You can find notes,question and quiz on various topic in Hindi. India Gk. Notes

राजस्थान के प्रमुख लोक देवता | ट्रिक | PDF नोट्स

Rajasthan ke lok devta pdf – दोस्तों आज हम राजस्थान के प्रमुख लोक देवता के बारे में चर्चा करेंगे इसमें हम राजस्थान पंच पीर लोक देवता – रामदेवजी, गोगाजी, मेहाजी, पाबूजी, हड़बुजी तथा राजस्थान के अन्य लोक देवता जैसे – छेड़छाड़ के लोक देवता, आलम जी लोक देवता, भोमिया जी, वीर कल्लाजी तथा सम्पूर्ण राजस्थान के लोक देवता के बारे में पढ़ेंगे। यहां पर आपको राजस्थान जीके के सभी टॉपिक के नोट्स पढ़ सकते है। यहां पर आप अपनी तैयारी को और बेहतर बना सकते है।

राजस्थान के लोक देवता किसे कहते है।
जिसको लोगों ने धार्मिक कार्य, गौ रक्षा, नैतिक चरित्र आदि के आधार पर देवता के समान पूजनीय मान लिया है, उसे लोक देवताओं के रूप में जाना जाता है।
हिंदू धर्म में – लोक देवता के नाम से जाना जाता हैं।
मुस्लिम धर्म में – पीर के नाम से जाना जाता है।

राजस्थान के पंच पीर याद करने की ट्रिक-गोपा मेहरा
गो-गोगाजी
पा-पाबूजी
मे-मेहजी
ह-हड़बुजी
रा-रामदेवजी

गोगाजी –
‣ गोगाजी के उपनाम – गोगाजी को सांपो के देवता, गौ रक्षक देवता, गोगापीर, जहरपीर, जिंदा पीर कहते है।
‣ जन्म स्थल – ददरेवा ( जेवराग्राम) राजगढ़ तहसील ( चुरू ) में हुआ।
‣ गोगाजी का जन्म भाद्रपद कृष्ण नवमी, विक्रम सं. 1003 में हुआ।
‣ गोगाजी का वंश – चौहान वंश
‣ पिता – जेवर सिंह
‣ माता – बाछल देवी
‣ गुरु – गोरखनाथ
‣ पत्नी – इनका विवाह कोलूमण्ड की राजकुमारी केलमदे के साथ हुआ था।
‣ मेला – भाद्रपद कृष्ण नवमी (गोगा नवमी ) को गोगामेड़ी गांव में मेला भरता है।
‣ मन्दिर – गोगामेड़ी ( नोहर तहसील, हनुमानगढ़ )
‣ घोड़ी – गोगाजी की घोड़ी का रंग नीला था जिसको गोगाजी बाप्पा कहते थे।
‣ गोगाजी की ओल्डी – किलौरोयो की ढाणी ( सांचौर, जालौर ) में स्थित है।
‣ महमूद गजनवी ने गोगाजी को जाहरपीर कहा था।
‣ गोगाजी को नागों का देवता कहा जाता है। आज भी सर्पदंश से मुक्ति के लिए गोगाजी की पूजा की जाती है।
‣ गोगाजी का मन्दिर खेजड़ी वृक्ष के नीचे होता है जिसे मेड़ी कहा जाता है।
‣ मेड़ी की बनावट मस्जिदानुमा होती है।
‣ गोगाजी की ध्वज सफेद रंग की होती है।
‣ सर्प को गोगाजी का प्रतीक माना जाता है।
‣ गोगाजी के जागरण में डेरू व माठ वादे यंत्र का प्रयोग किया जाता है।
‣ राजस्थान का किसान वर्षा से बाद हल जोतने से पहले गोगाजी नाम की राखड़ी बांधता है जिसमे 9 गांठे लगाई जाती है।
‣ गोगाजी ने गौ रक्षा एवं तुर्क आकंर्ताओ ( महमूद गजनवी ) से देश की रक्षार्थ में अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
‣ राजस्थान में इसी मान्यता है की युद्ध के समय लड़ते हुए गोगाजी का सिर जिस स्थान पर गिरा था उस स्थान को ” शिक्षा मैंडी” तथा जिस स्थान पर शरीर गिरा था उस स्थान को ” गोगामेड़ी ” कहा जाता है।
‣ गोगाजी के थान खेजड़ी वृक्ष के नीचे होते है।
‣ गोगाजी के मन्दिर के मुख्य दरवाजे पर ( प्रवेश द्वार ) पर बिस्मिल्ला व मेड़ी पर ॐ शब्द लिखा हुआ है।
‣ गोगाजी की मेड़ी को मकबर नुमा है जिसका निर्माण महाराजा गंगासिंह ने करवाया था।
‣ गोगाजी के लिए “गांव गांव खेजड़ी गांव-गांव गोगा ” की कहावत का प्रसिद्ध है।

