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Lok Geet Rajasthan | Rajasthan ke Lok geet Notes | Trick | PDF

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Lok Geet Rajasthan

Lok Geet Rajasthan – आज राराजस्थान का प्रमुख लोक गीत | Rajasthan Lok Geet in hindi के बारे में सम्पूर्ण जानकारी लेके आए है।  अगर आप भी राजस्थान के लोक गीत टॉपिक पढ़ना चाहते है, तो हमारी वेबसाइट पर पढ़ सकते राजस्थान के लोक गीत राजस्थान जीके के महत्वपूर्ण टॉपिक है। यह राजस्थान जीके का अति महत्वपूर्ण topic है। यदि आप भी किसी government exams की तैयारी कर रहे है, तो हमारी वेबसाइट पर आप बिल्कल free में नोट्स पढ़ सकते हो। राजस्थान में सरकार द्वारा आयोजित सभी प्रकार के एग्जाम में यहां से प्रश्न पूछे जाते है। यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगी। यहां पर आपको राजस्थान के सभी टॉपिक्स के नोट्स उपलब्ध करवाए जा रहे। इन टॉपिक को पढ़कर आप अपनी तैयारी को और बेहतर बना सकते है। और government की सभी महत्वपूर्ण परीक्षाओं में सफलता प्राप्त कर सकते है। 

Lok Geet Rajasthan

‣ लोक गीत राजस्थानी संस्कृति के अभिन्न अंग है । लोक गीत जनता की भाषा है …… लोक गीत हमारी संस्कृति के पहरेदार है ।
‣ भारत का राष्ट्रीय गीत “वंदेमातरम” है । यह गीत आनंदमठ उपन्यास से लिया गया है । जिसके रचयिता बकिमचंद्र चटर्जी है , इस गीत को गाने में 1 मिनट 5 सेकण्ड (65 सेकण्ड ) का समय लगता है ।
‣ रविंद्र नाथ टैगोर ने लोक गीतो को संस्कृति का सुखद संदेश ले जाने वाली कला कहा है ।
‣ भारत का राष्ट्रीयगान “जन-गन-मन” है , जिसके रचयिता रविंद्रनाथ टैगोर है । यह गीतांजलि उपन्यास से लिया गया है । इसे गाने में 52 सेकण्ड का समय लगता है ।
‣ राजस्थान का राज्य गीत “केसरियाबालम पधारो नी म्हारो देश” है,यह एक विरह गीत है , जिसे उदयपुर की मांगी बाई ने ‣ सबसे पहले गाया था । इस गीत को सबसे ज्यादा अल्हा जिल्हा बाई ने गाया था ।
‣ भारत की कोकिला सरोजनी नायडू है (सरोजनी नायडू भारत की प्रथम महिला राज्यपाल (उतरप्रदेश ) है ।
‣ राजस्थान की कोकिला गवरी देवी (पाली) है तथा मरुकोकिला अल्लाहाजिल्हा बाई है जिनके गुरु उस्ताद – हुसैन बक्स थे ।

राजस्थान के प्रमुख लोकगीत निम्न प्रकार है –

गोरबंद –
‣ यह शेखावाटी और मरुस्थलीय क्षेत्र का प्रसिद्ध लोक गीत है । गोरबंद उँट के गले का आभूषण होता है अतः यह गीत उँट के गले का श्रृंगार करते समय गाया जाता है ।
‣ गायां चरवाती गोरबंद गूंथिया,
भैस्यां चरावती पोयो म्हारा राज,
म्हारो गोरबंद लूम्बालो ।

पीपली –
‣ यह शेखावाटी और बीकानेर का प्रसिद्ध लोक गीत है । यह गीत वर्षा ऋतु में गाया जाता है ।

