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Mahatma Gandhi Short Notes in Hindi

✦ 1869 :- जन्म 2 अक्टूबर, पोरबन्दर काठियावाड़, गुजरात ।

✦1876 : प्राइमरी स्कूल में अध्ययन। कस्तूरबा से सगाई।

✦1881: राजकोट हाईस्कूल में अध्ययन
1883 : 13 साल की उम्र में कस्तूरबा से विवाह।

✦ 1885 : 63 वर्ष की आयु में पिता का निधन।

✦1887 : मैदिक पास कर भावनगर के सामलदास कॉलेज में प्रवेग किया, फिर एक तत्र बाद कॉलेज छोड़ दिया।

✦ 1888 : प्रथम पुत्र का जन्म ।
वकालत पढ़ने इंगलैण्ड खाना।

✦1891 : वकालत पढ़ाई पूरी कर देश लौट।
माता पुतलीबाई का निधन।
बम्बई तथा राजकोट में वकालत की।

✦1893 : भारतीय मुस्लिमों द्वारा एक व्यवसाय संघ की मांग पर केस लड़ने दक्षिण अफ्रीका के ट्रांसवाल की राजधानी प्रिटोरिया पहुंचे। वहीं उन्हें सभी प्रकार के रंगभेद का सामना करना पड़ा।

✦1894 : रंगोट का सामना करने।

✦वहीं रहकर समाज कार्य करने तथा वकालत करने का फैसला

✦नेटाल इण्डियन कांग्रेस की स्थापना।

✦ 1896 : छः महीने के लिए भारत लौटे तथा पत्नी तथा दो पूत्रों को नेटाल ले गए।

✦ 1899 : ब्रिटिश सेना के लिए बोअर युद्ध में भारतीय एम्बुलेन्स सेवा तैयार की।

✦1901 : सपरिवार स्वदेश रवाना हुए तथा दक्षिण अफ्रीका में बसे भारतीयों हो आश्वासन दिया कि वे जब भी आवश्यक‌ता महसूस दरेंगे, वापस लौर आएंगे।

✦ देश का दौरा किया, कलक‌ता के कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया तथा बम्बई में वकालत का दफ्तर खोला।

✦1902: भारतीय समुदाय द्वारा बुलाए जाने पर दक्षिण अफ्रीका पुनः वापस लौटे।

✦ 1903: जोटात्सवर्ग में वकालत का दफ्तर खोला । “इण्डियन ओपिनियन” को स्थापना ।

✦1904: ‘इण्डियन ओपिनियन’ साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन आरंभ किया।

✦1906 : ‘जुलु’ विद्रोह के दौरान भारतीय एम्बुलेन्स सेवा तैयार की।

✦एशियाटिक ऑर्टिजन्स के विरुद्ध जोहान्सबर्ग में प्रथम ‘सत्याग्रह’ अभियान आरम्भ किया।

✦1907 : ‘ब्लैक एक्ट’ भारतीयों तथा अन्य एशियाई लोगों के जबरदस्ती पंजीकरण के विरुद्ध सत्याग्रह। ‘सिविल डिसओबीडियन्स’ से प्रभावित होकर

✦ 1909: लियो टाल्सास से पत्राचार शुरु किया।

✦जिनके “किंगडम ऑफ गॉड उल विदिन यू’ से गांधी काफी प्रभावित थे।

✦जुन- भारतीयों का पक्ष रखने इंगलैण्ड खाना, नवम्बर – दक्षिण अफ्रीका वापसी के समय जहाज में ‘हिन्द-स्वराज’ लिखा।

✦ 1908 : सत्याग्रह के लिए प्रथम बार जोहान्सबर्ग में कारावास दण्ड।
आन्दोलन जारी रहा तथा द्वितीय सत्याग्रह में पंजीकरण प्रमाणपत्र जलाए गए। पुनः करावास दण्ड मिला।

