायक मंदिर भी बनाए गए हैं।
- इस शैली के मंदिरों को ऊंचे चबूतरे पर बनाया जाता है।
- मुख्य मंदिर के सामने मंडप या सभाकक्ष होते थे।
- क्रॉस आकार का तल विन्यास और वक्ररेखीय शिखर इस शैली की प्रमुख विशेषताएं हैं।
- गर्भ गृह के चारों ओर एक वृत्ताकार मार्ग होता है जिसे प्रदक्षिणा पथ कहते हैं।
- ओडिशा शैली को छोड़कर इस शैली के मंदिर परिसर सामान्यतः चारदीवारी से घिरे नहीं होते थे
- गर्भ गृह के बाहर नदी देवियों की प्रतिमाओं को स्थापित किया जाता था।
- स्तंभों का प्रयोग द्वार मंडपों के निर्माण में किया जाता था।
- नागर शैली के मंदिरों में प्रवेश द्वार निर्मित नहीं किया जाता था।
- इस शैली के मंदिर परिसर में कोई जलाशय नहीं होता था।
- मंदिर के ऊपर एक तश्तरीनुमा संरचना होती है जिसे आमलक कहा जाता है।
- आमलक के ऊपर एक गोलाकार आकृति को स्थापित किया जाता था जिसे कलश कहते हैं।
नागर शैली की उप-शैलियाँ –
ओडिशा शैली-
- ओडिशा में कलिंग साम्राज्य के समय में इस स्थापत्य शैली का विकास हुआ।
- सोम, भीम, चेदी और गंग शासकों ने इस शैली को संरक्षण प्रदान किया।
- ओडिशा में शिखर को देउल कहा जाता है।
- इस शैली में मंडप को जगमोहन कहा जाता है।
- सामान्यतः मुख्य मंदिर वर्गाकार होता है।
- द्रविड़ शैली के समान इस शैली के मंदिर भी चारदीवारी से घिरे होते हैं।
- डयोढी (Porch) में खम्भों का उपयोग नहीं किया जाता था।
- बाहरी दीवारों पर अत्यधिक नक्काशी की जाती थी जबकि भीतरी दीवारों को सादा ही रखा जाता था।
कोणार्क का सूर्य मंदिर-
- कोणार्क का सूर्य मंदिर, भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर और पुरी का जगन्नाथ मंदिर इस शैली के प्रमुख उदाहरण हैं
- यह मंदिर ओडिशा राज्य के पुरी के निकट स्थित है।
- मंदिर को रथ के आकार में बनाया गया है तथा सूर्य देवता को समर्पित है।
- इस सूर्य मंदिर का निर्माणा गंग शासक राजी नरसिंह देव प्रथम ‘ने 13वीं शताब्दी में कराया था।
- इसे ब्लैक पैगोडा भी कहा जाता है।
- इसे 1984 ई. में यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया।
भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर-
- 11वीं शताब्दी में इस मंदिर को निर्मित किया गया था जो भगवान शिब को समर्पित है।
- इसका निर्माण सोमवंशी राजा ययाति प्रथम ने करवाया था।
- यह ओडिशा में शैव एवं वैष्णववाद के समन्वय का प्रतीक है।
- लिंगराज को स्वयंभू मंदिर के रूप में जाना जाता है।
पूरी का जगननाथ मंदिर –
- 12 वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण गंग वंश के राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव द्वारा करवाया गया था।
- यह मंदिर चार धाम तीर्थयात्राओं को हिस्सा हैं।
- इस मंदिर को सफेद पैगोडा भी कहा जाता है।
- इस मंदिर को यमनिका तीर्थ के नाम से 21:23 / 34:01 भी जाना जाता है।
खजुराहो/चंदेल शैली-
- 10वीं से 13वीं सदी के मध्य में बुंदेल के चंदेल राजाओं ने मंदिर निर्माण की इस शैली को विकसित किया।
- इन मंदिरों को बलुआ पत्थर से निर्मित किया गया है।
- इन मंदिरों को अपेक्षाकृत ऊँचे चबूतरे पर बनाया गया था।
- मंदिर निर्माण में पंचायतन शैली का प्रयोग किया गया है।
- भीतरी और बाहरी दोनों दीवारों पर बारीक नक्काशी की गई हैं।
- वात्सायन की रचना कामसूत्र से प्रेरित होकर इस शैली के मूर्तियां आमतौर पर कामुक शैली की बनाई गई है।
- कई हिंदू मंदिरों पर मिथुन मूर्तियों को मांगलिक चिन्ह के रूप में बनाया गया हैं।
- आमतौर पर इन मंदिरों में तीन कक्ष होते हैं- गर्भ गृह, मंडप और अर्द्ध मंडप ।
- इन मंदिरों में जैन और हिंदू मंदिर शामिल हैं।
- इन मंदिरों को 1986 में यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल में शामिल किया गया था।
