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राजस्थान की भाषा एवं साहित्य | Rajasthan ki Bhasha & Shahitya Notes | Trick | PDF

राजस्थान का भाषा एवं साहित्य – दोस्तों इस पोस्ट में राजस्थान की भाषा एवं बोलियाँ के बारे में विस्तृत से अध्यन करेगें। इसमें हम राजस्थान की क्षेत्रीय बोलियाँ, राजस्थानी भाषा लिपि, ढूढाडी भाषा की उपबोली तथा राजस्थानी भाषा एवं साहित्य की प्रमुख कृतियां के बारे में विस्तृत अध्यन करेगें। यह टॉपिक राजस्थान जीके का अति महत्वपूर्ण topic है। यदि आप भी किसी government exams की तैयारी कर रहे है, तो हमारी वेबसाइट पर आप बिल्कल free में नोट्स पढ़ सकते हो। राजस्थान में सरकार द्वारा आयोजित सभी प्रकार के एग्जाम में यहां से प्रश्न पूछे जाते है। यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगी। यहां पर आपको राजस्थान के सभी टॉपिक्स के नोट्स उपलब्ध करवाए जा रहे। इन टॉपिक को पढ़कर आप अपनी तैयारी को और बेहतर बना सकते है। और government की सभी महत्वपूर्ण परीक्षाओं में सफलता प्राप्त कर सकते है। 

‣ भारतीय संविधान की अनुसूची -8 में राजस्थानी भाषा को शामिल नही किया गया है।
‣ राजस्थान की राज भाषा – ” हिन्दी “
‣ राजस्थान की मातृ भाषा – राजस्थानी
‣ 14 सितम्बर , 1949 को अनुच्छेद 343 में हिन्दी भाषा को राजाभाषा घोषित किया गया था।
तथा 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है।
‣ राजस्थानी भाषा दिवस – 21 फरवरी को मनाया जाता है।
‣ विश्व में 16वा तथा भारत में 7वा स्थान है।
‣ राजस्थान भाषा की लिपि – देवनागरी/ बनियावटी
‣ राजस्थानी भाषा की देवनागरी लिपि में जो अक्षर लिखे जाते है उसको ” मुड़िया ” कहते है।
‣ राजस्थान के सर्वाधिक क्षेत्र में मारावाड़ी तथा सर्वाधिक लोगो के द्वारा ढूंढाड़ी भाषा बोली जाती है।
‣ 1961 की जनगणना के अनुसार राजस्थान में कुल 73 बोलिया बोली जाती है।

राजस्थानी भाषा की उत्पति –
‣ उत्पति की दृष्टि से राजस्थानी भाषा का उद्भव शौरसेनी अपभ्रांष से हुआ है।

राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति के संबन्ध में मत –
1. शौरसन अपभ्रंश –
‣ महावीर प्रसाद शर्मा व L.P टेस्सिटोरी इस मत से सहमत थे तथा यह मत सर्वमान्य मत है।

2. गुर्जर अपभ्रंश – y
‣ के. एम. मुंशी तथा मोतीलाल मेनारिया के द्वारा राजस्थानी भाषा की उत्तपति इस अपभ्रंश से मानी जाती है।

3. नागर अपभ्रंश –
‣ यह पुरोषोत्तम लाल मेनारिय व जॉर्ज अब्रहम ग्रियर्सन ने इस मत को मानते है।

4. सौराष्ट्री अपभ्रंश –
‣ यह सुनीत कुमार चटर्जी ने इस मत को मानते है।

राजस्थानी भाषा के दो साहित्यिक रूप है –
1. डिंगल
2. पिंगल
‣ डिंगल और पिंगल राजस्थानी की दो विशिष्ठ काव्य शैलियों के नाम है।
‣ ये राजस्थानी साहित्य की प्रमुख शैलियां है। डिंगल शब्द का प्रयोग राजस्थान के प्रसिद्ध कवि आसिया बांकीदास ने अपनी रचन कुकविबातीसी में किया।

