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राजस्थान के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल pdf

आमेर के ऐतिहासिक स्थल –
  • दिल्ली-अजमेर मार्ग पर स्थित होने के कारण आमेर का मध्यकाल में बहुत महत्त्व रहा है।
  • जयपुर से सात मील उत्तर-पूर्व में स्थित आमेर, ढूँढ़ाड राज्य की जयपुर बसने से पूर्व तक राजधानी रहा था।
  • कछवाहा वंश की राजधानी आमेर के वैभव का युग मुगल काल से प्रारम्भ होता है।
  • आमेर का किला दुर्ग स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है।
  • यहाँ के भव्य प्रासाद एवं मन्दिर हिन्दू एवं फारसी शैली के मिश्रित रूप हैं।
  • इसमें बने दीवान-ए-आम, दीवान- ए-खास (शीशमहल) आदि की कलात्मकता प्रशंसनीय है।
  • इस किले में जगतशिरोमणि मन्दिर और शिलादेवी मन्दिर बने हुए हैं।
  • इनका निर्माण मानसिंह के समय हुआ था। मानसिंह शिलादेवी की मूर्ति को बंगाल से जीतकर लाए थे।

उदयपुर के ऐतिहासिक स्थल-

  • उदयपुर की स्थापना महाराणा उदयसिंह ने 16वीं शताब्दी में की थी।
  • यहाँ के महल विशाल परिसर में अपनी कलात्मकता के लिए प्रसिद्ध है।
  • राजमहलों के पास ही 17वीं शताब्दी का निर्मित जगदीश मन्दिर है।
  • यहाँ की पिछौला झील एवं फतेहसागर झील मध्यकालीन जल प्रबन्धन के प्रशंसनीय प्रमाण है।
  • उदयपुर को झीलों की नगरी कहा जाता है।
  • महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय द्वारा निर्मित सहेलियों की बाड़ी तथा महाराणा सज्जनसिंह द्वारा बनवाया गुलाब बाग शहर की शोभा बढ़ाने के लिए पर्याप्त है।

ऋषभदेव (केसरियाजी) के ऐतिहासिक स्थल –

  • यह उदयपुर की खेरवाड़ा तहसील में स्थित ऋषभदेव मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है।
  • इसको जैन एवं आदिवासी भील अनुयायी इसे समान रूप से पूजते हैं।
  • भील जाती इन्हें कालाजी कहते हैं, क्योंकि ऋषभदेव की प्रतिमा काले पत्थर की बनी हुई है।
  • इनकी मूर्ति पर श्रद्धालु केसर चढ़ाते हैं और इसका लेप करते हैं, इसलिए इसे केसरियानाथ जी का मन्दिर भी कहते है।

अजमेर के ऐतिहासिक स्थल –

  • राजस्थान के मध्य में स्थित अजमेर नगर की स्थापना 12 वीं शताब्दी में चौहान शासक अजयदेव के द्वारा की गयी थी।
  • यहाँ की महत्वपूर्ण स्मारकों में कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा निर्मित ढ़ाई दिन का झोपड़ा, सूफी संत ख्वाजा मुईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह, सोनीजी की नसियाँ (जैन मन्दिर, जिस पर सोने का काम किया हुआ है), अजयराज द्वारा निर्मित तारागढ़ दुर्ग, अकबर द्वारा बनवाया गया किला (मैगजीन) आदि प्रमुख स्मारक हैं।
  • मैगजीन फोर्ट वर्तमान में संग्रहालय के रूप में है।
  • यहाँ चौहान शासक अर्णोराज (आनाजी) द्वारा निर्मित आनासागर झील बनी हुई है।
  • इस झील के किनारे पर जहाँगीर ने दौलतबाग (सुभाषा उद्यान) और शाहजहाँ ने बारहदरी का निर्माण करवाया था।

अलवर के ऐतिहासिक स्थल –

  • अलवर की स्थापना 18वीं शताब्दी ने रावराजा प्रतापसिंह के द्वारा की गई थी।
  • अलवर का किला, जो बाला किला के नाम से जाना जाता है, 16 वीं शताब्दी में एक अफगान अधिकारी हसन खां मेवाती ने बनवाया था।
  • अलवर में मूसी महारानी की छतरी है, जो राजा बख्तावरसिंह की पत्नी रानी मूसी की स्मृति में निर्मित है।
  • यह छतरी अपनी कलात्मकता के लिए प्रसिद्ध है। अलवर के राजकीय संग्रहालय में अलवर शैली के चित्र सुरक्षित हैं।