कुरंजाँ
‣ यह गीत वर्षा ऋतु में गाया जाता है , यह विरह गीत है । कुरंजाँ एक पक्षि होता है जिसे आधार मानकर मारवाड़ की विरहनियों द्वारा संदेश वाहक के रूप में यह गीत गाया जाता है ।
‣ तू छे कुरजाँ भायली ए
तू छै धरम की ए भाण
पतरी लिख दू प्रेम की ए
दीजो पियाजी ने जाय
कुरजाँ म्हारो भंवर मिला दीजे

लावणी
‣ लावणी का अर्थ बुलाने से है , यह गीत नायक द्वारा नायिका को उपवन में बुलाने के लिये गाया जाता है । मोरध्वज , भरथरी , सेऊसमन आदी प्रमुख लावणिया है ।

जीरा –
‣ इस गीत में पत्नी अपने पति से जीरा न बोने का अनुरोध करती है ,क्योंकि जीरा फसल में काम ज्यादा होता है जिस कारण नायक अपनी नायिका को समय नही दे पाता है । इस लिये नायिका यह गीत गाती है ।

मूमल –
‣ यह श्रृंगारिक एवं प्रेम गीत है । यह गीत जैसलमेर की राजकुमारी मूमल के श्रृंगार का वर्णन करता है , मूमल लोद्रवा की राजकुमारी थी जिसका अमरकोट के राजकुमार महेंद्र के साथ प्रेम था ।

कांगसिया –
‣ यह बालो के श्रृंगार का गीत है । इस गीत में नायिका श्रृंगार करते समय अपने पति को याद करती हुई यह गीत गाती है।‣ रातीजगो – यह गीत रात भर जाग कर गाया जाता है।

हिचकी –
‣ यह मेवात (अलवर ) का प्रसिद्ध गीत है । यह विरह गीत है । किसी के द्वारा याद किये जाने पर हिचकी आती है ,उस समय यह गीत गाया जाता है ।
‣ ” म्हारा पियाजी , बुलाई म्हनै आई हिचकी “

कौआ गीत –
‣ राजस्थान में कौआ बोलना मेहमानो के आने का प्रतीक होता है । यह गीत कौवे को आधार मानकर गाया जाता है ।

बधावा –
‣ यह मंगल गीत है। यह गीत शुभ कार्यो पर गाया जाता है , इस गीत में पूर्वजों को याद कर कार्य की सिद्धि के लिये कामना की जाती है ।

काजलियो –
‣ यह श्रृंगारिक गीत है । यह विवाह के समय दुल्हे की भाभी काजल लगाते समय गाती है ।

कामण –
‣ यह गीत राजस्थान के कई क्षेत्रों में बारात आगमन पर वधु पक्ष की महिलाओं द्वारा दुल्हे को जादू – टोने से बचाने हेतु गाया जाता है ।
‣ बन्ना – बन्नी – यह गीत विवाह के अवसर पर वर – वधु के लिये गाया जाता है ।
” बन्ना की बनडी‌ , फेरा में झगडी‌ ।
थे ल्यायां क्यों ना जी , सोना री हंसली ।”

सीठने –
‣ यह गाली गीत है जो विवाह के अवसर पर वधु पक्ष द्वारा वर पक्ष को सुनाया जाता है ।

घोड़ी –
‣ यह गीत निकासी के समय गाया जाता है ।

पपैया गीत –
‣ पपैया एक पक्षी है । इस गीत में एक लड़की किसी विवाहित पुरुष को प्रेम जाल में फंसाने के लिये जंगल में बुलाती है लेकिन पुरुष अपनी पत्नी के साथ धोखा नही करता है ।

ओल्यू –
‣ यह गीत लड़की की विदाई पर गाया जाता है ।
‣ ” ओल्यूँड़ी लगाई रै मारा सैण
ओजी ओ गोरी रा लसकारियां ओल्यूँड़ी “

बिछुड़ा –
‣ यह हाड़ोती और मेवाड़ का प्रसिद्ध गीत है । जिसमें एक पत्नी बिच्छु द्वारा डसने से मरने वाली होती है तथा अपने पति को दूसरी शादी करने का संदेश देते हुए गाती है ।
‣ ” मै तो मरी होती राज , खा गयो बैरी बीछुडो ।”