✦ 1910 : जोहान्सबर्ग के निकट टॉल्सटाय फार्म की स्थापना।

✦ 1913 रंगभेद तथा दमनकारी नीतियों के विरुद्ध सत्याग्रह जारी रखा। द ग्रेट मार्च का नेतृत्व किया जिसमें 2000 भारतीय खदान कर्मियों ने न्यूकैलस से नेहाल तक की पद यात्रा की। अंततः सरवार को झरना पड़ा।

✦ 1914 : जून- गाँधी-समट्स समझौते के द्वारा समस्‌या का समाध्धजन हुआ जिसरे बाद गोधी वापस भारत आए। स्वदेश वापस लौटते समय गांधी ने इंग्लैंड में एक भारतीय अस्पताल इकाई स्थापित की, जिसके लिए वापस जाने पर उन्हें केसर-ए-हिंद का स्वर्ण पदक दिया गया।

✦ 1915 : 21 वर्षों के प्रवास के बाद जनवरी में स्वदेश लौटे। मई से कोचरख में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की जो 1917 में साबरमती नदी के पास स्थापित हुआ।

✦ 1916 : फरवरी में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में उद्‌घाटन भाषण।

गाँधी जी के स्वदेश में प्रारंभिक सत्याग्रह की शुरुआत है

सत्याग्रह :-

✦ सत्याग्रह की प्रेरणा गाँधी जी ने डेविर थोरों के लेख ‘सिविल डिसओबीडियन्स, लियो टॉल्स्टाय के ‘किंगडम आऑफ गॉड इज विदिन यू’ यू’, जॉन रस्किन की ‘अनटू दिस लास्ट’ एवं एमर्सन के विचारों से ली थी।सत्याग्रह सत्य और अहिंसा पर आधारित था।सत्याग्रह का शाब्दिक अर्थ सत्य का पकड़ना था। गाँधी जी उस बात से चिंतित थे कि सत्याग्रह को कैसे निष्क्रिय प्रतिरोध से अलग किया जाए क्योंकि सत्याग्रह एक अलग तकनीक पर आधारित था जिसमें उपवास, हिजरत, बंदी तथा हड़ताल प्रमुख था।

गाँधी जी के राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले थे।
गोखले जी की सलाह पर (1915-16) 2 वर्ष गाँधी जी ने भारत भ्रमण किया।
उसके बाद (1917-18) के बीच तीन प्रारंत्रिक आन्दोलनों का नेतृत्व किया ।

1917 : भारत में प्रथम सत्याग्रह चम्पारण, बिहार का नेतृत्व ।

1918 : खेड़ा में कर नही (No Taxation) आंदोलन चलाया एवं अहमदाबाद में मिल मजदूरों की लड़ाई लड़ी।

चंपारण सत्याग्रह – 1917

उस समय किसानों को एकू अनुबंध 3 वें (20 कटठा में 3 करठा) 120 भाग पर नील की खेती करने के लिए बाध्य किया गया इसे तीनक‌डिया पद्धति कहते हैं।

किसान इससे छुटकारा चाहते थे इसके लिए राजकुमार शुक्ल ने गाँधी जी को आमंत्रित किया। तब गाँधी जी ने भारत में पहली सत्याग्रह चंपारण, बिहार से ही शुरू किया। सरकार झुकी, जाँच के लिए आयोग का गठन किया गया उस पहति को समाप्त कर वसूली का 25% हिस्सा किसानों को वापस किया गया।

गाँधी जी के कुशल नेतृत्व से प्रभावित होकर रविन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें महात्मा की उपाधि दी।

खेड़ा सत्याग्रह (kheda Movement) – 1918

1918 ई. में गुजरात के खेड़ा जिले में भीषण अकाल पड़ा। इसरे बावजूद सरकार ने मालगु गलगुजारी प्रक्रिया बंद नहीं की अपितु 23% और वसूली बढ़ा दी। जबकि राजस्व व्यवस्था के अनुसार यदि फसल का उत्पादन कुल उत्पादन के से कम हो तो किसानों का कर्ज माफ कर देना चाहिए।
इस पर गाँधी जी ने घोषणा की यदि सरकार गरीब किसानों का कर्ज माफ कर तो सक्षम किसान स्वयं कर दें देंगे।