आबू के ऐतिहासिक स्थल –

  • यह सिरोही के निकट स्थित है।
  • यहाँ पर ही अरावली पर्वतमाला का सबसे ऊँचा भाग ‘गुरु शिखर’ है।
  • महाभारत में आबू की गणना तीर्थ स्थानों में की गई है।
  • आबू देलवाड़ा जैन मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध है।
  • यहाँ का विमलशाह द्वारा निर्मित आदिनाथ मन्दिर तथा वास्तुपाल- तेजपाल द्वारा निर्मित नेमीनाथ का मन्दिरं उल्लेखनीय है।
  • आबू के देलवाड़ा के जैन मन्दिर अपनी नक्काशी, सुन्दर मीनाकारी एवं पच्चीकारी के लिए भारतभर में प्रसिद्ध हैं। इन मन्दिरों का निर्माण 11 वीं एवं 13वीं शताब्दी में किया गया था। ये मन्दिर श्वेत संगमरमर से निर्मित है। यहाँ श्वेत पत्थर पर इतनी बारीक खुदाई की गई है,

ओसियाँ के ऐतिहासिक स्थल-

  • इस जिले में स्थित ओसियाँ पूर्व मध्यकालीन मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध है।
  • यहाँ के जैन एवं हिन्दू मन्दिर 9वीं से 12वीं शताब्दियों के मध्य निर्मित है।
  • यहाँ के जैन मन्दिर स्थापत्य के उत्कृष्ट नमूने हैं।
  • महावीर स्वामी के मन्दिर के तोरण द्वार एवं स्तम्भों पर जैन धर्म से सम्बन्धित शिल्प अंकन दर्शनीय है।
  • यहाँ के सूर्य मन्दिर, सच्चियामाता का मन्दिर आदि उस युग के कला वैभव का स्मरण कराते हैं।

करौली के ऐतिहासिक स्थल-

  • इसकी स्थापना यदुवंशी शासक अर्जुनसिंह ने करौली में की थी।
  • यहाँ के महाराजा गोपालपाल द्वारा बनवाए गए रंगमहल एवं दीवान-ए-आम खूबसूरत है।
  • सूफी संत कबीरशाह की दरगाह भी स्थापत्य कला का सुन्दर नमूना है।
  • करौली का मदनमोहनजी का मन्दिर प्रसिद्ध है।

किराडू के ऐतिहासिक स्थल –

  • यह बाड़मेर से 32 किमी. दूर स्थित किराडू पूर्व-मध्यकालीन मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध है।
  • यहाँ का सोमेश्वर मन्दिर शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध है।
  • यह स्थल राजस्थान के खजुराहो के नाम से भी विख्यात है।
  • यहाँ कामशास्त्र की भाव भंगिमा युक्त मूर्तियाँ शिल्पकला की दृष्टि से बेजोड़ है।

किशनगढ़ के ऐतिहासिक स्थल –

  • अजमेर जिले में जयपुर मार्ग पर स्थित किशनगढ़ की स्थापना 1611 ई. में जोधपुर के शासक उदयसिंह के पुत्र किशनसिंह ने की थी।
  • किशनगढ़ अपनी विशिष्ट चित्रकला शैली के लिए प्रसिद्ध है।

केशवरायपाटन के ऐतिहासिक स्थल –

  • इस जिले में चम्बल नदी के किनारे स्थित केशवरायपाटन में बूँदी नरेश शत्रुशाल द्वारा 17वीं शताब्दी का निर्मित विशाल केशव (विष्णु) मन्दिर है।
  • यहाँ पर जैनियों के 20वें तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ का प्रसिद्ध मन्दिर है।

कोटा के ऐतिहासिक स्थल –

  • कोटा की स्थापना 13 वीं शताब्दी में बूँदी के शासक समरसी के पुत्र जैतसी के द्वारा की गयी थी।
  • उन्होंने कोटा के स्थानीय शासक कोटिया भील को परास्त कर उसके नाम से कोटा की स्थापना की।
  • शाहजहाँ के फरमान से सत्रहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में बूँदी से अलग होकर कोटा स्वतन्त्र राज्य के रूप में अस्तित्त्व में आया।
  • 1857 की क्रांति के दौरान कोटा राज्य के क्रांतिकारियों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया।
  • कोटा के क्षार बाग की छतरियाँ राजपूत स्थापत्य कला के सुन्दर नमूने है।
  • यहाँ का महाराव माधोसिंह संग्रहालय एवं राजकीय ब्रज विलास संग्रहालय कोटा चित्र शैली एवं यहाँ के शासकों की कलात्मक अभिरुचि को प्रदर्शित करते है।
  • कोटा में भगवान मथुराधीश का मन्दिर वैष्णव सम्प्रदाय का प्रमुख तीर्थ है एवं वल्लभ सम्प्रदाय की पीठ है।

