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छोड़ो आंदोलन कारण :-
सविनय अवज्ञा आन्दोलन को छोड़े हुए लम्बा समय हो गया था तथा गाँधीजी की संघर्ष विराम संघर्ष की रणनीति के तहत एक नए जन आन्दोलन की आवश्यकता थी।
भारतीय अगस्त प्रस्ताव तथा क्लिप्स मिशन से सन्तुष्ट नहीं थे।
व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन के कारण भारतीयों में राजनीतिक चेतना का विकास हो चुका था।
दूसरे विश्व युद्ध के कारण देश की परिस्थितियाँ असामान्य थी तथा भारतीयों में अंग्रेजों के खिलाफ असन्तोष था।
जापान SE एशिया में लगातार बढ़त लेता जा रहा था तथा उसने वर्मा पर भी अधिकार कर लिया था तथा अब उसका अगला निशाना भारत था।
वर्धा प्रस्ताव :- 14 July 1942.
गाँधीजी ने भारत छोड़ो आन्दोलन का प्रस्ताव रखा ।
8 Aug. को ग्वालिया टैंक मैदान (Bombay) से आन्दोलन प्रारम्भ हुआ ।
गाँधीजी ने अपना सुप्रसिद्ध ‘करो या मरो’ का भाषण दिया ।
9 Aug. को ऑपरेशन Zero over के तहत गाँधीजी तथा कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया ।
गाँधीजी को पूना के आगा खाँ महल में रखा गया तथा अन्य नेताओं को
अहमदनगर के किले में रखा गया।
कांग्रेस की दूसरी पंक्ति के नेताओं द्वारा आन्दोलन चलाया गया।
जयप्रकाश नारायण
राममनोहर लोहिया
अच्युत पटवर्धन
मीनू मसानी Mole
अरुणा आसफ अली
उषा मेहता
उषा मेहता ने बॉम्बे में भूमिगत रेडियो स्टेशन स्थापित किया ।
राम मनोहर लोहिया यहाँ से सम्बोधित करते थे।
देश में कई स्थानों पर समानान्तर सरकारों की स्थापना हुई।
बलिया (U.P.) :-चीतू पाण्डे (प्रथम समानान्तर सरकार )
सतारा (MH) :- बाई. बी. चव्हाण नानाजी पाटिल
यह सर्वाधिक समय तक चलने वाली समानान्तर सरकार
तामलुक (बंगाल) :- सतीश सामन्त मातंगिनी हाजरा (F)
यह जातीय सरकार थी।
उन्होंने विद्युत वाहिनी सेना का गठन किया था।
सरकारी इमारतों पर भारतीय झण्डा फहरा दिया गया ।
सञ्चार तथा आवागमन के साधनों को बाधित किया गया।
आन्दोलन हिंसक हो गया।
अंग्रेजों ने हिंसा का आरोप गाँधीजी पर लगाया।
गाँधीजी ने आरोपों के विरोध में 21 दिन की भूख हड़ताल की।
1945 तक भारत छोड़ो आन्दोलन समाप्त हो गया।
छोड़ो आंदोलन महत्व –
1857 की क्लान्ति के बाद भारत का सबसे बड़ा जन आन्दोलन था ।
समाज के सभी वर्गों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया यहाँ तक कि पूँजीपति भी आन्दोलन में शामिल हुए ।
यह पहला आन्दोलन था जो पूर्ण स्वतंत्रता के लक्ष्य के साथ किया गया।
हालांकि मुस्लिम लीग ने भारत छोड़ो आन्दोलन का विरोध किया था लेकिन फिर भी यह आन्दोलन साम्प्रदायिक नहीं हुए तथा स्थानीय स्तर पर मुस्लिमों ने आन्दोलन में भाग लिया ।
अंग्रेजी साम्राज्य का इस्पाती ढाँचा टूट गया था। क्योंकि सेना, प्रशासन तथा पुलिस की सहानुभूति आन्दोलनकारियों के साथ थी ।
इस आन्दोलन के बाद भारत की आजादी तय हो चुकी थी तथा अब यह केवल समय का प्रश्न थी।
