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राजस्थान के प्रमुख लोक देवियां | Lok Devi GK Notes | Trick | PDF

आज इस पोस्ट में राजस्थान की लोक देवियां ( rajasthan ki lok deviyan) के बारे में विस्तार से जानेंगे। यहां पर राजस्थान की लोक देवियां pdf, ट्रिक तथा राजस्थान की सर्वाधिक प्रसिद्ध लोक देवियों के बारे में पढ़ेंगे। यह राजस्थान जीके का अति महत्वपूर्ण topic है। यदि आप भी किसी government exams की तैयारी कर रहे है, तो हमारी वेबसाइट पर आप बिल्कल free में नोट्स पढ़ सकते हो। राजस्थान में सरकार द्वारा आयोजित सभी प्रकार के एग्जाम में यहां से प्रश्न पूछे जाते है। यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगी। यहां पर आपको राजस्थान के सभी टॉपिक्स के नोट्स उपलब्ध करवाए जा रहे। इन टॉपिक को पढ़कर आप अपनी तैयारी को और बेहतर बना सकते है। और government की सभी महत्वपूर्ण परीक्षाओं में सफलता प्राप्त कर सकते है। 

कुलदेवी –
‣ वह देवी जिसका जन्म अपने वंश में हुआ हो या जिस देवी को प्रारम्भ से मानते आ रहे हो वह कुल देवी होती है तथा समाज, जाती, वंश, परिवार एक ही होता है।

आराध्य देवी/ इष्ट देवी –
‣ वह देवी जिसकी हम अराधना करते है या जिस देवी को किसी चमत्कार के कारण मानना प्रारम्भ कर देते है वह इष्ट देवी होती है।
‣ यह किसी जाती , समाज, परिवार, वंश की अनेक हो सकते है।

जीण माता –
‣ जन्म – इनका जन्म चुरू के घांघू गांव में हुआ था।
‣ मन्दिर – रेवासा ग्राम ( सीकर ) में स्थित है।
‣ पिता – धन्धराज जी
‣ जीण माता अजमेर के चौहान की कुल देवी मानी जाती है।
‣ बचपन का नाम – जीवनबाई
‣ जीण माता के अन्य मन्दिर – मारोठ ( नागौर ) – इसका निर्माण महेशदान सिंह ने करवाया था।
‣ मेला – जीण माता का मेला प्रतिवर्ष चैत्र व आश्विन माह के नवरात्रों में भरता है।
‣ चिरंजा जीण माता का गीत है, यह गीत गीतों में सबसे लम्बा गीत है। इस गीत में करुण रस है।
जीण माता का गीत कनफटे नाथ के द्वारा गया जाता है।
‣ इनके भाई का नाम हर्ष था।
‣ जीण माता के मन्दिर का निर्माण पृथ्वी राज चौहान प्रथम के समय मोहिल/हटड ने विक्रम संवत 1121 ई. में करवाया था।
‣ इनके मन्दिर को मधुमक्खियों ने औरंगजेब के आक्रमण से बचाया था। अतः इन्हे मधुमक्खियों की देवी भी कहा जाता है।
‣ इनके मन्दिर में ढाई प्याले शराब चढ़ाई जाती है।
‣ औरंगजेब ने इस मन्दिर में सोने का छत्तर चढ़ाया था।
‣ इनके मन्दिर दो दीपक हमेशा जलते रहते है, इसमें से एक दीपक घी का तथा एक दीपक तेल का जलता रहता है।

शीतला माता –
‣ इनका मन्दिर शील की डूंगरी चाकसू , जयपुर में स्थित है।
‣ इनके मंदिर का निर्माण जयपुर के महराजा माधोसिंह ने करवाया था।
‣ होली के 8 दिन बाद चैत्र कृष्ण सप्तमी – अष्टमी को बास्योडा मनाया जाता है। इस दिन ठंडा भोजन किया जाता है।
‣ शीतला माता के वाहन गधा होता है।
‣ इनके मंदिर का पुजारी कुम्हार होता है।
‣ शीतला माता को बच्चों की संरक्षिका, सैढ़ल माता, संतान प्रदान करने वाली देवी कहा जाता है।
‣ यह एकमात्र ऐसी देवी है जिसकी खण्डित मूर्ति की पूजा की जाती है।
‣ शीतला माता के मन्दिर में गधों का मेला भरता है।
‣ इनकी पूजा खेजड़ी वृक्ष के नीचे होती है।