कौलवी के ऐतिहासिक स्थल –

  • झालावाड़ जिले में डग कस्बे के समीप स्थित कौलवी की गुफाएँ बौद्ध विहारों के लिए प्रसिद्ध है।
  • ये विहार 5वीं से 7वीं शताब्दी के मध्य निर्मित माने जाते है।
  • ये गुफाएं एक पहाड़ी पर स्थित हैं, जो चट्टानें काटकर बनायी गई हैं।

खानवा के ऐतिहासिक स्थल –

  • भरतपुर जिले में स्थित खानवा मेवाड़ के महाराणा सांगा और बाबर के मध्य हुए युद्ध (1527) के लिए विख्यात है।
  • खानवा के युद्ध में सांगा की हार ने राजपूतों के दिल्ली की गद्दी पर बैठने का स्वप्न नष्ट कर दिया और मुगल वंश की स्थापना को मजबूत कर दिया।

गलियाकोट के ऐतिहासिक स्थल –

  • डूंगरपुर जिले में माही नदी के किनारे स्थित गलियाकोट वर्तमान में दाऊदी बोहरा सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र है।
  • यहाँ संत सैय्यद फखरुद्दीन की दरगाह स्थित है, जहाँ प्रतिवर्ष इनकी याद में उर्स का मेला भरता है।

गोगामेड़ी के ऐतिहासिक स्थल –

  • हनुमानगढ़ जिले के नोहर तहसील में स्थित गोगामेड़ी लोक देवता गोगाजी का प्रमुख तीर्थ स्थल है, जहाँ प्रतिवर्ष उनके सम्मान में एक पशु मेले का आयोजन होता है।
  • राजस्थान में गोगाजी सर्पों के लोकदेवता के रूप में प्रसिद्ध है।
  • हिन्दू इन्हें गोगाजी तथा मुसलमान गोगा पीर के नाम से पूजते हैं।

चावण्ड के ऐतिहासिक स्थल –

  • उदयपुर से ऋषभदेव जाने वाली सड़क पर अरावली पहाड़ियों के मध्य ‘चावण्ड’ गाँव बसा हुआ है ।
  • महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के युद्ध के पश्चात् चावण्ड को अपनी राजधानी बनाया था।
  • प्रताप की मृत्यु भी 1597 में चावण्ड में हुई थी।

चित्तौड़गढ़ के ऐतिहासिक स्थल –

  • चित्तौड दर्ग को दगों का ऐसा माना जाता है कि चित्तौड़गढ़ दुर्ग का निर्माण चित्रांगद मौर्य ने करवाया सिरमौर कहा गया है जिसके बारे में कहावत है-‘गढ़ तो चित्तौड़गढ़, बाकी सब गढैया’।
  • चित्तौड़ के शासकों ने तुर्कों एवं मुगलों से इतिहास प्रसिद्ध संघर्ष किया।
  • चित्तौड़गढ़ दुर्ग में राणा कुम्भा द्वारा बनवाये अनेक स्मारक हैं, जिनमें विजय स्तम्भ, कुम्भश्याम मन्दिर, श्रृंगार चॅवरी, कुम्भा का महल आदि शामिल हैं।
  • दुर्ग में रानी प‌द्मिनी का महल, जैन तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित कीर्ति स्तम्भ, जयमल-पत्ता के महल, मीरा मन्दिर, रैदास की छतरी, तुलजा भवानी. मन्दिर आदि अपने कलात्मक एवं ऐतिहासिक महत्त्व के कारण प्रसिद्ध हैं।

जयपुर (गुलाबी नगर) के ऐतिहासिक स्थल –

  • जयपुर की स्थापना 1727 में सवाई जयसिंह ने की।
  • कछवाहा राजाओं की इस राजधानी का महत्त्व अपने स्थापना काल से ही रहा है।
  • यहाँ के स्थापत्य में राजपूत एवं मुगल स्थापत्य का मिश्रण देखा जा सकता है।
  • यहाँ का सिटी पैलेस जयपुर के राजपरिवार का निवास स्थल रहा है।
  • सिटी पैलेस के पास ही गोविन्ददेवजी का मन्दिर है, जो सवाई जयसिंह द्वारा निर्मित है।
  • सवाई जयसिंह द्वारा स्थापित वैधशाला ‘जन्तर- मन्तर’ का विशेष महत्त्व है।
  • यहाँ स्थापित सम्राट यंत्र विश्व की सबसे बड़ी सौर घड़ी मानी जाती है।
  • नाहरगढ़ किला, हवामहल, रामनिवास बाग, अल्बर्टहॉल संग्रहालय आदि दर्शनीय एवं ऐतिहासिक स्थले हैं।
  • जालौर – ऐसा माना जाता है कि जालौर (जाबालिपुर) प्राचीनकाल में महर्षि जाबालि की तपोभूमि था।
  • जालौर के प्रसिद्ध शासक कान्हड़देव ने अलाउद्दीन खिलजी से लम्बे समय तक लोहा लिया था।
  • जालौर के सुवर्णगिरि दुर्ग का निर्माण परमार राजपूतों ने करवाया था।
  • दुर्ग में वैष्णव एवं जैन मंदिर तथा सूफी संत मलिकशाह का मकबरा है।

जैसलमेर के ऐतिहासिक स्थल –

  • भाटी राजपूतों की राजधानी जैसलमेर की स्थापना 12वीं शताब्दी में महारावल जैसल ने की थी।
  • जैसलमेर दुर्ग पीलें पत्थरों से निर्मित्त होने के कारण ‘सोनार किला’ कहलाता है।
  • दुर्ग में अनेक वैष्णव एवं जैन मन्दिर बने हैं, जो अपनी शिल्पकला की उत्कृष्टता के कारण विख्यात है।
  • जैसलमेर का जिनभद्र ज्ञान भण्डार प्राचीन ताड़पत्रों एवं पाण्डुलिपियों तथा कई भाषाओं के ग्रंथों के लिए प्रसिद्ध है। जैसलमेर की हवेलियों की वजह से विशेष पहचान है।
  • यहाँ की पटवों की हवेलियाँ, सालिमसिंह की हवेली तथा नथमल की हवेली अपने झरोखों, दरवाजों व जालियों की नक्काशीयुक्त शिल्प के लिए पहचानी जाती हैं।
  • जैसलमेर शासकों के निवास बादल निवास व जवाहर विलास शिल्पकला के बेजोड़ नमूने है।
  • रावत गढ़सी सिंह द्वारा निर्मित मध्यकालीन गढ़सीसर सरोवर अपने कलात्मक प्रवेश द्वार एवं छतरियों के लिए प्रसिद्ध है।

जोधपुर (सूर्य नगरी) के ऐतिहासिक स्थल –

  • इस नगर की स्थापना 1459 में राव जोधा ने की थी।
  • जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग का निर्माण राव जोधा ने शुरू किया, जिसका कालान्तर में विस्तार होता रहा है।
  • इस दुर्ग को मयूर ध्वज के नाम से भी जाना जाता है। इस दुर्ग में फूल महल, मोती महल, चामुण्डा देवी का मन्दिर दर्शनीय हैं।
  • दुर्ग के पास ही जसवन्त थड़ा है, जो महाराजा जसवन्त सिंह द्वितीय की स्मृति में बनवाया गया था।
  • यहाँ आधुनिक काल का उम्मेद भवन (छीतर पैलेस) अपनी विशालता एवं कलात्मकता के लिए प्रसिद्ध है।झालरापाटन (घण्टियों की नगरी) – झालावाड़ शहर से 4 मील दूर स्थित झालरापाटन कस्बा कोटा राज्य के प्रधानमंत्री झाला जालिमसिंह ने बसाया था।
  • यहाँ पहले 108 मन्दिर थे, जिनकी झालरों एवं घण्टियों के कारण कस्बे का नाम झालरापाटन रखा गया।
  • यहाँ का मध्यकालीन सूर्य मन्दिर प्रसिद्ध है, जो वर्तमान में सात सहेलियों के मन्दिर के नाम से प्रख्यात है।
  • यहाँ का शांतिनाथ का जैन मन्दिर विशाल एवं भव्य है, जो 11वीं शताब्दी का निर्मित है।

टोंक के ऐतिहासिक स्थल –

  • 17वीं शताब्दी में एक ब्राह्मण ने 12 ग्रामों को मिलाकर टोंक की स्थापना की।
  • 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में अमीर खां ने टोंक रियासत की स्थापना की।
  • टोंक की सुनहरी कोठी पच्चीकारी एवं मीनाकारी के लिए प्रसिद्ध है।
  • टोंक के अरबी एवं फारसी शोध संस्थान, जो आधुनिक काल का है, में हस्तलिखित उर्दू, अरबी-फारसी ग्रंथों का विशाल संग्रह है।

डूंगरपुर के ऐतिहासिक स्थल –

  • रावल वीर सिंह ने 14 वीं शताब्दी में डूंगरपुर की स्थापना की थी।
  • डूंगरपुर को बागड़ राज्य की राजधानी होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
  • डूंगरपुर अपने मध्यकालीन मन्दिरों, हरे रंग के पत्थर की मूर्तियों आदि के कारण प्रसिद्ध रहा है

डींग के ऐतिहासिक स्थल –

  • भरतपुर जिले में डीग जाट नरेशों के भव्य महलों के लिए विख्यात है।
  • भरतपुर शासक सूरजमल जाट ने 18वीं शताब्दी में यहाँ सुन्दर राजप्रासाद बनवाये।
  • डीग कस्बे के चारों ओर मिट्टी का बना किला है, जिसे गोपालगढ़ कहते है।

नागौर (अहिच्छत्रपुर) के ऐतिहासिक स्थल –

  • इस शहर पर समय-समय पर नागवंश,परमारवंश एवं मुगल वंश का शासन रहा।
  • अपने विशालकाय परकोटों व प्रभावशाली द्वारों के कारण नागौर राजपूतों के अद्भुत नगरों में से एक है। ऐतिहासिक नागौर किले में शानदार महल, मन्दिर एवं भव्य इमारतें है। नागौर का दुर्ग दोहरे परकोटे से घिरा हुआ है।
  • यह किला राव अमरसिंह राठौड़ की शौर्य गाथाओं के कारण इतिहास प्रसिद्ध है।
  • नागौर के ऐतिहासिक झंडा तालाब पर बनी 16 कलात्मक खम्भों से निर्मित अमरसिंह राठौड़ सी छतरी एवं कलात्मक बावड़ी दर्शनीय है।
  • यहाँ सूफी संत हमीदुद्दीन नागौरी की दरगाह हिन्दू-मुस्लिम सद्भाव के रूप में पहचानी जाती है।
  • नागौर का पशु मेला राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला है।

नाथद्वारा के ऐतिहासिक स्थल –

  • राजसमंद जिले में बनास नदी के किनारे बसे नाथद्वारा पूरे देश में श्रीनाथजी के वैष्णव मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है।
  • पुष्टिमार्गीय वैष्णवों का यह प्रमुख तीर्थस्थल है।
  • यहाँ कृष्ण की उपासना उसके बालरूप में की जाती है।
  • औरंगजेब की कट्टर धार्मिक नीति के कारण श्रीनाथजी की मूर्ति मथुरा से सिहाड़ ग्राम (वर्तमान नाथद्वारा) लाई गई, जो महाराणा राजसिंह के प्रयासों से नाथद्वारा में प्रतिष्ठापित की गई।
  • चढ़ावे की दृष्टि से यह राजस्थान का सबसे सम्पन्न तीर्थस्थल है। पिछवाई पेंटिंग और मीनाकारी के लिए नाथद्वारा प्रसिद्ध है।

पुष्कर के ऐतिहासिक स्थल –

  • अजमेर के निकट पुष्कर हिन्दुओं का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है।
  • पुष्करताल के घाटों पर स्नान करना अत्यन्त पुण्य का काम समझा जाता है।
  • तीर्थराज पुष्कर में प्राचीनतम चतुर्मुखी ब्रह्मा मन्दिर है।
  • यहाँ के अन्य प्रसिद्ध मन्दिरों में रंगनाथ मन्दिर, सावित्री मन्दिर, वराह मन्दिर आदि धार्मिक महत्त्व के है।
  • पुष्कर में प्रतिवर्ष कार्तिक महीने में मेले का आयोजन होता है।
  • यह मेला न केवल विभिन्न पशुओं की खरीद-फरोख्त का माध्यम है बल्कि विदेशी पर्यटकों का आकर्षण केन्द्र माना जाता है। वर्तमान में पुष्कर को अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व प्राप्त है।

