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राज के भौतिक स्वरूप को चार भागों में बाँटा गया है ।
1. पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश (61.10% भाग पर जिसमें 40% जनसंख्या निवास करती है।)
2. अरावली पर्वतीय प्रदेश ( 9% भाग पर जिसमें 10% जनसंख्या निवास करती है।)
3. पूर्वी मैदानी भाग ( 23% भाग पर जिसमें 39% जनसंख्या निवास करती है ।)
4. दक्षिणी पूर्वी पठारी प्रदेश (6.89% भाग पर जिसमें 11% जनसंख्या निवास करती है। )
पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश
- पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश को थार के मरुस्थल के नाम से जाना जाता है ।
- थार का मरुस्थल सहारा के मरुस्थल का ही विस्तार है।
- पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश राज. के 12 जिलों में फैला हुआ है ।
नोट- 4 अन्तर्राष्ट्रीय जिले + जोधपुर, हनुमानगढ़ + ट्रिक (शेखावाटी – सीकर, चुरू, झुन्झुनू + जापान – जालौर, पाली, नागौर)
- राजस्थान का उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश व पूर्व के मैदान टेथिस सागर के अवशेष है।
- अरावली पर्वतीय प्रदेश व दक्षिणी पूर्वी पठारी भाग गोड़वाना लैण्ड के अवशेष हैं
- थार के मरुस्थल में माइकाशिष्ट चट्टानें पाई जाती हैं। जल के सम्पर्क में आने से जल इनमें से खारा लवण केषाकर्षण विधि से ऊपर आयेगा । इस क्रिया से सोडियम क्लोराइड (NACI) बनता है। जिससे पानी खारा हो जाता है ।
नोट – थार का मरुस्थल राजस्थान के 175000 वर्ग कि.मी. में फैला हुआ है। – ( डॉ एच. एम. सक्सेना के अनुसार )
राजस्थान में वर्षा 20 से 50 से.मी होती है
राजस्थान में मिट्टी – रेतीली बलुई
- अरावली का वृष्टि छाया प्रदेश होने के कारण दक्षिण पश्चिम मानसून यहाँ पर बहुत कम वर्षा कर पाता है
- थार के मरुस्थल का ढ़ाल उत्तर पूर्व से दक्षिण पश्चिम की ओर है
- राजस्थान में सर्वाधिक वायु अपरदन जैसलमेर में होता है
25 से.मी. सम वर्षा थार के मरुस्थल को दो भागो में विभाजित करती है ।
1. शुष्क रेतीला प्रदेश
2. अर्धशुष्क रेतीला प्रदेश
शुष्क रेतीला मरुस्थल
शुष्क रेतीले मरुस्थल को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है।
1. बालुका स्तूप मुक्त प्रदेश ( 41.50%)
2. बालुका स्तूप युक्त प्रदेश ( 58.50%)
बालुका स्तूप मुक्त प्रदेश
- जैसलमेर के दक्षिणी भाग में आकलवुड फोसिल (जीवाश्म) पार्क है ।
- यह बालुका स्तूप मुक्त भाग है जहाँ पर अवसादी चट्टाने पाई जाती है।
- इन चट्टानों की विशेषता है की ये लम्बे समय तक पानी को रोककर रख सकती है। यह क्षेत्र लाठी सीरिज कहलाता है। (थार का नखलिस्तान – लाठी सीरिज )
- यहाँ भू-गर्भिक जल पट्टी है (जमीन के नीचे पानी)। जो पोकरण से मोहनगढ़ के मध्य तक फैला हुआ है ।
- लाठी सीरिज में ही चांदन नलकूप है। जिन्हें थार का घड़ा कहा जाता है।
- लाठी सीरिज सरस्वती नदी का अवशेष मानी जाती है ।