गोगाजी के अन्य मुख्य मन्दिर –
‣ गोगामेड़ी – नोहर ( हनुमानगढ़)
‣ सांचौर – जालौर
‣ ददरेवा – राजगढ़, चुरू

रामदेवजी –
‣ जन्म – उडुकासमेर ( शिव तहसील, बाड़मेर ) में हुआ।
1352 ई. भाद्रपद शुक्ल द्वितीया को ( बाबे री बीज ) को हुआ। रामदेवजी तंवर वंशिया राजपूत थे ।
‣ माता – मेणादे
‣ पिता – अजमल तंवर
‣ पत्नी – नेतलदे/निहालदे
‣ गुरु – बालिनाथ जी ( इनकी समाधि मसूरिया (जोधपुर) में स्थित है।
‣ रामदेवजी की धर्म बहिन – डाली बाई ( डाली बाई कंगन – रुणीचा, पोखरण (जैसलमेर) में है जिसमे से निकलने पर सभी प्रकार के रोगों से छुटकारा मिलती है। डाली बाई ने रामदेव डी एक दिन पहले समाधि ली थी।
‣ रामदेवजी के उपनाम – पीरो के पीर, रामसापीर, कृष्ण का अवतार, रुणिचा रा धणी ठाकुर जी, सांप्रदायिक सदभाव के देवता आदि नामो से जाना जाता है।
‣ वीरमदेव (बालाराम का अवतार) इनके भाई सुगणा तथा बहिन लांछा थी।
‣ रामदेवजी के पास नीले रंग का घोड़ा था। जिसका नाम लीला था।
‣ रामदेवजी को कपड़े के घोड़े चढ़ाए जाते है ।
‣ रामदेव जी की फड़ का वाचन कामडभोपा रावण हत्था वाद्‌यसे करते है। सबसे पहले इनकी फड़ का चित्रांकन चौथमल चितेरे ने किया।
‣ रामदेवजी के फाड़ का वाचन मेघवाल जाति या कमाडिया पंथ के लोगो के द्वारा किया जाता है।
‣ इनकी ध्वज नेजा कहलाती है। रामदेव जी की नेजा सफेद या पांच रंगो से बनी होती है।
‣ रामदेवजी एकमात्र ऐसे लोक देवता थे जो कवि थे। इन्होंने “ चौबीस वाणिया ग्रंथ” की रचन की।
‣ रामादेविजी ने जातिगत छुआछूत व भेद भाव मिटने के लिए “जम्मा जागरण” अभियान चलाया।
‣ रामदेवजी के प्रतीक चिन्ह “ पगल्ये “ है ।
‣ रामदेवजी का मेला भद्रपद शुक्ल द्वितीया से एकादशी तक भरता है । जिसको माड़वाड़ का कुम्भ कहा जाता है ।
‣ भाद्रपद शक्ल एकादशी, विक्रम संवत 1515 को रामदेव जी ने रुणिचा के रामसरोवर तालाब के किनारे जीवित समाधि ली।
‣ तेहरताली नृत्य कामड संप्रदाय की महिलाओं द्वारा किया जाता है ।
‣ तेरहताली नृत्य व्यावसायिक श्रेणी का नृत्य है।
‣ मांगी बाई तेरहताली नृत्य की प्रसिद्ध नृत्यगना थी।
‣ मांगी बाई उदयपुर जिले की थी ।