सरकार ने गुप्त रूप से अपने अधिकारियों से कहा कि जो किसान सक्षम है उन्हों से कर लिया जाये।

अहमदाबाद मिल हड्‌ताल (Ahamadabad mill strike)-1918

यह आन्दोलन भारतीय कपड़ा मिल मालिकों के विरूद्ध में था। यहाँ पर मजदूरों के बोनस को लेकर गाँधी जी ने भूख हड़ताल करने को कहा तथा स्वये भूख हड़‌ताल की। यह उनकी पहली भूख हडताल थी। इसके फलस्वरूप मिल मालिक समझौते को तैयार हो गये। इस मामले को एक ट्रिब्यूनल को सौपा गया, जिसने मजदूरों का पक्ष लेते हुए 35% बोनस देने का फैसला सुनाया।

खिलाफत आंदोलन [1919-1922]

उद्देश्य:- तुर्की में खलीफा के पद की पुनः स्थापना करने के लिए अंग्रेजों पर दवाब बनाना ।

कारण:- 1. ओटोमन तुई साम्राज्य की प्रथम विश्व युद्ध में हार के कारण मुसलमानों का नाराज होना।

2. सेबै की संधि (1920 ई.) में तुर्की के साथ बुढोर “शर्तों ने आग में घी का काम करना।

3. अंग्रेजों द्वारा सुल्तान के विरुद्ध उक्साए जाने से अरब में विद्रोह हुआ जिससे भारत में मुस्लिमों की भावना आहत हुई।

प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद ब्रिटिश सरकार ने तुर्की साम्राज्य का विघटन करने का निश्चिय किया जिसके कारण भारत में खिलाफत आन्दोलन प्रारंभ हुआ और 17 अक्टूबर, 1919 ई. को अखिल भारतीय स्तर पर खिलाफत दिवस मनाया गया और आन्दोलन प्रारम्भ हो गया। 10 अगस्त, 1920 ई. को सम्पन्त सीवर्स संधि के के बाद तुर्की का विभाजन हो गया। मौलाना मो. अली और शौकत अली ने खिलाफत कमेटी का गठन दूर अंग्रेजो के खिलाफ खिलाफत आंदोलन प्रारंभ कर दिया।

इस आंदोलन का समर्थन काँग्रेस द्वारा किया गया, क्योंकि महात्मा गाँधी के विचार से अंग्रेजों के खिलाफ हिंदू और मुसलमानों के एक होने का यह स्वर्णिम अवसर था।

जब मुस्तफा कमाल पाशा के नेतृत्व में टर्की के खलीफा की सत्ता समाप्त कर दी गई तो 1922 में यह आंदोलन स्वत: ही समाप्त हो गया।

असहयोग आंदोलन → 1920-1922.

गाँधी जी को रौलेट एक्टर एवं मर्टिग्यू चेम्सफोर्ड में बड़ा आघात लगा, मसलमानों ने भी खिलाफत कमेटी सुधार का गठन दर खिलाफत आंदोलन शुरू किया। * गाँधी जी ने अंग्रेजो के खिलाफ असहयोग आंदोलन चलाने का निश्चिय किया।

उद्देश्य:- ब्रिटिश भारत की राजनीतिक, आर्थिक तथा समाजिक संस्था का बहिष्कार डरना और शासन की मशीनरी को बिल्कुल उप्प करना ।

शुरुआत: 1920 में राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन से। बाद में दिसंबर 1920 ई. में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में उस निर्णय को स्वीकृति दी गई।

जनवरी 1921 में कांग्रेस द्वारा गाँधी जी के नेतृत्व में ईमानदारी पूर्वक असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया गया।

