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राजस्थान की प्रमुख जनजातियां – दोस्तों इस पोस्ट में हम भील, कंजर, मीण , सहरिय आदि जनजातियों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।यह टॉपिक राजस्थान जीके का अति महत्वपूर्ण topic है। यदि आप भी किसी government exams की तैयारी कर रहे है, तो हमारी वेबसाइट पर आप बिल्कल free में नोट्स पढ़ सकते हो। राजस्थान में सरकार द्वारा आयोजित सभी प्रकार के एग्जाम में यहां से प्रश्न पूछे जाते है। यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगी। यहां पर आपको राजस्थान के सभी टॉपिक्स के नोट्स उपलब्ध करवाए जा रहे। इन टॉपिक को पढ़कर आप अपनी तैयारी को और बेहतर बना सकते है। और government की सभी महत्वपूर्ण परीक्षाओं में सफलता प्राप्त कर सकते है
1. भील –
‣ यह जनजाति राजस्थान की प्राचीनतम जनजाति है। मीणाओं के बाद यह दूसरी बड़ी जनजाति है। यह जनजाति उदयपुर, भीलवाड़ा , बाँसवाड़ा , डूँगरपुर में निवास करती है ।
‣ भील द्रविड़ शब्द से बना है जिसका अर्थ है – तीरकमान ।
‣ कर्नल जेम्स टॉड ने इन्हे वनपुत्र कहा है ,इन्हे भगवान शंकर का वंशज माना जाता है। हीराचंद ओझा ने इन्हे आदिवासी अनार्य कहा है।
‣ भीलों में सन्युक्त परिवार प्रथा का प्रचलन है, पिता परिवार का मुखिया होता है। इस जाति में अंतर्विवाह का प्रचलन है। ‣भील छोटे कद, काला रंग , चौड़ी नाक, लाल आंखे व रुखे बाल के होते है इनका मुख्य भोजन मक्का की रोटी, प्याज की सब्जी है, इस जाति में शराब का प्रचलन अधिक है।
वस्त्रों के आधार पर इनको दो वर्गो में विभ्क्त किया गया है-
1. लंगोटिया भील –
ये कमर पर केवल लंगोटी पहनते है जिसे खोयतु कहते है। स्त्रियों द्वारा घुटनों तक पहना वाला घाघरा / कछाबू कहलाता है ।
2.पोतीददा भील –
‣ ये भील धोती , बंडी व पगड़ी पहनते है तथा अंगोछा लपेटते है जिसे फालू कहते है।
‣ भील जनजाति में महिला व पुरुषों में गोदने का प्रचलन है। भील स्त्रियाँ जंजीर , नथ , बालियाँ , छल्ले, बोर व पैजनियाँ आभूषण पहनती है। इनका मुख्य व्यवसाय आखेट ( शिकार ) करना है, इनका मुख्य त्यौहार होली है।
‣ मेवाड़ के राजचिन्ह में एक तरफ राजपूत शासक का तथा दूसरी तरफ भील सरदार का चित्र होता है। महाराणा प्रताप ने भील सरदार पुंजा को राणा कहलाने की अनुमति दी जो एक मात्र था ।
‣ भील काण्डी शब्द से नाराज तथा पाडा शब्द से खुश होते है। मुसीबत के समय भील एक ढोल बजाते है जिससे भील हथियारों सहित एक स्थान पर इकटठा हो जाते है।
‣ ‘फाइरे- फाइरे ‘ भीलों का रणघोष है जिससे ये सचेत हो जाते है।
‣ मेवाड़ में भीलों के क्षेत्र हो भोमट कहते है भराड़ी भीलों की देवी है जिसका शादी के समय दीवार पर चित्रांकन होता है।
‣ भीलों में अब बच्चा 12-13 वर्ष का हो जाता है तब उसे बुरी शक्तियों से निडर बनाने के लिए जलता हुआ कपड़ा बच्चे के हाथ पर रखा जाता है ।
भीलों की शब्दावली –
‣ अटक , ओदारण – भीलों का गौत्र
