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भारत के संविधान के अनुच्छेद – 48 में कृषि तथा पशुपालन का उल्लेख किया गया है।
MSP ( न्यूनतम समर्थन मूल्य ) :- किसी भी फसल का उत्पादन अधिक होने पर उसका मूल्य नहीं घटना चाहिए।
कृषि के प्रकार :-
1. सामान्य कृषि
सघन कृषि – इसमें भूमि संसाधन कम होता है।
प्रति हेक्टेयर उत्पादन अधिक होता हैं।
प्रति व्यक्ति उत्पादन कम होता हैं।
2. वैज्ञानिक कृषि
विस्तृत कृषि – इसमें भूमि संसाधन अधिक होता है।
प्रति हेक्टेयर उत्पादन अधिक होता हैं।
प्रति व्यक्ति उत्पादन अधिक होता हैं।
3. स्थानबद्ध कृषि :- स्थानबद्ध कृषि का अर्थ एक ही स्थान पर कृषि करना।
मानव → घुमनकड → संग्रहण → आरवेट → स्थानान्तरित कृषि → स्थानबद्ध कृषि
विशेषताएँ :-
1. फसल चक्र
2. कृषि के साथ में पशुपालन
3. ग्राम देवी। देवता का उद्भव
4. स्थानान्तरित कृषि / कर्तन- दर्तन / पर्यावरण दुश्मन / काटो – जलाओ कृषि :
- अर्थ- आदिवासियो के द्वारा पेड-पौधो को काटकर जलाकर भूमि खाली करके एक जगह दो या तीन वर्ष तक की जाने वाली कृषि को स्थानान्तरित कृषि कहते हैं।
- यह उष्ण कटिबंध क्षेत्र में की जाती है।
- क्योकि यहाँ तापमान की अधिकता के कारण जैविक तत्व मर जाते है जबकि वर्षा की अधिकता के कारण पोषक तत्व बह जाते हैं
- इस कृषि में प्रति हेक्टेयर उत्पादन नहीं बढ़ाया जा सकता है, क्योकि इसका उद्देश्य केवल उपयोग करना है।
बुशफैलो कृषि :- 10-12 वर्षों के बाद खाली होड़ी गयी भूमि पर फिर से पेड-पौधों को काटकर की जाने वाली कृषि।
स्थानान्तरित कृषि के नाम :-
1. वालरा आदिवासियों के द्वारा की जाने वाली कृषि।
2. दजिया आदिवासियों द्वारा मैदानी भागों में की जाने वाली कृषिः।
3 चिमाता आदिवासियों द्वारा पर्वतीय आगो में की जाने वाली कृषि।
असम में स्थानान्तरित कृषि को झूमिंग कहते हैं।
4. ट्रक कृषि – इसका सम्बन्ध नगरों से है। इस कृषि में अतिशीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुएँ जैसे- सब्जी, मांस, अण्डा आदि की कृषि की जाती है।
5. मोनो कल्चर एक कृषि वर्ष में एक खेत में एक फसल लेना।
6. ड्यूको कल्चर एक कृषि वर्ष में एक खेत में दो फसल लेना।
7. ओलिगो कल्चर एक कृषि वर्ष में एक खेत में तीन फसल लेना।
Note कृषि वर्ष :- 1 जुलाई से 30 जून तक ।
8. वाणिज्यिक कृषि उद्देश्य व्यापार करना।
पूंजी की अधिकता, श्रम की अधिकता
2 प्रकार की होती है:-
(ⅰ) अन्न कृषि इसका सम्बन्ध गेहुँ उत्पादन से हैं।
(ii) रोपण / यूरोपियन कृषि यह उष्ण कटिबंध क्षेत्र में होती है।
जैसे – चाय, रबड़, चावल, कॉफी इत्यादि।
कृषि की क्रान्तियाँ
1. हरित क्रान्ति :-
शुरुआत – 1966-67
जनक – नॉर्मन बोरलॉग
भारत मे जनक – डॉ M.S. स्वामीनाथन
इसमे निम्न 6 फसलें है – चावल, गेहुँ, बाजरा, ज्वार, रागी, मक्का
उद्देश्य – खाद्यान बढाने के लिए रासायनिक उर्वरक का प्रयोग करना।
लाभ – खाद्यानो को बढ़ावा अर्थात अधिक उत्पादन । किसानो में आत्मनिर्भरता ।
नुकसान –
1. क्षेत्रीय असमानताओं में वृद्धि क्योकि रासाय.निक उर्वरकों का प्रयोग किया ।
2. बेरोजगारी में वृद्धि क्योंकि कृषि यंत्रो का प्रयोग किया गया।
3 छोटे किसानो (निर्धन) को नुकसान हुआ क्योकिं वह कृषि यंत्र नहीं खरीद सकते।
2. श्वेत क्रान्ति / ऑपरेशन फ्लड :-
शुरुआत – 1970
सम्बन्ध – दुग्ध उत्पादन
जनक – वर्गीज कुरियन
3. लाल क्रान्ति – टमाटर, माँस
4. पीली क्रान्ति – तिलहनों के लिए
5 नीली क्रान्ति – महली पालन
6. गुलाबी क्रान्ति – झींगा मछली पालन
7. बादामी क्रान्ति – मसालो का उत्पादन
8. गोल क्रान्ति – आलू उत्पादन
9. भूरी क्रान्ति – खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ाना