असहयोग आन्दोलन को सफल बनाने हेतु किये गये प्रभास
सरकारी उपाधियाँ वैतनिक तथा अवैतनिक पदों का त्याग ।
सरकारी उत्सवों अथवा दुबारों में सम्मिलित न होना।
सरकारी एवं अर्द्ध सरकारी स्कूलों का त्याग
1919 के अधिनियम के अंतर्गत होने वाले चुनावों का बहिष्कार।
सरकारी अदालतों का बहिष्कार।
विदेशी माल का बहिष्कार ।

गाँधीजी ने पत्र द्वारा वायसराय लाई रीडिंग हो सूचित किया कि यदि सरकार ने अपना रवैया न बदला तो शीघ्र ही कर न देने का आंदोलन चलाया जाएगा।

आन्दोलन समाप्ति एवं उसका कारण :- गाँधी जी ने कहा था आन्दोलन पूरी तरह अहिंसक होना चाहिए किंतु फरवरी 1922 में चौरी-चौरा काण्ड की वजह से इसे स्थगित करदिया गया।

चौरी-चौरा कोड :- 4 Feb. 1922 चोरी-चौरा, उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के पास एक कस्बा है।

यहाँ 4 फरवरी 1922 में भारतीय आन्दोलनकारियों ने ब्रिटिश सरकार की एक पुलिस चौकी को आग लगा दी जिससे उसमे हुये हुए 22 पुलिस की जिंदा जल गये। डात घटना को चौरी-चौरा काण्ड के नाम से जाना जाता है।

1919: शैलेट बिल पास हुआ जिसमें भारतीयों में आम अधिकार 7. होने गए। विरोध में उन्होंने पहला अखिल भारतीय सत्याग्रह छेड़ा, राष्ट्रव्यापी हड्ताल का आह्वान भी सफल हुआ।

अंग्रेजी साप्ताहिक पत्र नवजीवन के संपादक सँग इण्डिया तथा गुजराती साप्ताहिक का पद ग्रहण किया।

920 : अखिल भारतीय होमरूल लीग के अध्यक्ष निर्वाचित हए।
वैसर-ए-हिन्द पटक लौटाया।

द्वितीय राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह आन्दोलन का आरंभ किया।

1921: बम्बई में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई ।

साम्प्रदायिक हिंसा के विरुद्ध बम्बई में 5 दिन का उपवास एवं व्यापक अवज्ञा आन्दोलन प्रारंभ किया। * 1922 : चौरी-चौरा की हिंसक घटना के बाद जन-आन्दोलन स्थगित किया।

उन पर राजद्रोह का मुकदमा चला तथा उन्होंने स्वयं को दोषी स्वीकार किया। जज ब्रमफील्ड द्वारा छः वर्ष करावास का दण्ड दिया गया।

1923: ‘दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह’ पुस्तक तथा आत्मरु‌धा है कुछ अंश करावास के दौरान लिखें।

1924: साम्प्रदायिक एकता के लिए 21 दिन का उपवास रखा। ‘बेलगाम कांग्रेस अधिवेशन के अध्यास चुने गये।

1925: एक वर्ष के राजनैतिक मौन का निर्णय।

कलकता कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया।

1928: कलकता पूर्ण स्वराज का आह्वान

1929: लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में 26 जनवरी को : “दिवस घोषित किया गया। स्वतंत्रता पूर्ण स्वराज के लिए राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह आन्दोलन आरंभ ।

1930 : ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह। ‘साबरमती से डाँडी तक की यात्रा का नेतृत्व सविनय अवज्ञा आंदोलन

1931: गाँधी इरविन समझौता, द्वितीय गोलमेज परिषत के लिए इंग्लैण्ड भात्रा, वापसी में महान् दार्शनिक रोमां रोलां से भेंट दी।

