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राजस्थान में सम्प्रदाय

दोस्तों आज इस पोस्ट में राजस्थान के धार्मिक संत संप्रदाय के बारे में पढ़ेंगे। यह टॉपिक राजस्थान जीके का अति महत्वपूर्ण topic है। यदि आप भी किसी government exams की तैयारी कर रहे है, तो हमारी वेबसाइट पर आप बिल्कल free में नोट्स पढ़ सकते हो। राजस्थान में सरकार द्वारा आयोजित सभी प्रकार के एग्जाम में यहां से प्रश्न पूछे जाते है। यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगी। यहां पर आपको राजस्थान के सभी टॉपिक्स के नोट्स उपलब्ध करवाए जा रहे। इन टॉपिक को पढ़कर आप अपनी तैयारी को और बेहतर बना सकते है। और government की सभी महत्वपूर्ण परीक्षाओं में सफलता प्राप्त कर सकते है।

भक्ति के दो प्रकार बताएं गए – 

1. सगुण भक्ति – ईश्वर की पूजा करना सगुण भक्ति कहलाता है।
‣ जैसे – रामानुज सम्प्रदाय, वल्लभ सम्प्रदाय, निम्बार्क सम्प्रदाय, नाथ सम्प्रदाय, गौडीय सम्प्रदाय, निष्कलंक सम्प्रदाय, पाशुपात सम्प्रदाय, चरणदासी सम्प्रदाय, मीरादासी सम्प्रदाय आदि।

2. निर्गुण भक्ति – इसमें भक्त मूर्ति पूजा के विरोधी होते है। इसमें भगवान के निराकार रूप की पूजा की जाती है।
‣ जैसे – विश्नोई सम्प्रदाय, दादू सम्प्रदाय, जसनाथी सम्प्रदाय, परनामी सम्प्रदाय, निरंजनी सम्प्रदाय,  कबीर पंथ सम्प्रदाय, लालदासी सम्प्रदाय, रामस्नेही सम्प्रदाय आदि।

सगुण + निर्गुण दोनु गुणों को अपनाया – संत मावजी, संत चरणदासजी, हरीसिंह सांखला।

1. वल्लभाचार्य – 
जन्म – इनका जन्म वैशाख शुक्ल एकादशी को हुआ था।
निधन – इनका निधन आषाढ़ शुक्ल द्वितीया विक्रम संवत 1587 काशी में हुआ।
पिता – लक्ष्मण भट्ट 
माता – यल्तमगरु 
‣ इस सम्प्रदाय के लोगों के द्वारा भगवान कृष्ण के बालरूप को पूजते है। इन्होंने कृष्ण भक्त का मत दिया।
‣ विजय नगर साम्राज्य के कृष्ण देवराय के दरबार में उनके गुरु बनकर रहे।

2. दादू दयाल जी – 
जन्म – इनका जन्म फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को अहमदाबाद में हुआ।
बचपन का नाम – महाबली 
‣ दादू दयाल जी लोदीराम को साबरमती नदी में मिले थे।
गुरु – ब्रह्मनन्द / बुड्डन / 

3. जसनाथ जी – 
जन्म – जसनाथ जी का जन्म 1482 ई. में देवउठनी ग्यारस को कतरियासर ( बीकानेर ) में हुआ।
पिता – हमीरजी जाट
माता – रूपादे
बचपन का नाम – जसवंत सिंह 
गुरु – गोरखनाथ जी 
‣ जसनाथ जी ने गोरखमालीय ( बीकानेर ) में 12 वर्ष तक तपस्या की थी।
‣ प्रधान पीठ – कतरियासर ( बीकानेर ) 
‣ इस सम्प्रदाय के द्वारा 36 नियमों का पालन किया जाता है।
‣ सिद्ध जी रो सिरलोको, सिमुदडा , कोड़ाग्रंथ, जलम झुमरो, गोरख छंदो जसनाथी पुराण सम्प्रदाय के प्रमुख ग्रंथ है।
‣ इस सम्प्रदाय के अनुयायी गले में काली ऊन का धागा बांधते है।
जसनाथ सम्प्रदाय के द्वारा प्रचार – प्रसार “ परमहंस मण्डली ” के द्वारा किया जाता है।
‣ जसनाथ जी को ज्ञान की प्राप्ति गोरखमालिया ( बीकानेर ) नामक स्थान पर हुई।
‣ जसनाथी सम्प्रदाय की स्थापना 1504 की गई।
‣ जसनाथ जी के द्वारा भक्ति पर बल ना देकर योग पर बल दिया गया।
‣ इनका मेला मेला आश्विन शुक्ल सप्तमी को भरता है।