शब्दावली
‣ नेजा- रामदेवजी की पांच रंग की घ्वज
‣ रिखिया – रामदेवजी के मेघवाल जाति के भक्त
‣ भाभी- रामदेवजी का पुजारी
‣ ब्यावले- रामदेवजी के भजन
‣ देवरा/थान – रामदेवजी का मंदिर
‣ जातुरु – रामदेवजी के भक्त/यात्री
‣ पगल्या – रामदेवजी के प्रतीक चिन्ह

रामदेवजी के प्रमुख मंदिर –
‣ छोटा रामदेवरा – गुजरात
‣ जैसलमेर,पोखरण (रूणेचा) के मंदिर का निर्माण महाराजा गंगासिंह ने करवाया।
‣ अजमेर (खुंडियास) – इसको राजस्थान का छोटा रामदेवरा भी कहते है।
‣ जोधपुर – मसूरिया में
‣ चितौड़- सुरता खेड़ा के मंदिर ए भाद्रपद शुक्ल एकम से तृतीय तक मेला भरता है।
‣ पाली – बराठिया

पाबूजी –
‣ उपनाम – गौरक्षक / ऊटो के देवता / प्लेक रक्षक देवता / हाड़- फाड़ के देवता
‣ जन्म – 1239 ई. में कोलुमंड ( जोधपुर) में हुआ।
‣ अवतार – लक्ष्मण के
‣ वंशज – राव सीहा के वंशज माने जाता है।
‣ पिता -धंधाल जी राठौड़
‣ माता – कमलदे
‣ पत्नी -सुप्यारदे
‣ घोड़ी – केसर कालमी
‣ मुख्य मंदिर – कोलुमंड, जोधपुर
‣ समाधि स्थल – देचू गांव, जोधपुर
‣ पाबूजी के मेला चैत्र अमावस्या को लगता है।
‣ अन्य मंदिर – आहाड़,उदयपुर में है।
‣ पाबूजी के सहयोगी – चांदा, डेमा, हरमल,सलजी सोलंकी
‣ बोध चिन्ह – भाला लिए अश्वारोही योध्या तथा बायी तरफ झुकी हुवी पगड़ी
‣ राजस्थान में सबसे पहले ऊट लाने का श्रेय- पाबूजी को जाता है।
‣ पाबूजी ने सिंध प्रांत से ऊट लाकर रायका/रेबारी जाति को दिए।
‣ रायका/रेबारी जाति के आराध्य देव पाबूजी है।
‣ रायका या रेबारी जाति के अलावा पाबूजी भील व नायक/थारी जाति में भी लोकप्रिय है।
‣ मेहरा जाति के मुसलमान पाबूजी की पूजा करते है।
‣ राजस्थान में ऊट के बीमार होने पर पाबूजी की फड़ का वचन किया जाता है।
‣ पाबूजी की फड़ का वाचन नायक/धोरी जाति के भोपे करते है।
‣ पाबूजी की फड़ का वाचन करते समय रावणहत्था वाद्ययंत्र का प्रयोग किया जाता है।
‣ राजस्थान में सबसे लोकप्रिय फड़ पाबूजी की मानी जाती है।
‣ पाबूजी के भक्तो के द्वारा पाबूजी के पवडे गए जाते है।
‣ पाबूजी के भक्तो के द्वारा पाबूजी के पावड़े गाते समय “माठ” वाद्ययंत्र के प्रयोग किया जाता है।
‣ थोरी जाति के लोग पाबू धणी री वाचन का यश गाते समय “सारंगी” वाद्ययंत्र बजाते है।
‣ पाबूजी के जीवन पर आसिया मॉडजी के द्वारा “पाबू प्रकाश ग्रंथ” लिखा गया।
‣ पाबूजी रा छंद ग्रंथ बिठू में के द्वारा लिखा गया।
‣ पाबूजी की याद में थाली नृत्य किया जाता है जो की माडवाड का प्रसिद्ध है।

