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राजस्थान की जलवायु | Rajasthan Ki Jalvayu

मौसम किसी स्थान विशेष पर अल्पकालिक अवधि में रहने वाली प्राकृतिक दशाएं मौसम कहलाई जाती हैं० किसी भी क्षेत्र की लंबी मौसमी दशाओं को जलवायु कहा जाता हैजलवायु के अंतर्गत लंबे समय तक वायुमंडल में उपस्थित आद्रता, तापमान व वायुदाब को सम्मिलित किया जाता है।

  • मोसम वायु की अल्पकालिन अवस्था है अर्थात मौसम एक विशेष समय में, एक क्षेत्र की वायुमण्डल की अवस्था को बताता है।
  • मौसम बदलता रहता है जैसे – एक दिन में, एक सप्ताह में, एक महिने में तथा एक वर्ष में ।
  • मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी शब्द मौसिम से हुई, जिसका अर्थ है मौसम
  • वायु की दीर्घकालिन अवस्था को जलवायु कहते हैअर्थात जलवायु का * तात्पर्य लम्बे समय की मौसमी दशाओं के औसत से होता है। इसका निर्धारण तापक्रम, वायुदाब, आर्द्रता, वर्षा आदि से होता है।
  • से किसी न किसी रूप से मनुष्य के क्रियाकलापों को प्रभावित करती है अतः मनुष्य के लिए जलवायु का विशेष महत्व है राजस्थान की जलवायु मानसूनी जलवायु है।
  • राजस्थान की जलवायु को मरुस्थलीय जलवायु कहा जाता है जो मुख्यतः राजस्थान के 12 जिलों में है।
  • जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, गंगानगर, जोधपुर, हनुमानगढ़, चुरु, जालौर, पाली, नागौर, सीकर एवं झुंझुनूं
  • मरुस्थलीय जलवायु राजस्थान के लगभग 60% भाग पर पायी जाती है इसके अलावा जयपुर, टोक, अजमेर, भीलवाड़ा, चितौड़गढ़, करौली सवाईमाधोपुर और अलवर, भरतपुर जिलों में अर्धशुक जलवायु पायी जाती है।
  • बारां, झालावाड़ 4 बांसवाड़ा आदि जिलों में आर्द्र जलवायु पायी जाती है।
  • राजस्थान का अधिकांश भाग कर्क रेखा के उत्तर में उपोष्ण कटिबन्ध में स्थित है केवल इंगरपुर 4 बासवाड़ा जिले का कुछ भाग ही उष्ण कटिबन्ध में स्थित है।
  • राजस्थान मे दक्षिणी पश्चिमी मानसून के कारण अधिक वर्षा नहीं हो पाती है क्योंकि अरावली पर्वत श्रृंखलाएं अरब सागर से उठने वाली दक्षिणी पश्चिमी मानसूनी हवाओं के चलने की दिशाओं के समानान्तर है इसलिए मानसूनी पवनों के मार्ग में बाधक नहीं अथति पश्चिमी क्षेत्र अरावली का दृष्टि छाया प्रदेश होने के कारण बहुत कम वर्षा प्राप्त करता है। बनू पाती है
  • राजस्थान में 90% से भी अधिक वर्षा जून के अन्त से जुलाई, अगस्त 4 सितम्बर तक होती है जो दक्षिणी पश्चिमी मानसूनी हवाओं से होती है।
  • दिसम्बर, जनवरी में जो शीतकालिन वर्षा होती है वो उत्तरी पश्चिमी राजस्थान में भूमध्य सागर से उत्पन्न पश्चिमी विद्योगों से होती है जिसे मावठ कहते हैं।
  • राजस्थान में जलवायु के आधार पर चारों प्रकार की जलवायु शुक, उपआत, आई 4 अति आर्द्र जलवायु पायी जाती है।

राजस्थान की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक

1. राजस्थान की अक्षांशीय स्थिति

किसी भी स्थान की अक्षांशीय स्थिति का जलवायु पर सीधा प्रभाव पड़ता है, राजस्थान 23°3′ उत्तरी अक्षांश से 30°12′ उत्तरी अक्षाशों के मध्य स्थित है अतः राजस्थान का दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध में तथा अधिकांश भाग उपोष्ण कटिबन्ध में शामिल है। कर्क रेखा राजस्थान के बांसवाड़ा जिले से गुजरती हैइस कारण से बांसवाड़ा का दक्षिणी भाग उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में अवस्थित है व शेष राजस्थान का उत्तरी भाग उपोष्ण कटिबंध क्षेत्र में अवस्थित है बांसवाड़ा ऐसा जिला है जहां पर उष्ण व उपोषण दोनों जलवायु पाई जाती है।