इस सम्प्रदाय की पांच उप – पीठ है।
1. मालासर, बीकानेर 
2. लिखमादेसर, बीकानेर 
3. बमलू, बीकानेर
4. पूनरासर, बीकानेर
5. पांचला, नागौर 

जसनाथी सम्प्रदाय के अनुयायी तीन प्रकार होते है – 
परमहंस –
ये भक्त विरक्त होते है।
जसनाथी जाट – यह गृहस्थ होते है।
सिद्ध – यह पुजारी होते है।

जसनाथी सम्प्रदाय के प्रमुख नियम – 
‣ उत्तम कार्य करना 
‣ दान देना 
‣ ब्याज नहीं लेना 
‣ पानी छान कर पीना 
‣ जूठे मुंह अग्नि में फूंक न मरना 
‣ मोर पंखा व जाल वृक्ष को पवित्र मानते है।

4. विश्नोई संप्रदाय – 
स्थापना – जाम्भोजी / जम्भेश्वर ( निर्गुण ) 
‣ जाम्भोजी का जन्म 1451 ई. में कृष्ण जन्माष्टमी के दिन पीपासर ( नागौर ) में हुआ।
पिता – लोहठ जी परमार
माता – हांसा देवी 
गुरु – गोरखनाथ 
मेला – फाल्गुन व आश्विन की अमावस्या को भरता है।
‣ जाम्भोजी के बचपना का नाम धनराज था।
‣ जाम्भोजी को पर्यावरण वैज्ञानिक व विष्णु का अवतार माना जाता है।
‣ जाम्भोजी ने विश्नोई सम्प्रदाय की स्थापना की जिसमें 29 नियम है।
‣ विश्नोई सम्प्रदाय के उपदेश देने के स्थान को साथरी कहा जाता है।
‣ तलवा गांव ( बीकानेर ) में 1536 ई. में जाम्भोजी का निधन हो गया। यही पर इस सम्प्रदाय की प्रधान पीठ है।

विश्नोई सम्प्रदाय के प्रमुख स्थल – 
मुकाम ( बीकानेर ) –
यह जाम्भोजी का समाधि स्थल है।
रोटू – ( नागौर ) – यह विश्नोई सम्प्रदाय का धार्मिक स्थल है।
पीपासर ( नागौर ) – यह जाम्भोजी का जन्म स्थान है इसको खड़ाऊ की पीपा कहते है।
जाम्भा ( जोधपुर ) – यह विश्नोइयों का पुष्कर है जहां चैत्र व भाद्रपद अमावस्या को मेला भरता है। यहां पर एक पवित्र तालाब है। जिसका निर्माण जैसलमेर के शासक जैत्रसिंह में करवाया था।
जांगलू ( बीकानेर ) – यहां पर चैत्र व भाद्रपद की अमावस्या को मेला भरता है।
समराथल – जाम्भोजी में 1485 ई. में कार्तिका कृष्ण अष्टमी के दिन धोंक धोरा ( समराथल, बीकानेर ) में इन्होंने विश्नोई सम्प्रदाय की स्थापना की इसमें 29 नियम है।
लालसर ( बीकानेर ) – यहां पर जाम्भोजी का निर्वाण ( निधन ) हुआ।

5. लालदासजी ( निर्गुण ) सम्प्रदाय – 
जन्म – 1540 ई. को धौलीधुव गांव ( अलवर ) में श्रावण कृष्ण पंचमी को हुआ।
पिता – चांदमल जी 
माता – समदा देवी 
पत्नी – मोगरी देवी 
गुरु – फाखिर गंदन चिश्ती 
समाधि – शेरापुरा ( अलवर ) 
‣ लालदासजी ने निर्गुण राम की उपासना करते हुए हिंदू – मुस्लिम एकता पर बल दिया।
‣ लालदासजी को ज्ञान की प्राप्ति तिजारा ( अलवर ) में हुई।
‣ आश्विन शुक्ल एकादशी व माघ पूर्णिमा को इनका मेला भरता है।
‣ इन्होंने लालदासजी सम्प्रदाय की स्थापना की। इसकी प्रधान पीठ नगलाजहाज ( भरतपुर ) में है। जहां इनका निधन हुआ था।
‣ यह मेवात क्षेत्र का लोकप्रिय सम्प्रदाय है।

