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मेवाड़ का इतिहास PDF | मेवाड़ का इतिहास Notes

मेवाड़ के प्राचीन नाम : – मेदपाट, प्राग्वाट, शिवी जनपद

गुहिल वंश

✦ गुहिल वशं की स्थापना गुहिल ने 566 ई. में की थी ।

✦ गुहिल वशं की २५ शाखाएं थी इनमें मेवाड़ के गुहिल सबसे प्रमुख थे।

✦ गुहिल शासक सूर्यवंशी हिन्दु थे।

1. बापा रावल –

✦ वास्तविक नाम – कालभौज

✦ यह हारित तऋषि का शिष्य था ।

✦ 734 ई. में मान मौर्य को हराकर चित्तौड़ पर अधिकार, कर लेता है।

✦ राजधानी – नागदा (उदयपुर)

✦ नागदा में एकलिंग मन्दिर का निर्माण करवाया।

✦ मेवाड़ के शासक स्वयं को एकलिंग जी का दीवान मानते थे।

✦ बापा रावल मुस्लिम सेना को हराते हुए गजनी तक चला गया था । तथा वहां के राजा सलीम को एता दिया तथा अपने भोजे को राजा बनाया।

✦ रावलपिंडी (Pak) शहर का नाम बापा रावल के कारण पड़ा।

✦ सी: वी. वैहा ने बापा रावल की तुलना- फ्रांस का कमांडर चार्ल्स मादल से की है।

✦ मेवाड़ में सोने के सिक्के प्रारम्भ किये । (115, ग्रेन का सिक्का)

✦ उपाधियां – हिन्दू सूरज राजगुरु

✦ चक्कवै (चारों दिशाओं को जीतने वाला)

2. अल्लट

✦ अन्य नाम – आलु रावल

✦ आहड़ को दूसरी राजधानी बनाया। आहड़ में वराह मन्दिर का निर्माण करवाया । (विष्णु जी का)

✦ मेवाड़ में नौकरशाही की स्थापना की। अन्लंट नै हुन राजकुमारी हरिया देवी से शादी की।

3. जैन सिंह (1213-50)

✦ भूताला का युद्ध :- जैत सिंह VIS इल्तुतमिश जैतसिहं जीत गया ।

✦ इल्तुतमिश की भागती हुई सेना ने नागदा को लूट लिया था । जैत्त सिहं ने चित्तौड़ को नई राजधानी बनाया ।

✦ जयसिहं सूरी की पुस्तक ‘हम्मीर मदुमर्दन’ भूताला युद्ध की जानकारी देती है।

✦ जैत्र सिंह का शासन काल मध्यकालीन मेवाड़ का स्वर्गकाल था ।

4 रतनसिंह (1302-03)

✦ इसका छोटा भाई कुम्भकरण नेपाल चला गया तथा वहाँ गुहिल बशे की राणा शाखा का शासन स्थापित किया ।:

अलाउद्दीन खिलजी का चिलौड़ पर आक्रमण (1303) : –

कारण:-
1. अलाउद्दीन खिलजी की साम्राज्यवादी नीति.

2. चितौड़ का व्यापारिक तथा सामरिक महत्व

3. सुल्तान के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न ( समरसिंह )

4. मेवाड़ का बढ़ता हुआ प्रभांव

5. पदमिनी की सुन्दरता

✦ सिंहल द्वीप की राजकुमारी थी।

✦ पिता – गन्धर्व सेन

✦ माता – चम्पावती

✦ राधव चेतन नामक ब्राह्मण ने अलाउद्दीन खिलजी को पद्मिनी के बारे में बताया। पदमनी ने 1600 स्त्रियों के साथ जौहर कर आत्मोत्सर्ग किया 1303 में चित्तौड़ का पहला शाका हुआ।

✦ काका = जौहर + केसरिया (पहले जौहर होता था)

✦ अलाउद्दीन खिलजी ने चितौड़ पर अधिकार कर लिया तथा नाम बदलकर खिजाबाद कर दिया ।

✦ चितौड़ अपने बेटे खिज्र खाँ को दे दिया।

✦ खिज्र खाँ ने गंभिरी नहीं पर पुल बनवाया था ।

✦ खिज्र खाँ ने यहाँ पर मकबरे का निर्माण करवाया। इस मकबरे के फारमी लेख में अलाउद्दीन खिलजी को । धर्म एवं पविलत्ता का अवतार बताया गया है।

✦ ईश्वर की छाया तथा संसार का रक्षक बताया गया।

✦ थोड़े दिनों बाद चितौड़ मालदेव सोनगरा को दे दिया गया । मालदेव सोनगरा को मुंहाला मालदेव’ कहा जाता था।

✦ गौरा और बादल इस साके में लड़ते हुए मारे गये ।

✦ अलाउद्दीन खिलजी ने चितौड़ में 80000 लोगो का कत्लेआम कखाया।

✦ मलिक मुहम्मद जायसी पुस्तक क पद्‌मावत (अपनी आणा. 1540 में लिखी गई)

✦ जेम्स टौड तथा मुहनौत नैनाती ने भी हम कहानि को स्वीकार किया। सूर्यमल्ल मीसा ने इस कहानी को अस्वीकार किया ।