सुपणा –
‣ यह विरह गीत है इस गीत में विरहणी को सुपणा आता है जिससे उसे अपने प्रियतम की याद आने लगती है ।
‣ ” सूती थी रंगमहल में , सूताँ मे आयो रे जजाळ ,
सुपणा में म्हारा भँवर न मिलायो जी ।

होलर या जच्चा गीत –
‣ यह गीत पुत्र जन्म पर गाया जाता है , जिसमे पुत्र जन्म की खुशी तथा गर्भ पीड़ा का जिक्र किया जाता है ।
‣ “होलर जाया ने हुई बधाई, ये म्हारा वंश बढायो रे
अलबेली जच्चा
रंग महल विच जच्चा होलर जायो ये पीपली मोज ये ,
प्यारी लागे कुल बहु ओ ललना ।”

झोरावा –
‣ यह जैसलमेर का लोकप्रिय गीत है । यह प्रदेश गये पति को संदेश पहुँचाने के लिये गाया जाता है ।

चिरमी –
‣ यह गीत चिरमी पौधे को आधार मानकर गाया जाता है , लड़की अपने ससुराल में अपने भाई और पिता का इंतज़ार करते हुए यह गीत गाती है ।

हमसीढो –
‣ यह भीलो का एक युगल गीत है ।

जखड़ी –
‣ यह विवाह के समय लड़की की विदाई पर सहेलियो द्वारा गाया जाता है ।

सुवटियों –
‣ यह गीत तोते को आधार मानकर गाया जाता है । यह गीत भील स्त्री विदेश गये पति के लिये गाती है ।

दुपट्टा –
‣ यह गीत विवाह के समय दुल्हे की सालियों द्वारा गाया जाता है । 27 . मोरिया – यह विरह गीत है । यह गीत सगाई हो चुकी लड़की के द्वारा गाया जाता है ,जिसकी शादी में अभी देरी है वह अपने पति से मिलने के लिये गीत गाती है ।

ढोला – मारू –
‣ ढोला नरवर का राजा था तथा मारू पूंगल , बीकानेर की राजकुमारी थी । यह गीत ढोला – मारू की प्रेम कहानी पर आधारित है ।

लांगूरिया –
यह भक्ति गीत है । यह गीत करौली में ‘ कैला देवी ‘ की आराधना में गाया जाता है ।

कुकड़्लू गीत –
‣ यह विवाह गीत है । इसे झिलमिल गीत कहते है , यह गीत तोरण मारते समय वधु पक्ष की महिलाओं द्वारा गाया जाता है ।

पावड़े –
‣ यह भक्ति गीत है । ये पाबूजी के गीत है ।

कुकड़ी गीत –
‣ यह रात्रि जागरण का अंतिम गीत है ।

लोरी –
‣ यह गीत बच्चे को सुलाने के लिये किया जाता है ।

वीरा गीत –
‣ यह विवाह के अवसर पर भात के समय गाया जाता है । इसे भात या मायरा गीत भी कहते है ।

मरसिये गीत –
‣ यह मारवाड़ का प्रसिद्ध गीत है । यह गीत किसी प्रभावशाली व्यक्ति की मृत्यु पर गाया जाता है । 36.हरजस गीत – यह राम कृष्ण की भक्ति के गीत है । ये गीत किसी वृद्ध व्यक्ति की मृत्यु पर गाया जाता है ।

कलाली गीत –
‣ यह गीत कलाल जाति की महिलाओं के द्वारा गाया जाता है ,यह सवाल जवाब का गीत है । यह गीत शराब निकालने व बेचने वाले के मध्य गाया जाता है । 38 . रतनराणा – यह एक मार्मिक गीत है ।

पंछीड़ा –
‣ यह गीत हाडौती और ढूंढाड क्षेत्र में मेलो के अवसर पर अलगोजे , ढोलक व मंजीरे के साथ गाया जाता है ।
“पंछीडा रे उड़न जाजे पावा गढ़ रे ।”

