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राजस्थान के रीति रिवाज | Rajasthan ke Riti Riwaz Notes | Trick | PDF

राजस्थान के रीति रिवाज एवं प्रथाएं के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करेंगे। यहा पर आपको राजस्थानी शादी की रस्में, राजस्थान रीति रिवाज एवं प्रथा तथा जन्म से सम्बन्धित रीति रिवाज के बारे में जानेंगे। यह राजस्थान जीके का अति महत्वपूर्ण topic है। यदि आप भी किसी government exams की तैयारी कर रहे है, तो हमारी वेबसाइट पर आप बिल्कल free में नोट्स पढ़ सकते हो। राजस्थान में सरकार द्वारा आयोजित सभी प्रकार के एग्जाम में यहां से प्रश्न पूछे जाते है। यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगी। यहां पर आपको राजस्थान के सभी टॉपिक्स के नोट्स उपलब्ध करवाए जा रहे। इन टॉपिक को पढ़कर आप अपनी तैयारी को और बेहतर बना सकते है। और government की सभी महत्वपूर्ण परीक्षाओं में सफलता प्राप्त कर सकते है। 

संस्कार के 16 प्रकार –
गर्भावधान –
इस संस्कार को मानव का प्रथम संस्कार माना जाता है।
यह ऐसा संस्कार है जिसमे योग्य, गुणवान और आदर्श संतान की प्राप्त होती है। गर्भस्थापना के बाद अनेक प्रकार के प्राकृतिक दोषों के आक्रमण होते है, जिनसे बचने के लिए यह संस्कार किया जाता है। जिससे गर्भ सुरक्षित रहता है।

पुंसवन संस्कार –
यह संस्कार स्त्री के गर्भधारण के तीसरे माह में किया जाता है क्योंकि गर्भ में तीन महीने के पश्चात गर्भस्थ शिशु का मस्तिष्क विकसित होने लगता है। इस दिन महिला व्रत करती है यह संस्कार चन्द्रमा के पुष्य नक्षत्र में होने पर किया जाता है।

सीमांतोन्नयन संस्कार –
यह संस्कार छठे – सातवें महीने में गर्भवती महिलाओं को अमंगलकारी शक्तियों से बचाने के लिए लिया जाता है।
छठे – आठवें महीने में होने वाली जानकारी मिलती है।

जातकर्म संस्कार –
यह संस्कार बच्चे के जन्म के समय किया जाता है। इसमें परिवारों के किसी पुरुष द्वारा बच्चे को स्वर्ण की शलाका से शहद और घी चटाता है। यह बच्चे के जन्म के बाद प्रथम संस्कार है। इसको जन्म घूंटी भी कहते है।

नामाकरण –
यह शिशु के जन्म के बाद दूसरा संस्कार होता है। संतान को नाम प्रदान करना ही नामाकरण संस्कार है। नाम का प्रभाव व्यक्ति के चरित्र पर झलकता है।

निष्कर्मण –
जन्म के बाद जब बच्चे को पहली बार घर से बाहर निकाला जाता है तो निष्क्रमण कहा जाता था। यह संस्कार जन्म के चौथे मास में होता है। उस मास में किसी मंगलमय तिथि को शुभ मुहूर्त में पूजा हवन आदि संपन्न कर सन्तान को बाहर का प्राकृतिक वातावरण में लाया जाता है।

अन्नप्राशन –
शिशु के जन्म के बाद पांचवें या छठ महीने में जब प्रथम बार अन्न खिलाया जाता है।

चुड़ाकर्म –
शिशु के सिर के केश को जब प्रथम बार काटने का आयोजन किया जाता है तब यह संस्कार चूड़ाकर्म कहा जाता है। इसको मुण्डन संस्कार भी कहा जाता है।

कर्णवेध –
कर्णवेध संस्कार का अर्थ होता है ” कान को छेदना “
जन्म के चार – पांच वर्ष हो जाने पर कान भेदे जाते है।

विधारंभ –
सन्तान जब पांच वर्ष का होता है तब उसे शिक्षा प्रदान करने के लिए विद्यालय भेजा जाता है।

उपनयन/यज्ञोपवित –
इसको जनेऊ संस्कार भी कहते है। ब्रह्मण बालक का गर्भ से आठ वर्ष क्षत्रिय का ग्यारहवे वर्ष और वैश्य का बारहवें वर्ष में यज्ञोपवित संस्कार करना चाहिए।

वेदारम्भ –
यह संस्कार ज्ञानाजर्न से सम्बन्धित है। इसमें गुरुकुल जाकर वेदों के अध्ययन को आरंभ करने से पूर्व किया जाता है।