हड़बूजी सांखला-
‣ उपनाम – शकुन शास्त्र के ज्ञाता/ चमत्कारी पुरुष /वीर/सन्यासी /सिद्ध पुरुष / वचन सिद्ध / योगी सन्यासी / वीर योद्धा कहते है।
‣ जन्म – भुंडेला (नागौर)
‣ हड़बुजी सांखला रामदेव जी मौसेरे भाई थे, उनकी प्रेरणा से ही हड़बुजी ने अस्त्र शस्त्र त्याग कर योगी बालीनाथ से दीक्षा ली थी।
‣ वाहन – सियार
‣ हड़बुजी का पूजा स्थल बैंगटी ( फलौदी ) में है।
‣ भ्रादपद शुक्लपक्ष में इनका मेला भरता है।
‣ हड़बुजी सांखला शकुनशास्त्र के ज्ञाता थे।
‣ हड़बुजी ने रामदेवजी के 8वें दिन समाधि ली थी।
‣ राव जोधा को इन्ही का आशिर्वाद प्राप्त था।
‣ हड़बुजी सांखला पंगु गायों के लिए चारा लाते थे।
‣ हड़बुजी सांखला का समाधि स्थल ( मुख्य पूजा स्थल ) बैंगती गांव फलौदी ( जोधपुर ) में है।
‣ इनके पुजारी सांखला जाती के राजपूत होते है।
‣ हड़बुजी के जीवन पर ” सांखला हड़बू का हाल ” ग्रंथ लिखा गया है।
‣ भक्तो की मनोकामना पूर्ण होने पर भक्तो द्वारा ‘ हड़बुजी की गाड़ी ‘ की पूजा की जाती है।
‣ राव जोधा को इन्होंने मारवाड़ का राज्य पुनः प्राप्त होने का आशीर्वाद दिया तथा कटार भेट की थी।
‣ रावजोधा ने राज्य पुनः प्राप्त होने पर वेंकटी गांव (फलौदी, जोधपुर ) दान में दिया।
‣ हड़बुजी के मन्दिर का निर्माण जोधपुर के शासक अजीत सिंह के द्वारा 1721 में करवाया गया।

मेहाजी मांगलिया –
‣ जन्म – मारवाड़ में भाद्रपद कृष्ण अष्टमी ( जन्माष्टमी) के दिन हुआ ।
‣ घोड़ा – किरड़ काबरा
‣ मन्दिर – बापणी गांव, जोधपुर
‣ मेला – भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को भरता है।
‣ मेहाजी का पालन पोषण उनके ननिहाल में हुआ जो की मांगलिया गौत्र के थे।
‣ इनकी मृत्यु जैसलमेर शासक रांणगदेव भाटी से युद्ध में गायों की रक्षा करते हुवे हुई थी।
‣ मेहजी के पुजारी की सन्तान नहीं होती है वह पुत्र गोद लेकर अपना वंश चलते है।
‣ मांगलिया वंश के भोपे पुत्र गोद लेकर वंश बढ़ाते है।

तेजाजी –
‣ जन्म – इनका जन्म वि. स. 1130 ई. में, माघ शुक्ल चतुर्दशी को हुआ।
‣ जन्म स्थान – खड़नाल ( नागौर ) में हुआ।
‣ पिता – ताहडजी
‣ माता – राजकंवारी
‣ पत्नी – पेमलदे
‣ इनकी पत्नी पन्हेर (अजमेर ) के रामचंद्र की पुत्री थी
‣ वीर तेजाजी का जन्म जाट वंश में हुआ था।
‣ घोड़े का नाम – लीलण/ सीणगारी
‣ प्रतीक चिन्ह – हाथ में तलवार लिए अश्वारोही
‣ तेजाजी के पुजारी को घोड़ाला कहते है। इनके पुजारी सांप काटे व्यक्ति का जहर चूसकर निकालते है।
‣ तेजाजी को नागों के देवता, गौरक्षक, कृषि कार्यों के उपकारक, काला – बाला के देवता आदि नामो से जाना जाता है।
‣ भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजा दशमी मनाई जाती है। तथा इसी दिन तेजाजी का मेला भरता है।
‣ इनका कार्य क्षेत्र हाड़ौती क्षेत्र रहा है।
‣ तेजाजी अजमे व नागौर के प्रसिद्ध देवता है।
‣ तेजाजी के जन्म दिवस पर 7 सितंबर 2011 को स्थान खड़नाल में 5 रुपय की डाक टिकट जारी की थी ।
‣ तेजाजी को गाय मुक्ति दाता कहते है।
‣ तेजाजी के निधन का समाचार उनकी घोड़ी लीलण द्वारा पहुंचाया गया था।
‣ परबतर नागौर में भाद्रपद शुक्ल दशमी को इनका मेला लगता है।
‣ इनके मेले से राज्य सरकार को सबसे अधिक आय होती है।
‣ लाछा गुजरी की गायों के एमआर के मीणा से छुड़ाने के लिए संघर्ष किया तथा वीर गति को प्राप्त हो गए।
‣ लाछार में इनको धोलियावीर के नाम से जानते है।
‣ सैदरिया – यहां पर तेजाजी को नाग देवता से डसा था।