विनायक गीत –
‣ विनायक मांगलिक कार्यो के देवता है किसी भी कार्य को करने से पहले विनायक जी की पूजा कर गीत गाए जाते है । यह गीत मुख्यतः मांगलिक अवसर पर गाया जाता है ।

धमाल –
‣ यह गीत होली के उत्सव पर गाया जाता है। 42.केसरिया बालम – यह राज्य गीत है । यह मांड शैली में गाया जाता है । अल्लाहजिल्ला बाई ने यह गीत सर्वाधिक बार गाया था । यह विरह गीत है इस गीत के माध्यम से प्रदेश गये पति को आने का संदेश भेजा जाता है ।

चाक गीत –
‣ यह विवाह गीत है जो विवाह में कुम्हार के घर चाक पूजते समय गाया जाता है ।

जलो और जलाल –
‣ यह भी विवाह गीत है जो महिलाओं द्वारा बारात का डेरा देखने जाते समय गाया जाता है ।

फाग –
‣ यह होली के उत्सव पर गाया जाता है । 46.बादली – यह गीत हाडौती व मेवाड़ में वर्षा ऋतु में गाया जाता है ।

फलसड़ा –
‣ यह विवाह गीत है जो विवाह के अवसर पर मेहमानों के आगमन पर गाया जाता है । 48.हीड़ गीत – यह मेवाड़ का लोकप्रिय गीत है , इस गीत में हीड़ दीपक का प्रतीक होता है । यह गीत दीपावली पर पुरुषो द्वारा समूह बनाकर किया जाता है ।

कोयलड़ी गीत –
यह विवाह गीत है जो अत्यंत मार्मिक गीत है । यह गीत लड़की की विदाई पर गाया जाता है ।

घूघरी गीत –
‣ यह गीत बच्चे के जन्म के अवसर पर गाया जाता है ।

हूंस गीत –
इस गीत के माध्यम से गर्भवती महिला को दो जीवों वाली कहा जाता है ।हूंस का अर्थ गर्भवती की इच्छा होती है इस गीत में घेवर , केरी, मतीरा, फली व बेर की इच्छा पुर्ती के गीत गाये जाते है । 52.लालर / पटेल्या – यह गीत पर्वतीय क्षेत्रो में आदिवासियों द्वारा गाया जाता है ।

बेमाता गीत –
‣ यह गीत बच्चे के जन्म के बाद गाया जाता है ,जिसमें महिलाए बच्चे का अच्छा भाग्य लिखने के लिये गीत गाती है ।

हालरियों –
‣ यह गीत जैसलमेर में गाया जाता है ,जो बच्चे को झुला देते समय गाया जाता है ।

हींडोल्या/हीडो गीत –
‣ यह गीत श्रावण माह में गाया जाता है । यह गीत झुला झूलते समय गाया जाता है ।

घुड़ला गीत –
‣ यह गीत मारवाड़ क्षेत्र में होली के बाद घुड़ला नृत्य के समय गाया जाता है ।

पड़वलियौ –
‣ यह गीत प्रसूती महिला के सामान्य स्थिति में आने के बाद गाया जाता है ।

पीळा गीत –
‣ यह गीत जलवा के समय गाया जाता है ।

रसिया –
यह गीत ब्रज प्रदेश में भरतपुर , धौलपुर का प्रसिद्ध है ।इस गीत में भगवान कृष्ण की प्रशंसा होती है , यह गीत होली पर गाया जाता है जो बम नृत्य के साथ गाया जाता है । 60.हरणी गीत – इसे लोवड़ी गीत भी कहते है , यह दीपावली के त्यौहार पर मेवाड़ क्षेत्र में गाया जाता है , इस में बच्चे टोलियां बनाकर घरों से पैसे इकट्ठे करते है ।

आंगौ मोरियौ गीत –
‣ यह गीत एक महिला के द्वारा परिवार की सुख समृद्धि के लिये गाया जाता है ।