✦ अमीर खुसरों की पुस्तक ‘खजाइन’ उल’ फुतुह’ (तारीख है अलाई) में चितौड़ आक्रमण का वर्णन किया गया है।

✦ रावल उपाधि का प्रयोग करने वाला अन्तिम राजा

✦ गौरा – बाडल का बलिदान हमें यह सिखाता है कि जब देश पर आपत्ति आये तो प्रत्येक व्यक्ति को अपना सर्वस्व न्योछावर कर देश – रक्षा में लग जाना चाहिए

हम्मीर (1326-64)

✦ मालदेव सोनगरा के बेटे बनवीर सोनगरा को हराकर मेवाड़ का शासक बनां ।

✦ हम्मीर सिसोदा गाँव का था इसलिए यहाँ से गुहिल परों की सिसोदिया शाखा का राज्य प्रारम्भ हुआ ।

✦ सिसौंदा गाँव की स्थापना राहय ने की थी ।

✦ हम्मीर में राणा उपाधि का प्रयोग किया ।

✦ हम्मीर को ‘मेवाड़ का उद्धारक’ कहा जाता है

✦ कुम्भलगढ़ प्रशस्ति में हम्मीर की ‘विषम घाटी पंचानन’ कहा गया है।

✦ रसिक प्रिया में हम्मीर की ‘वीर राजा’ कहा गया है।

✦ हम्मीर ने चिलौड़ में बरखड़ी माता का मन्दिर बनवाया । बरवड़ी

✦ माता मेवाड़ के गुहिल, वश की ईष्ट देवी है। (बाण माता मेवाड़ के गुहिल वशे की कुलदेवी हैं।)

6. लारखा (1382-141)

✦ जावर (उदयपुर) में चांदी की खान प्राप्त हुई ।

✦ एक बन्जारे ने पिछोला झील (उदयपुर) का निर्माण करवाया ।

✦ घुमक्कड़ व्यापारी

✦ पिछोला झील के पाम नहनी का-चबूतरा’ है

✦ कुम्भा हाड़ा नकली बूंदी की रक्षा करते हुए मारा गया ।

✦ मारवाड़ के राजा चेंडा की बेटी हाताबाई की शादी मेवाड़ के रागा लाखा के साथ हुई।

✦ इस समय लाखा के बेटे चुन्डा ने प्रतिज्ञा की कि वह मेवाड़ का अगला राजा नहीं बनेगा। हातोबाई के बेटे को मेवाड़ का अगला राजा बनाया जाएगा।

✦ पंडा को ‘मेवाड़ का भीवम’ कहा जाता है

✦ घूंडा को इस बलिदान के कारण कई विशेषाधिकार दिए गए

1. मेवाड़ के 16 प्रथम श्रेणी ठिकानों में से चार चूडा को दिये गये इनमें सलूम्बर (उदयपुर) भी शामिल था।

2. सलूम्बर का सामन्त मेवाड़ का सेनापति होगा ।

3. सलूम्बर का सामन्त मेवाड़ के राजा का राजतिलक करेंगा ।

4. राणा की अनुपस्थिति में सलूम्बर का सामन्त राजधानी संभालेगा ।

5. मेवाड़ के सभी कागज -प्तौं पर राणा के साथ सलूम्बर का सामंत भी हस्ताक्षर करेगा।

6. मेवाड़ के प्रशासन में सलूम्बर का क्या महत्व था।

7. हरावल :- सेना की सबसे अगली कड़ी चन्दावल ! सेना, की पीछे की टुकड़ी

17. मोकल (1421-33)

✦ हसाबाई का पुत्त था ।

✦ पंडा को संरक्षक बनाया गया।

✦ हंसाबाई के अविश्वास के कारण चूडा मालवा चला गया ।

(होशगेशाह मालवा का शासक )”

✦ हसाबाई का भाई खामल, मोकल का संरक्षक बना। मीकल ने एकलिंग मन्दिर की चारदीवारी का निर्माण करवाया।

✦ समिद्धश्वर मन्दिर (चितौड़) का पुनर्निर्माण करवाया ।

✦ पहले इस मन्दिर का नाम त्रिभुवन नारायण मन्दिर था तथा ओज परमार ने इसका निर्माण करवाया था।

✦ 1433 में जीलवाड़ा (राजममंद) नामक स्थान पर चाचा मेरा। महपा पंवार ने मोकल की हत्या कर दी।

(अहमद‌शाह – गुजरात)

8. कुंभा

✦ रणमल कुम्भा का संरक्षक’ था ।

✦ कुम्भा ने रणमल की सहायता से अपने पिता की हत्या का बदला लिया

✦ मेवाड़ दरबार में रणमल का प्रभाव बढ़ गया तथा उतने सिसोदियों के नेता राघवदेव की हत्या करवा दी।

✦ झंडा का भाई हसाबाई ने मालवा से अंग को वापस बुलाया।

✦ भारमली की सहायता से रणमल को मार दिया गया । रखमल का बेटा जोधा भाग गया तथा बीकानेर के पात काहुनी गाँव में शरण ली