- यही पर सेवण घास देखने को मिलती है। सेवण घास दूधारू पशुओं के लिए बहुत अच्छी रहती हैक्योंकि इसमें लगभग 10% तक प्रोटीन रहता है।
- सेवण घास का वैज्ञानिक नाम लेसियुरस सिंडीकस । –
- इस घास का कटा हुआ भाग लिलोण कहलाता है।
- इसी घास में गोडावण (राज्य पक्षी) पाया जाता हैजिसका वैज्ञानिक नाम अरडियोटिस नाइग्रिसेपस है। –
- गोडावण के अन्य नाम हुकना, गुधनमेर, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, सोहनचिड़िया ।
- गोडावण को राज्यपक्षी का दर्जा 1981
- राष्ट्रीय मरु उद्यान (अभ्यारण्य ) जो कि जैसलमेर में स्थित है वहाँ गोडावण को संरक्षण मिला हुआ है। ये राजस्थान का सबसे बड़ा अभ्यारण्य है। (3162 कि.मी. क्षेत्रफल)
बालुका स्तूप युक्त प्रदेश
- रेत के विशाल टीले (धोरे) ही बालुका स्तूप कहलाते है
- ये बालुका स्तूप वायु अपरदन का परिणाम है । इनका स्थानान्तरण मार्च से जुलाई के मध्य सर्वाधिक होता है । जैसलमेर में इन्हें धरियन कहते है।
- जैसलमेर का नाचणा गांव, रेगिस्तान के मार्च के लिए जाना जाता है। (रेगिस्तान का मार्च = रेगिस्तान का आगे बढ़ना)
- रेगिस्तान के मार्च के कारण मरुस्थलीयकरण की समस्या बढ़ती है।
- दो बालुका स्तूपो के मध्य निम्न भूमि क्षेत्र जहां वर्षा जल एकत्रित होने से अस्थाई झील का निर्माण होता है, पलाया झील कहते है ।
- यदि क्षेत्र सूख जाता है तो यह दलदली क्षेत्र रन या टाट कहलाता है यदि यह मैदानी भागो मे परिवर्तित हो जात है तो उसे बालसन का मैदान कहते हैं यहां जो कृषि की जाती है, खड़ीन कृषि कहते है ।
- प्राचीन काल में जैसलमेर में पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा की जाने वाली कृषि खड़ीन कृषि कहलाती है।
- राजस्थान में सर्वाधिक पलाया झीले, रन, टाट, खड़ीन कृषि – जैसलमेर जिले में पायी जाती है।
- राजस्थान की सबसे बड़ी रन थोब ( बाड़मेर)
- जोधपुर की रन – जोब (जोधपुर)
- जैसलमेर की रन पोकरण, लवा, कणोता, बरमसर, भांकरी
बालुका स्तूप
1) अनुदैर्ध्य / पवनानुवर्ती या रेखीक बालुका स्तूप –
पवन की दिशा के समानान्तर बनने वाले बालुका स्तूप अनुदैर्ध्य बालुका स्तूप कहलाते है, अनुदैर्ध्य बालुका स्तूपों के मध्य जो रास्ता बन जाता है उसे गासी कहते है ।
2) अनुप्रस्थ बालुका स्तूप –
पवन की दिशा के समकोण में बनते हैं। गंगानगर के सूरतगढ़, हनुमानगढ़ के रावतसर, बीकानेर, चुरू, झुन्झुनू आदि
3) बरखान बालुका स्तूप –
गतिशील, अर्धचन्द्राकार बालुका स्तूप बरखान कहलाते है। राजस्थान में मरुस्थल के लिए सर्वाधिक उत्तरदायी बालुका स्तूप बरखान ही है। अनुप्रस्थ जैसे ही समकोण पर बनते हैं। शेखावाटी क्षेत्र – भालेरी (चूरू), सीकर, झुन्झुनू, देशनोक, ओसिया (जोधपुर), सूरतगढ़ (गंगानगर) मुख्य रूप से ।
4) पेराबोलिक बालुका स्तूप –
पेड़ो के आस – पास रेत के जमाव से बने बालुका स्तूप (सम्पूर्ण राज में पाये जाते है। सर्वाधिक मात्रा में पाये जाते है के विपरीत बनता है ) बरखान
5) तारा बालुका स्तूप –
