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सिंधु घाटी सभ्यता नामकरण –�
सिंधु घाटी सभ्यता को भिन्न भिन्न नामों से भी जाना जाता है।
- सिंधु घाटी की सभ्यता (सिंधु नदी के किनारे स्थित होने के कारण)
- सिंधु सरस्वती सभ्यता
- हड़प्पा सभ्यता
- नगरीय सभ्यता (गॉर्डन चाइल्ड ने इसे प्रथम नगरीय क्रांति कहा)
- कांस्य युगीन सभ्यता
- प्राक एतिहासिक सभ्यता
- मातृसत्तात्मक सभ्यता
जॉन मार्शल ‘सिंधु सभ्यता’ नाम नका प्रयोग करने वाले पहले पुरातत्त्वविद् थे।
अमलानंद घोष ‘सोथी संस्कृति’ हड़प्पा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान माना है।
1826 में चार्ल्स मॅसन ने हड़प्पा के टीले को देखा और 1842 ईसवी में प्रकाशित अपने लेख में प्राचीनतम नगर हड़प्पा का उल्लेख किया
1851 से 1853 अलेक्जेंडर कनिंघम ने हड़प्पा टीले का सर्वेक्षण किया और 1856 ईसवी में अलेक्जेंडर कनिंघम ने हड़प्पा पर मानचित्र जारी किया।
1856 कराची से लाहौर रेलवे लाइन का कार्य
जॉन बर्टन व विलियम बर्टन के निर्देशन में कार्य करने वाले मजदूरों ने ईटों को निकाला हड़प्पा के टीले से
भारत में रेलवे का जनक लॉर्ड डलहौजी को माना जाता है
1881 ई. में एक बार पुनः अलेक्जेंडर कनिंघम हड़प्पा के टीले पर गए तथा वहाँ से कुछ मोहरें प्राप्त की
1899-1905 ई. के दौरान लॉर्ड कर्जन भारत में वायसराय बनकर आए तथा इन्होंने भारतीय पुरातत्त्व एवं सर्वेक्षण विभाग के अधीन भारत में प्राचीन इमारतों व नगरों के संरक्षण व सर्वेक्षण का आदेश पारित किया।
1861 ईसवी में अलेक्जेंडर कनिंघम ने भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की
इसलिए भारतीय पुरातत्व विभाग का जनक अलेक्जेंडर कनिंघम को माना जाता है
इसी के शासनकाल में जॉन मार्शल नए निदेशक के रूप में भारत आए।
1899 से 1905 = लार्ड कर्जन गवर्नर जनरल वायसराय बनके भारत आए
1904 ईसवी भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग की स्थापना की इसका प्रथम महानिदेशक जॉन मार्शल को बनाया गया
जॉन मार्शल ने एक कमेटी बनाई
- रामबहादुर दयाराम साहनी
- राखल दास बनर्जी
- माधव स्वरूप
- मार्टिन हिलर
- एरनेस्ट मेके
वर्ष 1924, 20 सितम्बर को लंदन पत्रिका में जॉन मार्शल ने हड़प्पा सभ्यता का प्रकाशन किया
जॉन मार्शल पुस्तक ने ‘मोहनजोदड़ो एण्ड इंडस सिविलाइजेशन’ नामक पुस्तक लिखी थी
सिन्धु के निर्माता –
चार प्रकार की प्रजातियों के साक्ष्य मिले प्र = प्रोटो आस्ट्रेलियाईड (सबसे पहले लिंग की पूजा इन्हीं के द्वारा की गई) सिंधु की प्रथम जाति वर्तमान एससी एसटी भू भूमध्य सागरीय सर्वाधिक साक्ष्य मिले, इन्हें ही सिन्धु का निर्माता माना जाता हैं।
- वर्तमान द्रविड़ जाति
- अल्प अल्पाइन
- वर्तमान गुजरात महाराष्ट्र कर्नाटक
- मांगों = मंगोलियान
- मोहनजोदड़ो से पुजारी की मूर्ति के साक्ष्य