6. संत मावजी – 
‣ संत मावजी की 1727 ई. में बेणेश्वर नामक स्थान ज्ञान की प्राप्ति हुई तथा इन्होंने माही, सोम व जाखम नदी के संगम पर बेणेश्वर धाम ( डूंगरपुर ) की स्थापना की यहां पर माघ पूर्णिमा को मेला भरता है। इसको आदिवासियों का कुम्भ कहां जाता है।
‣ इनको महामनोहर जी के नाम से भी जाना जाता है।
‣ इसका जन्म बागड़ प्रदेश के सांबला गांव ( डूंगरपुर ) में हुआ।
‣ इनकी पीठ साबला गांव में स्थित है।
‣ इनको श्री कृष्ण के निकलंकी अवतार के रूप में माना जाता है।
‣ इन्होंने निष्कलंक सम्प्रदाय की स्थापना की।
‣ संत मावजी ने अछूतों के लिए लसोड़ियां आन्दोलन चलाया था।
‣ मावजी की वाणियों को चोपड़ा कहां जाता है। इसमें भगवान कृष्ण की लीलाएं है।
‣ चोपड़े को दीपावली पर बाहर निकाले जाता है तथा मकर संक्रांति पर इनका वाचन किया जाता है।

7. चरणदास जी सम्प्रदाय – 
जन्म – भाद्रपद शुक्ल तृतीय विक्रम संवत डेहरा गांव ( अलवर ) 1760 में हुआ।
पिता – मुरलीधर 
माता – कुन्जो बाई 
गुरु – सुखदेव चरण दासजी के बचपन का नाम रणजीत सिंह था।
‣ यह जैन परिवार से थे।
‣ राज्य में इनकी पीठ नहीं है।
‣ इनकी प्रधान पिता दिल्ली में है।
‣ मेवात क्षेत्र में लोकप्रिय सम्प्रदाय हैं।
‣ बसंत पंचमी को इस सम्प्रदाय का मेला लगता है।
‣ चरणदासजी की दो शिष्याएं सहजो बाई व दया बाई थी।
‣ सहजो बाई मत्स की मीरा चरणदासजी की शिष्या थी।
‣ सहजो बाई की रचन – “ सहज प्रकाश “ 
‣ दया बाई की रचन – “ विनयमालिका व दयाबोध ग्रंथ “
‣ चरणदासजी ने भारत पर नादिर शाह के आक्रमण की भविष्यवाणी की थी।
‣ ब्रह्म चरित्र , भक्ति सागर, ज्ञान सर्वोदय, ब्राह्म ज्ञान सागर चरणदासजी के प्रमुख ग्रंथ है।
‣ इन्होंने मूर्ति पूजा का खण्डन किया।
‣ इस सम्प्रदाय के अनुयायी पीले कपड़े पहनते है।
‣ चरणदासजी ने भाद्रपद शुक्ल तृतीय को 42 नियमों वाला चरणदासी सम्प्रदाय चलाया। इसका मुख्य आधार भागवतगीता है। इनके 52 शिष्य थे।

8. हरिदास जी – 
जन्म – 1452 ई. में कापडोद ( डीडवाना, नागौर ) में हुआ।
‣ हरिदास जी ने निराला सम्प्रदाय की स्थापना की।
‣ इस सम्प्रदाय की प्रधान पीठ गाढ़ा, डीडवाना ( नागौर ) में है।
‣ हरिदास जी सांखला क्षत्रिय परिवार के थे।
‣ हरिदास जी ने निर्गुण भक्ति का उपदेश देकर निरंजनी सम्प्रदाय चलाया।
‣ इनका मूल नाम हरिसिंह जी था।
‣ इनको को कलियुग का वाल्मिकी कहा जाता है।
‣ हरिदास जी संत बनाने से पूर्व डकैत थे।
‣ हड़बु जी सांखला हरिदास जी के गुरु थे।
‣ फाल्गुन शुक्ल प्रथमा से द्वादशी तक इनका मेला भरता है।
‣ हरिदास जी के 52 शिष्य थे।
‣ हरिदास जी ने तीखी डूंगरी जाकर तपस्या की थी।
‣ भरथरी संवाद, हरिपुरुष की वाणी, हरिदास जी के उपदेश मंत्र राज प्रकाश, संग्राम जोग ग्रंथ, विरदावली, अष्टपदी जोग ग्रंथ आदि ग्रंथ संग्रहित है।

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