राजस्थान का अधिकांश भाग उपोष्ण कटिबन्ध में होने के कारण यहाँ तापान्तर अधिक पाये जाते है।

2. समुद्रतट से दूरी (महाद्वीपीयता)

समुद्र तट से दूर होने के कारण राजस्थान राज्य की जलवायु महाद्वीपीय विषम जलवायु है। समुद्र तटीय क्षेत्रों पर समुद्री निकटता के कारण जलवायु पर सम प्रभाव देखने को मिलते हैं। जिसके कारण ग्रीष्म ऋतु में तापमान उच्च नहीं हो पाता व शीत ऋतु में तापमान बहुत निम्न नहीं हो पाता है। इसके विपरीत राजस्थान राज्य की स्थिति समुद्र तट से दूर है व संपूर्ण क्षेत्र स्थल अवरुद्ध है। जिसके फलस्वरूप राज्य में महाद्वीप प्रकार की जलवायु पाई जाती हैजहां पर शीत ऋतु में तापमान अत्याधिक निम्न व ग्रीष्म ऋतु में तापमान अत्यधिक उच्च पाया जाता हैउदाहरण के लिए पश्चिमी बंगाल व राजस्थान लगभग एक ही अक्षांश पर अवस्थित है। समुद्र तट के निकट होने के कारण पश्चिमी बंगाल में राजस्थान राज्य जैसी तापीय विषमता नहीं पाई जाती है।

राजस्थान की समुद्र तट से दूरी अधिक होने के कारण राजस्थान की जलवायु पर समुद्र की समकारी जलवायु का प्रभाव नहीं पड़ता है अतः तापमान में महाद्वीपीय जलवायु (गर्म शुष्क) की तरह अधिक विषमताएँ पायी जाती है जिसमें नमी कम होती है।

3. धरातल या उच्चावच

धरातल की बनावट का किसी क्षेत्र की जलवायु, पर सीधा प्रभाव पड़ता है, समुद्रतल से ऊंचाई उस स्थान के तापमान आर्द्रता को प्रभावित करती है।

राजस्थान का अधिकांश भाग समुद्रतल से 370 M से भी कम ऊंचा है इसीलिए यहाँ के अधिकांश भाग में उच्च तापमान आर्द्रता की कमी पायी जाती है।

ग्रीष्म ऋतु में उत्तर पश्चिम से आने वाली पपने शुष्क गर्म होती है अत: जब मे इस प्रदेश से गुजरती है तो यहां के वातावरण को गर्म कर आर्द्रता को कम कर देती है फलस्वरूप यहां वर्षा की संभावना और कम हो जाती है।

4. अरावली पर्वत श्रेणी की स्थिति

अरावली पर्वतमाला की स्थिति दक्षिण, पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर है जो कि अरब सागर से आने वाली दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी पवनों के समानान्तर है इस कारण ये मानसूनी पवनें यहाँ बिना वर्षा किये आगे उत्तरी भाग में बढ़ जाती है।

इसी कारण राजस्थान का पश्चिमी भाग प्रायः शुक रहता है जहाँ बहुत कम वर्षा होती है।

हम बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसूनी पवनों की बात करें तो मे पवने सम्पूर्ण गंगा-यमुना के मैदान को पार कर यहाँ पहुंचती है। जो अपनी आद्रता को बहुत कम कर चुकी होती है तथा अरावली पर्वतमाला के बीच में पड़ने के राज्य के पूर्वी भागों में ही वर्षा करती है।

5. समुद्रतल से ऊँचाई

राजस्थान के दक्षिणी एवं दक्षिण पश्चिम भाग की ऊँचाई समुद्रतल से अधिक है। इसी कारण इस भू-भाग में गर्मियों में भी शेष भागों की तुलना में तापमान कम पाया जाता है।

ऊँचाई पर स्थित होने के कारण ही माउण्ट आबू पर गर्मी में भी तापमान अधिक नहीं होता है।

जलवायु के आधार पर राज्य मे मुख्यत: तीन प्रस्तुएं पाई जाती हैं।

(1) ग्रीष्म ऋतु – मार्च से मध्य जून तक
(2) वर्षा ऋतु – मध्य जून से सितम्बर तक
(3) शीत ऋतु- अक्टूबर से फरवरी तक

ग्रीष्म ऋतु

मार्च में सूर्य विषुवत रेखा पर सीधा (लम्बवत्) चमकता है। धीरे-धीरे वह कर्क रेखा की ओर बढ़ता है एवं तभी से राजस्थान में ग्रीष्म ऋतु की शुरूआत हो जाती हैं।

सूर्य के कर्क रेखा की ओर बढ़ने पर राज्य में भी तापमान बढ़ने लगता है तथा वायुदाब भी धीरे-धीरे कम होने लगता है।

