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राजस्थान 20वी पशुगणना के आँकड़े
- भारत में प्रथम पशुगणना 1919 में आयोजित की गई
- सबसे ज्यादा पशुधन – बाडमेर सबसे कम पशुधन- धौलपुर
- पशु गणना का कार्य – राजस्व मंडल अजमेर
गौवैश की नस्लें
- 2019 में राजस्थान 56.8 मिलियन पशुओं के साथ दूसरे स्थान पर है• 2012 में राजस्थान में यह संख्या 57.7 मिलियन थी।
- 2019 में कुल पशुओं की संख्या में 1.66% की कमी राजस्थान में देखी गई है
- राजस्थान राज्य में देश के कुल पशुधन का 10.60% उपलब्ध है
- यहां पर ऊंटों का 84.43%
- बकरियों का 14% भेड़ों का 10.64%
- भैंसों का 12.47%
- गायों का 7.23% उपलब्ध है
- राजस्थान में पशु घनत्व के 166 प्रति वर्ग किलोमीटर है
- पशु संपदा की दृष्टि से राजस्थान का देश में दूसरा स्थान राजस्थान में सर्वाधिक संख्या बकरी तथा न्यूनतम संख्या खच्चर की है
- राजस्थान गोवंश के मामले में छठे स्थान पर हैं।
- गोवंश में 4.41% की वृद्धि हुई हैराजस्थान भैंसो के मामले में दूसरे स्थान पर हैं
- भैंसों में 5.53% की वृद्धि हुई है
- राजस्थान भेड़ की संख्या के मामले में चौथे स्थान पर हैं। भेड़ में 12.95% की कमी हुई है।
- राजस्थान बकरी के मामले में पहले स्थान पर हैं।
- बकरियों की संख्या में 3.81% की कमी हुई है।
- राजस्थान ऊंट के मामले में पहले स्थान पर हैं।
- ऊंटों की संख्या में 34.69% की कमी हुई है
- राजस्थान घोड़ों के मामले में तीसरे स्थान पर हैंघोड़ों की संख्या में में 10.85% की कमी हुई है
- राजस्थान गधों के मामले में पहले स्थान पर हैं।
- गधों में 71.31% की कमी हुई है
- राज्य में सर्वाधिक गोवंश उदयपुर न्यूनतम धौलपुर में है। भारत में सर्वाधिक गोवंश मध्यप्रदेश में
1. गीर – मूल स्थान गुजरात का गिर व काठियावाड़ रेडा व अजमेरा के नाम से भी जानी जाती है। राज्य के अजमेर, भीलवाड़ा, पाली जिले में सर्वाधिक पाई जाती है।
2. नागौरी – नागौर वंश उत्पत्ति क्षेत्र सोहालक गांव बैल के लिए प्रसिद्ध
3. थारपारकर – बाड़मेर का मालाणी क्षेत्र उत्पत्ति क्षेत्र गाय दुधारू बाड़मेर, जोधपुर, जैसलमेर में पाई जाती हैंजालोर के सांचौर क्षेत्र में देखने को मिलती हैं।
4. कांकरेज – बाड़मेर सांचौर व जोधपुर में मूल स्थान गुजरात कच्छ का रन तेज चलने और बोझा ढोने के लिए प्रसिद्ध
5. मालवी – मालवा का पठार उत्पत्ति क्षेत्र भार वाहक पशु के रूप में प्रसिद्ध झालावाड़ डूंगरपुर, बांसवाड़ा कोटा उदयपुर
6. मेवाती – अलवर जिले के भरतपुर जिले के कुछ भाग में 7. हरियाणवी – गंगानगर, सीकर, झुंझुनू तथा अलवर जिले में
8. राठी – (साहिवाल लाल सिंधी व हरियाणवी का मिश्रण ) गंगानगर, बीकानेरजैसलमेर राजस्थान की कामधेनु के नाम से प्रसिद्ध
राजस्थान में गाय की प्रमुख नस्लें
- राठी
- हरियाणवी,
- थारपारकर
- मेवाती
- रैंडा
- गीर
- अजमेरा
- कांकरेज
- मालवी
भैंस
1. मुर्रा झुंझुनू अलवर, बूंदी, जयपुर, गंगानगर भरतपुर, दौसा, अजमेर राजस्थान में सर्वाधिक इसी नस्ल की भैंस पाई जाती है।
2. जाफराबादी सिरोही उदयपुर झालावाड़ मूल स्थान काठियावाड़ गुजरात
3. मेहसाणा – जालोर सिरोही बाड़मेर मूल स्थान काठियावाड़ गुजरात
4. सुरतीउदयपुर के निकट वाले क्षेत्र में मूल स्थान सूरत क्षेत्र
5. भदावरी – भरतपुर, धौलपुर दूध देने में दूसरा स्थान
- राजस्थान में भैंस प्रजनन केंद्र वल्लभनगर उदयपुर में स्थित है
- राजस्थान में सर्वाधिक भैंस जयपुरअलवरभरतपुर, नागौर
- न्यूनतम भैंस जैसलमेर में
भेड़
राजस्थान में सर्वाधिक भेड़ों की संख्या बाड़मेर तथा न्यूनतम बांसवाड़ा में पाई जाती है
1. चोकला – इसे भारतीय मेरिनो के नाम से भी जाना जाता है
यह नस्ल छापर के नाम से भी जाना जाती हैइसे भारतीय मेरिनो के नाम से भी जाना जाता है