✦ पूंडा ने मण्डौर (मारवाड़ की राजधानी) पर अधिकार कर लिया ।

✦ आंवल – बावल की सन्धि (1453) :- कुम्भा व जोधा

✦ इस सन्धि द्वारा मारवाड़ जोधा को वापत दिया गया सोजत (पाली) को मारवाड़ व मेवाड़ की सीमा बनाया गया

✦ जोधा की बेटी श्रृंगार कंवर की शादी कुम्मा के होटे रायमल के साथ की।

✦ सारंगपुर का युद्ध (1437) : – कुम्भा v/s महमूद्ध खिलजी, (मालवा)

✦ कारण – महमूद्ध खिलजी ने मीकल के हत्यारों को वारण दी थी। – कुम्भा जीत गया तथा जीत की याद, में चितौड़ में विजय स्तम्भ बनवाया।

✦ चाम्पानेर की संधि : – (1456):- कुतुबद्‌द्दीन शाहे + महमूद खिलजी) (गुजरात) (मालवा)

✦ उद्देश्य – कुम्भा को हराना ।

✦ बदनौर का युद्ध (1957) :- कुम्भा ने डीनों को एक साथ हरा दिया। – कुम्भा ने सिरोही के सहामल देवड़ा को हराया ।

नागौर
शम्स खाँ
मुजाहिदु खाँ
कुम्भा में इसे सहायता
कुम्भा ने हरायां

सांस्कृतिक उपलब्धियां

स्थापत्य फ़्ला :-

कुम्भा को राजस्थान की स्थापत्य कला का जनक कहा जाता है।

विजयस्तम्भ :-

अन्य नाम – कीर्ति स्तम्भ

विष्णु ध्वज

गरूड ध्वज

मूर्तियों का अजायबधर भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोष

यह 2 मंजिला इमारत है।

लम्बाई – 122 फीट

चौड़ाई – 30 फीट

वास्तुकार- जैता, पूजा, पोमा, नावा

राजस्थान पुलिस तथा राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का प्रतीक वीर सावरकर के संगठन, ‘अभिनव भारत का प्रतीक चिहुन था। राजस्थान की पहली ईमारत जिम पर डाक टिकट जारी किया गया।

जैम्स टॉड ने विजय स्तम्भ की तुलना कुतुबमीनार से की है।

फंग्र्ग्यूसन ने विजयस्तम्भ की तुलना रोम के तार्जन हांवर से की है।

स्वरूपसिंह ने इसका पुन र्निर्माण करवाया।

विजय स्तम्भ की 8वीं मंजिल पर कोई मूर्ति नहीं हैं। !” 3 मंजिल में 9 बार अरबी भाषा में अल्लाह लिखा हुआ।

कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति के लेखक – अत्ति, महेश

किले:-

कवि राजा श्यामलदास जी की पुस्तक ‘वीर’ विनोद’ के अनुसार कुम्भा ने मेवाड़ के 84 किलों में से 32 किलो का निर्माण करवाया।

(1) कुम्भलगढ (राजसमंद्र)
वास्तुकार मण्डन
इस किलो की मेवाड़ मारवाड़ का सीमा प्रहरी कहा जाता है। इसका सबसे ऊंचा महल ‘कटारगढ़ है जो कुम्भा का निजी आवास था इसे ‘मेवाड़ की आँख कहा जाता है।

कुम्भलगढ़ प्रशस्ति का लेखक – महेश

इस प्रशस्ति में कुम्भा को ‘धर्म एवं पवित्तता का अवतार’ कहा गया है’

( ii ) अचलगढ़ (सिरोही)

( iii ) 1952 में कुम्भा ने इसका पुनर्निर्माण करवाया।

( ⅳ ) मचान दुर्ग मेरी पर नियतंग के लिए । (

( v ) भीमर दुर्ग – भील जनजाति पर नियतंग हेड ।

चिन्तौड़गढ़, अचलगढ व कुम्भलगढ़ में कुम्भ स्वामी (विष्णु जी) के मन्दिर बनवाये ।

चितौड़ में श्रृंगार -चेवरी मन्दिर बनवाया ।

रणकपुर जैन मन्दिरों का निर्माण 1939 में बरणकशाह ने करवाया।

इनमें चौमुखा मन्दिर सबसे प्रमुख है।

वास्तुकार – देपाक

इसमें भगवान आदिनाथ की मूर्ति है।

इसमें 1444 स्तम्भ है इसलिए शो स्तम्भों का अजायबघर कहा, जाता है

जैन कीर्ति स्तम्भ :-

जैन व्यापारी

✦ 12 वीं शताब्दी में जीजा शाह बधेरवाल ने बनवाया। – चितौड़ के किले में मंजिला इमारत है।

✦ इसे आदिनाथ स्मारक भी कहा जाता है। (आदिनाथ को समर्पित)

✦ कुम्भा का साहित्य

✦ कुम्भा एक अच्छा संगीतज्ञ था। वह वीणा बजाता था।

✦ “संगीत गुरु- सारंग व्यास

पुस्तक

1. सुधा प्रबंध

2. कामराज रतिसार – 7 भाग है

3. संगीत सुधा

4. संगीत मीमाता

5.संगीत राज – 5 भाग है- पाठ्य रत्ल कोष

गीत रत्न कीष नृत्य ख्न कोष वाद्य रल कोष जयदेव की गीत गोविन्द पर रसिक प्रिया नाम से टीका लिखी।

कुम्भा ने सारंगदेव की संगीत ख्नाकर पर टीका लिखी कुम्भा चण्डी शतक पर टीका लिखी।

बाणभट्ट कुम्भा मेवाड़ी, कन्नड़ व मराठी भाषाएं जानता था ।.