‣ टापरा – भीलों का घर
‣ कू – कई घरों का समूह
‣ पाल – कई गांव का समूह
‣ फला – मोहल्ला / झोपड़िया
‣ पालवी – गांव का मुखिया
‣ महुआ – पवित्र वृक्ष
‣ पोत्या – साफा
‣ देपाड़ा – पुरुषों की तंग धोती
‣ टोटम – कुलदेवता
‣ पिरिया – दुल्हन का पीले रंग का शादी का लहंगा
‣ सिंदुरी – दुल्हन की लाल रंग साड़ी
‣ फेंटा – लाल, पीला व केसरिया साफा
‣ फाल – उंगोछा बोलावा – भील मार्गदर्शक द्वारा रास्ता दिखाने के बदले लिया जाने वाला परिश्रम
‣ गांसडे / जोगी – मृत्यु के समय जिस व्यक्ति को दान – दक्षिणा दी जाती है
‣ पाखरीया – सैनिक के घोड़े को मारने वाला ( सबसे इज्जतवान )
‣ ढालिया – घर के बाहर स्थित बरामदा
‣ मेलनी – जिस व्यक्ति की शादी होती है उनके परिवार जन दस- दस किलोग्राम मक्का देते है
‣ आटा -साटा – एक ही परिवार में लड़की व लड़के का विवाह होना
‣ हारों – ससुराल
‣ सोरो- श्वसुर
‣ आई – माँ
‣ बा – पिता
‣ मोटाबा – दादा
‣ माही – फूफा
‣ हाऊ – सास
‣ बाबा – नाना
भीलों के प्रमुख नृत्य –
‣ फायरे- फायरे – युद्ध नृत्य
‣ नेजा – होली के बाद का नृत्य
‣ गवरी/ राई – शिव -पार्वती का प्रतीक का नृत्य जो 40 दिन चलता है
‣ कूट – कूट्या – दिन में किया जाने वाला नृत्य
‣ द्विचक्री – चक्र बनाकर किया जाता है
‣ हाथीमना – विवाह के समय
‣ युद्ध नृत्य – युद्ध का अभिनय किया जाता है
भीलों में विवाह –
हठ विवाह –
‣ इसमें भागकर शादी करते है
सेवा विवाह –
‣ इसमें लड़का लडकी के पिता को खुश करने के लिया उसके घर या खेत का काम करता है यदि लड़की के पिता को काम पसंद आ जाता है तो वह अपनी लड़की की शादी उससे कर देता है
हरण विवाह –
‣ इसमें लड़का, लड़की का अपहरण कर लेता है तथा शादी करने के बाद लड़की के पिता को कुछ राशि देता है जिसे दापा कहते है
परीवीक्षा विवाह –
‣ लड़का अगर वीरता या साहस का कार्य करता है तो लड़की का पिता अपनी पुत्री का विवाह उस से कर देता है
‣ भीलों में भंगोरिया नामक त्योहार मनाया जाता है जिसमें भीलों के लड़का व लड़की इकट्ठा होते है तथा अपना जीवन साथी चुनते है।
मीणा –
‣ राजस्थान की सबसे बड़ी जनजाति जो जयपुर , सवाई माधोपुर , उदयपुर अलवर में सर्वाधिक पाई जाती है। इनका मूल स्थान राजस्थान है। मीणा का शाब्दिक अर्थ मीन या मछली होता है, मीणा जाति की उत्पति भगवान विष्णु के मत्स्यावतार से मानी जाती है।
‣ जयपुर शासको का राजतिलक मीणा सरदार द्वारा किया जाता है।
मीणा पुराण –
‣ इसकी रचना मुनि ‘मगन सागर’ ने की थी। इस पुराण के अनुसार मीणाओं के 5200 गौत्र है। इस ग्रंथ में मीनाओं की उत्पति मत्स्य अवतार से मानी जाती है ।
‣ भाटों के अनुसार मीणाओं की 12 पाल, 32 तड़ व 80 गौत्र है।
मीणाओं के दो वर्ग है-
चौकीदार मीणा –
‣ ये उच्च वर्ग के मीणा है जो राजा महाराजाओं के यहाँ चौकीदारी करते थे । इन्हे नयावासी मीणा भी कहते है। इनका निवास जयपुर, दौसा, आमेर, करौली, सवाई माधोपुर, सीकर, झुंझुनू के आस पास था।
जमींदार मीणा –