ये तारे के आकार के बनते है । मुख्यतः मोहनगढ़ जैसलमेर के मध्य, सूरतगढ़ गंगानगर ।
6) नेटवर्क बालुका स्तूप –
नेटवर्क बालुका स्तूप अनुदैर्ध्य व अनुप्रस्थ के मध्य नेटवर्क का कार्य करते है।
7) शब्र काफिज बालुका स्तूप –
यह छोटी-छोटी झाड़ियों व घास के झुण्ड के आसपास बनने वाले बालुका स्तूप । मरुस्थल में बनने वाले सबसे छोटे बालुका स्तूप ।
नोट – सर्वाधिक मात्रा में बनने वाले बालुका स्तूप पेराबोलिक
राजस्थान में सर्वाधिक बालुका स्तूप – जैसलमेर मे
सर्वाधिक प्रकार के बालुका स्तूप – जोधपुर
CAZRI (Central Arid Zone Research Institute)
- केन्द्रीय शुष्क अनुसंधान संस्थान
- उदेश्य – भूमि के सामर्थ्य को बढ़ाना
- मुख्यालय – जोधपुर
- स्थापना 1959
AFRI (Arid Forest Research Institute)
- शुष्क वन अनुसंधान संस्थान
- स्थापना 1985
- मुख्यालय – जोधपुर
- उदेश्य – मरुस्थल में ऐसी वनस्पति लगाना जो सूखा सहन करके मरुस्थल के
- विस्तार को कम कर सके जैसे – नागफणी, ग्वारपाठा
1. लूनी बेसिन (गोडवाड़ प्रदेश ) –
लूनी नदी की कुल लम्बाई 495 कि.मी.
राज. में कुल लम्बाई – 330 कि.मी.
उद्गम – नागपहाड़ अजमेर से, जहाँ पर इसे सागरमती नदी कहते है । पुष्कर से आने वाली सरस्वती नदी मिलने के बाद इसे लूनी नदी कहते है। इसे लवणवती नदी भी कहा जाता है।
आधी खारी आधी मीठी नदी भी कहते है ।
- पश्चिमी राजस्थान की सबसे लम्बी नदी / रेगिस्तान की गंगा / मारवाड़ की गंगा
- कालिदास ने लूनी नदी को अंतः सलिला नाम से पुकारा है।
- जालोर जिले में लूनी नदी का प्रवाह क्षेत्र रेल या नेहड़ा कहलाता है (नेड़ा)
- लूनी नदी जिन जिलों में बहती है वो निम्न है – अजमेर, बाड़मेर, नागोर, जालोर, जोधपुर, पाली ।
2. शेखावाटी आंतरिक जल प्रवाह क्षेत्र – सीकर, चुरू, झुन्झुनू ।
- यह कांतली नदी का प्रवाह क्षेत्र है जो खण्डेला की पहाड़ियों (सीकर) से निकलता है।
- गणेश्वर सभ्यता कांतली नदी के किनारे है ।
- शेखावाटी क्षेत्र के कच्चे पक्के कुंए जोहड़ या नाड़ा कहलाते है ।
- शेखावाटी क्षेत्र में बालुका स्तूप के मध्य बनने वाले तालाब ‘सर’ कहलाते है। जैसें – जसूसर, सालिसर, मानसर।
3. नागौर उच्च भूमि
ऊंचाई = 300 से 500 मीटर
- जमीन में सोडियम क्लोराइड पाया जाता है। पानी में फ्लोराइड की मात्रा अधिक होती है।
- नागौर राजस्थान की कुबड़पट्टी कहलाता है ।
- नागौर की झीलें – सांभर, डीडवाना, नावा, कुचामन ।
4. घग्घर के मैदान –
घग्घर नदी – हिमाचल प्रदेश के शिवालिक की पहाड़ियों से (कालका माता मंदिर के पास) घग्घर नदी निकलती है ।
- घग्घर नदी के मृत नदी के नाम से भी जाना जाता है ।
- राजस्थान में हनुमानगढ़ की टिब्बी तहसील के तलवाड़ा गांव से प्रवेश करती है। भटनेर ( हनुमानगढ़) में लुप्त हो जाती है
अरावली पर्वतीय प्रदेश
मध्यवर्ती अरावली पर्वतीय प्रदेश
- अरावली पर्वतीय प्रदेश गोड़वाना लैण्ड का अवशेष है, इसकी उत्पत्ति प्रीकैम्ब्रियन काल में हुई थी।