कुम्भा ने चार नाटकों की स्चना की।

कुम्भा के दरबारी विद्वान :-

1. कांन्ह त्यात पुस्तक एकलिंग महात्म्य

इससे जात होता है कि कुंभा वेद स्मृति मीमांसा, उपनिषद व्याकरण साहित्य एवं राजनीति में बड़ा निपुण था ।

2. मेहा पुस्तक तीर्थमाला

3. मण्डन पुस्तक वास्तुसार

देवमूर्ति प्रकरण राजवल्लभ रुपमण्डन – सुर्तिकला के बारे में कोदण्ड मण्डन – धनुष निर्माण के बारे में

4. नाथा मण्डन का भाई की पुस्तक – वास्तुमंजरी

5. गोविन्द मण्डन का बेटा

पुस्तक – द्वार दीपिका उद्वार धोरिगी कैला निधि – मंदिर के शिखर निर्माण की जानकारी सार समुच्चय – आयुर्वेद के बारे में जानकारी

6. रमा बाई – कुम्भा की बेटी अपने पिता की तरह संगीत में रूचि रखती थी । उपाधि – वागीश्वरी – इसे जावर अस दिया गया ।

तिला भट्ट

हीरानन्द मुनि – कुम्भा के गुरू, कविराजा की उपाधि कुम्मां ने दीं ।

सोमदेव

सीम सुन्दर

जैन मुनि

1. जयशेश्वर

12. भुवन कीर्ति

• कुम्भा ने जैनों का तीर्थयात्ला कर हटा दिया था।

उपाधियां :

– 1. हिन्दू सुरताण – मुस्लिम सेना को हराने के कारण

२. अभिनव भरताचार्य – संगीत के कारण

3. राणा रासौ साहित्य के कारण

4. हाल गुरु पहाड़ी किले जीतने वाला

चाप गुरु धनुष कला के कारण

6. परम भागवत विष्णु गुत्त

7. आदि बराह – गुर्जर प्रतिहार

– कुम्भा की हत्या उसके बेटे ऊदा ने कुमलगद के किले में कर दी थी।

9. रायमल (1473-11509)

एकलिगं मन्दिर का वर्तमान स्वरूप बनवाया।

रानी श्रृंगार कंवर ने घोसुण्डी में बावड़ी का निर्माण करवाया। → संस्कृत भाषा, कृषी बिपि, डी आर. भाडारकर ने पढ़ा धोसुण्डी अभिलेख :.. १वीं शताब्दी ईसा पूर्व का ओभलेख

-राजस्थान में बैष्णव धर्म की ब्रा जानकारी देने वाला सबसे प्राचीन अभिलेख भागवत धर्म • सस्कृत भाषा

पृथ्वीराज

– रायमल का सबसे बड़ा बेटा’

– इसे उडना राजकुमार कहा जाता है।

• अपनी रानी तारा के नाम पर अजमेर किले का नाम बदलकर तारागढ़ कर दिया ।

– कुम्भलगढ़ के किले में पृथ्वीराज की 18 खम्भों की छतरी है।.

जयमल

यह सोलंकियों के खिलाफ लड़ता हुआ मारा गया ।

(संग्राम सिंह) 10. राणा सांगा (1509-28)

रायमल का पुप्त था।

•अपने भाईयों के साथ विवाद होने पर श्रीनगर (अजमेर) कर्मचन्द्र पंवार के पास बएन ली थी।

रायमल की मृत्यु के बाद सांगा मेवाड़ का शासक बना ।

इब्राहिम लोदी (दिल्ली):

खांतोली (कोटा) का युद्ध – 15177

बाड़ी (धौलपुर) का ) का युद्ध -1518- सागा की जी

महमूद्ध खिलजी (मालवा). → गागरौन का युद्ध – 1519

(झालावाड़)

* गागरौन का किला उस समय – वन्देरी के मंदिनीराय के पात था ।

इंडर रियामत (गुजरात)

भारमल

रायमल

मुजफ्फर शाह (गुजरात)

सागा (मेवाड़)

बधाना का युद्ध (16 feb. 1527):- बाबर v/s सांगा

– सांगा जीत गया

इस समय किले फ बाबर का “का रक्षक मेहदीं ख्वाजा था । बाबर ने मोहम्मद सुल्तान मिर्जा के नेतृत्व में

सेना भेजी। खानवा का युद्ध (17 March 15-27): C वीर विनोद के अनुसार 16 March )

श्यामलकाम

– बांबर में जिहाद की घोषणा की। (धर्मबुद्ध) बाबर ने शराब न पीने की कसम खाई। बाबर ने मुस्लिम व्यापारियों से तमगा कर हटा दिया ।