- वर्तमान में सिक्किम जाति
- सिंधु सभ्यता की उत्पत्ति
विदेशी सिद्धांत –
- सुमेरियन सभ्यता – इस मत के समर्थक जॉन मार्शल, गॉर्डन चाइल्ड दामोदर धर्मानंद, एच डी संकलिया, व्हीलर
- इसके पीछे कारण यह है कि दोनों नगरीय सभ्यता, लिपि का ज्ञान, कांसा तांबा पत्थर का उपयोग कच्ची पक्की ईंटे के मकान में प्रयोग किया जाता था।
स्वदेशी उत्पत्ति सिद्धांत
- चौथी सभ्यता से अमलानंदघोष
- समर्थन धर्मपाल अग्रवाल,
- फेयर सर्विस बलूचिस्तान की नाल कुली संस्कृति से उत्पत्ति मानते हैं।
सिन्धु का काल क्रम –�
- जॉन मार्शल 3250 ई.पू. 2750.ई.पू (सर्वप्रथम काल निर्धारण)
- NCERT → 2500 ई.पू→ 1800 ई.पू (RBSE 2300 ई.पू से 1800 ई.पू)
- कार्बन पद्धति → 2350ई.पू→1750ई.पू
- कार्बन पद्धति की खोज बिलियर्ड एवं लिब्बी ने, इस पद्धति से 50 हजार वर्ष तक की जानकारी प्राप्त होती हैं।
- यूरेनियम डेटिंग पद्धति से 50 हजार से अधिक वर्ष तक की जानकारी प्राप्त होती हैं
- 3200 2700 ई.पू→ RD बनर्जी व RD मुखर्जी
- 2800ई.पू से 2500 ई.पू→ अर्नेस्ट मेके
- 2500 ई.पू से 1500 ई.पू ← व्हीलर
- माधोस्वरूप वत्स – 3500 – 2700 ई० पू०।
- फेयर सर्विस – 2000 – 1500 ई० पू०।
- जी० सी० गैड – 2350 – 1750 ई० पू०।
- डी० पी० अग्रवाल 2300 1750 ई० पू०।
सिंधु घाटी सभ्यता के चरण
- सिंधु घाटी सभ्यता को तीन चरणों में बांटा गया है।
- प्रारंभिक हड़प्पा चरण (3300 से 2600 ईसा पूर्व तक)
- परिपक्व हड़प्पा चरण (2600 से 1900 ईसा पूर्व तक)
- अंतिम हड़प्पा चरण (1900 से 1300 ईसा पूर्व तक)
- प्रारंभिक हड़प्पाई चरण ‘हाकश चरण’ से संबंधित है, जिसे घग्गर- हाकरा नदी घाटी में चिह्नित किया गया है।
- हड़प्पाई लिपि का प्रथम उदाहरण लगभग 3000 ई.पू के समय का मिलता है।
- कोटदीजी नामक स्थान परिपक्व हड़प्पाई सभ्यता के चरण को प्रदर्शित करता है।
- 2600 ई.पू. तक सिंधु घाटी सभ्यता अपनी परिपक्व अवस्था में प्रवेश कर चुकी थी।
- परिपक्व हड़प्पाई सभ्यता के आने तक प्रारंभिक हड़प्पाई सभ्यता बड़े बड़े नगरीय केंद्रों में परिवर्तित हो चुकी थी। जैसे- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो वर्तमान पाकिस्तान में तथा लोथल जो कि वर्तमान में भारत के गुजरात राज्य में स्थित है।
- सिंधु घाटी सभ्यता के क्रमिक पतन का आरंभ 1800 ई.पू. से माना जाता है, 1700 ई.पू. तक आते-आते हड़प्पा सभ्यता के कई शहर समाप्त हो चुके थे ।
- कुछ पुरातात्त्विक आँकड़ों के अनुसार उत्तर हड़प्पा काल का अंतिम समय 1000 ई.पू. १०० ई. पू. तक बताया गया है।
सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार
1. भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान भारत में = राजस्थान, जम्मू कश्मीर, गुजरात, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश
2. सर्वाधिक विस्तार = भारत , महाराष्ट्र, पंजाब ।
3. सर्वाधिक स्थल = गुजरात
4. सबसे कम विस्तार = अफगानिस्तान
सिंधु घाटी सभ्यता का भारत में पश्चिम बिंदु नागेश्वर गुजरात
सिंधु घाटी सभ्यता के उत्तरोत्तर बिंदु मुंडीगांक, शोर्तगोई (अफगानिस्तान)
सिंधु घाटी सभ्यता का क्षेत्रफल 1299600 वर्ग किलोमीटर
वर्तमान में इसका क्षेत्रफल लगभग 17 से 20 लाख वर्ग किलोमीटर
सैंधव सभ्यता का भौगोलिक विस्तार उत्तर में मांडा (जम्मू-कश्मीर) से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने तक तथा पश्चिम में सुत्कागेंडोर से लेकर पूर्व में आलमगीरपुर (मेरठ) तक था।
यह उत्तर से दक्षिण लगभग 1400 किमी. तक तथा पूर्व से पश्चिम लगभग 1600 किमी. तक फैली हुई थी।
अभी तक उत्खनन तथा अनुसंधान द्वारा करीब 2800 स्थल ज्ञात किए गए हैं।
वर्तमान में नवीन स्थल प्रकाश में आने के कारण अब इसका आकार विषमकोणीय चतुर्भुजाकार (वास्तविक स्वरूप त्रिभुजाकार था)
हड़प्पा सभ्यता के अंतर्गत पंजाब, सिंध, शोर्नुधई ब्लूचिस्तान, अफगानिस्तान, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भाग आते हैं।
हड़प्पा सभ्यता कांस्ययुगीन सभ्यता है।
मोहनजोदड़ो की बहुसंख्यक जनता भूमध्यसागरीय प्रजाति की थी।
वर्तमान में हड़प्पा सभ्यता के अधिकांश स्थल सरस्वती या दृषद्वती नदियों के क्षेत्र से प्राप्त हो रहे हैं। सिन्धु सभ्यता के नवीनतम स्थल-थार का मरुस्थल, वैंगीकोट व गुजरात में करीमशाही खोजे गए हैं।
कोटड़ा आदली (गुजरात) की भी खोज हुई है, जहाँ से डेयरी उत्पादन के साक्ष्य मिले हैं
सिन्धु घाटी सभ्यता की समकालीन सभ्यताअब तक विश्व की 4 सभ्यताएँ प्रकाश में आई है जो क्रमशः है- सभ्यता नाम ।
1. मेसोपोटामिया – दजला व फरात
2. मिस्र – नील नदी
3. भारत – सिन्धु नदी
4. चीन – ह्वांग-हो (पीली नदी)
सिंधु घाटी सभ्यता – प्रमुख विशेषताएँ
लिपि
- भाव चित्रात्मक, चित्रात्मक, सर्पीलाकार, गोमूत्री, ब्रस्टोफेदन
- यह लिपि दाएं से बाएं तथा बाएं से दाएं लिखी जाती थी
- इस लिपी में 64 मूल अक्षर
- इसमें 250-400 चित्र अक्षर, ० आकार व मछली के चित्र अधिक
- इस लिपि को सर्वप्रथम पढ़ने का प्रयास वेडन महोदय तथा भारतीय मूल के नटवर झा ने प्रयास किया
- इस लिपि के प्रथम साक्ष्य हड़प्पा से प्राप्त कब्रिस्तान तथा । मोहरों से
- क्यूनीफॉर्म, पहली लिपि, का आविष्कार सुमेर, मेसोपोटामिया में लगभग 3500 ईसा पूर्व में हुआ था
नगर नियोजन
- सबसे प्रमुख विशेषता नाली व्यवस्था
- सिंधु/हड़प्पा नगर दो भागों में विभाजित था
- पूर्वी टीला / नगर टीला = जिसमें जनता निवास करती थी
- पश्चिमी टीला / दुर्ग टीला = प्रशासनिक वर्ग
- मार्टिन ने इसे माउंट AB नाम दिया
दुर्ग टीले के साक्ष्य
- 12 अन्नागार
- गेहूं जौ के प्रथम साक्ष्य
- मजदूर बैरक, श्रमिक आवास, प्रशासनिक भवन के साक्ष्य
- नगर टीले के साक्ष्य