जून में सूर्य के कर्क रेखा पर लम्बवत होने के कारण राज्य में तापमान उच्चतम होते है।

इस समय संपूर्ण राजस्थान का औसत तापमान 38° सेल्सियस के लगभग होता है परंतु राज्य के पश्चिमी भागों जैसलमेर, बीकानेर बाड़मेर, चुरु व फलोदी तथा पूर्वी भागों यथा- धौलपुर में उच्चतम तापमान 45 – 49° सेल्सियस तक पहुँच जाते है। इससे यहाँ निम्न वायुदाब का केन्द्र उत्पन्न हो जाता है, परिणामस्वरुप यहाँ धूलभरी आधियां चलती है। सर्वाधिक आंधियां गंगानगर जिले में आती है-

धरातल के अत्यधिक गर्म होने एवं मेघरहित आकाश में सूर्य की सीधी किरणों की गर्मी के कारण पश्चिम से पूर्व की ओर चलने वाली तेज गर्म हवायें (पश्चिमोत्तर हवाएँ), जिन्हें यहाँ लू’ कहते है, चलती है जो यहाँ के तापमान को और शुष्क कर देती है।

हवा गर्म होकर ऊपर उठती है तथा ठण्डी हवा उसका स्थान लेने के लिए उस ओर बहती है जिसके फलस्वरूप, सवाहनिक धाराओं की उत्पत्ति होती है तथा वायु के भंवर बनते है, जिन्हें स्थानीय भाषा में, भभूल्या कहते हैं।

राजस्थान में आंधियों की संख्या उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की और कम होती जाती है । सर्वाधिक आधियाँ श्री गंगानगर (27 दिन ) तथा न्यूनतम आधियां झालावाड़ (3 दिन) है।

सर्वाधिक तापमान वाला जिला – चुरु

न्यूनतम तापमान वाला जिला – चुरु

सर्वाधिक दैनिक तापान्तर वाला जिला – जैसलमेर

सर्वाधिक वार्षिक तापान्तर वाला जिला – चुरु

राज का सर्वाधिक शुष्क स्थान – फलौदी (जोधपुर)

वर्षा ऋतु (मध्य-जून से सितम्बर तक )

राज में लगभग 90 – वर्षा जुलाई से सितम्बर के दौरान होती है। मध्य जून के बाद में मानसूनी हवाओं के आगमन से वर्षा होने लगती है। अप्रैल से जून तक के अत्यधिक तापमान की वजह से वायुदाब कम होने के कारण उत्तर- पश्चिम एवं पश्चिमी भारत में एक निम्न वायुदाब केन्द्र उत्पन्न हो जाता है जबकि हिन्द महासागर एवं बंगाल की खाड़ी में जल की उपस्थिति से कम तापमान के कारण उच्च वायुदाब होता है।

पवनें हमेशा उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर बहती है इसी कारण हिन्द महासागर से हवाएं आर्द्रता लेते हुए तिब्बत के पठार की ओर चलने लगती है।

दक्षिण – पश्चिम दिशा से चलने के कारण इसे दक्षिण पश्चिमी मानसून कहतेहै में हवाएं आद्रता से परिपूर्ण होती है इसलिए इन्हें मानसूनी पवनें कहते है इनकी दो शाखाएं है।
(i) बंगाल की खाड़ी
(2) अरब सागर

1. राजस्थान में अधिकांश वर्षा बंगाल की खाड़ी शाखा से ही होती है बंगाल की खाड़ी की मानसूनी पवने गंगा यमुना के सम्पूर्ण मैदान को पार कर यहाँ आती है । अतः यहाँ आते-आते इनकी आद्रता कम हो जाती है। इसलिए राज में अल्प वर्षा होती है

अरावली पर्वत के कारण मे राज के पूर्वी एवं दक्षिणी-पूर्वी भाग में ही वर्षा करते है, राज का उत्तर व पश्चिमी भाग अरावली का दृष्टिछाया प्रदेश होने के कारण बहुत कम भागों में या बहुत कम मात्रा में वर्षा प्राप्त कर पाता है। इन मानसूनी हवाओं को यहाँ पुखाई या पुरवैया कहते है ।