केशान्त/गोदान –
यह संस्कार विधार्थी के 16वें वर्ष किया जाता है। इसमें पहली बार दाढ़ी – मूंछ कटवाई जाती है।

समावर्तन –
यह शिक्षा की समाप्ति पर किया जाता था। वेदों की शिक्षा पूर्ण होने पर किशोर जा अपने घर से लौटकर आता है तब किया जाता है।

विवाह संस्कार/पाणिग्रहण –
हिंदू संस्कृति में स्त्री व पुरुष दोनों के लिए विवाह संस्कार बहुत महत्वपूर्ण है। व्यक्ति जब ब्रह्मचर्य आश्रम से गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करता है तब यह संस्कार किया जाता है। यह विवाह के समय किया जाता है।

अंत्येष्टि –
यह मनुष्य का अन्तिम संस्कार है जो मृत्यु के बाद किया जाता है।

राजस्थान के रीति – रिवाज तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है –
1. विवाह संबंधी रीति – रिवाज
2. मृत्यु संबंधी रीति – रिवाज
3. जन्म संबंधी रीति – रिवाज

विवाह के रीति रिवाज –

  1. सम्बन्ध तय करना – माता – पिता के द्वारा संबन्ध तय किया जाता है।
  2. कुण्डली मिलान – वर – वधु की जन्म पत्री का मिलान किया जाता है।
  3. सगाई – इसमें वर – वधु एक दूसरे को अगूंठी पहनते हैं।
  4. टीका – इसमें वधु पक्ष शादी से पहले लड़के को कुछ राशि और उपहार देते है।
  5. सावौ – विवाह का शुभ मुहूर्त निकाला जाता है।
  6. लग्नपत्रिका – शादी का दिन निश्चित करना
  7. गणेश पूजन – इसमें वर पक्ष और वधु पक्ष अपने अपने घरों में गणेश पूजन कर वर – वधु को घी पिलाते है। इसको बाण बैठाना कहते है।
  8. गोदाभराई – वर पक्ष वधु पक्ष को आभूषण, फल और मिठाई देते है।
  9. बंदोली –
  10. मधुपर्क
  11. भात नुतना
  12. भाट भरना
  13. भातमीठा करना –
  14. तौरण मरना
  15. पीठी
  16. तेल चढ़ाना –
  17. रातीजगा
  18. रोड़ी पूजन
  19. चाक पूजन
  20. मुठ भराई
  21. निकासी
  22. जेवडो
  23. बिनोटा
  24. झाला – मिला की आरती
  25. कामण
  26. महंदी
  27. हथलेवा / पाणिग्रहण
  28. गठजोड़
  29. पगधोई
  30. कन्यादान
  31. रंगबरी
  32. फेरे
  33. मिलणी
  34. ननिहारी
  35. कन्यावल
  36. जुआ जुई
  37. जात देना

मृत्यु की रस्में –

अर्थी –
‣ मृत व्यक्ति को जिस पर लेटाकर श्मशान तक ले जाया जाता है उसे अर्थी कहा जाता है।

बैकुंठी –
‣ मृत व्यक्ति को बैठकर श्मशान तक ले जाया जाता है उसे बैकुंठी कहा जाता है।

आधेठा –
‣ अर्थी की दिशा परिवर्तन करना

पिंड दान –
‣ मृत व्यक्ति को जौ का बना पिंड दिया जाता है।

सातरवाड़ा –
‣ मृत व्यक्ति का शरीर जलाने के बाद सभी लोग स्नान करके मृत व्यक्ति के परिवार के सदस्य को सांत्वना देते है।

बिखेर –
‣ मृत व्यक्ति के शैया पर पैसे उछाले जाते है।

दंडोत –
‣ जब व्यक्ति के मृत शरीर को श्मशान तक ले जाते है तब उसके बेटे या पोते बैकुंटी आगे प्रणाम करते है उसे दंडोत कहा जाता है।

लापा –
‣ मृत व्यक्ति के बेटे या पोते के द्वारा शव को आग दी जाती है उसे लापा कहा जाता है।

कपाल क्रिया –
‣ मृत व्यक्ति के सिर को फोड़ कर उसमे घी डाला जाता है।

फूल चुनना –
‣ परिजनों के द्वारा तीसरे दिन दांत, नाखून व हड्डियां इकट्ठे किए जाते है।

मौसर –
‣ व्यक्ति के मृत्यु के 12वें दिन परिवार को भोजन दिया जाता है।

उठावणा –
‣ मृत्यु के पश्चात बैठक समाप्त करना

पगड़ी –
‣ मृत व्यक्ति के सबसे बड़े पुत्र को पगड़ी बांधकर परिवार की जिम्मेदारी दी जाती है।

बरसी –
‣ मृत व्यक्ति के वार्षिक दिन

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