‣ ये निम्न वर्ग के मीणा है जो कृषि कार्य करते है। इन्हे पुराना वासी मीणा कहा जाता है। इनका निवास उदयपुर, हाड़ौती , डूंगरपुर , बाँसवाडा , चितौडगढ़ के आस पास था ।
मीणाओं की अन्य उपजातियाँ –
भील मीणा –
‣ भील और मीणा से उत्पन्न पुत्र, ये अजमेर, मेवाड़ , वांगड क्षेत्र में पाये जाते है।
रावत मीणा –
‣ ये हिंदु राजपूत होते है, जो अजमेर में पाये जाते है।
सुरतेवाला मीणा –
‣ मीणा पुरुष का अन्य जाति की स्त्री से उत्पन्न पुत्र ।
आदि मीणा –
‣ यह मुख्य मीणा जाति है।
पंड़िहारी मीणा –
‣ ये टोंक, भीलवाड़ा , बूँदी क्षेत्र में पाये जाते है।
ठेढ़िया मीणा –
‣ ये गौ मांस नहीं खाते है, जालौर इनका मुख्य क्षेत्र है।
चमरिया मीणा –
‣ ये चमड़े का काम करते है।
चौथया मीणा –
‣ ये गाँवों की रक्षा के लिए जाने जाते है, मारवाड़ इनका मुख्य क्षेत्र है।
परिहार मीणा
मेर मीणा
मीणाओं की पहचान –
‣ मीणाओं का मुख्य भोजन गेहूँ व बाजरे की रोटी तथा छाछ राबड़ी है। हुक्कापान इनका मुख्य नशा है, ये शराब और मांस का सेवन भी करते है।
‣ मीणाओं की महिलाएं हाथ पर अपने पति का नाम खुदवाती है। महिलाओं द्वारा घेरदार लहंगा , ओढ़नी और काँचली पहनी जाति है, कमर में करधनी , पैरों में कड़ियाँ , हाथों में बाजूबंद , सिर पर रखड़ी तथा हाथों में लाख दांत की चूड़ियाँ पहनती है।
‣ जमींदार पुरुषों द्वारा गले में बलेवड़ा व झदकियाँ आभूषण पहना जाता है।
‣ मीणाओं का परिवार पितृसतात्मक होता है। मीणाओ में एक गौत्र में शादी नहीं की जाती है। इनमें संयुक्त व एकल परिवार की परम्परा है। इनमें नाता प्रथा का प्रचलन है।
‣ मीणाओं में बहन के पति का सबसे ज्यादा आदर सत्कार होता है, इस जाति में एक स्त्री अपने सिर पर दो कलश लेकर आती है , जो पुरुष सबसे पहले उतारता है वह उसका पति होता है।
‣ तलाक के समय पुरुष अपने अंगोच्छे का टुकड़ा फाड़कर महिला को दे देता है जिससे उन दोनों में तलाक मान लिया जाता है।
‣ मीणाओं का मुखिया – पटेल
‣ 5 पंचायतों का मुखिया – पंच पटेल
‣ सबसे बड़ी पंचायत – चौरासी ( इसमें चौरासी गाँव आते है)
‣ मीनाओं का घर – टापरा
‣ जंगल में स्थित घर – मेवासे
‣ अनाज रखने की कोठी – ओबरी
‣ मीणाओं का प्रमुख देवता – बुझ
‣ मीणाओं का प्रयागराज – रामेश्वर घाट (स.माधोपुर )
‣ मीणाओं की इष्ट देवी – जीण माता (सीकर )
‣ मीणाओं की पूज्य देवी – कैलादेवी (करौली ), शीतलामाता (जयपुर), चौथमाता (सवाईमाधोपुर )
‣ मीणाओं के कुल देवता – भूरिया बाबा ( गोतमेश्वर )
‣ कैलादेवी के मंदिर में मीणाओं द्वारा लांगुरिया गीत गाया जाता है।मीणा भूरिया बाबा की झूठी कसम नहीं खाते है। भूरिया बाबा का मंदिर अर्णोद (प्रतापगढ़ ) में है, यहाँ वैशाख पूर्णिमा को मेला भरता है। सिरोही में भी भूरिया बाबा का मंदिर है जहाँ अप्रैल महीने में मेला भरता है।
गरासियां –
‣ गरासिया राजस्थान में मीणा व भीलों के बाद तीसरी बड़ी जनजाति है।गरासियों का निवास सिरोही(आबू , पिण्डवाड़ा ) , उदयपुर (कोटड़ा, गोगुंदा ) , पाली ( बाली ) में है।