वीर तेजाजी के अन्य पूजा स्थल –
‣ भांवता, नागौर में
‣ ब्यावर, अजमेर में
‣ बांसी दुगारी, बूंदी में
‣ परबतसर, नागौर में
‣ सुरसुरा, किशनगढ़ ( अजमेर ) में
‣ माड़वालिया, अजमेर में
‣ भांवता, नागौर में
‣ पनेर, अजमेर में
‣ खड़नाल, नागौर में

इलोजी –
‣ इनका मंदिर इलोजी, जैसलमेर में स्थित है।
‣ इलोजी जैसलमेर के पश्चिमी क्षेत्र में लोकप्रिय है।
‣ इनको छेड़छाड़ के देवता भी कहते है।
‣ ये होलिका के होने वाले पति थे।

देवनारायण जी –
‣ जन्म – इनका जन्म आसीन्द ( भीलवाड़ा ) में हुआ।
‣ पिता – सवाई भोज
‣ माता – सेढू खटाणी
‣ इनकी शादी धार ( मध्यप्रदेश ) के शासक जयसिंह की पुत्री पीपलदे से इनका विवाह हुआ।
‣ इनकीर्जर जाती के आराध्य देव है।
‣ इनके घोड़े का नाम लीलागर था।
‣ बाली और बाला इनके पुत्र – पुत्री थे।
‣ इनको राज्य का क्रांति का जनक माना जाता है।
‣ इनको विष्णु का अवतार माना जाता है।
‣ इनका मुख्य मेला भाद्रपद शुक्ल सप्तमी ब्यावर ( अजमेर ) में भरता है।
‣ देवनारायण जी के मंदिरों में एक ईट की पूजा की जाती है।
‣ 3 सितम्बर 2011 को भरता सरकार के द्वारा 5 रुपय की डाक टिकट जारी की गई ।
‣ देवनारायणजी पर फिल्म भी बनाई गई है।
‣ इनको आयुर्वेद के देवता, गौरक्षक का देवता भी कहा जाता है।
‣ इनकी फड़ का वाचन जन्तर वाद्य से अविवाहित गुर्जर भोपा के द्वारा किया जाता है।
‣ यह गुजरात व राजस्थान के पूज्य देवता है।

इनके आराध्य स्थल –
‣ देवजी की डूंगरी, चित्तौड़गढ़ –
‣ देवधाम, जोधापुरिया, टोंक
‣ देवमाला, ब्यावर ( अजमेर )
‣ गोढ़ा, आसींद, ( भीलवाड़ा )

इनका उपनाम –
‣ चमत्कारी लोक पुरुष
‣ इनकी फड़ राजस्थान की सबसे बड़ी फड़ है।

वीर कल्लाजी –
‣ जन्म – इनका जन्म मेड़ता ( नागौर ) हुआ।
‣ गुरु – योगी भैरवनाथ
‣ पिता – आससिंह
‣ माता – श्वेतकंवर
‣ इनके बचपन का नाम केसरीसिंह था।
‣ इनका मेला अश्विन शुक्ल नवमी को लगता है।
‣ इनको शेषनाग का अवतार, चार भुजा वाले देवता, योगी, दो सिर वाले देवता, कल्याण, बाल – ब्रह्मचारी आदि नामो से जाना जाता है।
‣ मीरा बाई इनकी बुआ तथा जयमल इनके चाचा थे।
‣ 1567 ई. में चित्तौड़ के तृतीय साके के दौरान अकबर से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे।
‣ इनको योगाभ्यास और जड़ी बूटियों का ज्ञान था।
‣ इनकी छतरी चित्तौड़ दुर्ग में बनी है।
‣ साबलिया, डूंगरपुर तथा भैरवपोल, चित्तौड़ में इनका मन्दिर बना है जहां पर कुत्ता, सांप, बिच्छू, भूत प्रेत का इलाज भी किया जाता है।
‣ इनकी कुल देवी नागणेची माता थी।
‣ इनकी मुख्य पीठ रनेला ( चित्तौड़ ) में स्थित है।