दारूड़ी –
‣ यह गीत महफिलों में शराब परोसते समय गाया जाता है ।
” दारूड़ी दाखां री म्हारै भंवर ने थोड़ी – थोड़ी दीज्यो ए ।”

काछबा गीत –
यह प्रेम गाथा पर आधारित लोक गीत है , जो पश्चिमी राजस्थान में गाया जाता है ।

संगीत के प्रकार –

मांडगायकी –
‣ मांड गायन राजा महाराजाओं के दरबार में गाया जाता है । मांड गायन में कामुकता , भावुकता व श्रृंगार का महत्व होता है ।

टप्पा –
‣ टप्पा हिंदुस्तानी संगीत की एक विशिष्ट शैली है । टप्पा पंजाब की प्रमुख शैली है इन्हे मुगल काल में दरबारी गायन के रूप में स्थापित करने का श्रेय शौरी मियां को जाता है । इसमें तानो का प्रयोग किया जाता है । यह हिंदी व पंजाबी का मिश्रण होता है ।

तराना –
‣ यह गायन युद्ध के समय ढोली और ढ़ाढी जाति द्वारा वीर रस में युद्ध के समय गाया जाता है । इस गायन को अर्थपूर्ण शब्दों का प्रयोग नही होता है, बल्कि कर्कश आवाज में गाया जाता है ।

हवेली संगीत –
‣ इसका उदभव ब्रजप्रदेश में हुआ था । यह भक्ति भजन की शैली है ।यह संगीत जयपुर , उदयपुर , नाथद्वारा , चितौड़ व कामा (भरतपुर ) की प्रसिद्ध है । इसमें वल्लभ सम्प्रदाय के लोगो द्वारा मंदिरों में ठाकुरजी के लिये गायन होता है ।

ख्याल –
‣ ख्याल गायकी हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की सबसे पुरानी शैलियों में से एक है । ख्याल शब्द फारसी भाषा का है जिसका अर्थ है – विचार / कल्पना / सोचना आदि होता है । ख्याल का अविष्कार जोनपुर के शासक सुल्तान शाह शर्की ने 15 वी सदी में किया । ख्याल को तबले के साथ गाया जाता है । ख्याल में नायिका के श्रृंगार वर्णन , राजाओं की प्रशंसा की जाती है ।

दादरा शैली –
‣ इस शैली में चंचलता के साथ गायन होता है । दादरा शैली में श्रृंगार रस का महत्व है ।

ध्रुपद –
‣ ध्रुपद गायन के जन्मदाता ग्वालियर शासक मानसिंह तोमर को माना जाता है । ध्रुपद गायन की शैली को बानिया कहते है । इस गायन में ब्रज भाषा के साथ राजाओं व ईश्वर का गुणगान , देवदासियों की लीलाओं आदि का गायन होता है । नाहौर बानी , खंडार बानी , गोवरहार बानी , डागुर बानी प्रमुख संगीत की बानिया है । ध्रुपद का स्थायी , अंतरा , संचारी , आभोग चार खंड में गायन होता है ।

धमार –
‣ धमार शैली में श्रृंगार रस के साथ लय का प्रयोग किया जाता है । धमार में राधा – कृष्ण के पैटर्न का प्रयोग किया जाता है । धमार के दो रूप है – गुप्त व प्रकाश । फय्याज खां , विलायत खां ,हैदर बख्श , बहराम खां , उस्ताद वजीर खां धमार के प्रमुख संगीतकार है । धमार शैली का गायन होली पर नाच गानों के साथ होता है ।

चारबैंत –
‣ यह टोंक की प्रसिद्ध है , यह एक मुस्लिम शैली है । इस गायन में डपली यंत्र के साथ बजाया जाता है । चारबैंत में कव्वाली के रूप में गायन होता है ।