बूँदी के ऐतिहासिक स्थल –

  • राव देवा ने 13वीं शताब्दी में बूँदी राज्य की स्थापना की थी।
  • बूंदी के तारागढ़ दुर्ग का निर्माण राव राजा बरसिंह ने 14वीं शताब्दी में शुरू करवाया था।
  • बूँदी के शासक शत्रुसाल हाड़ा मुगल उत्तराधिकार युद्ध के दौरान धरमत की लड़ाई (1658) में मारा गया।
  • यहाँ के दर्शनीय स्थलों में नवल सागर, चौरासी खम्भों की छतरी, रानीजी की बावड़ी, जैत सागर, फूल सागर आदि है।
  • बूँदी अपनी विशिष्ट चित्रकला शैली के लिए विख्यात है।
  • बूँदी एक ऐसा शहर है, जिसके पास समृद्ध विरासत है और आज भी मध्यकालीन शहर की झलक देता है।

बयाना के ऐतिहासिक स्थल –

भरतपुर जिले में स्थित बयाना का उल्लेख 13वीं-14वीं शताब्दी के इब्नेबतूता, जियाउद्दीन बरनी जैसे लेखकों ने भी किया है। आगरा के निकट होने के कारण बयाना का सामरिक महत्त्व था। मध्यकाल में बयाना नील की खेती के लिए प्रसिद्ध था। बयाना से बड़ी संख्या में गुप्तकालीन स्वर्ण मुद्राएँ मिली हैं, जो तत्कालीन इतिहास पर प्रकाश डालती है। राणा सांगा एवं बाबर के मध्य जो खानवा की लड़ाई हुई थी, वह बयाना के निकट ही है।

बाड़ोली के ऐतिहासिक स्थल –

  • चित्तौड़गढ़ जिले में रावतभाटा के निकट बाड़ोली पूर्वमध्यकाल के हिन्दू मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध है।
  • ये मन्दिर गणेश, विष्णु, शिव, महिषासुर मर्दिनी आदि को समर्पित है।
  • इन मन्दिरों से लोगों का सबसे पहले परिचय कर्नल जेम्स टॉड ने कराया था। 

बीकानेर के ऐतिहासिक स्थल –

  • राव बीका द्वारा 15 वीं शताब्दी में इस शहर की स्थापना की गई थी।
  • यहाँ के 16वीं शताब्दी के शासक रायसिंह ने बीकानेर के जूनागढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया।
  • यह दुर्ग अपने स्थापत्य कला एवं चित्रकारी के लिए प्रसिद्ध है।
  • पुस्तकालय पाण्डुलिपियों एवं पुस्तकों के लिए प्रसिद्ध है।

भरतपुर के ऐतिहासिक स्थल –

  • राजस्थान का पूर्वी प्रवेश द्वार भरतपुर की स्थापना 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जाट शासक बदनसिंह ने की थी।
  • उसके उत्तराधिकारी सूरजमल ने भरतपुर राज्य का विस्तार किया और इसे शानदार महलों से अलंकृत किया।
  • मिट्टी की मोटी दोहरी प्राचीरों से घिरा भरतपुर का किला अपनी अभेद्यता के कारण लोहागढ़ दुर्ग के नाम से प्रख्यात है।
  • भरतपुर सांस्कृतिक दृष्टि से पूर्वी राजस्थान का एक समृद्ध नगर है।
  • यहाँ के दर्शनीय स्थलों में गंगा मन्दिर, लक्ष्मण मन्दिर, जामा मस्जिद, विश्व प्रसिद्ध केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान आदि हैं।

भीनमाल के ऐतिहासिक स्थल-

  • जालौर जिले में स्थित भीनमाल का सम्बन्ध प्राचीन इतिहास से रहा है।
  • संस्कृत के प्रख्यात कवि माघ ने अपने ग्रंथ शिशुपाल वध की रचना यहीं की थी।
  • चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भीनमाल की यात्रा की थी।