मामादेव –
‣ इनका मन्दिर स्यालोदडा ( सीकर ) में है।
‣ इनको बरसात का देवता कहा जाता है।
‣ इनके मूर्ति के स्थान पर काष्ठ का तोरण को गांव के बहार स्थापित किया जाता है।
‣ इनको प्रसन्न करने के लिए भैंस की बली दी जाती है।
‣ इनका मेला रामनवमी को लगता है।
‣ यह पश्चिमी राजस्थान में लोक प्रिय देवता है।

भोमियाजी –
‣ इनको भूमि रक्षक देवता कहते है।
‣ इनका मन्दिर गांव – गांव में होता है।

देवबाबा –
‣ जन्म – नगला जहाज ( भरतपुर ) में हुआ।
‣ गर्जर जाती के आराध्य देव है।
‣ नगला जहाज ( भरतपुर ) में इनका मन्दिर है।
‣ इनको ग्वालो के देवता व पशु चिकित्सक कहते है।
‣ इनका मेला भाद्रपद शुक्ल पंचमी को भरता है।
‣ इनका वाहन भैसा है।
‣ इनका द्वारा मृत्यु के बाद भी अपनी बहन ऐलादी का भात भरा था।

वीर फता जी –
‣ इनका जन्म सांथू गांव ( जालौर ) में हुआ।
‣ इनका मेला भाद्रपद शुक्ल नवमी को भरता है।
‣ ये साधु ( जालौर ) के देवता है।
‣ इनको विधा शस्त्र का ज्ञान था।
‣ इनका मन्दिर बाबुल वृक्ष के नीचे होता है।
‣ वीर फताजी लुटेरों से गांव की रक्षा करते हुवे शाहिद हो गए थे।

भूरिया बाबा/ गौतमेश्वर –
‣ इनका मन्दिर अरणोद ( सादड़ी, प्रतापगढ़ ) में स्थित है।
‣ गौतमेश्वर के मेले ए वर्दी पहने हुवे पुलिस का जाना वंचित है।
‣ ये मीणाओ के इष्ट देव है।
‣ मीणा जाती के लोगो के द्वारा गौतमेश्वर के मेले में सुकड़ी नदी में अपने पूर्वजों की अस्थियां प्रवाहित करते है।

केसर कुंवर जी –
‣ यह गोगाजी के पुत्र है।
‣ इनका मेला भाद्रपद की कृष्ण अष्टमी को भरता है।
‣ केसर कवंर जी के पुजारी सांप के काटे व्यक्ति का जहर मुंह से चूसकर निकालते है।
‣ इनके थान पर सफेद ध्वजा फहराते है।

मल्लीनाथ जी –
‣ इनका जन्म तिलवाड़ा ( बाड़मेर ) में राठौड़ वंश में हुआ।
‣ पिता – रावल सलखा
‣ माता – जीणा
‣ गुरु – उगमसी भाटी
‣ इनका मेला चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी तक लूणी नदी के किनारे तिलवाड़ा नामक स्थान पर भरता है। यह मेला राजस्थान का सबसे प्राचीन पशु मेला है।
‣ इनकी पत्नी रूपादे का मन्दिर मालाजाल गांव बाड़मेर में बना हुआ है।
‣ बाड़मेर का गुड़ामलानी का नामकरण मल्लीनाथ जी के नाम पर हुआ है।
‣ बाड़मेर के मालानी क्षेत्र का नाम इन्ही के नाम पर घोड़े प्रसिद्ध है।

हरिराम जी –
‣ जन्म – इनका जन्म झोरड़ा ( नागौर ) में हुआ ।
‣ झोरड़ा ( नागौर ) में इनका मन्दिर बना हुआ है।
‣ पिता – रामनारायण
‣ माता – चन्दणी देवी
‣ गुरु – भूरा
‣ इनका मेला चैत्र शुक्ल चतुर्थी व भाद्रपद शुक्ल पंचमी को भरता है।
‣ इनके मंदिर में मूर्ति के स्थान पर सांप की बांबी या चरण चिन्ह की पूजा की जाती है।