- नाव के साक्ष्य
- मकानों के दरवाजे आमने-सामने खुलते थे
- नगर टीले के दक्षिणी भाग में कब्रिस्तान स्थित [ R37, H से हड़प्पा लिपी के साक्ष्य] * नगर के चारों ओर सुरक्षा हेतु रक्षा प्राचीर बनाई जाती
- चन्हूदडो से दुर्ग टिले व रक्षा प्राचीर के साक्ष्य नहीं
- कालीबंगा हड़प्पा मोहनजोदड़ो से दोहरी रक्षा प्राचीर के उल्लेख संपूर्ण सिंधु सभ्यता में धोलावीरा एकमात्र ऐसा स्थल है जो तीन भागों में विभाजित था
- दुर्ग टिला
- मध्यमा
- नगर टीला
- सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे बड़ी विशेषता अद्भुत नगर नियोजन व्यवस्था तथा जल निकासी प्रणाली थी।
- बस्तियाँ दो भागों में विभाजित थी जिन्हें क्रमशः दुर्ग और निचला शहर नाम दिया गया है।
- दुर्ग में शासक वर्ग निवास करता था तथा दुर्ग चारों ओर से दीवार से घिरा था। इसे निचले शहर से अलग किया गया था।
- दूसरा भाग जिसमें नगर के साक्ष्य मिले हैं यहाँ सामान्य नागरिक, व्यापारी, शिल्पकार, कारीगर तथा श्रमिक वर्ग निवास करते थे। निचला शहर भी दीवार से घिरा था।
- सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी।
- सड़कों के किनारे सुव्यवस्थित नालियाँ बनी थी। यह नालियाँ ऊपर से ढकी हुई होती थी।
- इनमें घरों से निकलने वाला गंदा पानी छोटी नालियों से होते हुए मुख्य सड़क पर बड़े नाले में मिल जाता था। * हड़प्पा व मोहनजोदड़ो की नगर योजना लगभग समान थी। यहाँ पकी हुई ईंटों का प्रयोग होता था।
- भवन निर्माण में पकी एवं कच्ची दोनों तरह की ईंटों का प्रयोग होता था।
- भवन में सजावट आदि का अभाव था।
- प्रत्येक मकान में स्नानागार, कुएँ एवं गंदे जल की निकासी के लिए नालियों का प्रबंध था। * मकानों के दरवाजे मध्य में न होकर एक किनारे पर होते थे
धार्मिक जीवन –
- इस सभ्यता से स्वास्तिक के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
- इस सभ्यता में कही भी मंदिर के अवशेष नहीं मिले हैं
- लिंग पूजा के पर्याप्त प्रमाण हैं जिन्हें बाद में शिव के साथ जोड़ा गया है।
- पत्थर की शक्ति के रूप में की जाती थी।
- कई योनि आकृतियाँ भी प्राप्त हुई हैं, जिनकी पूजा प्रजनन
- इस सभ्यता के लोग पशुओं की भी पूजा करते थे।
- वृक्ष पूजा के रूप में पीपल के वृक्ष की पूजा की जाती थी।
- अग्निपूजा प्रचलन के भी प्रमाण मिले हैं।
- जल पूजा के प्रमाण मिले हैं।
- हड़प्पा सभ्यता में शव विसर्जन के तीनों तरीके सम्पूर्ण शव को पृथ्वी में गाड़ना, पशु- पक्षियों के खाने के पश्चात् शव के – पक्षिर बचे हुए भाग को गाड़ना तथा शव को दाहकर उसकी भस्म गाड़ना प्रचलित थे।
- यहाँ से संभवतः नागपूजा के अवशेष भी मिले हैं।
- बलि प्रथा का प्रचलन (अग्निवेदिकाओं में हडडी के अवशेष)
- पद्मासन योगी का चित्र (पशुपति शिव)
राजनीतिक जीवन :
- केन्द्रीय प्रशासन था।