नारायणी माता –
‣ इनका मन्दिर बरवा डूंगरी की पहाड़ी राजगढ़ ( अलवर ) में स्थित है।
‣ इनके मन्दिर का निर्माण 11वीं सदी में हुआ था।
‣ इनका मूल नाम करामेती बाई था।
‣ जन्म – 949 ई. में हुआ।
‣ पिता – विजयराम
‣ माता – रामवती
‣ पति – करामंसी
‣ इनके पति की सांप के डसने से मृत्यु हो गई थी।
‣ मेला – वैशाख शुक्ल एकादशी को लगता है।
‣ यह नईयो की कुल देवी है।
‣ यह मीणा समाज की आराध्य देवी मानी जाती है।

ज्वाला माता –
‣ इनका मन्दिर जोबनेर, जयपुर में स्थित है।
‣ इनको मधुमक्खियों की देवी भी कहा जाता है।
‣ इनका मेला चैत्र व आश्विन के नवरात्रों में भरता है।
‣ यह खंगारोतो की कुल देवी है।

छींक माता –
‣ मन्दिर – गोपालजी का रास्ता जयपुर में स्थित है।
‣ मेला – माघ शुक्ल सप्तमी को भरता है।

छींछ माता –
‣ इनका मन्दिर बांसवाड़ा में स्थित है।

करणी माता –
‣ जन्म – जोधपुर के सुआप गांव में चारण जाती के मेहा जी के घर में हुआ था।
‣ इनके बचपन का नाम रिध्दीबाई था।
‣ मन्दिर – देशानोक ( बीकानेर ) में स्थित है।
‣ यह बीकानेर के राठौड़ो की कुल देवी है।
‣ इनके मन्दिर में चूहों की संख्या अधिक होने के कारण इन्हें चूहों की देवी भी कहा जाता है।
‣ करणी माता के पुजारी को बारीदारजी कहा जाता है।
‣ करणी माता जी के चूहों को काबा कहा जाता है।
‣ चरण जाती के लोग इन चूहों को अपना पूर्वज मानते है।
‣ चील पक्षी करणी माता का प्रतीक चिह्न है।
‣ स्थानीय भाषा में इसे संवली कहा जाता है।
‣ करणी माता जी के मन्दिर मठ कहलाते है।
‣ करणी माता जी की आराध्य देवी तेमड़ा जी थी।
‣ इनके मन्दिर के पास तेमड़ा राय देवी का मन्दिर भी बना हुआ है।
‣ चारण समाज के लोग इनके पुजारी होते है।
‣ मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव करणी माता ने रखी थी।
‣ राव बीका ने करणी माता के आर्शीवाद से ही जांगल प्रदेश जीता था।
‣ करणी माता के मन्दिर का निर्माण बीका ने प्रारम्भ किया तथा कुछ निर्माण करणसिंह ने व इसको पूर्ण सूरत सिंह के द्वारा करवाया गया था ।
‣ इनके आधुनिक मन्दिर का निर्माण महाराजा गंगासिंह के द्वारा करवाया गया।
‣ इनके मेला चैत्र व आश्विन के नवरात्रों में लगता है।
‣ करणी माता के मन्दिर का मुख्य द्वार चांदी का बना है। जिसका निर्माण बख्तावर सिंह के द्वारा करवाया गया।
‣ करणी माता की आरती को चिरजा कहा जाता है यह दो प्रकार की होती है।
‣ संघाऊ – इसको शांति के समय गाया जाता है।
‣ घड़ाऊ – इसको विपत्ति के समय गाया जाता है।
‣ करणी माता सर्वप्रथम नेहड़ नामक स्थान पर आई थी।