साइमन कमीशन – 1927

1919 के भारत शासन अधिनियम की समीक्षा के लिए उस आयोग का गठन किया गया।

अध्यक्ष – सर जॉन साइमन

विरोध का कारण :- इस आयोग में एक भी भारतीय नहीं था, इसलिए भारतीयों को लगता था कि इसकी रिपोर्ट में पक्षपात होगा और अंग्रेजों के हितों का ध्यान रखा जायेगा।

बहिष्कार का निर्णय – कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन (1927) एम. ए. अंसारी को अध्यक्षता में।

भारत आगमन – 3 फरवरी 1928 की साइमन कमीशन

(बम्बई) भारत पहुँचा। साइमन कमीशन से जुड़े कुछ तथ्य –

जब लाहौर लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय घायल हुए तो उन्होंने कहा- “मेरे उपर लाठियों से किया एक-एक वार अंग्रेज शासन की ताबूत की आखिरी कील साबित होगी” 1928 से 1929 के बीच कमीशन दो बार भारत आया और मई 1930 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिस पर लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन पर विचार होना था।

साइमन कमीशन की प्रमुख सिफारिशे:-

प्रांतों में दोहरा शासन समाप्त करके प्रोतों में उत्तरदायी शासन स्थापित किया जाए।

केन्द्रीय शासन में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जाए।

भारत के लिए संघीय शासन की स्थापना की जाए।

उच्च न्यायालय को भारतीय सरकार के अधीन ।

अल्पसंख्यकों के हितों के लिए गवर्नर व गवर्नर जनरल को विशेष शक्तियाँ। • आंतीय विधानमंडलों के सदस्यों की संस्था में वृद्धि कर दी जाए।

संघ की स्थापना से पहले भारत में एक वृहदातर भारतीय परिषद की स्थापना की जय • वर्मा को बिटिश भारत से अलग किया जाए।

अखिल भारतीय संघ के विचारों को ना माना जाए।

प्रत्येक दस वर्ष पश्चात भारत की संवैधानिक प्रगति की जाँच को समाप्त कर दिया जाए तथा ऐसा नवीन लचीला संविधान बनाया जाए। जो स्वतः विक‌सित होता रहे

नेहरू रिपोर्ट (1928)

साइमन कमीशन की नियुक्ति के विरोध में दिल्ली में 12 फरवरी, 1928 को एक सर्वदलीय सम्मेलन हुआ जिसमें 29 संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

लार्ड बईनडेड (भारत सचिव) ने राष्ट्र नेतृत्व को एक ऐसा संविधान

बनाने की चुनौती थी जिसे सभी स्वीकार करें। 1927 में मद्रास अधिवेशन में यह तय किया गया कि अन्य राजनैतिक टलों की संविधान का मसौदा बनाया जाये।

19 मई 1928 को डर अंसारी की अध्यक्षता में बम्बई में सर्वदलीय सम्मेलन हुआ। इसमें मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गयी जिसे संविधान का मसौदा तैयार करने का कार्य सौंपा।

नेहरू समिति ने 28 अगस्त 1928 को अपनी रिपोर्ट सौंपी इसे लखनऊ में आयोजित सभा में स्वीकार लिया गया।

नेहरू समिति रिपोर्ट की महत्वपूर्ण सिफारिशें :-

देश के नए संविधान का स्वतंत्र उपनिवेश पर आधारित होने की मान्यता ।
विवेक, व्यवसाय तथा धर्म की स्वतंत्र व्यवस्था।
भारत को डोमिनियन स्टेट का दर्जा दिया जाये।
साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली को समाप्त किया जाए।
संयुक्त निर्वाचन प्रणाली अपनायी जाए।
भारत में उच्चतम न्यायालय की स्थापना।
संघ लोक सेवा आयोग की स्थापना !
भाषायी आधार पर प्रान्तों का गठन हो।
भारत में धर्म निरपेक्ष राज्य होगा किंतु अल्पसंख्यकों के धार्मिक एवं सांस्कृतिक हितों का पूर्ण संरक्षण होगा।
केन्द्र एवं प्रान्त में संघीय आधार पर शक्ति विभाजन ।
युवा सार्वभौम मताधिकार की व्यवस्था ।