तल्लीनाथजी –
‣ जन्म – शेरगढ़ ( जोधपुर ) के राठौर परिवार में हुआ।
‣ पिता – विरमादेव
‣ गुरु – जालंधर नाथ ( इनके द्वारा ही गागदेव को तल्लीनाथ का नाम दिया था। )
‣ भाई – राव चूड़ा
‣ इनको प्रकृति प्रेमी लोकदेवता कहा जाता है।
‣ पंचमुखी पहाड़ – पांचोंटा ( जालौर) के पास इस पहाड़ पर घुड़सवार के रूप में बाबा तल्लीनाथ की मूर्ति स्थापित है।

डूंगर जी – जवाहरजी –
‣ यह शेखावाटी क्षेत्र के लोकप्रिय देवता है।
‣ इन्होंने नसीराबाद ( अजमेर ) छावनी को भी लूटा था।
‣ ये अंग्रेजो तथा अमीरों से घन लूट कर गरीबों में बांट देते थे।

वीर बावसी –
‣ इनका मेला चैत्र शुक्ल पंचमी को भरता है।
‣ यह गौड़वाडी क्षेत्र के आराध्य देवता है।

आलमजी –
‣ इनका मेला भाद्रपद शुक्ल द्वितीया को भरता है।
‣ इनका मन्दिर मालानी ( बाड़मेर ) में बना हुआ है।

पनराज जी –
‣ जन्म – नगा गांव ( जैसलमेर ) में हुआ।
‣ इनका मन्दिर पनराजसर ( जैसलमेर ) में बना हुआ है।
‣ ये जैसलमेर के आराध्य देव है।
‣ इनका मेला भाद्रपद शुक्ल दशमी व माघ शुक्ल दशमी को पनराजसर गांव में भरता है।
‣ इनको जैसलमेर क्षेत्र के गौरक्षक देवता भी कहा जाता है।
‣ इन्होंने मुस्लिमों से ब्राह्मणों की गायों की रक्षा की थी।

पंचवीर जी –
‣ यह शेखावाटी क्षेत्र के लोक प्रिय देवता है।
‣ इनका मन्दिर अजीतगढ़ ( सीकर ) में बना हुआ है।
‣ यह शेखावत समाज के कुल देवता है।

झुंझार जी –
‣ जन्म – इमलोहा ( निमकाथाना, सीकर ) में हुआ।
‣ इनका मन्दिर स्यालोदडा, सीकर में स्थित है।
‣ इनका मन्दिर खेजड़ी वृक्ष के नीचे होते है।
‣ इनका मेला चैत्र शुक्ल नवमी ( रामनवमी) को भरता है।

बीग्गा जी –
‣ जन्म – रीडी, डूंगरगढ़ ( बीकानेर ) में में हुआ।
‣ पिता – महनजी
‣ माता – सुल्तानी देवी
‣ यह जाखड़ समाज के इष्ट देव है।
‣ 14 अक्तूबर को इनका मेला लगता है।

रूपानाथ जी –
‣ यह पाबूजी के भाई बुढ़ो के भाई के पुत्र थे।
‣ पिता – बूढ़ो
‣ माता – केसर कंवर
‣ इन्होंने जींदराव खींची का वध कर अपने चाचा पाबूजी की मौत का बदला लिया था।

राजस्थान के 5 लोक देवता कौन – कौन से है – रामदेवजी, गोगाजी, पाबूजी, मेहाजी एवं हड़बुजी
राजस्थान में सबसे छोटी फड़ – देवनारायण जी
सबसे लम्बी फड़ – देवनारायण जी

राजस्थान के लोक देवता के प्रश्न –

रामदेव के पुजारी को क्या कहलाते है?

रामदेव के पुजारी रिखिया कहलाते है।

कौनसे देवता की मूर्ति लकड़ी की होती है?

मामादेवजी की मूर्ति लकड़ी की होती है।

हड़बुजी के घोड़े का क्या नाम था?

लीला

सबसे बड़ी फड़ किसकी है?

देवनायरणजी की

पाबूजी के गुरु का नाम क्या था?

समरथ भारती

Quiz – Rajasthan ke Lok Devta

Share your love

One comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *