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राजस्थान के प्रमुख वाद्य यंत्र | Rajasthan ke Pramukh Vadhy Yantra Notes | Trick | PDF

दोस्तों इस पोस्ट में राजस्थान के प्रमुख वाद्य यंत्र के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। इसमें राजस्था के माठ वाद्य यंत्र, सिंगी वाद्य यंत्र, गुजरी वाद्य यंत्र आदि के बारे में पढ़ेंगे। यह राजस्थान जीके का अति महत्वपूर्ण topic है। यदि आप भी किसी government exams की तैयारी कर रहे है, तो हमारी वेबसाइट पर आप बिल्कल free में नोट्स पढ़ सकते हो। राजस्थान में सरकार द्वारा आयोजित सभी प्रकार के एग्जाम में यहां से प्रश्न पूछे जाते है। यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगी। यहां पर आपको राजस्थान के सभी टॉपिक्स के नोट्स उपलब्ध करवाए जा रहे। इन टॉपिक को पढ़कर आप अपनी तैयारी को और बेहतर बना सकते है। और government की सभी महत्वपूर्ण परीक्षाओं में सफलता प्राप्त कर सकते है। 

राजस्थान के वाद्य यन्त्र –
‣ राजस्थन के जोधपुर जिले मे 1976-77 में लोक वाद्य संग्रहालय की स्थापना की गई थी।

वाद्य यंत्र को बनावट और ध्वनि के आधार पर मुख्यातः चार भागों में बांटा गया है जो निम्न प्रकार है –
( अ ) तत् वाद्य यंत्र
( ब ) घन वाद्य यंत्र
( स ) सुषिर वाद्य यंत्र
( द ) अवनद्ध वाद्य यंत्र/ ताल वाद्य यंत्र

(अ) तत् वाद्य यंत्र –
‣ तत् वाद्य यंत्र को बजाने के लिए इसमें तार होते है। जिसको अंगुलियों या गज/पुखवाज से बजाया जाता है। जैसे – सितार, वीणा, इकतारा, कमायचा, सारंगी, रावण हत्था आदि ।

इकतारा –
‣ इसमें बजाने के लिए एक या दो तार लगे होते है।
‣ यह वाद्य यंत्र नाथ, कालबेलिया तथा साधु- सन्यासी बजाते है।
‣ इसको भगवान नारद मुनि व मीरा का वाद्य यंत्र है।
‣ इकातर सबसे प्राचीन वाद्य यंत्र है।

सारंगी –
‣ सारंगी में 27 तार लगे होते है।इसके तार को बकरे की आंत से बनाया जाता है। सारंगी का निर्माण सागवान, रोहिड़ा तथा कैर की जड़ से किया जाता है।
‣ सारंगी पश्चिमी राजस्थान में लंगा जाती के द्वारा बजाई जाती है। इसको कमायचा का राजा कहते है।
‣ तत् वाद्य यंत्र में सारंगी को सर्वक्षेष्ठ वाद्ययंत्र माना जाता है।
‣ धनी सारंगी, अलबु सारंगी, गुजरातन सारंगी, सिंधी सारंगी, डेढ़ पसली सारंगी आदि सारंगियो के मुख्य प्रकार है।

रावण हत्था –
‣ रावण हत्था को नारियल को काटकर उस पर चमड़े की खाल की मढ़ दी जाती है।
‣ रावण हत्था में नौ तार लगे होते है। जिसमें से दो मुख्य तार होते हैं इनमें से एक तार घड़े की पूछ के वाला का होते है जिसको पुखबाज कहते है । तथा अन्य तारों को तरब कहते है।
‣ नायक भोपा पाबूजी की फड़ का वाचन करते समय इसी वाद्य यंत्र का प्रयोग करते है। इसका वादन पुख्वजा/ गज से होता है।
‣ रावण हत्था को राज्य का सबसे लोकप्रिय तथा प्राचीन लोक वाद्य में आता है।
‣ रामदेव जी की फड़ व डूंगर जी – जवाहर जी की कथाएं रावण हत्थे से कहीं जाती है ।

भपंग –
‣ यह वाद्य यंत्र डमरू जैसा होता है । इसको कद्दू से बनाया जाता है।
‣ मेवात में जागी जाती द्वारा इसको बजाया जाता है।
‣ यह वाद्य यंत्र अलवर, भरतपुर क्षेत्र का लोकप्रिय वाद्य यंत्र है ।
‣ जहूर खां व उमर फारूक मेवाती इसके प्रसिद्ध वादक है ।
‣ इस वाद्य यंत्र को बजने के लिए तुंबे को बाई बगल में दबा लिया जाता है तथा गुटके को बाएं हाथ से पकड़कर तांत से दबाया जाता है।

अपंग –
‣ इस वाद्य यंत्र को लंबी लोकी के तुंबे में लकड़ी फंसा कर उसे खाल से मंड दिया जाता है । तथा इस वाद्य यंत्र में 2 तार बांध दिए जाते है।
‣ यह वाद्य यंत्र गरासिया व भील जाती लकड़ी से इस वाद्य यंत्र का वादन करती है ।

कमायचा –
‣ इस वाद्य यंत्र में 16 तार होते है जिसको तीन भागों में बांटा जाता है।
‣ यह वाद्य यंत्र ईरानी वाद्य है। इस वाद्य यंत्र को सारंगी की रानी कहां जाता है।
‣ यह बिना गज के मंगाणिया व लंगा जाती के द्वारा बजाया जाता है ।

जन्तर –
‣ यह वाद्य यंत्र वीणा का प्रारंभिक रूप है।
‣ बगदावतों की कथा के समय भीलो के द्वारा इस वाद्य यंत्र का वादन किया जाता है ।
‣ इस वाद्ययंत्र में तारों की संख्या पांच या छः होती है।

वीणा –
‣ इस वाद्य यंत्र में चार तार लगे होते है ।
‣ यह वाद्य यंत्र आता सरस्वती का वाद्य यंत्र है।

तंदुरा/चौतारा –
‣ यह वाद्ययंत्र रामदेव जी के भक्तो द्वारा बजाया जाता है ।
‣ यह रोहिड़ा की लकड़ी से बनाया जाता है ।
‣ इसमें चार तार लगे होते है।

रबाब –
‣ इस वाद्ययंत्र में चार या पांच तार लगे होते है।
‣ इस वाद्ययंत्र का वादन नाखवी जाती के द्वारा किया जाता है ।
‣ इसको बजाने के लिए गज/मिजराब का प्रयोग किया जाता है।
‣ यह वाद्ययंत्र अलवर, टोंक मेवाड़ में बजाया जाता है।
‣ इस में चार तार आंत के और एक तार लोहे का लगा होता है ।

( ख ) घन वाद्ययंत्र –
‣ यह वाद्य यंत्र धातु के बने होते है। जिसको आपस में टकराने पर या किसी वस्तु से प्रहार करने से स्वर उत्पन्न होता है घन वाद्य यंत्र कहां जाता है।
राजस्थान के प्रमुख वाद्य यंत्र –

मंजीरा –
‣ यह वाद्य यंत्र पीतल व कांसे से निर्मित गोलाकार वाद्ययंत्र है।
‣ इस वाद्य यंत्र को हमेशा जोड़े में बजाया जाता है।
‣ यह वाद्य यंत्र तेरहताली नृत्य व भजन – कीर्तन में बजाया जाता है।
‣ इसकी आकृति कटोरीनुमा होती है।
‣ इसको जोड़े से बजाया जाता है।

झांझ –
‣ झांझ मंजीरे का बड़ा रूप होता है।
‣ इस वाद्य यंत्र को शेखावाटी क्षेत्र में बजाया जाता है।
‣ यह वाद्य यंत्र शेखावाटी क्षेत्र में कच्छी घोड़ी नृत्य के अवसर पर बजाया जाता है।

टाली –
‣ इस वाद्य यंत्र को मन्दिरों में आरती के समय बजाया जाता है।

थाली –
‣ यह वाद्य यंत्र कांसे से बना होता है।
‣ इस वाद्य यंत्र के चरी नृत्य में भील जाती तथा कालबेलिया के द्वारा बजाया जाता है।
‣ इसे पुत्र के जन्म में समय पर बजाया जाता है।
‣ पाबूजी के भगत व चरी नृत्य में इसका वादन किया जाता है।
‣ यह वाद्य यंत्र मुख्यातः ढोली जाती का वाद्य यंत्र है।

माटे –
‣ यह मिट्टी या धातु का बना होता है।
‣ इसे मिट्टी के पात्र पर प्लेट रखकर उसे डंडों से बजाया जाता है।

टंकोरा –
‣ इस वाद्य यंत्र को मन्दिर और विद्यालय में बजाया जाता है।

खड़ताल/ करताल –
‣ यह वाद्य यंत्र राजस्थान के बाड़मेर व पाली जिलों में गैर नृत्य के अवसर बजाया जाता है।
‣ यह वाद्य यंत्र नारद जी का वाद्य यंत्र है।
‣ इसमें लकड़ी के बने एक बॉक्स में छोटी धातु की कटोरिया होती है। जिसको टकराने पर आवाज उत्पन होती है।
‣ यह वाद्य यंत्र जैसलमेर, बाड़मेर, व जोधपुर में प्रसिद्ध है।
‣ सद्दीक खां मांगणियार ने इसको प्रसिद्ध किया जिसे खड़ताल का जादूगर कहा जाता है

भरनी –
‣ इसको मटके के मुंह पर पीतल की प्लेट रखकर दो डंडों से बजाया जाता है।
‣ यह वाद्य यंत्र को पूर्वी राजस्थान भरतपुर व अलवर में सर्प के काटे हुए व्यक्ति का इलाज करते हुए लोक देवता के बजाया आता है।

रामझोल –
‣ यह वाद्य यंत होली पर गैर नृत्य के समय तथा उदयपुर जिले में भीलो द्वारा चक्राकार नृत्य के समय इसका प्रयोग किया जाता है।
‣ यह घुंघरू का ही एक रूप है।
‣ इसमें 15 अंगुल लंबे व 5 अंगुल चौड़े चमड़े के टुकड़े पर घुंघरू लगा दिया जाता है। जिसको नृतक पैर में बांध कर नृत्य करते है।
‣ गैर नृत्य में जालौर व बाड़मेर में काम लिया जाता है।

घंटी –
‣ इसको मन्दिरों में छत पर लटकाया जाता है।

घंटा –
‣ यह घंटी का बड़ा रूप होता है।

शक्ति घंटा –
‣ इसको पीतल से बनया जाता है।
‣ इसको मन्दिरों में आरती के समय काम में लिया जाता है।

वीर घंटा –
‣ इसे मन्दिरों में बजाया जाता है।
‣ इसको पुजारी एक हाथ में पूजा की थाली तथा दूसरे हाथ में वीर घंटा बजाता है।

टोकरा –
‣ इसको हाथी के गले में लटकाया जाता है।

सांकल –
‣ यह गोगाजी के भक्तो के द्वारा बजाया जाता है।

घुंघरू –
‣ इसको पैरो पर बंधा जाता है।
‣ घुंघरू वाद्य यंत्र छोटे पीतल या कसने का वाद्य यंत्र है।
‣ पीतल की बनी गोलाकार टुकड़े जिनके नीचे का भाग कटा होता है तथा इसके अंदर कोई धातु का टुकड़ा होता है जसके टकराने से आवाज निकती है।

करताल/श्री मण्डल –
‣ यह वाद्य यंत्र खड़ताल एक रूप है।
‣ इस वाद्य यंत्र की आकृति B अक्षर के जैसी होती है।
‣ इसमें काष्ठ के बने B आकार के 2 बक्से होते है जिनमे पितली की छोटी तश्तरियां लगी होती है।
बक्सों को आपस में टकराने आवाज आती है।

लेजिम –
‣ यह वाद्य यंत्र धनुष के आकार का होता है। जिस पर घंघरू लगे होते ही।
‣ यह वाद्य यंत्र गरासिया जाती द्वारा मन्दिरों में बजाया जाता है।

टिकोरी –
‣ यह वाद्य यंत्र प्लेटनुमा आकृति का होता है।
‣ जिसमे घंघरू लगे होते है। इसको हाथ में लेकर बजाया जाता है।

चिपिया –
‣ यह वाद्य यंत्र साधु संन्यासियों द्वारा बजाया जाता है।
‣ यह लोहे की दो डंडियों से बना होता है। यह वाद्य यंत्र जिस पर मंजीरे के आकार की छोटी प्याली लगी होती है। डंडियों को आपस में टकराने से आवाज आती है।

(ग ) सुषीर वाद्ययंत्र –

‣ जिस वाद्य यंत्र को फूक मारकर बजाया जाता है वे वाद्य यंत्र सुषीर वाद्य यंत्र कहलाता है।

बांसुरी –
‣ इस में 7 छेद होते है।
‣ इसको भगवान कृष्ण द्वारा बजाया जाता था । यह भगवान कृष्ण का वाद्य यंत्र है।
‣ बांसुरी खोखली लकड़ी की व्बानी होती है।
‣ इसमें 5 छेद वाली बांसुरी को पावला तथा 6 छेद वाली बांसुरी को रुला कहा जाता है।
‣ इसको वेणु, वंश, नादी, मुरली भी कहा जाता है।
‣ बांसुरी के प्रमुख वादक हरिप्रसाद चौरसिया व पन्ना लाल घोष है।

शहनाई –
‣ यह वाद्य यंत्र मांगलिया व सबसे सुरीला वाद्य यंत्र है।
‣ इस वाद्य यंत्र में 8 छेद होते है।
‣ इस वाद्य यंत्र को सागवान तथ शीशम की लकड़ी से बनाया जाता है।
‣ इस वाद्ययंत्र को पश्चिमी राजस्थान में दो वादक एक साथ बजाते है।
‣ सुषीर वाद्य यंत्र में शहनाई को सैक्षेष्ठ माना जाता है।
‣ शहनाई को विवाह के अवसर पर नगाड़े के साथ बजाया जाता है।
‣ शहनाई को सुंदरी भी कहा जाता है।
‣ इस वाद्य यंत्र को बिस्मिला खान ने प्रसिद्ध किया था। जिनको 2001 में भारत रत्न से समानित किया गया था।
मांगी बाई प्रमुख शहनाई वादिका है।

बांकिया –
‣ यह वाद्य यंत्र पीतल सेबाना होता है।
‣ इसको मांगलिक अवसर पर पश्चिमी राजस्थान में बजाया जाता है।
‣ इसको सारागड़ा जाती के द्वारा बजाया जाता जाता है।

अलगोज –
‣ इसमें चार छेदों वाली दो बांसुरियां होती है ।
‣ यह वाद्य यंत्र वीणा के आकार का होता है।
‣ इसमें 2 बांसुरी के आकार की नाली लगी होती है जिसमे प्रत्येक नली में 4 – 4 छेद होते है।
‣ यह वाद्य यंत्र राजस्थान का राज्य वाद्ययंत्र कहलाता है।
‣ यह चारवाह , कालबेलिया, भील जाती के द्वारा भीलवाड़ा, अलवर, अजमेर, टोंक में बजाया जाता है।
धोधे खां इसके प्रमुख वादक है।

मशक –
‣ यह वाद्य यंत्र चमड़े से निर्मित होता है। जिसमे नीचे पाइप लगी होती है।
‣ इसको भैरू का भोपा बजाता है।
‣ हवा से भरकर मशक को कांख में रखा जाता है।
‣ इसकी आकृति बैग पाईपर के समान होते है।
‣ इसको मांगलिक अवसर पर बजाया जाता है।
‣ राजस्थान में प्राचीन समय से हो अतिथि सत्कार के लिए मशक वाद्य यंत्र बजाया जा रहा है।
‣ श्रवण कुमार ने इस वाद्य यंत्र को अंतराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलवाई है इसलिए श्रवण कुमार को मशक का जादूगर कहा जाता है।

घुरालिया –
‣ इस वाद्य यंत्र को बांस की खपची को धागे से बांध कर उस पर घुंघरू बांध दिए जाते है।
‣ यह वाद्य यंत्र बांसुरी के आकार का होता है।
‣ यह वाद्य यंत्र कालबेलिया और गरासिया जाती की महालिए इसे बजाती है।
‣ इसको बांस का बाजा भी कहा जाता है।

बोली –
‣ इस वाद्य यंत्र का वदन कठपुतलियों के खेल में किया जाता है।

सिंगा –
‣ यह वाद्य यंत्र सिंग की आकृति के समान होता है।
‣ यह पीतल से बना होता है।

शंख –
‣ यह समुद्री जीव का आवरण होता है।
‣ यह युद्ध व मंदिरों में बजाया जाता है।

पेली –
‣ इसकी आकृति बांसुरीनुमा होती है।
‣ जिसका वादन मेवात क्षेत्र में होता है।

तारपी –
‣ इसकी आकृति सिंग जैसी होती है।

हहनाई –
‣ यह शहनाई का ही एक रूप है।

सुराणाई –
‣ इसको पीतल से बनाया जाता है।
‣ पेपे खां मांगणियार को विश्व प्रसिद्ध सुराणाई के वादक माना जाता है।

बीणा/ पुंगी –
‣ इसको तुम्बे से बनाया जाता है। जिसमे दो नाली होती है। इसकी एक नली में तीन छेद होते है तथा दूसरी नली में 9 छेद होते है।
‣ इसको सपेरा जाती के द्वारा बजाया जाता है।

भुंगल –
‣ इसका आकार बांकिया के समान होता है।
‣ इसको मेवाड़ में भाटी द्वारा बजाया जाता है।
‣ यह भवाई जाती का प्रिय वाद्य यंत्र है।
‣ यह वाद्य यंत्र रण भेरी वाद्य है।

मोराचंग –
‣ यह वाद्य यंत्र लोहे का बना होता है। इसको दोनों होठों के बीच में रखकर बजाया जाता है।
‣ यह वाद्य यंत्रों में सबसे छोटा वाद्य यंत्र है।
‣ इसकी आकृति कैची के समान होते हैं।
‣ पश्चिम राजस्थान में लंगा जाती के द्वारा इसका वादन किया जाता है।

करणा –
‣ इसकी आकृति चिलम के जैसी होती है।
‣ जिसको पाली में आरती के समय बजाया जाता है।

बरागू –
‣ यह चिलम के जैसा होता है ।
‣ इसको सरगरा जाती के द्वारा इसका वादन किया जाता है।

नड़ –
‣ यह हवा से भरा थैला होता है।
‣ इसका आकर पाइप के समान होता है।

मानी –
‣ यह नड़ का छोटा रूप होता है।

नागफणी –
‣ इसकी आकृति नाग के समान होती है।
‣ यह धातु का बना होता है।
‣ मन्दिरों में साधुओं के द्वारा इसका वादन किया जाता है।

( घ ) ताल वाद्य यंत्र / अवनद्ध वाद्य यंत्र –
‣ इस वाद्य यंत्र को चमड़े से मंडकर बनाया जाता है। जिसको हाथ की थाप या डंडे से बजाया जाता है।

ढोलक –
‣ यह लकड़ी को खोखला कर उनके दोनों तरफ चमड़ा मंढ दिया जाता है। तथा चमड़े को हाथ से पिता जाता है। जिससे उसमे आवाज आती है।
‣ ढोलक को हार्मोनियम के साथ भजन कीर्तन में बजाया जाता है।
‣ ढोलक मांगलिक वाद्य यंत्र है।
‣ ढोलक अवनद्ध वाद्य यंत्रों में सबसे प्राचीन वाद्य यंत्र है।

ढोल –
‣ यह ढोलक का बड़ा रूप है।जिसको दोनों तरफ से बजाया जाता है।
‣ इसको डंडों से बजाया जाता है।
‣ इसके एक भाग को नर तथ दूसरे भाग मादा होता है।
‣ यह मांगलिक वाद्य माना जाता है।

कुंडी –
‣ यह बड़े प्लेटनुमा होता है जिसको मिट्टी से बनाया जाता है।
‣ इसको मेवाड़ के जोगियों के द्वारा बजाया जाता है।
‣ इसको डंडी से बजाया जाता है।

डमरू
‣ यह प्राचीन वाद्य यंत्र है।
‣ इसको शिवाजी का वाद्य यंत्र मना जाता है।
‣ इसको मदारी लोगो के द्वारा भी बजाया जाता है।

डेरू –
‣ यह वाद्य यंत्र समरू का बड़ा रूप होता है।
‣ इस वाद्य यंत्र को भील जाती तथा गोगाजी के भोपे भक्तो के द्वारा बजाया जाता है।
‣ इसको थाली या कांसे के छोटे कटोरे के साथ बजाते है।
‣ यह आम की लकड़ी से बनाया जाता है।

दमामा/टामका –
‣ यह वाद्य यंत्रों में सबसे बड़ा वाद्य यंत्र है।
‣ यह कड़ाईनुमा आकार पर भैंस की खाल चढ़ाकर बनाया जाता है। इसका प्रयोग युद्ध स्थलों में किया जाता है।
‣ मेवात क्षेत्रों में इसका प्रचलन है।
‣ इसको गुर्जर, जाट, जाती द्वारा तामक टामक बजाया जाता है।

घेरा –
‣ यह चंग का बड़ा रूप है। इसको होली के अवसर पर बजाया जाता है।
‣ घेरे को मुस्लिम जाति द्वारा लकड़ी को डंडी से बजाया जाता है।

ढाक/टाक –
‣ यह वाद्य यंत्र डिरूस बड़ा होता है।
‣ इस वाद्य यंत्र को बगडावतों की गाथा गीतों में गुर्जर जाती के द्वारा बजाया जाता है।
‣ इसका वादन टोंक, झालावाड़, कोटा तथा मेवाड़ में किया जाता है।

तासा –
‣ इस वाद्य यंत्र की आकृति परातनुमा होती है ।
‣ इसको गलें में लटकाकर ताजिया निकलने समय मुस्लिम जाती के द्वारा बजाया जाता है।

खंजरी –
‣ यह वाद्य यंत्र आम के लकड़ी से बनाया जाता है। जिसके एक ओर खाल से मढ़ा जाता है।
‣ इसको दाहिने हाथ से पकड़कर बांए हाथ से बजाया जाता है।
‣ यह टफ के आकार का होता है।

मांदल –
‣ यह वाद्य यंत्र शिव पार्वती के वाद्य यंत्र है।
‣ इस वाद्य यंत्र को दोनों तरफ से बजाया जाता है।
‣ इस वाद्य यंत्र का वादन मेवाड़ के भीलो द्वारा गवरी नाट्य में किया जाता है।
‣ यह मृदंग के सदृश होता है तथा इसको मिट्टी से बनया जाता है।
‣ इसका एक मुंह छोटा तथा दूसरा मुंह बड़ा होता है। इसको मढ़ी हुई खाल पर जौ का आटा चिपकाकर बनाया जाता है।
‣ इसके साथ थाली बजाई जाती है।

चंग –
‣ यह वाद्य यंत्र होली पर एक हाथ से बजाया जाता है।
‣ यह वाद्य यंत्र शेखावाटी , झालावाड़ तथा कोटा का प्रसिद्ध है।

नगाड़ा –
‣ यह वाद्य यंत्र सुपारी के आकार का होता है।
‣ इसका वादन मन्दिर, युद्ध, दुर्ग, राजाघरना तथा गीदड़ नृत्य में किया जाता है।
‣ इस वाद्य यंत्र ओ शहनाई के साथ बजाया जाता है।
‣ पुष्कर के रामकिशन सौलकी इसके प्रमुख वादक है।

नौबत –
‣ इसको एक भाग से ही इसका वादन होता है।
‣ यह नर तथा मादा के युगल रूप में बजाता है।
‣ इसका वादन मन्दिरों व दुर्गों में किया जाता है।

धौसा –
‣ इसका वादन मन्दिरों और दुर्गों में किया जाता है।
‣ इसको बड़े घेरे पर भैंस की खाल मंढकर बनाया जाता है।

माठे/मेट –
‣ इसको मिट्टी का पात्र जिसके दोनों ओर ए मुंह खुला होता है जिस पर चमड़ा मढ़कर गेज में लटकार बजाया जाता है।
‣ इसको पाबूजी के भक्त मठ वाद्य से पावडे जाती है।

बोली –
‣ बांस की दो दुकाड़ो को डोरी से कसकर या वाद्य यंत्र बनाया जाट है।
‣ जिसको कठपुतली नृत्य में बजाया जाता है।

ढीबको –
‣ इसकी आकृति चंग के जैसी होती है।
‣ जिसको गोंडवाणा प्रदेश में बजाया जाता है।

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