ठुमरी –
‣ ठुमरी का जन्म अवध के नवाब वाजिद अली शाह के समय हुआ । इसमें श्रृंगार व भाव प्रधान होता है । यह शास्त्रीय व लोकसंगीत का मिश्रण होता है । इनका मुख्य विषय राधा – कृष्ण का प्रेम होता है ।

संगीत गीत से सम्बंधित प्रमुख व्यक्ति –

गवरी देवी –
‣ इन्हें राजस्थान की कोकिला कहते है । इनका जन्म 14 अप्रैल 1920 को हुआ था , ये राजस्थान की प्रसिद्ध लोक गायिका थी । यह जोधपुर के राजघराने में एक मांड गायिका थी । गवरी देवी की शादी जोधपुर के मोहनलाल के साथ हुई । गवरी देवी ने 1954 में अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन (जयपुर) मे भाग लिया था । महाराजा उम्मेद सिंह के समय इन्हे सर्वाधिक प्रसिद्धि मिली ।

मांगी बाई –
‣ इनका जन्म प्रतापगढ़ में हुआ । इनके पिता का नाम कमलराम तथा इनके पति का नाम रामनारायण था । मांगी बाई मांड और शास्त्रीय गायन में निपुण थी । मांगी बाई को 1994 में पुरस्कृत किया गया ।

बन्नो बेगम –
‣ बन्नो बेगम शास्त्रीय गायन , मांड गायन , ठुमरी , गीत व गजल में निपुण थी । इनके गुरु नजीन खां थे । बन्नो बेगम जयपुर गुणीजन खाना में शामिल थी, इनकी माता जौहर बाई भी जयपुर दरबार में नायिका थी । बन्नो बेगम ने राजमाता गायत्री देवी और इंग्लैण्ड की महारानी एलिजाबेथ के समक्ष गायन किया था ।

तानसेन –
‣ इनका जन्म ग्वालियर , मध्यप्रदेश में हुआ था । इनका मूल नाम रामतनु पांडे था । ये अकबर के नवरत्नो में शामिल थे , अकबर ने इन्हे संगीत में ‘कंठाभरणवाणीविलास ‘ की उपाधि दी थी ।

राणा कुम्भा –
‣ यह 1433 से 1468 तक मेवाड़ के शासक रहे थे । इनके गुरु का नाम ” जैनाचार्य हीरानंद ” था । इनके शासन में संगीतराज , संगीतमीमांसा व सुड़प्रबंध ग्रंथ की रचना की गयी । इन्होंने जयदेव के गीतगोविंद ग्रंथ पर रसिकप्रिया टीका की रचना की ।

अमीर खुसरो –
‣ इनका पुरा नाम अबू हसन यामीन उद – दीन खुसरो था । इन्हे अमीर खुसरो देहवली के नाम से भी जाना जाता है । खुसरो 14 वीं सदी के सबसे लोकप्रिय खड़ी बोली हिंदी के कवि , शायर ,गायक व संगीतकार थे । इन्होने गायन की कव्वाली , तराना व गजल पद्धति को प्रारम्भ किया। इन्हे ख्याल का जनक भी कहा जाता है ।

अल्लादिया खाँ –
‣ अल्लादिया खाँ एक भारतीय हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक थे । इनका जन्म 1855 ई. उणियारा (जयपुर) में हुआ था ।इनके पिता का नाम ख्वाजा अहमद खाँ था । ध्रुपद , धमार , ख्याल गाने में अल्लादिया खाँ निपुण थे । ये जयपुर संगीत घराने के प्रमुख संगीतकार थे । इन्होंने ‘ जयपुर – अतरौली ‘ घराने की स्थापना की थी । एम. आर. जयकर ने अल्लादिया खाँ को माऊण्ट एवरेस्ट ऑफ म्युजिक तथा संगीत सम्राट की उपाधि दी ।

विष्णु दिगंबर –
‣ इनका जन्म 18 अगस्त , 1872 को कुरुण्ड़वाड़ ( महाराष्ट्र ) में हुआ था । इन्होंने 1930 में ‘रघुपति राघव राजा राम’ का गायन किया । यह गायन गाँधी जी के दांडी मार्च (1930 ) के समय रामधुन में किया गया था।