मण्डावा के ऐतिहासिक स्थल-

  • झुंझुनूं में मण्डावा शेखावाटी अंचल का सबसे महत्त्वपूर्ण कस्बा है।
  • यहाँ बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं।
  • इस कस्बे के चारों ओर रेगिस्तानी टीलें है।
  • यहाँ स्थित सेठों की हवेलियाँ, उनका स्थापत्य तथा उनमें बने भित्ति चित्र पर्यटन एवं कला की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। गोयनका की हवेली, लाडियों की हवेली आदि हवेली चित्रों के लिए प्रसिद्ध है।

मण्डौर के ऐतिहासिक स्थल-

  • जोधपुर के पास स्थित मण्डौर पूर्व में मारवाड़ की राजधानी रहा है।
  • मण्डौर दुर्ग के अन्दर विष्णु और जैन मन्दिरों के खण्डहर हैं।
  • यहाँ स्थित मण्डौर उद्यान में मण्डौर संग्रहालय, जनाना महल तथा राजाओं के देवल (स्मारक) बने हुए है।
  • इस उद्यान में राजा अजीतसिंह ने देवताओं की साल (बरामदा) का निर्माण करवाया था।

महनसर के ऐतिहासिक स्थल-

  • झुंझुनूं में महनसर पोद्दारों की सोने की दुकान के लिए प्रसिद्ध है, जो हरचंद पोद्दार ने बनवाई थी।
  • यहाँ के भित्ति चित्रों में मुख्यतः श्रीराम और कृष्ण की लीलाओं का सुन्दर अंकन हुआ है।
  • यह दुकान, जो मूलतः एक इमारत है, पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र है।
  • महनसर से सेठों की अनेक हवेलियाँ है, जो भित्ति चित्रों एवं हवेली स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध है।
  • महनसर की एक अन्य इमारत उल्लेखनीय है, जिसे तोलाराम जी का कमरा कहा जाता है।
  • इस दो मंजिला इमारत को देखने के लिए लोग दूर- दूर से आते है।

रणकपुर के ऐतिहासिक स्थल-

  • पाली जिले में स्थित जैन मन्दिरों के लिए विख्यात है।
  • यहाँ का मुख्य मन्दिर प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ (ऋषभदेव) का है।
  • इनकी चतुर्मुखी प्रतिमा होने के कारण इसे चौमुखा मन्दिर भी कहते हैं।
  • इस मन्दिर का निर्माण महाराणा कुम्भा के शासनकाल में सेठ धरणशाह ने 15वीं शताब्दी में करवाया था।
  • इस मन्दिर में 1444 स्तम्भ हैं। इस मन्दिर का शिल्पी देपाक था। इस मन्दिर में राजस्थान की जैन कला एवं सार्मिक परम्परा का अपूर्व प्रदर्शन हुआ है।

रामदेवरा के ऐतिहासिक स्थल –

  • जैसलमेर जिले की पोकरण तहसील में अवस्थित ‘रामदेवरा’ लोक संत रामदेवजी का समाधि स्थल है।
  • यहाँ रामदेवजी का भव्य मन्दिर बना हुआ है।
  • यहाँ भाद्रपद शुक्ल द्वितीय से एकादशी तक मेला भरता है, जिसमें भारत के कोने-कोने से हजारों श्रद्धालु आते हैं। यह मेला साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए प्रसिद्ध है।
  • सवाई माधोपुर इस शहर की स्थापना जयपुर के शासक सवाईमाधोसिंह ने की थी।
  • यहाँ का रणथम्भौर का किला हम्मीर चौहान की वीरता का साक्षी रहा है।
  • रणथम्भौर में 1301 में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के दौरान राजपूत स्त्रियों द्वारा किया गया जौहर राजस्थान के पहले साके के रूप में विख्यात है।
  • दुर्ग में त्रिनेत्र गणेशजी का मन्दिर स्थित है।
  • रणथम्भौर दुर्ग की प्रमुख विशेषता यह है कि इस किले में बैठकर दूर-दूर तक देखा जा सकता है परन्तु शत्रु किले को निकट आने पर ही देख सकता है।

हल्दीघाटी के ऐतिहासिक स्थल –

  • राजसमंद जिले में स्थित ‘हल्दीघाटी’ गांव महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के मध्य लड़े युद्ध (18 जून, 1576) के लिए प्रसिद्ध है।
  • यह युद्ध अनिर्णायक रहा, परन्तु अकबर जैसा साम्राज्यवादी शासक भी प्रताप की संघर्ष एवं स्वतन्त्रता की प्रवृत्ति पर अंकुश नहीं लगा सका।
  • युद्धस्थली राष्ट्रीय स्मारक है।
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