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राजस्थान की प्रथाएं | Rajasthan ki Parthaye Notes | Trick | PDF

राजस्थान में प्रचलित प्रथाएं – दोस्तो आज हम राजस्थान की प्रमुख प्रथाओं के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। इसमें हम कन्या वध, आणो प्रथा, धोवरा प्रथा तथा शादी विवाह के रीति रिवाज के बारे में जानेंगे। यह राजस्थान जीके का अति महत्वपूर्ण topic है। यदि आप भी किसी government exams की तैयारी कर रहे है, तो हमारी वेबसाइट पर आप बिल्कल free में नोट्स पढ़ सकते हो। राजस्थान में सरकार द्वारा आयोजित सभी प्रकार के एग्जाम में यहां से प्रश्न पूछे जाते है। यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगी। यहां पर आपको राजस्थान के सभी टॉपिक्स के नोट्स उपलब्ध करवाए जा रहे। इन टॉपिक को पढ़कर आप अपनी तैयारी को और बेहतर बना सकते है। और government की सभी महत्वपूर्ण परीक्षाओं में सफलता प्राप्त कर सकते है। 

  • सती प्रथा –
    राजस्थान में 1822 ई. में बूंदी रियासत ने सर्वप्रथम सती प्रथा को गैर कानूनी घोषित किया गया था।
    सर्वप्रथम राजस्थान में सती प्रथा का साक्ष्य वि.स. 861 में घटियाला शिलालेख जोधपुर से मिलता है।
    राजा राममोहन राय ले प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिक ने 1829 में धारा 17 के तहत ” सती निवारण अधिनियम ” पारित किया।
    इस अधिनियम के तहत राजस्थान में 1830 में अलवर में सर्वप्रथम अलवर में सती प्रथा पर रोक लगाई।
    1844 में – जयपुर रियासत के द्वारा सती प्रथा पर रोक लगाई
    1860 में जोधपुर रियासत ने रोक लगाई
    1861 में मेवाड़ में रोक लगाई
    1848 में कोटा में
    हाड़ौती में सती प्रथा पर रोक चार्ल्स विलकिंसने लगाई
    सती प्रथा को सर्वप्रथम रोकने का प्रयास मोहम्मद बिन तुगलक ने किया था।
    भारत में सर्वप्रथम सती प्रथा का साक्ष्य ऐरण अभिलेख ( मध्य प्रदेश ) से मिलता है।
  • डावरिया –
    राजाओं के द्वारा प्राचीन समय में अपनी पुत्री की शादी पर दहेज के रूप में अन्य कुंवारी दासिया भेजी जाती थी उनको डावरिया कहा जाता है।
  • दहेज प्रथा –
    भारत सरकार ने 1961 में अधिनियम बनाकर इसे बन्द किया।
    2006 में पुनः दहेज प्रथा पर कानून बना इसमें दहेज लेने व देने वाले दोनो को दोषी माना जाएगा।
  • बाल विवाह –
    राजस्थान में सर्वाधिक बाल विवाह वैशाख शुक्ल तृतीय होते है।
    बाल विवाह की रोक के लिए अजमेर के हरविलास शारदा व लार्ड इरविन के नेतृत्व में 1929 में शादरा एक्ट बना जो 1 अप्रैल 1930 को लागू हुआ। इस संशोधन के तहत लड़के की उम्र 18 वर्ष तथा लड़की की उम्र 14 वर्ष की गई।
    1978 के संशोधन में लड़के की उम्र 21 वर्ष तथा लड़की की उम्र 18 वर्ष की गई।
    2006 के एक्ट के अंतर्गत बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम बना जिसको 10 जनवरी 2007 को लागू किया गया।
    राजस्थान में सर्वप्रथम बाल विवाह पर रोक जोधपुर के प्रताप सिंह के द्वारा 1885 में लगवाई गई थी।
  • समाधि प्रथा –
    इस प्रथा को सर्वप्रथम जयपुर के पॉलिटिकल एजेंट लुडलो के प्रयासों से सन 1844 में जयपुर राज्य ने समाधि प्रथा को गैर कानूनी घोषित किया।
    इस प्रथा को पूर्णरूप से समाप्त करने के लिए सन 1861 ई. में एक एक्ट पारित किया गया था।
  • डाकन प्रथा –
    यह प्रथा एक ऐसी सामाजिक कुप्रथा थी जिसमे किसी औरत की हत्या यह मानकर कर दी जाती थी की उसके शरीर में किसी बुरी आत्मा का निवास है।