– सांगा ने राजस्थान के सभी राजाओं को पत्र लिखकर युद्ध में सहायता के लिए बुलाया। (पाती पंखन)

आमेर – पृथ्वीराज

राजा मारवाड़ – मालदेव (गागा का बेटा)

बीकानेर – कल्याणमल (राजा – जैतसी)

मेड़ता – वीरमदेव

चन्देरी – मेदिनीराय

सनुम्बर – रतनसिंह चुण्डावत

वागड़ उदयसिंह

डेवलिया- वाधसिंह

जिनोद प्रतापगढ़ र सादुड़ी झाला अज्जा

मेवात – हसन खाँ मेवाती

ईडर – भारमल

इब्राहिम लोदी का छोटा भाई महमूद लोदी

– सागा युद्ध में घायल हो गया सादड़ी के युद्ध का नेतृत्व किया । झाला अज्जा ने बाबर युद्ध जीत गया तथा उसने गाजी की उपाधि धारण की।

बसवा (दौसा) – यहाँ पर सांगा का इलाज किया गया. ।.

इरिच (m.p.)- यहाँ पर सागा को जहर दे दिया गया ।

कालपी (me) – यहाँ पर सांगा की मृत्यु हो गई ।

माण्डलगढ (भीलवाड़ा)- यहाँ पर सांगा की छतरी है।

खानवा युद्ध के कारण

1. बाबर ने सांगा पर पचना भर्ग का आरोप लगाया ।

१. महत्वाकांक्षाओं का टकराव ।

3. राजपूत – अफगान मैती । ८ हासन खाँ मेवाती महमूद लोदी)

4. सागा ने सल्तनत के होतों पर अधिकार कर लिया । सागा की हार के कारण

1. सागा की सेना में एकता नहीं थी। सागा की सेना अलग – २ सेनापतियोंः

३. के नेतृत्व में लड़ रही थी।

2. बाबर का तोपरवाना ।

3. बाबर की लुलगुमा युद्ध पद्धति ।

4. सांगा ने बाबर को बयाना के बाद युद्ध की तैयारी का समय दे दिया ।

5. सागा स्वयं युद्ध के मैदान में उतर गया ।

6. कुगल सेना घोड़ों का प्रयोग करती थीं जबकी राजपूत हाथियों का प्रयोग करते थे।

मुगल सेना के पास राजपूतों की तुलना में हल्के हथियार थे।

8.. सगा के साथ उसके साथियों ने विश्वात धात किया था तथा बाबर से मिल गये थे। जैसे रायसीन (mip) का सलहदी तवर तथा नागौर के खानजाद मुसलमान ।

खानवा युद्ध का महत्व / परिणाम :

३. अफगानों तथा राजपूतों को हराने के बाद बाबर का भारत पर राज करना आसान हो गया ।

२. यह अन्तिम युद्ध था जिसमें राजस्थान के राजाओं में एकता देखी गई।

3. सेगा अन्तिम राजपूत राजा था जिसने दिल्ली को चुनौती देने का प्रयास किया।

• सांगा के बाद बड़े हिन्दु राजा नहीं रहे जिससे हिन्दु संस्कृति को नुकसान हुआ।

5. राजपूतों की सामरिक उमजोरियां उजागर हो, गई थी

७. इस युद्ध के बाद मुगलों की राजपूतो के प्रति अविष्य की नीति निर्धारित हो गई थी। तथा अकबर ने गुरु के स्थान पर मित्रता की नीति अपनाई।

उपाधियां :- हिन्दू पत

सैनिकों का भग्नावशेष (४० धाव)

बाबरनामा के अनुसार सांगा के अधीन 104 सरदार थे। राजा । १ राव और

महमूद खिली-11 को पकड़ने के कारण सांगा ने हरिदास चारण को 12 गाँव दिये।

सांगा के बड़े बेटे भलराज की बाीि मीराबाई के साथ हुई थी।

सागों के बाद रतनसिहं मेवाड़ का राजा बना। उसकी मृत्यु के बाद विक्रमादित्य की शासक बनाया गया ।

11विक्रमादित्य (1531-36)

– इसकी मातां कर्मावती इसकी संरक्षिका बनी।

1533 में गुजरात के बहादुरशाह ने मेवाड़ पर आक्रमण किया, रानी कर्मावती ने रणथम्भौर किला दिया तथा संधि कर ली।

1534-35 में बहादुरशाह ने पुन: आक्रमण कर दिया ।

फर्मावती में हुमायूँ को राखी भेजकर सहायता मांगी।

इससमय चित्तौड़ का दूसरा खाका हुआ।

रानी कर्मावती ने जौहर किया।

देवलिया के वाद्यासिंह के नेतृत्व में केसरिया किया गया ।

बनवीर को चितौड़ का प्रशासक बनाया गया। बनवीर उड़ना राजकुमार पृथ्वीराज की दासी का बेटा था।