- अरावली विश्व की प्राचीनतम वलित पर्वतमाला है, अब अरावली अवशिष्ट पर्वत माला के रूप में है।
- वर्तमान में अरावली की औसत ऊचाई 930 मीटर है, अरावली क्वार्टजाइट चट्टानों से निर्मित है।
- अरावली राजस्थान के 9 प्रतिशत भू-भाग पर है इसमें 10 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। भील, मीणा, गरासिया, डामोर
- राजस्थान में सर्वाधिक – भील – उदयपुर
राजस्थान में गरासिया – सिरोही - अरावली पर्वतमाला की कुल लम्बाई 692 कि.मी. है
- खेडब्रह्मा पालनपुर गुजरात से रायसीना की पहाड़ी दिल्ली तक
- राजस्थान में कुल लम्बाई 550 कि.मी. (80%)
- सिरोही से खेतड़ी सिंघाना, झुन्झुनू तक
- अरावली की तुलना अमेरिका के अप्लेशियन पर्वत से की जा सकती है ( कर्णवत्त रूप में)
- अरावली प्रदेश में मुख्यतः 13 जिले आते है।
( उदयपुर, चितौड़गढ़, राजसमंद, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, भीलवाड़ा, सीकर, झुन्झुनू, अजमेर, सिरोही, अलवर, पाली व जयपुर) - यहाँ की जलवायु – उपआद्र होती है।
- औसत वार्षिक वर्षा 50 से 90 से.मी. तक होती है।
- राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा वाला जिला झालावाड़
- झालावाड़ को राजस्थान का नागपुर कहलाता है ।
- खनिज – तांबा, सीसा, जस्ता, अभ्रक, चांदी, लोहा, मैगनीज, फेल्सपार, ग्रेनाइट
अरावली के प्रमुख दर्रे :―
- केवड़ा की नाल, फुलवारी की नाल, देबारी दर्रे – उदयपुर
- देसूरी की नाल, सोमेश्वर नाल – पाली कामलीघाट, जिलवा की नाल राजसमंद
ऊंचाई के आधार पर अरावली के तीन भागों में बांटा जा सकता है।
1. उत्तरी अरावली
2. मध्य अरावली
3. दक्षिणी अरावली
उत्तरी अरावली
जयपुर संभाग : जयपुर, सीकर, झुन्झुनू, अलवर
- यहां अरावली की औसत ऊंचाई – 450 मीटर
- उत्तरी अरावली की सबसे ऊंची चोटी – रघुनाथगढ़, सीकर (1055 मीटर)
- उत्तरी अरावली की दूसरी सबसे ऊंची चोटी खो, जयपुर (920 मीटर)
- बैराठ की पहाड़ियां (जयपुर), खण्डेला की पहाड़िया (सीकर)
- तोरावटी पहाड़ियां (सीकर), मालखेत पहाड़िया (सीकर)
- उदयनाथ की पहाड़ियां – अलवर
मध्य अरावली
- मुख्यतः अजमेर व आस-पास का क्षेत्र
- मध्य अरावली औसत ऊंचाई 550 मीटर
- मध्य अरावली की सबसे ऊंची चोटी – गोरमजी / मायरजी (933 मीटर)
- यह टॉडगढ़, अजमेर में मेरवाडत्र की पहाड़ियों में है
- मध्य अरावली की दूसरी सबसे ऊंची चोटी – तारागढ़ (873 मीटर) (माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान के अनुसार 870 मीटर)
दक्षिणी अरावली
सिरोही, उदयपुर, राजसमंद, चितौड़गढ, प्रतापगढ़, डूंगरपुर
- दक्षिणी अरावली को मुख्य अरावली भी कहा जाता है। क्योंकि अरावली की सर्वाधिक ऊंचाई इसी क्षेत्र में है।
- गुरुशिखर को कर्नल जेम्स टॉड ने संतो का शिखर कहा है
- राजस्थान की सबसे ऊंची चोटी गुरु शिखर (1722 मीटर)
दक्षिणी अरावली को दो भागों में बांटा जा सकता है।
1. आबू पर्वत खण्ड
2. मेवाड़ का चट्टानी प्रदेश
मेवाड़ का चट्टानी प्रदेश