    यह प्रथा मेवाड़ी दलित समाज, मीणा, भील आदि में ज्यादा देखने को मिलती थी।
    1853 ई. में मेवाड़ की इस कुप्रथा ने कोड कमांडर जे.सी.ब्रुक और मेवाड़ के पॉलिटिकल एजेंट जोर्ज पैट्रिक लारेन्स द्वारा इसपर रोक लगवाई गई।
    महाराणा स्वरूप सिंह ने उदयपुर के खेरवाड़ा से इस प्रथा को बंद किया।
  • पर्दाप्रथा –
    प्राचीनकाल में इस प्रथा का प्रचलन नहीं था।
    इस प्रथा की शुरुआत भारत में 12वी सदी से मानी जाती है।
    इस प्रथा का प्रारम्भ गुप्तकाल में हुआ जबकि इसको सबसे अधिक बढ़ावा मध्यकालीन समय में मुस्लिम आक्रमण के बाद मिलता है।
    इस प्रथा का ज्यादातर विस्तार राजस्थान की राजपूत जाती में था।
  • दापा प्रथा –
    यह एक आदिवासी प्रथा है। यह प्रथा दहेज का उल्टा है। इसमें आदिवासी समुदायों में वर पक्ष द्वारा वधु के पिता को दिए जाने वधु मूल्य को दापा कहा जाता है।
  • दास प्रथा –
    दास प्रथा को गुलामी प्रथा भी कहा जाता है। भारत के प्राचीन ग्रंथ मनुस्मृति में भी दास प्रथा का उल्लेख किया गया है।
    1562 में इस प्रथा पर अकबर के द्वारा रोक लगाई गई।
    1832 में लार्ड विलियम बैंटिक ने दास निवारक अधिनियम बनाया। तथा इस प्रथा को सबसे पहले 1832 में कोटा में बंद किया गया।
  • कन्या वध –
    राजपूतों में प्रचलित प्रथा जिसके अंतर्गत लड़की के जन्म लेते ही उसको गला घोंटकर, दूध में डुबोकर या अफीम देकर मार दिया जाता था
    1833 में कोटा ने कन्या हत्या पर सर्वप्रथाम रोक लगाई।
    इस प्रथा को सर्वप्रथम हाड़ौती के पॉलिटिकल एजेंट विल क्विंसन के प्रयासों से लार्ड विलियम बैटिंक के समय रोक लगाई गई।
    1834 में बूंदी ने रोक लगाई तथा 1844 में उदयपुर व जयपुर में कन्या वध को बंद कर दिया।
  • मानव व्यापार प्रथा –
    लड़के व लड़कियों का क्रय – विक्रय को मानव व्यापार कहा जाता है।
    इस प्रथा को सबसे पहले कोटा में 1831 में बंद करने का प्रयास किया गया था।
    इस प्रथा पर सर्वप्रथम 1847 ई. जयपुर रियासत में रोक लगाई गई।
    कोटा राज्य में मानव क्रय – विक्रय पर राजकीय शुल्क वसूला जाता था जिसको चौथान कहा जाता था।
  • बेगार प्रथा –
    इसमें जागीरदारों द्वारा किसी व्यक्ति से काम करवाने के बाद कोई मजदूरी नही देने की प्रथा थी।
    1961 ई. में इस प्रथा पर रोक लगाई गई।
  • जौहर प्रथा –
    पुराने समय में भारत में राजपूत स्त्रियों के द्वारा की जाने वाली क्रिया थी। जब युद्ध में हार निश्चित हो जाती थी तो पुरुष की मृत्यु से पहले आग्नि या जल में कूद कर वीर गति को प्राप्त हो जाती थी।
  • विधवा पुनर्विवाह –
    विधवा स्त्री को दोबारा विवाह करने का अधिकार नही था। इसे ईश्वरीसिंह विद्यासागर व लार्ड डलहौजी द्वारा 1856 ई. में अधिनियम बनाकर धारा 5 के तहत मान्यता दे दी जिसको लार्ड केनिंग के द्वारा लागू किया गया।
    जयपुर के सवाई जयसिंह के द्वारा विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा दिया गया।
  • त्याग व टिक प्रथा –
    इस प्रथा के अंतर्गत लड़की के विवाह के समय कुछ जातियों का द्वारा लड़की के पिता से मुंह मांगी रकम मांगी जाती थी तथा जिससे कन्या वध होता था।
    वाल्टर हितकारिणी सभा द्वारा जोधपुर से इसे बंद कर दिया गया।
    1844 ई. में जयपुर व बीकानेर में त्याग प्रथा बंद हुई।
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