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प्राचीन भारत के इतिहास के स्रोत | Prachin Bharat Ke Itihas Ke Srot

  • उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में समुद्र तक फैला यह उपमहाद्वीप भारतवर्ष के नाम से जाना जाता हैं।
  • भारत एक विशाल प्रायद्वीप है, जो तीनों ओर से समुद्र से घिरा है। इसे आर्यावर्त, ब्रह्मावर्त, हिन्दुस्तान तथा इण्डिया जैसे नामों से भी जाना जाता है।
  • प्राचीन भूगोलवेत्ताओं ने इसकी स्थिति के लिए ‘चतुःस्थानसंस्थितम्’ शब्द का प्रयोग किया था।.
  • भारत की मूलभूत एकता के लिए भारतवर्ष नाम सर्वप्रथम पाणिनी की अष्टाध्यायी में आया है।
  • प्रमुख यूनानियों ने भारतवर्ष के लिए ‘इण्डिया’ शब्द का प्रयोग किया, जबकि मध्यकालीन लेखकों ने इस देश को ‘हिन्द’ अथवा ‘हिन्दुस्तान’ नाम से सम्बोधित किया।
  • देश का भारत नामकरण ऋग्वैदिक काल के जन ‘भरत’ के नाम पर किया गया।

प्राचीन भारत के इतिहास के स्रोत

इतिहासकार वी. डी. महाजन द्वारा प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोतों को चार प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है – साहित्यिक स्रोत, पुरातात्विक स्रोत, विदेशी विवरण और जनजातीय किंवदंतियाँ। इन स्त्रोतों को रामशरण शर्मा ने इस प्रकार वर्गीकृत किया है – भौतिक अवशेष, अभिलेख, मुहरें, साहित्यिक स्त्रोत, विदेशी विवरण, ग्रामीण अध्ययन एवं प्राकृतिक विज्ञानों के अध्ययन से प्राप्त जानकारी।

साहित्यिक साक्ष्य

साहित्यिक साक्ष्य दो प्रकार के होते हैं-
1. धार्मिक
2. धर्मनिरपेक्ष।

धार्मिक साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत वेद, वेदांग, उपनिषद्, ब्राह्मण, आरण्यक, पुराण, रामायण, महाभारत, स्मृति ग्रन्थ तथा बौद्ध एवं जैन साहित्य आदि को शामिल किया जाता है।

वेदों की संख्या चार है ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद तथा वेदांग के अन्तर्गत शिक्षा, कल्प, ज्योतिष, व्याकरण, निरुक्त तथा छन्द आते हैं।

यजुर्वेद कर्मकाण्ड प्रधान है। सामवेद में संगीत का प्रथम साक्ष्य मिलता है।

श्रौत सूत्र में यज्ञ सम्बन्धी, गृह्य सूत्र में लौकिक एवं पारलौकिक कर्त्तव्यों तथा धर्म सूत्र में धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक कर्त्तव्यों का उल्लेख मिलता है।

ऋगवेद
  • यह ऋचाओं का संग्रह है।
  • ऋचाओं के क्रमबद्ध ज्ञान के संग्रह को ऋग्वेद कहा जाता है।
  • इसमें 10 मंडल, 1028 सूक्त (वालखिल्य पाठ के 11 सूक्तों सहित) एवं 10,462 ऋचाएँ हैं।
  • इस वेद के ऋचाओं के पढ़ने वाले ऋषि को होत कहते हैं।
  • इस वेद से आर्य के राजनीतिक प्रणाली, इतिहास एवं ईश्वर की महिमा के बारे में जानकारी मिलती है।

विश्वामित्र द्वारा रचित ऋग्वेद के तीसरे मंडल में सूर्य देवता सावित्री को समर्पित प्रसिद्ध गायत्री मंत्र है। इसके 9वें मंडल में देवता सोम का उल्लेख है।

इसके 8वें मंडल की हस्तलिखित ऋचाओं को खिल कहा जाता है। चातुवर्ण्य समाज की कल्पना का आदि स्रोत ऋग्वेद के 10वें मंडल में वर्णित पुरुषसूक्त है, जिसके अनुसार चार वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र) आदि पुरुष ब्रह्मा के क्रमशः मुख, भुजाओं, जंघाओं और चरणों से उत्पन्न हुए।