- हड़प्पा सभ्यता व्यापार और वाणिज्य पर आधारित थी। इसलिए शासन व्यवस्था में भी व्यापारी वर्ग की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी।
- पिग्गट और व्हीलर विद्वानों का मत है कि सुमेर और अक्कद की भाँति मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में भी पुरोहित लोग शासन के हित का पूरा ध्यान रखते थे। सम्भवतः मोहनजोदड़ो और हड़प्पा उनके राज्य की दो करते थे। ये शासक प्रजा राजधानियाँ थी।
- हंटर के अनुसार, ‘मोहनजोदड़ो का शासन राजतंत्रात्मक न होकर जनतंत्रात्मक था।’
- मैंके के अनुसार यहाँ जनप्रतिनिधि का शासन था।
- दशरत शर्मा तीसरी राजधानी कालीबंगा
आर्थिक जीवन :
- पुरातात्विक साक्ष्य से यह अनुमान लगाया गया है कि सिन्धु सभ्यता के लोग हल या कुदाल से खेती नहीं करते थे।
- यह सम्भव है कि ये लोग पत्थर की कुल्हाड़ियों से या लकड़ी के हल से भूमि को खोदकर खेती करते थे।
- इन लोगों के औजार बहुत अपरिष्कृत थे किन्तु यहाँ के किसान अपनी आवश्यकता से अधिक अन्न उगाते थे।
- अतिरिक्त अन्न का उपयोग व्यापार और वाणिज्य में होता था।
- सिन्धु घाटी के लोग खेती के अतिरिक्त बहुत से उद्योग जानते थे।
- ये लोग कपास उगाना और कातना भली प्रकार जानते थे। यह संभव है कि कपास और सूती कपड़े का निर्यात किया जाता था।
- ये अनेक प्रकार के मिट्टी के बर्तन बनाते और कपड़ों को रंगते थे।
- सिंधु सभ्यता के आर्थिक जीवन का प्रमुख आधार कृषि, पशुपालन, शिल्प व व्यापार थे।
- सिन्धु घाटी के लोग अपनी वस्तुएँ मिस्र भी भेजते थे। यहाँ से कुछ मनके व हाथी दाँत का निर्यात किया जाता था।
- मेसोपोटामिया के एक ग्रंथ से ज्ञात होता है कि अक्कद साम्राज्य के समय में मेलूहा (सिन्धु घाटी सभ्यता) से आबनूस, ताँबे, सोने, लालमणि और हाथीदाँत का निर्यात होता था।
- ये लोग बाटों (तोलने के लिए) का भी प्रयोग जानते थे।
- कुछ बाट घन के आकार के और कुछ गोल नुकीले हैं। उनकी तोल में 1, 2, 4, 8, 16, 32, 64 का अनुपात है।
- सबसे अधिक 16 इकाई का बाट प्रयोग में आता था।
- वस्तुविनमय प्रणाली थी
- लोथल से नाव का खिलौना प्राप्त हुआ है इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि समुद्री व्यापार होता होगा • कालीबंगां से बेलनाकार मुहरें प्राप्त हुई है जिससे अनुमान लगाया जाता है कि मेसोपोटामिया के साथ व्यापारिक संबंध थे।
- मेसोपोटामिया से कलोराइट पत्थर व मनके का आयात होता था तथा मेसोपोटामिया को निर्यात में सूती वस्त्र कपास (सिन्डन) व इमारती लकड़ी हाथी दांत व पशु पक्षी दिए जाते थे।
- सेलखड़ी का आयात राजस्थान व काठियावाड़ गुजरात से होता था।
- सोना अफगानिस्तान व कर्नाटक की खदानों से प्राप्त किया जाता था।
पशुपालन :
- हड़प्पा सभ्यता में पाले जाने वाले मुख्य पशु थे बैल, भेड़, हरिण, मोर, गाय, खच्चर, बकरी, भैंस, सूअर, हाथी, कुत्ते, गधे आदि।