अल्लहाजिल्लाह बाई –
‣ अल्लहाजिल्लाह बाई को राजस्थान की ‘ मरू कोकिला ‘ कहा जाता है । इनका जन्म 1 फरवरी 1902 को बीकानेर राजस्थान में हुआ था । यह जयपुर राजघराने की मांड गायिका थी। इन्हे संगीत की शिक्षा उस्ताद हुसैन बक्स ने दी थी । 1982 में इन्हे पद्म श्री का अवार्ड मिला तथा मेवाड़ फाउण्डेशन ने डागर घराना पुरस्कार दिया ।केसरिया बालम , बाईसारा वीरा इनके प्रमुख गीत है । अल्लहाजिल्लाह बाई ने 1987 में अलबर्ट हॉल लंदन में प्रस्तुति दी।

प्रतापसिंह –
यह 1778 से 1803 तक जयपुर के शासक रहे थे । इनके दरबार में गंधर्व बाइसी थी जिसमें संगीत का प्रधान संगीत खाँ था । ब्रजपाल भट्ट के नेतृत्व में राधा गोविंद संगीतसार ग्रंथ की रचना की गयी थी ।

विष्णु नारायण भारतखंड –
‣ पंडित विष्णु नारायण भारतखंडे हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के विद्वान थे । इनका जन्म 1860 को मुम्बई में हुआ था । इन्हे भारतीय संगीत के उद्धारक भी कहते है । इन्होने संगीत पर प्रथम आधुनिक टिका लिखी थी ।

संगीत के घराने –

1.जयपुर घराना –
‣ इस संगीत घराने का प्रारम्भ सर्वप्रथम सवाईरामसिंह के समय बहरामखाँ ने किया था यहां संगीत ध्रुवपद पर आधारित संगीत होता है इस संगीत के लिये सैनियां घराना प्रसिद्ध है । अल्लादिया खां इस घराने के प्रमुख संगीतकार है । जिनका जन्म 1855 में उणियारा (जयपुर ) में हुआ । मृदंग व पखावज प्रमुख वाद्य काम में लिये जाते है । इसमें ब्रज भाषा का प्रयोग होता है । जाकिरूद्दीन खां , अल्लाबंद खां , नसीर मुइनुद्दीन , तानसेन पाण्डेय इस घराने के प्रमुख संगीतकार है । जयपुरी ख्याल के जनक मनरंग खां को माना जाता है । सवाईरामसिंह को वीणा वादन रज्जब अली खां ने सिखाया था। मुबारक अली खां तथा रज्जब अली खां प्रमुख संगीतकार है ।

2.अतरौली घराना –
‣ अतरौली घराना उतरप्रदेश का प्रसिद्ध है , जिसके प्रमुख संगीतकार अलादिया खां , करीमबख्श , छज्जु खां , हैदर खां , दुल्लु खां आदि थे ।

3. मथुरा घराना –
‣ जोधपुर व अलवर में मथुरा घराने का गायन होता है । इस घराने की स्थापना महताब खां ने की थी। इस घराने में भगवान कृष्ण से संबंधित हवेली संगीत का गायन होता है ।

4. दिल्ली घराना –
‣ दिल्ली घराना देश के सबसे पुराने घरानों में शुमार है । दिल्ली घराने का विकास मोहम्मद शाह के समय हुआ था । दिल्ली घराने के प्रमुख संगीतकार तानरस थे इसलिये इस घराने को तानरस घराना भी कहते है । दिल्ली घराने में सदारंग खां ने ख्याल शैली में गायन किया जिस कारण दिल्ली घराने को सदारंग घराना भी कहते है ।

5. मेवाती घराना –
‣ इस घराने के संस्थापक जोधपुर के नजीर खां थे । मेवाती घराने में ध्रुपद व ख्याल का गायन प्रसिद्ध है ।

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