आबू पर्वत खण्ड अरावली पर्वतीय प्रदेश का सबसे ऊंचा भाग आबू पर्वत खण्ड जो सिरोही में स्थित हैजिसकी औसत ऊंचाई 1200 मीटर से भी अधिक है।
- राजस्थान की सबसे ऊंची चोटी – गुरु शिखर
- राजस्थान की दूसरी सबसे ऊंची चोटी – सेर, सिरोही (1597 मीटर)
- राजस्थान का सबसे ऊंचा पठार – उड़िया पठार (1360 मीटर)
- सेर, दिलवाड़ा, अचलगढ़, आबू
- भाकर सिरोही में स्थित तेज ढ़ाल वाली पहाड़ियों को भाकर कहा जाता हैलेकिन इसराना भाकर व रोजा भाकर जालौर में है
- आबू पर्वत खण्ड के पश्चिम में जसवंतपुरा की पहाड़ियां है। जिसकी प्रमुख चोटी डोरा पर्वत है। (869 मीटर)
- मेवाड़ का चट्टानी प्रदेश उदयपुर, डूंगरपुर, राजसमंद, प्रतापगढ़, गोगुंदा (उदयपुर) व कुंभलगढ़ (राजसमंद) के मध्य पठारी क्षेत्र भोराठ का पठार कहलाता है।
- यही राजस्थान की चौथी सर्वोच्च चोटी जरगा
- भैंसरोड़गढ़ व बिजोलिया के मध्य ऊंचाई पर स्थित उपजाऊ क्षेत्र ऊपरमाल का पठार कहलाता है ।
- उदयपुर में जरगा व रागा पहाड़ियों के मध्य सदा हरा रहने वाला क्षेत्र देशहरो कहलाता है ।
- चितौड़गढ़ का पठारी भाग मेसा का पठार कहलाता है
- उदयपुर का चारों और पहाड़ियों से घीरा क्षेत्र गिरवा कहलाता है । यह क्षेत्र तश्तरीनुमा है।
पूर्वी मैदानी भाग
- राजस्थान के कुल क्षेत्रफल के 23% (23.3%) भाग पर जहां 39% जनसंख्या निवास करती है।
- इस क्षेत्र का जनसंख्या धनत्व सर्वाधिक है ।
- उत्तर-पश्चिम मरुस्थलीय प्रदेश 61% भाग पर जहां 40% जनसंख्या निवास करती है।
- अरावली पर्वतीय प्रदेश 9% भाग पर जहां 10% जनसंख्या निवास करती है ।
- पूर्वी मैदानी भाग अरावली पर्वतमाला के पूर्व में स्थित है।
- पूर्वी मैदानी भाग में मुख्यतः 10 जिले आते है ।
(जयपुर, भरतपुर, दोसा, धौलपुर, सवाई माधोपुर, करौली, टोंक, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़) - वर्षा 50 से 80 सेंटीमीटर
- जलवायु – आर्द्र जलवायु
- मिट्टी – जलोढ़, दोमट मिट्टी
- पूर्वी मैदानी भाग का ढ़ाल पूर्व की ओर है, तभी तो नदियाँ पश्चिम से पूर्व की ओर बहकर बंगाल की खाड़ी में अपना जल गिराती हैं।
पूर्वी मैदानी भाग को तीन उप विभागों में विभाजित कर सकते हैं।
1. बनास बेसिन
2. चम्बल बेसिन
3. माही बेसिन
1. बनास बेसिन
- पीडमांट – देवगढ़ से राजसमंद के मध्य स्थित अवशिष्ट पहाड़ियों से युक्त मैदान पीडमांट कहलाता है।
- मालपुरा का मैदान – बनास नदी से निर्मित मालपुरा (टोंक) से करौली के मध्य स्थित उपजाऊ मैदान मालपुरा का मैदान कहलाता है।
- चित्तौडगढ़, उदयपुर, राजसमंद, भीलवाड़ा का क्षेत्र, मेवाड़ का मैदान कहलाता है। जो मक्का उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है ।
- खेराड़ – जहाजपुर (भीलवाड़ा) से टोंक के मध्य स्थित उबड़-खाबड़ भूमि खेराड़ कहलाती है।
- बनास नदी का उद्गम राजसमंद में कुंभलगढ़ के निकट खमनोर की पहाड़ियों से ।
- सवाई माधोपुर में रामेश्वर धाम में चम्बल में बनास नदी मिल जाती है।
2. चम्बल बेसिन –