- कंदरिया महादेव मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, विश्वनाथ मंदिर, मतंगेश्वर, लक्ष्मी, जगदम्बा, चित्रगुप्त, पार्वती तथा गणेश मंदिर इस शैली के प्रमुख मंदिर है।
सोलंकी शैली-
- 11वीं से 13वीं सदी के मध्य गुजरात के चालुक्य (सोलंकी) राजाओं ने मंदिर वास्तुकला की इस शैली को संरक्षण प्रदान किया।
- गुजरात और राजस्थान के साथ भारत के पश्चिमी भागों में इस शैली का विकास हुआ।
विशेषताएं-
- सोलंकी शैली में हिंदू मंदिरों के साथ-साथ जैन मंदिरों का भी निर्माण हुआ है।
- इस शैली के मंदिर की दीवारें नक्काशी रहित थी।
- गर्भ गृह दोनों तरफ (आंतरिक एवं वाह्य) से मंडप से जुड़ा होता था।
- मंदिर परिसर में एक सीढ़ीनुमा जलाशय होता है जिसे सूर्यकुंड कहा जाता है।
- मंदिर के बरामदे में सजावटी द्वार होते थे जिसे तोरण कहा जाता है।
- बलुआ पत्थर, काला बेसाल्ट और नरम संगमरमर जैसे पत्थरों का प्रयोग इस शैली के मंदिर निर्माण में किया जाता था।
- बावड़ी की सीढ़ियों पर छोटे-छोटे मंदिरों में लकड़ी की नक्काशी की गई हैं।
- मोढेरा का सूर्य मंदिर, दिलवाड़ा का जैन मंदिर इस शैली के प्रमुख मंदिर हैं
मोढेरा का सूर्य मंदिर-
- यह मंदिर गुजरात के मोढेरा में पुष्पावती नदी के किनारे स्थित है।
- इस मंदिर का निर्माण 1026 ई. में सोलंकी वंश के राजा भीम प्रथम द्वारा करवाया गया था।
- यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है।
- इस मंदिर को 2022 में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की अस्थायी सूची में शामिल किया गया है।
- प्रधानमंत्री ने मोढेरा गांव को भारत का पहला 24×7 सौर ऊर्जा संचालित गांव घोषित किया।
- पर्यटकों को इतिहास के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए 3-D प्रोजेक्शन की व्यवस्था की गई है
पाल शैली-
- पाल और सेन राजाओं के संरक्षण में 8वीं से 12वीं सदी के मध्य पाल शैली का विकास बंगाल क्षेत्र में हुआ।
- पाल बौद्ध धर्म को मानते थे जबकि सेन हिंदू धर्म को। इसलिए इस शैली के मंदिरों पर दोनों धर्मों का प्रभाव दिखता हैं।
- ओडिशा शैली के समान इस शैली के मंदिरों का शिखर लंबा और वक्राकार होता है।
- इस शैली के मंदिरों में स्थापित मूर्तियों का निर्माण पत्थर और धातु दोनों से किया जाता था।
- सिद्धेश्वर महादेव मंदिर और विष्णुपुर के मंदिर इस शैली के प्रमुख मंदिर हैं।
कश्मीरी शैली-
- इस शैली के सबसे प्रसिद्ध मंदिर मार्तंड सूर्य मंदिर है जिसका निर्माण 8वीं शताब्दी में कर्कोट वंश के राजा ललितादित्य मुक्तापीड द्वारा करवाया गया था।
- मार्तंड सूर्य मंदिर को पांडौ लैदान के नाम से भी जाना जाता है।
- गंधार, गुप्त और चीनी वास्तुकला का प्रभाव इस शैली के मंदिरों पर दिखाई पड़ता है। जैसे- ट्रेफिल मेहराब पर गंधार प्रभाव तथा स्तंभ की दीवारों और त्रिकोणीय पेडिमेंट्स में ग्रीक प्रभाव आदि।
राजस्थान में नागर शैली के उदाहरण-
- सोमेश्वर मंदिर- किराडू (बाड़मेर)
- अम्बिका मंदिर- जगत (उदयपुर)
- दधिमाता मंदिर- गोठ मांगलोद (नागौर)
- औसियां के मंदिर- जोधपुर
राजस्थान में द्रविड़ शैली के उदाहरण-
- रंगनाथ मंदिर- पुष्कर (अजमेर)
- तिरूपति बालाजी का मंदिर-सुजानगढ़ (चुरू)
राजस्थान में पंचायत शैली के उदाहरण-
- भंडदेवरा शिव मंदिर- बारां
- बूढ़ादीत सूर्य मंदिर- कोटा
- जगदीश मंदिर- उदयपुर
- बाडोली के शिव मंदिर- बाडोली (रावतभाटा, चित्तौड़)
- हरिहर मंदिर औसिया
राजस्थान में भूमिज शैली के अन्य उदाहरण-
- उडेश्वर मंदिर- बिजौलिया (भीलवाड़ा)
- महानालेश्वर मंदिर- मेनाल (भीलवाड़ा)
- भूमिज शैली का सबसे प्राचीन मंदिर
- सेवाड़ी जैन मंदिर (पाली) है।