‣ कर्नल जेम्स टॉड ने गरासियों की उत्पति गवास शब्द से मानी है जिसका अर्थ होता है- सर्वेंट । इनका मूल स्थान 24 गांवों से निर्मित भाखरापट्टा ( सिरोही ) है।
‣ इनका परिवार पितृ सतात्मक होता है, परिवार में महिला का मुख्य स्थान होता है। इनमें गोदना प्रथा का प्रचलन है, लड़का शादी करते ही परिवार से अलग हो जाता है। महिलाएं घाघरा , झूलकी, ओढ़नी तथा पुरुष धोती- कुर्ता व अंगरखी पहनते है।
‣ मोटकी नियात , नैनकी नियात और निचली नियात गरासियों की तीन समूह है।
‣ गरासियों का घर – घेर
‣ गाँवों के समूह – पाल / फला
‣ घर के सामने बने लकड़ी के खम्भों से बना मकान – मेरी
‣ मेरी के उपर बने अतिथि गृह – मांड
‣ गाँव का मुखिया – पटेल
‣ कई गाँव का मुखिया – सहरोह / कोतवाल
‣ अनाज रखने के भंडार – सोहरी
‣ चारपाई – खटोला
‣ चक्की – घेण्टी
‣ मुसीबत के समय किये जाने वाला आर्थिक सहयोग – हलमा/ हाड़ा / हिड़ा
‣ मृत्यु भोज – कोदिया / मेक
‣ मकान के आगे का बरामदा – ओसरा
‣ गरासियों का आदर्श पक्षी – मोर
यह जाति दो भागों में विभाजित होते है –
भील गरासिया –
‣ गरासिया पुरुष व भील स्त्री से उत्पन्न ,भील गरासिया कहलाते है।
गमेती गरासिया –
‣ भील पुरुष व गरासिया स्त्री से उत्पन्न , गमेती गरासिया कहलाते है।
‣ इस जाति में निम्न प्रकार के विवाह का प्रचलन है-
मोर बंधिया –
‣ यह ब्रह्मा विवाह है , जिसमें सात फेरे होते है।
पहरावना विवाह –
‣ इसमें बिना ब्रह्माण के नाम मात्र के फेरे होते है।
तापना विवाह –
‣ इसमें वर पक्ष द्वारा वधु पक्ष को 12 बछड़े , 12 थान कपड़ा दिया जाता है जिसे दापा कहते है। इस विवाह में सगाई व फेरे नहीं होते है।
खेवणा विवाह –
‣ इसमें महिला किसी दूसरे पुरुष के साथ भागकर शादी कर लेती है, जिसमें पुरुष प्रथम पति को कुछ राशि देता है।
आटा – साटा विवाह –
‣ इसमें एक घर से लड़की ली जाती है तथा उसी घर में लड़की दी जाती है।
सेवा विवाह –
‣ इसमें लड़की का पिता लड़के के काम से खुश होकर अपनी बेटी का विवाह उस से कर देता है।
मेलबो विवाह –
‣ इसमें लड़की का पिता लड़की को लड़के के घर छोड़कर आता है।
‣ गरासिया जाति शिव, भैरव व दुर्गा की पूजा करते है, भैरव अंधविश्वासी होते है। गरासियों में हारी- भावरी कृषि का प्रचलन है। ये सफेद जीवों की हत्या नहीं करते है, इन्हे पवित्र मानते है।इनका मुख्य त्यौहार होली व गणगौर है। गरासियों में बिना वाद्य यंत्र के वालर नृत्य किया जाता है, जिसे गरासियों का घूमर कहते है। इनमें सर्वाधिक प्रेमविवाह होता है। नक्की झील इनका पवित्र स्थान है। गरासियों में महिलाओं को तलाक देने का अधिकार नहीं है, पुरुष तलाक के समय महिला साड़ी का पल्लू फाड़कर देता है, जिसे छेड़ा – फाड़ना कहते है।
‣ इसमें विधवा विवाह का प्रचलन है। गरासियो में पूर्व पति को दूसरा पति झगड़ा राशि चुकाता है उसे नातरा प्रथा कहते है। झगड़ा राशि का निर्धारण पंचायत करती है।