अरब सागरीय मानसून की बात करें तो ये तीन भागों में विभाजित हो जाता है

(1) प्रथम शाखा केरल के मालाबार तट पर वर्षा करती है।
(2) दूसरी शाखा नर्मदा घाटी की तरफ प्रवाहित होकर महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश वं कर्नाटक के कुछ भागों में वर्षा करती है ।
(3) अरब सागरीय मानसून की तीसरी शाखा कच्छ सौराष्ट्र में प्रवेश कर अरावली पहाडियो के समानान्तरं आगे बढ़ जाती है तथा हिमाचल में धर्मशाला के आस-पास हिमालय के पर्वतों से टकराकर वर्षा करती हुई वापस लौट जाती है तथा लोटते हुए वर्षा करती हुई राजस्थान में आती है और राज के उत्तर पश्चिमी भागों में थोड़ी बहुत वर्षा करती है।

शीत ऋतु (अक्टूबर से फरवरी तक )

शीत ऋतु का काल अक्टूबर से प्रारम्भ हो जाता है लेकिन मानसून के प्रत्यावर्तन का कारण ( लौटता हुआ मानसून) अर्थात अक्टूबर-नवम्बर के बाद दिसम्बर से ही वास्तविक रूप में शीत ऋतु प्रारम्भ होती है। राजस्थान में दिसम्बर से फरवरी के अन्त तक का काल वास्तविक शीत ऋतु का काल होता है।

इस ऋतु में उत्तरी एवं मध्य एशिया में सभी जगह तापमान बहुत कम होने से उच्च वायुदाब केन्द्र विकसित हो जाते है दूसरी और हिन्द महासागर में निम्न वागूदान केन्द्र बन जाते है फल स्वरूप मानसूनी हवाएं उत्तर- पूर्व से दक्षिण पश्चिम की ओर अर्थात उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर चलने लगती है। मध्य एशिया एवं भूमध्य सागरीय क्षेत्रों से आने वाली मे हवाएं अपने साथ कुछ आद्रता भी लाती है शीत ऋतु में राज में भूमध्य सागर से उत्पन्न पश्चिमी विक्षोभों के कारण वर्षा हो जाती है जिसे स्थानीय भाषा में ‘मावठ’ कहते है।

राजस्थान की जलवायु की विशेषताएं

सामयिक वर्षा – राजस्थान की संपूर्ण वार्षिक वर्षा का लगभग 90% से अधिक भाग मानसून काल में प्राप्त होता है। व 10% भाग शीत ऋतु में मावठ के रूप में प्राप्त होता है

खंड वृष्टि – राज्य में कभी-कभी कुछ गांव के समूह या क्षेत्र विशेष में एकाएक बहुत अधिक वर्षा हो जाती है। जबकि कुछ क्षेत्र विशेष पूर्णता सूखे रह जाते हैं इसे खंड वृष्टि कहते हैं

तापमान की अतिशयता -राज्य में कुछ स्थानों पर शीत ऋतु का तापमान -1 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। जबकि ग्रीष्म ऋतु में कुछ स्थानों का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पाया जाता है।

वर्षा की असमानता – राज्य में वर्षा समान नहीं होती है राज्य के दक्षिणी पूर्वी भाग में औसत वर्षा पाई जाती है। तथा राज्य के पश्चिमी भाग में सामान्य से भी कम वर्षा देखने को मिलती हैजिसके कारण पश्चिमी मरुस्थल के जिले प्रत्येक वर्ष अकाल की समस्या से जूझते रहते हैं।

विभिन्न जलवायु प्रदेश – राजस्थान में तापमान वर्षा की वार्षिक स्थिति के अनुसार 5 जलवायु प्रदेश पाए जाते हैं। जिन्हें शुष्क, अर्ध शुष्क, उप आर्द्र, आर्द्र, अति आर्द्र जलवायु प्रदेशों में विभाजित किया जाता है

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1. राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा बंगाल की खाड़ी मानसून से होती है।
2. सर्वाधिक औसत वर्षा वाला जिला न्यूनतम औसत वर्षा वाला जिला – झालावाड़ जैसलमेर
3. सर्वाधिक वर्षा वाला सभाग न्यूनतम वर्षा वाला सभाग – कोटा जोधपुर
4. राजस्थान में मानसून का प्रत्यावर्तन काल (लौटता हुआ मानसून) अक्टूबर से मध्य नवम्बर तक रहता है।

महत्वपूर्ण बिन्दु
  • राजस्थान राज्य में औसत वर्षा 57.5 सेंटीमीटर
  • सर्वाधिक वर्षा वाला जिला झालावाड़ 100 सेंटीमीटर –
  • सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान माउंट आबू 150 सेंटीमीटर
  • सर्वाधिक वर्षा वाला संभाग कोटा
  • राजस्थान में न्यूनतम वर्षा वाला जिला- जैसलमेर – 10 सेंटीमीटर
  • न्यूनतम वर्षा वाला स्थान सम० सेंटीमीटर
  • न्यूनतम वर्षा वाला संभाग – जोधपुर
  • सर्वाधिक वर्षा अगस्त
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