1. डिंगल –
‣ मारवाड़ी मिश्रित भाषा है, इसकी उत्पति गुर्जरी अपभ्रंश से हुई है।
‣ यह भाषा पश्चिमी राजस्थान में बोली जाती है।
‣ पश्चिमी राजस्थानी का साहित्यक रूप है।
‣ राजस्थान के सर्वाधिक साहित्य इस भाषा में लिखा गया है।
‣ अधिकांश साहित्य चारण कवियों द्वारा लिखित है।
‣ डिंगल शैली का सबसे पहले प्रयोग 1550 ई. में कुशलनाभ ने अपने ग्रंथ पिंगल शिरोमणि में किया।
‣ अचलदास खींची री वचनिका, राठौड़ रतन सिंह की वचनिका, राव जैतसी रो छंद, रुकमणीहरण, नागदमण, सगतरासौ, ढोला – मारू रा दुहा, हम्मीर रासौ, पृथ्वीराज रासो ।

डिंगल शैली की चार उपशैलियां है –

  1. सन्त शैली
  2. जैन शैली
  3. चारण शैली
  4. लौकिक शैली

2.पिंगल –
‣ पिंगल भाटों द्वारा रचित राजस्थानी की विशिष्ट काव्य शैली है।
‣ पिंगल भाषा में ब्रज भाषा का मिश्रण है इसकी उत्पति शौरसेनी अपभ्रंश से हुई है।
‣ यह भाषा पूर्वी राजस्थान में बोली जाती है।
‣ पिंगल भाषा को छन्दो में लिखा गया है।

राजस्थानी की बोलियां –
‣ जार्ज अब्राहम ग्रेयर्सन ने राजस्थानी बोलियो के पारस्परिक संयोग एवं संबंधों के विषय में वर्गीकरण किया है।
‣ सर जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन सिअपने आधुनिक भारतीय भाषा विषयक विश्व कोष लिंगविस्टिक सर्वे ऑफ इण्डिया में राजस्थानी भाषा की पांच उपशाखाएं बताई है –

  1. पश्चिमी राजस्थानी – मारवाड़ी, बागड़ी, शेखावाटी
  2. मध्य पूर्वी राजस्थान – हाड़ौती, ढूंढाड
  3. उत्तर पूर्वी – मवाती, अहिरवाटी
  4. दक्षिणी पूर्वी – मालवी, निमाड़ी
  5. दक्षिणी राजस्थानी – मेवाड़ी, निमाड़ी

नरोतम स्वामी का वर्गीकरण –

  1. पश्चिमी राजस्थानी – मारवाड़ी
  2. पूर्वी राजस्थानी – ढूंढाड
  3. उत्तरी राजस्थानी – मेवाती
  4. दक्षिणी राजस्थानी – मालवी

डॉ.एल. पी. टेस्सीटोरी ने राजस्थानी भाषा को दो भागों में बांटा –

  1. पश्चिमी राजस्थानी – मारवाड़ी, मेवाड़ी, वागड़ी
  2. पूर्वी राजस्थानी – किशनगढ़ी, चौरासी, जयपुरी, तोरावाटी हाड़ौती, मेवाती आदि।

राजस्थानी बोलियों का संक्षिप्त विविरण –

मारवाड़ी –
‣ यह पश्चिम राजस्थानी की उप व प्रधान बोली है इसकी उत्पति गुर्जरी अपभ्रंश से हुई है।
‣ कुवलयमाला में जिसको मरुभाषा कहा जाता है यह वही मारावाड़ी भाषा है।
‣ इस भाषा का प्राचीन नाम मरुभाषा था। यह पश्चिमी राजस्थान की प्रधान बोली है।
‣ इस भाषा का प्रारम्भ काल 8वीं सदी से माना जाता है।
‣ यह करणप्रिय बोली है। यह भाषा जैसलमेर, जोधपुर, बाड़मेर, पाली, बीकानेर, सिरोही, नागौर व जालौर की प्रसिद्ध भाषा है।
‣ यह भाषा मुख्य रूप से जोधपुर के आसपास बोली जाती है।
‣ जैन साहित्य व मीरा के अधिकांश पद इसी भाषा में लिखे गए है।
‣ मूमल, ढोलामारू, राजिया रा सोरठा, वेली किसन रूक्मणी री ढोला मारवण आदि लोकप्रिय काव्य माड़वाड़ी भाषा में ही रचित है।

उपबोलियां –
‣ मेवाड़ी
‣ वागड़ी
‣ शेखावाटी
‣ देवड़ावाटी
‣ बीकानेरी
‣ ढटकी
‣ थली
‣ खैराडी