दांडी मार्च (जमक सत्याग्रह)

(दिसंबर 1929 ई.) कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य का झंडा फहराया गया। गाँधी द्वारा उद्‌घोषणा हुई कि ‘शैतान ब्रिटिश शासन’ के समक्ष समर्पण ‘ईश्वर तथा मानव के विरुद्ध अपराध है (गांधी के शब्द)”। इस घोषणा के साथ ही 26 जनवरी 1930 ई. में पूरे देश में ‘स्वतंत्रता दिवस’ मनाया गया।

गाँधी जी ने 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से 78 अनुयायियों के साथ 24 दिनों की पद यात्रा की व 5 अप्रैल को दोडी पहुँचकर 6 अप्रैल को नमक का कानून तोडा । (385-390 km)

सुभाष चंद्र बोस ने इसकी तुलना नेपोलियन के पेरिस मार्च ‘व मुसोलिन के रोम मार्च से की।

धरसना में नमक सत्याग्रह का नेतृत्व सरोजिनी नायडू, इमाम साहब मणिलाल (गाँधी जी के बेटे ने किया। *उत्तर पूर्व में इस आन्दोलन का नेतृत्व 13 तर्षीय नागा महिला ने किया। जवाहर लाल नेहरू ने इसे रानी की उपाधि दी।

इन्हें नागालैण्ड की जॉन आफै आके भी कहा जाता है।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन

शुरुआत :- 6 अप्रैल 1930

ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध भारतीय राष्ट्रीय कांगेस एवं

मुख्य रूप से गाँधी जी के नेतृत्व में चलाया गया कारण : यंग इंडिया (समाचार पत्र) में लेख द्वारा ब्रिटिश सरकार 11 सूत्री अंतिम मांगपत्र’ जिसमें शामिल नहीं थी, प्रस्तुत किया गया। पूर्ण स्वतंत्रता की मगि

गाँधी जी द्वारा 41 दिनों तक सरकार की प्रतिक्रिया का इंतजार किया गया। सरकार ने माँगे नहीं मानी तब सविनय अवज्ञा आन्दोलन, शुरू किया गया। 26 अप्रैल 1930 को दोडी मार्च से

अंतिम पत्र से भारतीयों की 11 सूत्री मांगों की प्रस्तुति

1, भूमि कर में 50% की कमी।

2. नेमक कर तथा सरकार द्वारा नमक पर एकाधिकार की समाप्ति ।

3. तटीय संचार पर भारतीयों के लिए आरक्षण ।

१. रुपया- स्टलिंग विनिमय अनुपात को कम करना।

5. देशी कपड़ा उद्योगों को संरक्षण देना। ।

6. सैनिक खर्च पर 50% की कमी

7. सिविल प्रशासन पर 50% खर्च में छूट ।

8. मादक द्रव्यों पर पूर्णतया रोक ।

१. सभी राजनैतिक कैदियों की रिहाई ।

10. सी. आई. डी. में परिवर्तन ।

“. आर्म्स एक्ट में परिवर्तन जिससे नागरिक अपनी सुरक्षा के लिए हथियार रख सकें ।

प्रथम दो मांगे किसानों की मांगे थी। संख्या तीन से पाँच तक बुर्जुआ प्रकृति की मांगे थीं। जबकि अंतिम छः मांगें भारत की आम जनता द्वारा की गई थी।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन के उ‌द्देश्य:-

कुछ विशिष्ट प्रकार के गैर कानूनी कार्य सामूहिक रूप से करके ब्रिटिश सरकार को झुका देना

प्रभाव :- ब्रिटिश सरकार ने आन्दोलन को दबाने के लिए रसख्त कदम उठायें और गाँधी जी समेत अनेक नेताओं को जेल में डाल दिया।