जमवाय माता / अन्नपूर्णा माता –
‣ इनका मन्दिर रामगढ़, जयपुर में स्थित है।
‣ इस मन्दिर का निर्माण 8. जमवाय माता / अन्नपूर्णा माता –
‣ इनका मन्दिर रामगढ़, जयपुर में स्थित है।
‣ इस मन्दिर का निर्माण तेजकरण ने करवाया था।
‣ जमवाय माता के अन्य मन्दिर –
‣ मदनी मढ़ा मन्दिर – सीकर
‣ भौड़की मन्दिर – झुंझुनूं

कैला देवी – करौली
‣ यह करौली के यादव राजवंश की कुल देवी है।
‣ इन के मूल मन्दिर का निर्माण केदारागिरी ने करवाया था।
‣ कैली देवी का मन्दिर कालीसिल नदी के किनारे त्रिकुट पर्वत(करौली) पर बना हुआ है, जिसका निर्माण गोपाल ने करवाया था।
‣ मीणा व गुर्जरों की आराध्य देवी है।
‣ नवरात्रा में इनका विशाल लक्खी मेला भरता है।
‣ देवी के मन्दिर के सामने बोहरा की छतरी बनी है।
‣ इस मेले में भील व मीणा के द्वारा लांगुरिया गीत व नृत्य किया जाता है।
‣ कैला देवी ने नरकासुर राक्षस का वध किया था।

राणी सती –
‣ राणी सती का मन्दिर झुंझुनूं में स्थित है।
‣ पति – तंदनदास
‣ इनका मूल नाम नारायणी देवी है।
‣ इनको दादी सती के नाम से भी जानते है।
‣ इनका मेला भाद्रपद अमावस्या को भरता है।
‣ ये अग्रवालों की कुल देवी है।
note – इनके मंदिर को 1987 में रूपकंवर सती काण्ड होने कारण इनके मेल को कुछ दिन के लिए सरकार के द्वारा बंद कर दिया गया था।

तनोट माता –
‣ तनोट माता का मन्दिर तनोट, जैसलमेर में स्थित है।
‣ इनके मन्दिर का निर्माण तनुराव भाटी ने करवाया था।
‣ इनके मन्दिर में B.S.F के के जवानों के द्वारा पूजा की जाती है।
‣ इस माता के मन्दिर में मनसा मांगकर पेड़ पर रुमाल बंधी जाती है।
‣ इनको थार की देवी, सेना की देवी, वष्णों देवी, रुमाल वाली देवी आदि नाम से जाना जाता है।
‣ 1965 के भारत – पाक के युद्ध के समय पाकिस्तानियों के द्वारा गिराए गए बम इन माता के चमत्कार के नहीं फटे थे। तथा भारत की पाक पर विजय के उपलक्ष्य में मन्दिर के सामने विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया गया।

चामुण्डा माता –
‣ चामुण्डा मात्रा का मन्दिर मेहरानगढ़ दुर्ग (जोधपुर) में स्थित है।
‣ यह गुर्जर प्रतिहारों की कुल देवी है। तथा राठौरो की आराध्य देवी है।
‣ 2008 में नवरात्रों के समय भगदड़ में गए लोगो की जांच के लिए जसराज चोपड़ा समिति बनाई गई।

इनके अन्य मन्दिर –
‣ मंडौर , जोधपुर – इस मंदिर का निर्माण राव चुंडा ने करवाया था।
‣ चामुंडा गांव, जोधपुर – इस मंदिर सथित मूर्ति स्वतः ही प्रकट हुई थी। यह गुर्जर प्रतिहारो की शाखा इंदावंश की कुल देवी है।

आई माता –
‣ आई माता का मन्दिर बिलाड़ा ( जोधपुर ) में स्थित है।
‣ इनके मन्दिर दरगाह/थान कहा जाता है।
‣ यह सीरवी समाज की कुल देवी है।
‣ इनके दीपक से केसर टपकती रहती है।

नकटी माता –
‣ इनका मन्दिर भवानीपुरा ( जयपुर ) में स्थित है।

कुशाल माता –
‣ इनका मन्दिर बदनौर ( भीलवाड़ा ) में स्थित है।
‣ इस मन्दिर का निर्माण राणा कुम्भा ने करवाया था।
‣ इनका मेला भाद्रपद कृष्ण एकादशी से अमावस्या तक लगता है।
‣ इनको चामुंडा का अवतार माना जाता है।