बनवीर में विक्रमादित्य की हत्या कर दी।

पन्नीव्धाय ने अपने होटे-चंदन का 1. का बलिदान देकर उठ्‌योसंह की – को लेकर कुम्भलगद के वह उदयसिंह आशा देवपुरा के बचा लिया पास-चली गई।

12. उदयसिहं (1537-72)

1540 में मावली (उदयपुर) के युद्ध में बनवीर को हराकर शासक बना । 1559 में उदयपुर की स्थापना की। यहाँ पर उदयसागर झील का

निर्माण करवाया ।

1567-68 में अकबर का मेवाड़ पर आक्रमन । उद्यसिंह गिरखा की पहाड़ियों में चला गया।

जयमल व पत्ता ने किले का मोर्चा संभाला।

इस समय चिल्लौड़ का तीसरा साथ हुमा ।. जयमल ने फुल्ला राठौड़ के कंधों पर बैठकर युद्ध किया था।

कल्ला राठौड़ को चार हाथों वाला देवता कहा जाता है।

अकबर की बंदूक का नाम – संग्राम

– अकबर ने चितौड़ पर अधिकार कर लिया तथा 30000 लोगों का कत्ले आम करवायां ।

फूलकबर (फ़्ता की पली) के नेतृत्व में जौहर किया गया ।..

• अकबर जयमल तथा पता की वीरता से प्रभावित हुआ तथा इन दोनों की मूर्तियां आगरा के किले में लगवाई ।

फ्रांसीसी यात्री बर्नियर (ट्रेवल्स उल्लेख किया है। इन दु मुगल एम्पायर) ने. इसका –

बीकानेर के जूनागढ़ किले में भी इन दोनों’ की मूर्तियां है। 1572 में होली के दिन गोगन्दा में मृत्यु हो गई। वहीं पर इसकी छतरी बनी हुई है।

उदयसिंह ने अपने बड़े बेटे प्रताप को राजा नहीं बनाया बल्कि छोटे बेटे जगमाल को राजा बनाया।

13. महाराणा प्रताप (1572-97)

(25 वर्ष)

जन्म 9 मई 1540 (कुम्भलगढ़ के किले में

माता जयवन्ता बाई सोनगरा

रानी – अजब दे पवार

बचपन का नाम – कीका

प्रताप का पहला राजतिलक 28 Feb 1572 को गोगुन्दा में हुआ था (होली) सलूम्बर के कृष्ण दास चूण्डावत ने प्रताप का राजतिलक किया था।

प्रताप ने कुम्भलगढ़ में अपना विधिवत राज तिलक पुखावा ।

• इस समारोह में मारवाड़ का चन्द्रसेन उपस्थित था। अकबर ने प्रताप को समझाने के लिए चार दूत भेजे थे –

1. जलाल खाँ कोरची – 1572

२. मानसिंह 1513 – आमेर का राजा

3. = भगवन्तदास 4. टोडरमल

हल्दीघाटी का युद्ध (18 June 1576):-

अकबर के सेनापति – मानसिंह आसफ खाँ

प्रताप की तरफ से रामशाह तोमर (ग्वालियर)

1

कृष्णदात चुण्डावत हाकिम खाँ सूर

** पूजा भील

– युद्ध में चैतक के घायल होने पर प्रताप युद्ध से बाहर चला गया । झालामान (बीडा) ने युद्ध का नेतृत्व किया।

मिहतर खाँ ने युद्ध में अकबर के आने की गलत सूचना दी थी। मानसिंह, प्रताप को अधीनता स्वीकार नहीं करवा पाता है।

अकबर ने मानसिंह तथा आसफ खाँ का दुरबार में आना बन्द कर दिय चेतक छतरी-बलीचा (राजतमंड)

अबुल फजल बदायूंनी खमनौर का युद्ध → गोगून्दी ठा घुस’ बताया

L इस युद्ध में उपस्थित था

जेम्स टॉड मेवाड़ की धर्मोचोली

आदर्शी लाल श्री बास्तव बादशाह – बाग का युद्ध

1677 में अकबर ने उदयपुर पर आक्रमण किया तथा नाम बदलकर मुहम्मदाबाद कर दिया ।

कुम्भलगढ़ का युद्ध :

मुगल सेनापति शाहबाज खान ने कुम्भलगढ़ पर तीन आक्रमण किये थे (157778.79)

शेरपुर घटना

1580 में अमरसिंह गुगल सेनापति रहीम जी की बेगमों को गिरफ्तार कर लेता है लेकिन प्रताप ने उन्हें ससम्मान वापस भेजा

राजसमंद दिवेर का युद्ध (1582): –

• इस युद्ध में प्रताप की विजय हुई।

अमरसिंह ने मुगल सेनापति सुल्तान खान को मार दिया।

• इस युद्ध में प्रताप के साथ इगरेपुर, बोलवाड़ा तथा इंडर रियामत भी थी।

जेम्स टॉड ने इस युद्ध को मेवाड़ का मैराथन कहा है.