राजगोपालाचारी फॉर्मूला – 1944
प्रावधान :-
1. मुस्लिम लीग को राष्ट्रीय आन्दोलन में कांग्रेस का समर्थन करना चाहिए।
2. मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में जनमत संग्रह करवाया जाएगा।
3. जनमत संग्रह से पहले सभी राजनीतिक दल अपनी विचारधारा का प्रचार-प्रसार कर सकते हैं।
4. विभाजन की स्थिति में साझे संघ का गठन किया जाएगा जिसमें रक्षा, सञ्चार व विदेश एक साथ रखे जाएगें।
5. ये सभी प्रावधान अंग्रेजों के जाने के बाद लागू किए जाएगें।
कांग्रेस ने इन प्रस्तावों को स्वीकार कर लिया।
गाँधीजी ने इसके लिए जिन्ना को मनाने की कोशिश की तथा जिन्ना को कायदे – आजम (Great leader) कहा लेकिन जिन्ना ने स्वीकार नहीं किया।
जिन्ना की माँगें :-
जिन्ना ने साझे संघ को अस्वीकार कर दिया ।
पूर्वी तथा प. Pak. को मिलाने के लिए जिन्ना ने गलियारे की माँग की।
जनमत संग्रह में केवल मुस्लिमों की राय पूछी जानी चाहिए।
जनमत संग्ग्रह से पहले केवल मुस्लिम लीग प्रचार कर सकती है।
जिन्ना ने अंग्रेजों से माँग की – ” बाँटो तथा जाओ । “
वेबेल प्लान 1945
लॉर्ड वेबेल उस समय भारत का जज था।
प्रावधान –
GG तथा सेनाध्यक्ष को छोड़कर कार्यकारी परिषद् के सभी सदस्य भारतीय होंगे।
कार्यकारी परिषद् सवर्ण हिन्दू तथा मुस्लिमों की संख्या समान होगी।
आगे की स्थिति पर चर्चा के लिए शिमला में सम्मेलन बुलाया जाएगा।
सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा कर दिया जाएगा ।
शिमला सम्मेलन – June, 1945.
इसमें 22 सदस्यों ने भाग लिया।
कांग्रेस का नेतृत्व मौलाना अबुल कलाम आजाद ने किया।
जिन्ना ने माँग की-कार्यकारी परिषद् के मुस्लिम सदस्य मुस्लिम लीग द्वारा चुने जाएगें।
जिन्ना की जिद के कारण शिमला सम्मेलन असफल हो गया।
मौलाना अबुल कलाम ने शिमला सम्मेलन को ‘भारतीय इतिहास का जल विभाजक’ बताया।
Breaking down Plan-
यह योजना भी GG वेबल द्वारा दी गई।
शर्तें-
मार्च, 1948 तक भारत को आजाद कर दिया जाएगा।
भारत को 2 चरणों में आजाद किया जाएगा –
(i) हिन्दू बाहुल्य प्रान्तों में
(ii) मुस्लिम बाहुल्य प्रान्तों में
शाही नौसेना विद्रोह – Feb. 1946
Bombay बन्दरगाह के नौसैनिकों ने खराब खाने को लेकर हड़ताल की।
B.C. दत्त नामक सैनिक ने N.S. तलवार नामक जहाज पर ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ लिख दिया।
अंग्रेजों ने उसे गिरफ्तार कर लिया।
यह आन्दोलन बॉम्बे से लेकर कराँची व मद्रास बन्दरगाह पर भी फैल गया
22 Feb. को मजदूरों ने नौसैनिकों के पक्ष में हड़ताल की।
25 Feb. को पटेल तथा जिन्ना के समझाने पर नौसैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया।
आत्मसमर्पण के कारण –
(ⅰ) पटेल तथा जिन्ना जानते थे कि यह हड़ताल आजाद भारत में भी जारी रह सकती है।
(ii) अंग्रेजी सरकार हिंसा के माध्यम से आन्दोलन को कुचल सकती थी।