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1857 की क्रांति के कारण
राजनैतिक कारण
तात्कालिक कारण
राजनैतिक कारण
1. लॉर्ड वेलेजली की सहायक संधि
देशी राज्यों की आंतरिक सुरक्षा व विदेश नीति का उत्तरदायित्व अंग्रेजों पर था जिसका खर्च संबंधित राज्य को उठाना पड़ता था ।
2. लॉर्ड डलहौजी की गोद निषेध नीति / राज्य हड़प नीति
राजा की मृत्यु हो जाए और राजा के पुत्र नहीं है तो दत्तक पुत्र गोद लेने का अधिकार नहीं होगा। और रियासत को अंग्रेजों के अधिकार में ले लिया जाएगा।
तात्कालिक कारण
लॉर्ड कैनिंग ने ब्राउन बेस राइफल की जगह एनफील्ड राइफल की शुरुआत की। कारतूस को लगाने से पहले दांत से चर्बी का खोल उतारना पड़ता था।
क्रांति के समय भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग क्रांति के समय इंग्लैंड का PM पार्मस्टेन –
क्रांति की तिथि तय की गई – 31 मई 1857
1857 की क्रांति का प्रतीक चिन्ह – कमल का फूल व रोटी
क्रांति की शुरुआत
29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी (पश्चिमी बंगाल ) के 34 वी रेजीमेंट के सिपाही मंगल पांडे ने चर्बी लगे कारतुसों का प्रयोग करने से मना कर दिया।
अपने अधिकारी लेफ्टिनेंट बाग व हयूशन की हत्या कर दी8 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे को फांसी दी गई
10 मई 1857 को मेरठ की पैदल टुकड़ी 20वीं नेटिव इन्फेंट्री ने क्रांति की शुरुआत की
1832 में विलियम बेंटिक ने राजस्थान में आकर A.G.G की शुरुआत की।
A.G.G = AGENT TO GOVERNOR GENERAL
राजस्थान का प्रथम A. G. G – मि. लोकेट 1857 की क्रांति के समय राज. का A. G. G – जॉर्ज पैट्रिक लॉरेंस
A.G.G का मुख्यालय- अजमेर (शीतकालीन) माउंट आबू – ग्रीष्मकालीन
A.G.G के अधीन P.A (POLITICAL AGENT)
- जयपुर का पोलिटिकल एजेंट – मेजर ईडन
- उदयपुर का पोलिटिकल एजेंट – शावर्स
- जोधपुर का पोलिटिकल एजेंट – मेकमोसन
- भरतपुर का पोलिटिकल एजेंट – मॉरीसन
- कोटा का पोलिटिकल एजेंट – बर्टन
राजस्थान में सैनिक छावनीयां राज. में कुल 6 सैनिक छावनीयां (सभी सैनिक भारतीय थे)
- नसीराबाद छावनी (अजमेर)
- नीमच (M.P)
- देवली (टोंक)
- खेरवाड़ा (उदयपुर)
- एरिनपुरा (पाली)
- ब्यावर (अजमेर)
अजमेर राजस्थान में ब्रिटिश सत्ता का प्रमुख केंद्र था। यहां भारी मात्रा में गोला-बारूद, सरकारी खजाना, संपत्ति थे। जॉर्ज पैथिक लोरेंस ने इसी डर से 15वी बंगाल नेटिव इन्फेंट्री को नसीराबाद भेज दिया कि कहीं ये यहा क्रांति ना कर दें।
28 मई 1857 को 15वी एन.आई रेजिमेंट के सैनिकों ने बख्तावर सिंह के नेतृत्व में क्रांति की शुरुआत की । | अंग्रेज अधिकारी मेजर स्पोटीसवुड व कर्नल न्यूबरी की सैनिकों ने हत्या कर दी और क्रांतिकारी दिल्ली की ओर रवाना हुए।
नीमच छावनी (मध्य प्रदेश)
कर्नल ऐबोट सैनिकों को शपथ दिलाते हैं कि हमारा साथ देना हैमोहम्मद अली बैग बोलते हैं क्या तुमने अपनी शपथ का पालन किया क्या अंग्रेजों ने अवध को कुशासन का आरोप लगाकर हड़प नहीं लिया।
3 जून 1857 को मोहम्मद अली बैग व हीरा सिंह के नेतृत्व में यहां क्रांति की शुरुआत होती है।
40 अंग्रेज अधिकारी व उनका परिवार क्रांतिकारीयों से बचते हुए डूंगला
गांव पहुंचता है जहां रूंगाराम नामक एक किसान इन्हें शरण देता है
मेवाड़ का पोलिटिकल एजेंट शावर्स मेवाड़ी सेना की सहायता से
इनको सुरक्षित उदयपुर पहुंचाता है। मेवाड़ के महाराणा स्वरूप
सिंह ने इन्हें पिछोला झील में बने जगमंदिर महल में शरण दी ।
राजस्थान का प्रथम शासक जिसने 1857 की क्रांति में
अंग्रेजों का सहयोग दिया – मेवाड़ महाराणा स्वरूप सिंह
एरिनपुरा (पाली) का विद्रोह / अउवा का विद्रोह