– 1585 में जगन्नाथ कछवाह ने प्रताप पर अन्तिम आक्रमण किया था ।”

• प्रताप ने चावण्ड को अपनी नई राजधानी बनाया ।

उदयपुर

प्रताप ने चितौड़गढ़ व माण्डलगढ़ को छोड़कर बीच मेवाड़ जीत लिया चावण्ड में चामुण्डा माता का मन्दिर तथा महल का निर्माण करवाया ।

मेवाड़ की चित्रकला का प्रारम्भ चावण्ड से हुआ था।

मुख्य चितकार – नासिकछु‌द्दीन

दरबारी विद्वान : –

1. चक्रपाणि मिश्र पुस्तक, राज्याभिषेक

मुहुर्तमाला

विश्व वल्लभ – बगीचों (उद्यान विज्ञान) की जानकारी

2. हेमरल सुरि गौरा – बादल री-चौपाई

3. रामा सांदू

4. माला सांदू

1

भामाशाह तथा ताराचन्द नामक दो भाइयों ने प्रताप की आर्थिक सहायता की। 15 लाख रुपये तथा 12 हजार अशर्फी दिये अश थे।

भामाशाह की प्रताप ने प्रधानमंत्री बनाया। भीलवाड़ा सोने के सिक्के

प्रताप ने सादुलनाथ निवेदी को मंडेर की जागीर दी थी। (1588 के उदयपुर अभिलेख के अनुसार)

19 जनवरी 1597 को चाड में प्रताप की मृत्यु हो गई। बांडोली में प्रताप की 8 खम्भों की छतरी है।

हल्दीघाटी युद्ध का महत्व :-

1. यह युद्ध साम्राज्यवादी शक्ति के खिलाफ प्रादेशिक स्ववत्संता का युद्ध था।

२. प्रताप कम संसाधनों के बावजूद अकबर से लड़ा इससे जनग में आशा व नैतिकता का संचार हुआ ।…

3. प्रताप ने मेवाड़ की साधारण जनता व जनजातियों में राष्ट्रबादी की भावनाओं का संचार किया।

4. हल्दीघाटी आज भी राष्ट्रवाद का प्रेरणा स्त्रोत है।

5राष्ट्रीय आन्दोलन में युद्ध ने प्रेरणा स्त्रोत का कार्य किया ।

हाथी

प्रताप

अकुबर

मराना (मानसिंह)

रामप्रसाद

राजमुक्ता

(पीरप्रसाद)

प्रताप के व्यक्तित्व की मुख्य विशेषताएँ बताइये १.

14. अमरसिंह प्रथम (1597-1620)

मुगल-मेवाड़ सेधि (205 Feb 1615)

– मुगल बादशाह जहाँगीर तथा मेवाड़ के शासक अमरसिंह प्रथम के मध्य हुई।

युवराज कर्णसिंह के दबाव के कारण अमरसिंह ने संधि की थी। शुभकरण व हरिदात संधि का प्रस्ताव लेकर गये थे ।

मुगलों की तरफ से खुर्रम ने संधि की थी ।

1. मेवाड़ का राणा कुगल दरबार में नहीं जाएगा । मेवाड़ का युवराज • मुगल, दुरबार में जाएगा।

2. मेवाड़ मुगलों को 1000 घुड़सरवारों सैनिकों की सहायता देगा।

3. चित्तौड़ का किला मेवाड़ को वापस दिया जाएगा लेकिन मेवाड़ उसका पुनर्निर्माण नहीं करवायेगा।

१. मेवाड़ के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित नहीं किये जाएगें ।

संधि का महत्व :

1. सांगा व प्रताप के समय से चली आ रही स्वतंतता की भावना का पतन हुआ ।

सास्कृतिक

• संधि के कारण शांति व्यवस्था स्थापित हुई तथा कलात्मक गतिविधियों की बढ़ावा मिला 1

– युवराज कर्णसिंह मुगल दरबार में गया था जहाँगीर ने उसे 5000 का मनसबदार बनाया ।

जहाँगीर ने अमरसिंह तथा कर्णसिह की मूर्तियां आगरा के किले में लगवाई।

अमरसिंह इस संधि से निराश था तथा नौ-चोकी नामक स्थान पर जाकर रहने लग गया

इसी स्थान पर राजसमंद झील बनाई गई थी।

15. कर्ण सिंह

– उदयपुर में जग मंदिर महल (पिढीला झील) का निर्माण शुरू करवाया

– खुर्रम विद्रोह के दौरान इन्हीं महलों में रुका थाउदयपुर में कर्मविलास व दिलखुश महल बनवाये

16. जगतसिंह प्रथम

उदयपुर में जगमन्दिर महलों का निर्माण पूरा करवाया । उदयपुर में जगदीश मन्दिर (जगन्नाथ राया) का निर्माण करवाया। इसे सपने में बना मन्दिर कहा जाता है।

• जगन्नाथ राय प्रशस्ति का लेखक – कृष्णभट्ट उदयपुर में नौजू बाई का मन्दिर बनवाया। (मौजू बाई बाय माँ)

जगतसिंह दानवीरता के लिए प्रसिद्ध था।

17. राजसिंह (1652-80)

– चित्तौड़ का पुनर्निर्माण शुरु करवा दिया। इस प्रकार शाहजहाँ के खिलाफ आक्रामक नीति अपनाई।