- हड़प्पा निवासियों को कूबड़वाला साँड विशेष प्रिय था।
- ऊँट, गैंडा, मछली, कछुएँ का चित्रण हड़प्पा संस्कृति की मुद्राओं पर हुआ है।
- हड़प्पा संस्कृति में घोड़े के अस्तित्व पर विवाद है लेकिन सुरकोटदा से घोड़े के अस्थिपंजर व रानाघुंडई से घोड़े के दाँत मिले हैं।
- कालीबंगा से ऊँट की हड्डियाँ मिली है।
- रंगपुर व लोथल से घोड़े की मृण्मूर्ति
- पवित्र पशु – एक श्रृंगी बेल
- पवित्र पक्षी – बतख
- शेर गाय के प्रमाण नहीं
कृषि :
- हड़प्पा संस्कृति की मुख्य फसलें गेहूँ और जॉ थी।
- इसके अलावा वे राई, मटर, तिल, चना, कपास, खजूर, तरबूज आदि भी उगाते थे।
- चावल के उत्पादन का प्रमाण लोथल और रंगपुर से प्राप्त हुआ है।
- लोथल सौराष्ट्र से बाजरा के अवशेष
- रोज़दी गुजरात से रागी के अवशेष
- कालीबंगां से हल व जूते हुए खेत के साक्ष्य के साथ दोहरी फसल के अवशेष
- बाहवलपुर, बनावली मिट्टी के हल के अवशेष
समाज :-
- मातृसत्तात्मक समाज
- युगल समाधि सती प्रथा की ओर संकेत
- समाज साकाहारी तथा मांसाहारी अंतिम संस्कार में सिर उत्तर की तरफ तथा पैर दक्षिण की तरफ
- पुनर्जन्म में विश्वास मृतक के साथ उसकी पसंदीदा वस्तुओं को manbhara रोपड़ से मालिक के साथ कुत्ते के दफनाने के साक्ष्य
- लोथल से आदमी के साथ बकरे को दफनाने के साक्ष्य
- पूर्ण समाधिकरण – मुस्लिम विधि
- आंशिक स्वादान – पारसी विधि
- दहासंस्कार – हिंदू विधि
- शांति प्रदान पद्धति समाज युद्धक सामग्री का अभाव
शिल्प एवं उद्योग धन्धे :
- धातुकर्मी ताँबे के साथ टिन मिलाकर काँसा तैयार करते थे।
- मोहनजोदड़ो से बने हुए सूती कपड़े का एक टुकड़ा तथा कालीबंगा में मिट्टी के बर्तन पर सूती कपड़े की छाप मिली है।
- इस सभ्यता के लोगों को लोहे की जानकारी नहीं थी।
- काँस्य मूर्ति का निर्माण द्रवी – मोम विधि से हुआ है।
- मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा से प्राप्त मृण्मूर्तियों में पुरुषों की तुलना में नारी मृण्मूर्तियाँ अधिक है
- हड़प्पा संस्कृति में पशु- मूर्तियाँ मानव मूर्तियों से अधिक संख्या में पाई गई है।
- हड़प्पा में कूबड़ वाले बैलों की मूर्तियाँ सर्वाधिक संख्या में मिली है।
- मनका उद्योग का केन्द्र लोथल एवं चन्हुदड़ो था।
- हड़प्पा सभ्यता का प्रमुख उद्योग वस्त्र उद्योग था।
कला :
- कला के क्षेत्र में सिन्धु घाटी के लोगों ने बहुत उन्नति की थी।
- वे बर्तनों पर सुन्दर चित्र बनाते थे।
- मनुष्यों और पशुओं के चित्र बड़ी संख्या में मिलते हैं।
- मोहरो पर जो पशुओं के चित्र बने हैं, उनसे इन लोगों की कलात्मक अभिरुचि प्रकट होती है।
- ये चित्र बैल, हाथी, चीता, बारहसिंगा, घड़ियाल, गैंडा आदि पशुओं के हैं।
- हड़प्पा में दो मनुष्यों की मूर्तियाँ मिली हैं जिनसे प्रकट होता है कि ये लोग मनुष्यों की मूर्तियाँ बनाने में भी बहुत कुशल थे।