मारवाड़ में विद्रोह का प्रमुख व शक्तिशाली केंद्र अउवा स्थान था। जोधपुर लीजियन के 90 सैनिक अभ्यास हेतु माउंट आबू गए हुए थे। माउंट आबू का A.G.G का ग्रीष्मकालीन मुकाम भी था।
21 अगस्त 1857 को जोधपुर लीजीयन के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया एवं आबू में अंग्रेज सैनिकों पर हमला कर दिया। यह विद्रोह शीतलप्रसाद, मोतीखा व तिलकराम के नेतृत्व में हुआ।
‘चलो दिल्ली मारो फिरंगी को’ नारे के साथ दिल्ली की ओर प्रस्थान करते हैंरास्ते में अउवा (पाली) के ठाकुर कुशाल सिंह चंपावत के नेतृत्व में सैनिकों व जनता ने विद्रोह किया।
जब A.G.G लॉरेंस को इस घटना के बारे में पता लगा तब जोधपुर महाराजा तख्तसिंह को क्रांतिकारियों को कुचलने के लिए कहा
एरिनपुरा (पाली) का विद्रोह/ अउवा का विद्रोह
तख्तसिंह अपने किलेदार ओनाड़सिंह के नेतृत्व में सेना भेजता है। जिसमें लेफ्टिनेंट हिथकोट भी शामिल था।
बिथोड़ा का युद्ध (8 सितंबर 1857 )
कुशाल सिंह चंपावत ओनाड़सिंह + केप्टन हिथकोट – कुशालसिंह चंपावत विजयी हुआ व ओनाड़सिंह मारा गया। 18 सितंबर 1857 चेलावास का युद्ध (गौरो व कालों का युद्ध) कुशाल सिंह व क्रांतिकारी – मेकमोसन, A.G.G मेकमोसन मारा गया। क्रांतिकारियों ने मेकमोसन का सर काटकर अउवा के किले के बाहर लटका दिया। AGG अजमेर भाग गया।
एरिनपुरा (पाली) का विद्रोह / अउवा का विद्रोह
इस घटना का पता जब गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग को लगा तो लॉर्ड कैनिंग ने कर्नल होम्स के नेतृत्व में अउवा में सेना भेजी। कुशालसिंह विजय की उम्मीद ना होने के कारण सलूंबर आ जाता है कर्नल होम्स सुगाली माता की मूर्ति अजमेर ले जाता है। सुगाली माता जिन्हें 1857 की क्रांति की देवी, 10 सिर 54 हाथ वाली देवी के नाम से जाना जाता है।
वर्तमान में सुगाली माता की मूर्ति वागड़ संग्रहालय पाली में है।
जो एक खंडित प्रतिमा के रूप में है।
कुशालसिंह चंपावत को कोठारिया (भीलवाड़ा) के
रावत जोधसिंह ने शरण दी थी।
मेजर टेलर की अध्यक्षता में ब्रिटिश सरकार ने कमेटी
बिठाई जिनमें इनको रिहा कर दिया गया।
कोटा में विद्रोह (15 अक्टूबर 1857 )
राजस्थान में सुनियोजित व सुनियंत्रित तरीके से कोटा में विद्रोह हुआ। कोटा में विद्रोह राजकीय सेना तथा आम जनता ने किया
कोटा में विद्रोह मेहराब खा व जयदयाल
(वकील कामा, भरतपुर) के नेतृत्व में हुआ। कोटा के P.A बर्टन का सर काटकर कोटा शहर में घुमाया जाता हैकोटा के महाराव रामसिंह को नजरबंद कर दिया जाता हैबाद में करौली के महारावल मदनपाल ने अंग्रेजों का साथ दिया और कोटा के महाराव रामसिंह को भी छुड़वाया।
धौलपुर
धौलपुर एकमात्र ऐसी रियासत थी जहां क्रांतिकारी बाहर से आए (ग्वालियर M.P) से तथा बाहर की सेना ने आकर विद्रोह दबाया (पटियाला, पंजाब)
बीकानेर के महाराजा सरदार सिंह एकमात्र शासक जिन्होंने राज. से बाहर जाकर बाडलू (पंजाब) अंग्रेजों की सहायता की। ब्रिटिश सरकार ने इन्हें टिब्बी परगने हनुमानगढ़ 41 किले दिए ।
अमरचंद बाठिया
बीकानेर निवासी अमरचंद भाटिया ने अपनी संपूर्ण धनराशि रानी लक्ष्मीबाई व तात्या टोपे को आर्थिक सहायता के रूप में दीअतः इन्हें 1857 की क्रांति का भामाशाह या दूसरा भामाशाह भी कहते हैं।
22 जून 1858 को अमरचंद बाठिया को फांसी दी जाती हैइन्हें राजस्थान का मंगल पांडे भी कहा जाता है। डुंगजी व जवाहरजी
शेखावटी में सर्वप्रथम क्रांति का नेतृत्व डुंगजी व उनके भतीजे जवाहर जी ने किया।
इन्हें शेखावाटी में लोकदेवता के रूप में भी पूजा जाता है।
जब अंग्रेजों ने डुंगजी को आगरा के किले में कैद कर लिया तो जवाहरजी ने इन्हें लोटसिंह जाट और करणी मीणा के साथ मिलकर छुड़वाया।