* उत्तराधिकार संघर्ष में औरंगजेब का समर्थन किया था । इस समय इसने कई मुगल होत जीत लिये थे। (टीका दौड़)

औरगंजेब के जजिया कर का विरोध किया ।

औरंगजेब के खिलाफ हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियों की रक्षा की।

जीधपुर के अजीतसिंह को. औरंगजेब के खिलाफ समर्थन दिया था। इसे ‘राठौड़ – सिसोदिया गठबंधन कहा जाता है। :

औरंगजेब के खिलाफ हिन्दु राजकुमारियों की रक्षा की ।

उदा. रूपनगढ़ (किशनगढ़) की राजकुमारी चाकमती से शादी की थी।

हाड़ी रानी सहल कंवर :-

– सलूम्बर के सामन्त खनसिंह चुण्डावत की रानी थीअपने पति के निशानी मांगने पर सिर काट कर डे दिया।

मेघराज मुकुल की कविता – सैनाणी

राजसिंह की सांस्कृतिक उपलब्धियां:

मंदिर –

1. श्रीनाथ मन्दिर – सिहाड़ (नाबद्वारा )

२. द्वारिकाधीशः मन्दिर – कांकरोली

3. अम्बा माता मन्दिर – उदयपुर

– श्री नाथ जी की मूर्ति 1672 में, गोविन्द द्वाम व डामोडर डास मधुरा से लाये थे।

झाल

1. राजसमन्द झील

१. जाना सागर तालाब

राजनगर + काकरौली

3. निमुखी बावड़ी उध्यपुर

दुरबारी विद्वान :-

1. रणछोड़ भट्ट तैलग राज प्रशस्ति

– अमर काव्य वंशावली

इन दोनों में प्रताप के भाई वाक्तिसिंह का वर्णन है।

– अमर काव्य वंशावली में चेतक का भी वर्णन है।

२. किशोर दास

– राज प्रकास

3. सदाशिव भट्ट राज रत्नाकर

उपाधियां – हाइड्रोलिक रूलर – पेयजल व्यवस्था के कारण

विजयकटकांतु – सेना जीतने के कारख

राज प्रशस्ति : –

25 पत्थरों पर लिखी गई है

संस्कृत का सबसे बड़ा शिलालेख है (भारत का)

अकाल राहत कार्यों की जानकारी देती है।

बापा रावल से लेकर राजसिंह तक के राजाओं के नाम मिलते है मुगल-मेवाड़ संधि की जानकारी मिलती है।

राज- प्रशस्ति

उदयपुर

18. अमरसिंह

देबारी समझौता (1708)

अमरसिंह (मेवाड़)

अजीतसिंह (मार (मारवाड़)

सवाई जयसिंह (अमर)

– यह समझौता सुगल बादशाह बहादुरशाह प्रथम के खिलाफ था।

समझौते की शर्ते :-

– अजीत सिंह को मारवाड़ तथा सवाई जयसिंह को आमेर का राजा बनाने में सहायता की जाएगी ।

अमरसिंह की बेटी चन्द्र कुबेर की शादी सवाई जयसिंह से की जाएगी तथा उसके बेटे को आमेर का अगला राजा बनाया जाएगा

19. संग्रामसिंह –

– उदयपुर में सहेलियो की बाड़ी का निर्माण करवाया।

सीसारमा में वैद्यनाथ मन्दिर का निर्माण करवाया वैद्यनाथ प्रशस्ति का लेखक – रूप भट्ट

20. जगत सिंह –

भीलवाड़ा हुरडा सम्मेलन

– 17 July 1734

– यह मराठी के खिलाफ राजस्थान के राजाओं का सम्मेलन था ।

– वर्षा तहत समाप्त होने के बाद रामपुरा (कोटा) में मराठी

के खिलाफ युद्ध की बात की गई।

-आपसी मतभेदो के कारण सम्मेलन असफल रहा 1 वानवा युद्ध के बाद राजपूतों ने पहली बार किसी दूसरी शक्ति के खिलाफ संगठित होनी की कोशिश की।

भाग लेने वाले –

जगतसिह प्रथम

II

अध्यक्ष

सवाई जयसिंह

आमेर

अभयसिंह

जोधपुर

बख्तसिंह

नागौर

टुलेल सिंह

बूंदी

दुर्जन साल

कोटा

जोरावर सिंह –

बीकानेर:

गोपाल पाल

करौली

राजसिंह

किशनगढ़

उदयपुर में जगतनिवास महल (पिढीला ) का निर्माण करवायां नेकुराम

Book जगतविलास

21. भीमसिंह

आमेर

मेवाड़

मारवाड़

जगतसिंह-

सगाई

भीमसिंह मामार

सगाई भीमसिंह मृत्यु

कृष्णाकुमारी

मानसिंह

गिंगोली / परबतसर का युद्ध (1807) : – जगतसिंह – V/S मानसिंह

– अजीत सिंह चुण्डावत व अमीर खाँ पिंडारी (टोक) के कहने पर कृष्णा कुमारी को जहर दे दिया गया।

• कृष्णाकुमारी विवाद – 50 words

भीमसिंह ने 13 Jam 1818 को अंग्रेजो से संधि कर ली।

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