मानखोरों मेला ( सियावा, सिरोही ) –
‣ यह मेला गणगौर पर भरता है, यह गरासियों का सबसे बड़ा मेला है। भाखरी बावसी मेला , कोटेश्वर मेला , अम्बाजी का मेला , नेवटी का मेला आदि गरासियों के अन्य मेले है।
सहरिया –
‣सहरिया शब्द फारसी भाषा के ‘सहार’ से बना है, जिसका अर्थ है- जंगल । कर्नल जेम्स टॉड ने कहा – “सहरिया को एक रोटी खिला दो वह जीवन भर आपको याद रखेगा ।
‣ सहरिया जनजाति सर्वाधिक बारां जिले की किशनगढ़ व शाहबाद पंचायत समिति में पाई जाती है।
‣ इस जाति में पुरुष मुखिया होता है, बहुपत्नी और विधवा विवाह प्रचलन है। इनमें लगभग 50 गौत्र होते है। पुरुषों को शादी के समय वधु मूल्य दिया जाता है।
‣ सहरियों में शराब का प्रचलन है। यह जनजाति शादी में लापसी व चूरमा बनाती है। यह जनजाति गोंद , फल, शहद व वनों से प्राप्त कर आजीविका चलाती है।
‣ सहरियों का मुख्य त्यौहार होली, दिपावली , दशहरा व नवरात्रे है। सीताबाड़ी ( केलवाड़ा , बारां ) में सहरियों का मेला ज्येष्ठ अमावस्या को भरता है जिसे सहरियों का लक्खी मेला कहते है। यह जनजाति तेजाजी , शिव , राम व दुर्गा की पूजा करते है। शिकारी, होली, झेला, लहँगी, इंद्रपुरी इनके प्रमुख नृत्य है।
सहरियों की शब्दावली –
सहरोल – सहरियों का गांव
सहराना – सहरियों की बस्ती
गोपना – झोपड़ी
कोतवाल – गांव का मुखिया
वाल्मीकि – सहरियों का आदिगुरु
तेजाजी –आराध्यदेवता
कोडिया –आराध्यदेवी
बंगला – पेड़ के नीचे बनी छतरीनुमा झोपड़ी( मेहमानों के लिए )
पटेल – मुखिया
पंचापाई –पांच गाँवों की पंचायत
एकादशियाँ – 11 गाँवों की पंचायत
चौरासिया – 84 गाँवों की पंचायत
( चौरासिया पंचायत का फैसला अंतिम होता है )
डामोर – यह जनजाति मूल रुप से गुजरात की है , राजस्थान में यह सर्वाधिक डूँगरपुर में निवास करती है। इस जनजाति में महिलाओं के साथ पुरुष भी गहने पहनते है।
फला– गांव की छोटी ईकाई
मुखि –गांव का मुखिया
मेले – ग्यारस का रेवाड़ी मेला , छैला बावजी मेला ।
सांसी – इसकी उत्पति सांस नामक व्यक्ति से हुई थी। यह जनजाति सर्वाधिक भरतपुर में निवास करती है।
इसकी दो उपजातियाँ है –
1. बीजा
2. माला
‣ इस जनजाति में नारियल की गिरी के लेन -देन से विवाह पक्का माना जाता है।
‣ यह घुमक्कड़ जनजाति है , जो मांस मदिरा का सेवन करती है।
‣ इस जनजाति में अंतर्गोत्र विवाह तथा विधवा विवाह नहीं होते है।
‣ नीम, पीपल व बरगद वृक्षों को पूजते है, होली व दिपावली त्यौहार मनाते है ।
‣ यह जनजाति चोरी को विद्या मानते है।
कुकड़ी रस्म –
‣ चरित्र परीक्षा ( विवाह के समय लड़की के चरित्र की परीक्षा )
कथौड़ी –
‣ यह जनजाति बंदर के मांस का सेवन करती है।
‣ स्त्री – पुरुष दोनों शराब पीते है, स्त्री साड़ी पहनती है ।
कंजर –
‣ इनकेधिक – कोटा
‣ इनके मकानों के दरवाजे नहीं होते है।
‣ जंगल में विचरण करने वाली
‣ मरते मरते मुहँ में शराब
‣ मृतक को गाड़ते है
‣ आराध्य देव – हनुमान जी
‣ आराध्य देवी – चौथमाता