सामवेद
  • ‘साम’ का शाब्दिक अर्थ गान होता है।
  • इस वेद में मुख्य रूप से यज्ञों के अवसर पर गाये जाने वाले ऋचाओं (मन्त्रो) का संकलन है।
  • इसके पाठ पढ़ने वालो को उद्वात् कहते हैं। इसका संकलन ऋग्वेद पर आधारित है।
  • इसे भारतीय संगीत का जनक माना जाता है तथा यजुर्वेद तथा सामवेद में किसी भी विशिष्ट ऐतिहासिक घटना का वर्णन नहीं मिलता।
अथर्ववेद
  • अथर्वा ऋषि के द्वारा रचित इस वेद में कुल 731 मंत्र तथा लगभग विष्णु पुराण मौर्य वंश 6000 पथ हैं।
  • इसके कुछ मंत्र ऋग्वैदिक मंत्रों से भी प्राचीनतर हैं। यहाँ वेद कन्याओं के जन्म की निन्दा करता है।
यजुर्वेद
  • सस्वर पाठ के लिए मंत्रों तथा बलि के समय अनुपालन के लिए नियमों का संकलन यजुर्वेद कहलाता है।
  • इसकेपाठ पढ़ने वालो को अध्वर्यु कहते हैं।
  • इसमें में यज्ञों के नियमों एवं विधि-विधानों का संकलन बारे में देखने को मिलता है ।
  • इसमें बलिदान विधि का भी वर्णन है ।
  • यह एक ऐसा वेद है जो गद्य एवं पद्य दोनों में है ।

प्राचीन भारत के पुरातात्विक स्त्रोत

इ प्राचीन भारत के अध्ययन के लिए पुरातात्त्विक साक्ष्यों का विशेष महत्त्व है। ये कालक्रम का सही ज्ञान प्रदान करने सि वाले साक्ष्य हैं। पुरातात्विक साक्ष्यों में अभिलेख, सिक्के, स्मारक/भवन, मूर्तियाँ तथा चित्रकला प्रमुख हैं।

अभिलेख / शिलालेख

अभिलेखों के अध्ययन को पुरालेखशास्त्र (Epigraphy) कहाँ जाता है।

  • सामान्यत: अभिलेखों को स्तंभों, शिलाओं, गुफाओं, मूर्तियों आदि पर उत्कीर्ण करवाए जाते थे। शासकों द्वारा उत्कीर्ण कराए गए अभिलेखों व शिलालेखों से उनके जीवन, विचार, साम्राज्य विस्तार, धर्म संबंधी दृष्टिकोण आदि के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
  • महास्थान तथा साहगीरा के अभिलेख चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल के हैं। साहगौरा अभिलेख में सूखा पीड़ित प्रजा को राहत देने की बात कही गई है।
  • बोगजकोई अभिलेख ( एशिया माइनर) 1400 ई.पू. का है, जिससे आर्यों के ईरान से पूर्व की ओर आने का साक्ष्य मिलता है। इस अभिलेख में वैदिक देवताओं इन्द्र, मित्र, वरुण तथा नासत्य का उल्लेख मिलता है।
  • मास्की तथा गुर्जरा में स्थापित अभिलेखों में अशोक के नाम का स्पष्ट उल्लेख है। नेतुर तथा उद्वेगोलम के अभिलेखों में भी अशोक के नाम का उल्लेख है।
  • महास्थान अभिलेख से चन्द्रगुप्त मौर्य के समय के ग्रामीण प्रशासन की जानकारी मिलती है।
प्रमुख अभिलेख
  • वह अभिलेख जो सामान्यत: मंदिर की दीवारों एवं मूर्तियों पर अंकित कराए जाते थे, उन्हें गैर-राजकीय अभिलेख कहा जाता हैं।
  • अशोक के शिलालेखों व अभिलेख, कलिंग राजा खारवेल का हाथी गुंफा अभिलेख, समुद्रगुप्त का प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख, स्कंदगुप्त का भितरी स्तंभलेख, पुष्यमित्र शुंग का स्तंभलेख आदि। ये सभी राजकीय या सरकारी अभिलेख हैं।
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