गाँधी- इरविन समझौता

ब्रिटिश राजनीतिज्ञ काँग्रेस व गाँधी जी का साथ चाहते थे लगातार प्रयासों के बाद सरकार तथा काँग्रेस के बीच समझौता हुआ। इसके परिणामस्वरूप गाँधी जी तथा गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन द्वारा मार्च 1931 ईमें एक समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किये गए “जिसे गाँधी-इरविन समझौता कहते हैं।

गाँधी- इरविन समझौते का उद्‌देगा:

इसके तहत काँग्रेस की और से द्वितीय गोल मेज सम्मेलन में भाग लेने, सविनय अवज्ञा आन्दोलन बंद करने की एवं पुलिस ज्यादती पर के लिए दत्ताव नहीं देने की बात मान ली गई। जाँच

सरकार की ओर से सभी अध्यादेशों की वापसी तथा अभियोगों की समाप्ति, हिंसा के दोषी राज्लैतिक कैदियों को छोडकर अन्य सभी राजनैतिक वैदियों की रिहाई, आदि बाते मान ली गयी।

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (1931)

गाँधी जी द्वारा लंदन में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में काँग्रेस के सदस्य के रूप में भाग लिया गया गया लेकिन साम्प्रदायिक समस्या के विवाद के कारण असफल रहा। तथा सरकार द्वारा दमनकारी नीतियों को फिर से लागू करने के कारण जनवरी 1932 ई. में सविनय अवज्ञा आंदोलन की पूनः शुरुआत की गई।

1932 : थ्रवदा जेल में अस्पृश्यों के लिए अलग चुनावी क्षेत्र के विरोध में उपवास ।

यरवदा पैक्ट को ब्रिटिश अनुमोदन तथा गुरुदेव की उपस्थिति में उपवास तोड़ा ।

1933 : साप्ताहिक पत्र ‘हरिजन’ आरंभ किया साबरमती तट पर बने सत्याग्रह आश्रम का नाम बदलकर हरिजन आश्रम कर दिया तथा उसे हमेशा के लिए छोड़कर देशव्यापी अस्पृश्यता विरोधी आन्दोलन छेड़ा।

1934 : अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ की स्थापना की। * 1936: वर्धा के निकट के गाँव का चयन जो बाद में सेवाग्राम आश्रम बना।

1937 : अस्पृश्यता निवारण अभियान के दौरान दक्षिण भारत की यात्रा

1938: बाद‌शाह खान के साथ N.W.F.P का दौरा ।

व्यक्तिगत सत्याग्रह की घोषणा 1940: विनोबा भावे को उन्होने पहला व्यक्तिगत सत्याग्रही चुना।

1942.

‘हरिजन’ पत्रिका का पन्द्रह महीने बाद पुनः प्रकाशन । क्रिप्स मिशन की असफलता।

*भारत छोड़ो आन्दोलन (Quit India Morment)

आरंभ 9 अगस्त 1942

विवरण – भारत को जल्दी आजादी दिलाने के लिए महात्मा गाँधी द्वारा अंग्रेजी शासन के विरुद्ध एक बड़ा फैसला था।

मूलमंत्र :- करो या मरो” “Do or Die”

परिणाम :- यह आन्दोलन भारत को स्वतंत्र भले न करता

पाया हो लेकिन इसका दुरगामी सुखदायी रहा। इसके लिए- “भारत की स्वाधीनता के लिए किया जाने वाला अन्तिम महा प्रयास” कहा गया।

1944 122 फरवरी को आगा खाँ महल में कस्तुरबा का ७२. वर्ष के विवाहित जीवन के पश्चात् 74 वर्ष की 62 आयु में निधन ।

1946 :* ब्रिटिश कैबिनेट मिशन से भेंट, पूर्वी बंगाल के 49 गाँवों की शान्तियात्रा जहाँ साम्प्रदायिक दंगों की आग भड़की हुई थी।