मेवाड़ी –
‣ यह उदयपुर, चित्तौड़गढ़ , राजसमन्द, भीलवाड़ा, प्रतापगढ़ आदि क्षेत्र की प्रसिद्ध है।
‣ यह मारवाड़ी के बाद राजस्थान की दूसरी सबसे बड़ी बोली है।
‣ यह भाषा मुख्य रूप से गांवों में बोली जाती है।
‣ महाराणा कुम्भा का साहित्य इस बोली में है। कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति इसी भाषा मिली गई है।
‣ मेवाड़ी में लोक साहित्य का विपुल भण्डार है।
‣ मेवाड़ी भाषा में नी शब्द का अधिक प्रयोग किया जाता है।

वागड़ी –
‣ यह भाषा डूंगरपुर, उदयपुर, सिरोही, बांसवाड़ा में बोली जाती है।
‣ डूंगरपुर व बांसवाड़ा के आपपास के राज्यों का प्राचीन नाम वागड़ था। तथा इसीलिए वहां की भाषा वागड़ी कहलायी।
‣ इस पर गुजरात का प्रभाव है।
‣ यह भाषा मेवाड़ी के दक्षिणी भाग, अरावली प्रदेश तथा मालवा की पहाड़ियों तक के क्षेत्र में बोली जाती है।
‣ यह बोली भीलो की सहायक बोली है।

मालवी –
‣ यह भाषा मालवा क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा है।
‣ इस भाषा में मारवाड़ी व ढूंढाडी दोनो की कुछ विशेषता पाई जाती है।
‣ इस भाषा में ‘ स ‘ को ‘ ह ‘ बोला जाता है।
‣ यह भाषा कोटा, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़ में बोली जाती है।
‣ यह कर्णप्रिय बोली है।
‣ इस भाषा में रंगड़ी रूप कुछ कर्कश है।

देवड़ावाटी –
‣ यह भाषा आबू ( सिरोही ) में बोली जाती है।

बीकानेरी –
‣ यह भाषा बीकानेर क्षेत्र में बोली जाती है।

गौड़वाडी –
‣ यह बोली बाड़मेर, जालौर ( गौड़वाडी ) क्षेत्र में बोली जाती है।
‣ जालौर जिले की आहोर तहसील के पूर्वी भाग से प्रारम्भ होकर बाली (पाली ) में बोली जाती है।
‣ यह बोली मारवाड़ की उपबोली है।
‣ इस बोली में मारवाड़ी, गुजराती का मिश्रणहै।
‣ बिसलदेव रासौ इस बोली की मुख्य रचन है।

थली –
‣ यह बोली बीकानेर, गंगानगर व चुरू में बोली जाती है।

ढ़टकी –
‣ यह बोली जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर में बोली जाती है।

धावड़ी –
‣ यह बोली मुख्य रूप से उदयपुर में बोली जाती है।

खैराड़ी –
‣ यह बोली बूंदी, टोंक भीलवाड़ा में बोली जाती है।
‣ यह बोली हाड़ौती व मेवाड़ी का मिश्रण है।

ढूंढाडी की उपबोलियां –

हाड़ौती
‣ यह बोली बारां, कोटा व झालावाडा में बोली जाती है।
‣ यह की बोली हाड़ौती है जो ढूंढाडी की ही एक उपबोली है।
‣ इस भाषा का सबसे पहले प्रयोग के लॉग की हिंदी ग्रामर में 1875 में किया था।
‣ इसके बाद ग्रियर्सन ने अपने ग्रंथ में भी हाड़ौती को बोल के रूप में मान्यता दी।
‣ इस बोली पर गुजराती व मारावाड़ी बोली का प्रभाव दिखाई देता है।
‣ यह बोली वर्तनी की दृष्टि से हाड़ौती राजस्थान की सभी भाषा में सबसे मुसकिल मानी जाती है।

अहीरवाटी –
‣ यह भाषा हरियावणी व मेवाती के मध्य की बोली मानी जाती है।
‣ यह बोली यादवों की बोली है।
‣ यह बोली हरियाणा के कूछ क्षेत्र में , अलवर, जयपुर, कोटपुतली में बोली जाती है।
‣ इस बोली को हिरवाल बोली भी कहा जाता है।

ब्रज –
‣ इया बोली भरतपुर व धौलपुर में बोली जाती है।

तोरवाटी –
‣ यह बोली जयपुर के उत्तरी भाग व झुंझुनूं के दक्षिणी भाग व सीकर के दक्षिणी – पूर्वी भाग में बोली जाती है।

राजावाटी –
‣ यह बोली जयपुर के पूर्वी भाग व दौसा के पश्चिमी भाग में बोली जाती है।

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