- ध्यान मुद्रा में योगी की पत्थर की मूर्ति और काँसे की नर्तकी की मूर्ति सिन्धु घाटी की कला के सुन्दर नमूने हैं।
- सिंधु सभ्यता में संभवतः तीन प्रकार की मूतियों का निर्माण होता था-
(1) धातु मूर्तियाँ (2) मृणमूर्तियाँ (3) प्रस्तर मूर्तियाँ
सड़क योजना :-
- सभ्यता में मुख्य सड़क उत्तर से दक्षिण व पूर्व से पश्चिम बनाई जाती थी
- सड़के एक दूसरे को संमकोण पर काटती थी जिसे ऑक्सफोर्ड, सर्किल पद्धति, ग्रिड पेटर्न शतरंज की विसात कहा जाता था
- निर्माण कच्ची ईंटों से मिट्टी से
- इन सड़कों का आकार १ से 16 फीट या 10 मीटर
- संपूर्ण सिंधु घाटी सभ्यता में घरों के दरवाजे मुख्य सड़क की तरफ ना खुलकर गली की तरफ खोलते थे लेकिन स्वरूप लोथल एकमात्र ऐसा स्थान था जहां घरों के दरवाजे मुख्य सड़क की ओर खोलते थे अपवाद
भवन निर्माण :-
- कच्ची एवं पक्की ईंटों का प्रयोग
- सिंधु घाटी सभ्यता के मकान। मंजिला 2 मंजिला होते थे।
- संपूर्ण सेंधव सभ्यता में कालीबंगा लोथल मकान निर्माण में का प्रयोग किया गया।
- संपूर्ण सिंधु घाटी सभ्यता में धोलावीरा एकमात्र ऐसा स्थान है जहां से भवन निर्माण में पत्थर का प्रयोग किया गया।
- कालीबंगा एकमात्र ऐसा स्थल जहां से लकड़ी बनावली एकमात्र ऐसा स्थल जहां से नाली व्यवस्था का अभाव पाया गया
6 प्रकार की ईटो के साथ साक्ष्य
- कच्ची ईंट
- पक्की ईंट
- अलंकृत ईंट कालीबंगा
- फनीदार ईंट कुए निर्माण में
- वक्र आकार ईंट चन्हूदडो
- कपास उगाने का सर्वप्रथम श्रेय यूनानीयों को जाता है यूनानीयों ने इसे सिण्डन नाम दिया • कपास की खेती के प्रथम साक्ष्य हरियाणा से
- सर्वप्रथम ज्वारीय बंदरगाह का निर्माण लोथल के वास्तु कारों के द्वारा किया गया
- हाथी के साक्ष्य से रोजदी गुजरात से कुनाल हरियाणा से चांदी के दो मुकुट प्राप्त सर्वप्रथम चांदी का प्रयोग सिंधु घाटी सभ्यता में किया गया
- कुनाल से मिलने वाले मृदभांड 6-7000 वर्ष ईसा पूर्व के माने जाते हैं यदि ऐसा प्रमाणित हो जाता है तो सिंधु घाटी सभ्यता संसार की सबसे प्राचीनतम सभ्यता बन जाएगी
- 2016-17 से हरियाणा भर्शना से स्वर्ण आभूषण प्राप्त
उत्पादन के साक्ष्य
- मानव के साथ कुत्ते के शवादान के प्राचीनतम साक्ष्य – बुर्जहोम जम्मू कश्मीर से ८ बुर्जहोम से लोग गर्तावास में निवास के साथ से मिले
- लोथल में मैरिटाइम म्यूजियम सेंटर
- मानव के साथ कुत्ते के शवादान के प्रथम साक्ष्य रोपड़ पंजाब स्थापित किया जा रहा है
- प्राचीनतम कृषि के साक्ष्य = मेहरगढ़ पाकिस्तान
- भारतीय चित्रकला के प्राचीनतम साक्ष्य भीमबेटका मध्य प्रदेश
- भारतीय चित्रकला के प्रथम साक्ष्य मोहनजोदड़ो से पशुपति की मोहर
- आदिमानव की सर्वप्रथम उत्पत्ति दक्षिणी अफ्रीका महाद्वीप से
- भारत में आदिमानव के साक्ष्य शिवालिक की पहाड़ी से [रामापीथिकस