1947 : साम्प्रदायिक शान्ति के लिए बिहार यात्रा। * नई दिल्ली में लॉर्ड माउन्टबैटन तथा जिन्ना से भेट। * देश विभाजन का विरोध।

देश के स्वाधीनता दिवस 15 अगस्त, 1947 को कलकत्ता में टंगे शान्त करने के लिए उपवास तथा प्रार्थना।

14 गाँधी जी दो लोगों से हमेशा परेशान रहते थे – मो. अली जिल्ला और अपने बेटे हरिलाल से।

* मो. अलि, जिन्हें असहयोग आंदोलन में सबसे पहले गिरफ्तार किया गया था।

तेजबहादुर सपड़ और एम. आर. जफर की सहायता से गाँधी-इरविन समझौता हो पाया था।

भारत छोड़ो आन्दोलन के समय गाँधी सहित अन्य नेताओं का गिरफ्तार करने की योजना को बिटिश सरकार t operation Zero Houre नाम दिया था।

गाँधी जी की आत्मकथा, My Experience with Truth गुजराती भाषा में लिखी गई। Sintu

गोलमेज सम्मेलन (Round Table Sermmit)

साइमन कमीशन की रिपोर्ट पर विचार विमर्श के लिए 12 NOV., 1930 को लन्दन में प्रथम गोलमेज सम्मेलन हुआ। जिसमें 89 सदस्यों ने भाग लिया किंतु कार्यस ने नहीं।

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन 84 दिन एवं तृतीय गोल मेज सम्मेलन 37 दिन तक चला।

भीमराव अम्बेडकर ही भारत के एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने तीनो गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया।
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में ही जब गाँधी ने भाग लिया

तो वो ऐसे ही धोती में चले गये और वहीं पहुंचते ही चर्चिल ने गाँधी को ” अर्धनंगा फकीर’ कहा था कुछ समय बाद ही गाँधी ने दलितों को संविधान में दिये जाने वाले डोटे का विरोध किया तब फ्रैंक ने गाँधी को ‘देशद्रोही’ कहा।

गाँधी जी पहले राष्ट्रीय कांग्रेसी थे जिन्होंने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में 1931 में भाग लिया, पर 1921 में कांग्रेस पार्टी अपनाई

1948: जीवन का अंतिम उपवास 13 जनवरी से 5 दिनों तक दिल्ली के बिड़ला हाउस में देश में फैली साम्प्रदायिक हिंसा के विरोध में।

20 जनवरी, 1948 को बिड़‌ला हाउस में प्रार्थना में विस्फोट ।

30 जनवरी को नाथूराम गोडसे द्वारा शाम की प्रार्थना के लिए जाते समय बिड़‌ला हाउस में गाँधी जी की गोली मार कर हत्या कर दी।

गाँधी जी की मृत्यु पर उन्हें कंधा देने व वाला मुस्लिम अबुल कलाम आजाद जो भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे।

शहीद दिवस, 30 जनवरी को गाँधी जी पुण्यतिथि पर ही मनाया जाता है।

गाँधी जी की समाधि यमुना नदी के किनारे, नई दिल्ली में राजघाट नामक स्थान पर स्थित है। जिसका चबूतरा काले संगमरमर से बना है।

गाँधी जी का जन्मदिन 2 अक्टूबर को गाँधी जयंती के रूप में मनाया जाता है।

परंतु पूरे विश्व में अंतराष्ट्रीय अहिसा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

गाँधी जी को महात्मा और बापू के नाम से भी जाना जाता है या शब्द संस्कृत भाषा का है तथा बापू शब्द महात्मा शब्द गुजराती भाषा का है।

गाँधी को महात्मा की उपाधि रविन्द्रनाथ टैगोर ने दी तथा राष्ट्रपिता सुभाषचंद्र बोस ने कहा।ये पंसारी जाति से थे।

गाँधी जी जब इंग्लैण्ड गये तो उस जहाज का नाम एम. एस. राजपूताना था जिससे वह इंग्लैण्ड गये ।

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