- चम्बल नदी बीहड़ या उत्खान भूमि का निर्माण करती हैं।
- नदियां के बहाव से बड़ी मात्रा में भूमि के कटाव को बीहड़ कहा जाता है ।
- राजस्थान में सर्वाधिक बीहड़ भूमि का निर्माण चम्बल नदी करती हैबीहड़ का पठारी भाग डांग कहलाता है।
- चम्बल नदी जानापाव की पहाड़ी मऊ, मध्य प्रदेश से यमुना में मिलने तक बीहड़ भूमि का निर्माण करती है।
चम्बल – चित्तौड़गढ़
( कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर, करोली, धौलपुर)
3. माही बेसिन / छप्पना बेसिन –
- बांसवाड़ा व प्रतापगढ़ के बीच का क्षेत्र छप्पन का मैदान नाम से जाना जाता है।
- छप्पन गांवो का उपजाऊ मैदानी क्षेत्र होने के कारण इसे छप्पन का मैदान कहते है ।
- माही नदी का तटवर्ती भाग प्रतापगढ़ जिले में कांठल कहलाता है । राजस्थान का यह दक्षिणी भाग वागड़ नाम से प्रसिद्ध है
- • दक्षिण पूर्वी पठारी भाग (हाड़ौती का पठार, लावा का पठार)
- दक्षिण पूर्वी पठारी भाग गोंडवाना लैण्ड का अवशेष है।
दक्षिण पूर्वी पठारी भाग
- राजस्थान के कुल क्षेत्रफल के 7% भू-भाग पर, जहां 11% जनसंख्या निवास करती है।
- औसत वार्षिक वर्षा 80 से 120 सेंटीमीटर तक होती हैं।
- राजस्थान में सर्वाधिक वार्षिक वर्षा वाला क्षेत्र यही है ।
- राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान माउंट आबू है।
- राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा वाला जिला झालावाड़ हैं।
- दक्षिण पूर्वी पठारी भाग में मुख्यतः 4 जिले – कोटा, बूंदी, झालावाड़, बारां तथा बासवाड़ा, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा का कुछ भाग
- जलवायु – अतिआर्द्र
- मिट्टी – काली उपजाऊ मिट्टी. जिसका निर्माण ज्वालामुखी चट्टानों से हुआ है। यहां लाल मिट्टी भी पाई जाती है ।
- फसलें – कपास, गन्ना, तम्बाकू, अफीम चावल व संतरा
- दक्षिण पूर्वी पठारी भाग का ढ़ाल दक्षिण से उत्तर की ओर है। इसी कारण चम्बल नदी व इसकी सहायक नदियां दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है
दक्षिण पूर्वी पठारी भाग को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है
1. विंध्यन कगार भूमि
2. दक्कन का लावा पठार
- विंध्यन कगार भूमि विंध्याचल पर्वतमाला का भाग हैं जो चुना पत्थरों, बलुआ पत्थरों से निर्मित है।
- दक्कन के लावा पठार में बलुआ पत्थरों के साथ-साथ स्लेटी पत्थर भी पाए जाते है। कोटा, बूंदी का पठारी भाग इसी क्षेत्र में आता है। बूंदी व मुकुंदवाड़ा की पहाड़िया भी इसी क्षेत्र में है ।
- बूंदी की पहाड़ियां – इन पहाड़ियों का आकार चन्द्राकार है ।
- कुंडला की पहाड़ियां – कोटा शहर के चारों ओर स्थित कुंडलनूमा पहाड़ियां कुंडला की पहाड़ियां कहलाती है ।
- हाड़ौती पठार में ही मुकुंदरा की पहाड़ियां हैं ।
- यहां दक्षिण पूर्वी पठारी भाग की सबसे ऊंची चोटी चांदबाड़ी है। जिसकी ऊंचाई 517 मीटर है
- रामगढ़ की पहाड़ियां इन पहाड़ियों का आकार धोड़े की नाल जैसा है।