ब्रह्माणी माता –
‣ इनका मन्दिर सौरसेन ( बारां ) में स्थित है।
‣ ये एकमात्र ऐसी देवी है जिसकी पीठ की पूजा व शृंगार किया जाता है।
‣ ये कुम्हारों की कुल देवी है।
‣ इनका मेला माघ शुक्ल सप्तमी को भरता है।
‣ इनके मन्दिर में स्थित मूर्ति को चट्टान को काटकर बनया गया है जिस कारण से इनको शैलाश्रय गुफा का मन्दिर कहा जाता है।

चौथ माता –
‣ इनका मन्दिर बरवाडा ( सवाई माधोपुर ) में स्थित है।
‣ यह माता कंजर समाज की कुल देवी है।

कालिका माता –
‣ इनका मन्दिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित है।
‣ यह गुहिल वंश की आराध्य देवी है।
‣ यह गौड़ क्षत्रिय की कुल देवी है।
‣ इनका एक ओर मन्दिर सिरोही में स्थित है। इसका निर्माण महाराव लाखा देवड़ा ने गुजरात से मूर्ति लाकर करवाया था।

अम्बिका माता –
‣ इनका मन्दिर जगत ( उदयपुर ) में स्थित है।
‣ इनका मन्दिर जगत में स्थित होने कारण इनको जगत अम्बिका माता भी कहा जाता है।
‣ इस मन्दिर का निर्माण 10वी सदी में अल्लट के द्वारा महामारू शैली में करवाया था।

सुण्डामात / सुंधा माता –
‣ इनका मन्दिर सुंधा पर्वत जालौर में स्थित है।
‣ इनको चामुण्डा माता भी कहा जाता है।
‣ यह माता ब्राह्मण, देवल राजपूत व कांपिजल वैश्य की कुल देवी है।
‣ यहां पर राज्य का प्रथम रोपवे स्थापित किया गया है, यह 20 दिसम्बर 2006 को स्थापित किया गया।
‣ यह एकामत्र ऐसी देवी है जिसकी धड़रहित पूजा होती है।

घेवर माता –
‣ इनका मन्दिर राजसमंद झील के किनारे पर स्थित है।
‣ यह एकमात्र इसी देवी जो बिना पति के सती हुई ।

नागणेची माता –
‣ इनको चक्रेश्वरी माता भी कहा जाता है।
‣ इनका मन्दिर नागाणा ( बाड़मेर ) में स्थित है।
‣ इसका निर्माण राव सीहा के वंशज धुहड़ा ने कर्नाटक से 18 भुजाओं की काष्ठ की मूर्ति लाकर करवाया गया था।
‣ यह राठौड़ो की कुल देवी है।
‣ मेवाड़ के शासक भी इनकी पूजा करते है।
‣ राव बिका द्वारा बीकानेर में में भी मन्दिर का निर्माण करवाया था।
‣ इनकी पूजा करते समय सात गांठों का लकड़ी का डोरा बांधा जाता है, जिसको देवी जी का कड़ा कहा जाता है।

सांचिया माता –
‣ इनका मन्दिर ओसियां ( जोधपुर ) में स्थित है।
‣ यह ओसवालों तथा परमारो की कुल देवी है।
‣ सांचिया माता के मन्दिर का निर्माण उपलदेव परमार के द्वारा करवाया गया था।
‣ संचिया माता ने उपलदेव परमार के स्वपन में आकार मन्दिर बनाने के लिए कहा था।
‣ इनके मन्दिर के प्रवेश द्वार पर शैलपुत्री का चित्र है।

तेमडा माता –
‣ इनका मन्दिर बीकानेर व जैसलमेर में स्थित है।
‣ यह भाटियो की कुल देवी है।
‣ यह करणी माता के इष्ट देवी थे।
‣ करणी माता तेमड़ माता की पूजा करती थी।
‣ तेमड़ माता को द्वितीय हिंगलाज कहते है।

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