यह नस्ल छापर के नाम से भी जाना जाती है इसका ऊन श्रेष्ठ किस्म का होता है। चुरू, सीकर, झुन्झुनू (शेखावटी)
2. सोनाड़ी/चनोथर लम्बे कान वाली नस्ल इसकी ऊन गलीचे बनाने के लिए उपयुक्त है उदयपुर, डुंगरपुर, बांसवाड़ा
3. मालपुरी / अविकानगरी इसे देसी नस्ल भी कहते हैं। टोंक, बुंदी, जयपुर।
4. मगरा – सर्वाधिक मांस देने वाली नस्ल
इसे चकरी या बीकानेरी चोकला के नाम से जानते हैं
क्षेत्र बाड़मेर, जालोर
राजस्थान में भेड़ की प्रमुख नस्लें
- जैसलमेरी
- पूंगल
- चोकला
- मारवाड़ी
- खेरी नस्ल
- मालपुरी/अविकानगरी
- मगरा
- सोनाड़ी/चोर
5. मारवाड़ी – इसमें सर्वाधिक रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है। राज्य में 50% भेड़ इस नस्ल की पाई जाती हैं क्षेत्र जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर।
6. जैसलमेरी सर्वाधिक ऊन देने वाली भेड़ की नस्ल । क्षेत्र जैसलमेरबाड़मेर, बीकानेर
7. पूंगल – बीकानेर में।
8. नीली- इसका ऊन लम्बे रेशे का होता है, जिसका उपयोग कालीन बनाने में किया जाता हैक्षेत्र गंगानगर, बीकानेर, चुरू, झन्झनू
9. खेरी नस्ल भेड़ के रेवड़ों में पाई जाती हैजोधपुर, पाली, नागौर
राजस्थान में बकरियां
राज्य में सर्वाधिक बकरी बाड़मेर तथा सबसे कम धौलपुर में पाई जाती हैं।
1. झकराना -( अलवरी ) यह अलवर में पाई जाती है। इसका मूल स्थान जकराना बहरोड़ गांव है। अधिक दूध देने के लिए प्रसिद्ध है।
2. मारवाड़ी / लोही – मांस देने के लिए प्रसिद्ध राज्य के शुष्क व अर्द्ध शुष्क क्षेत्र में पाई जाती है राज्य में अधिकांश
बकरियां इसी नस्ल की है।
3. बारबरी – अलवर, भरतपुर, बांसवाड़ा, करौली, दूध देने के लिए अच्छी नस्ल है।
4. शेखावाटी – बिना सिंह वाली बकरियां काजरी जोधपुर द्वारा विकसित अच्छा दूध देने वाली बकरी
5. सिरोही सिरोही क्षेत्र में
6. जमुनापारी- कोटा, बूंदी, झालावाड़
7. परबतसर- परबतसर – नागौर, अजमेर, टोंक, जयपुर हरियाणा की बीटल व राजस्थान कि सिरोही नस्ल का मिश्रण
ऊंट
राज्य में सर्वाधिक ऊंट जैसलमेर, बीकानेर तथा न्यूनतम ऊंट प्रतापगढ़, झालावाड़ में पाए जाते हैं।
1. नांचना – जैसलमेर, सवारी व तेज दौड़ने की दृष्टि से महत्वपूर्ण
2. गोमठ – फलौदी (जोधपुर) । भारवाहक के रूप में प्रसिद्ध ऊंट ।
3. जैसलमेरी ऊंट – चाल के लिए प्रसिद्ध ।
4. रेबारी ऊंट पालक जाति है। केन्द्रीय ऊंट प्रजनन केन्द्र – जोहड़बीड़, बीकानेर ( 1984 में)
राज्य में सर्वाधिक गधों की संख्या बाड़मेर, बीकानेर तथा न्यूनतम टोंक जिले में है। गधा शीतला माता की सवारी के रूप में पूजनीय हैजयपुर में लूनियावास गधों का मेला लगता है
मुर्गी पालन राजस्थान में सर्वाधिक अजमेरम झुंझुनू न्यूनतम करौली
केन्द्रीय भेड़ प्रजनन केन्द्र अविकानगर, टोंक
इसकी स्थापना भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा 1962 में की गई थी• देश के विभिन्न जलवायु क्षेत्र में इसके 3 क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र कार्यरत हैं
उत्तरी शीतोष्ण क्षेत्रीय केंद्र गर्खा कुल्लू हिमाचल प्रदेश में यह 1963 में स्थापित किया गया
दक्षिण क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र मन्नावानुरे तमिलनाडु में 1965 में स्थापित किया गया
शुष्क क्षेत्र कैंपस राजस्थान के बीकानेर में 1974 में स्थापित किया गया
राजस्थान में डेयरी विकास
ग्रामीण कृषि प्रधान आर्थिक दृष्टि से पिछड़ी अर्थव्यवस्था में पशुपालन व डेयरी व्यवसाय एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। राज्य में दुग्ध विकास कार्यक्रम की आधारशिला सर्वप्रथम जयपुर शहर के उपभोक्ताओं हेतु दुग्ध व दुग्ध पदार्थों की आवश्यकता की पूर्ति के उद्देश्य से राज्य सरकार द्वारा जयपुर दुग्ध वितरण योजना के नाम से 1957 में प्रारंभ किया गया।
सन 1970 में राजस्थान राज्य सहित भारत के 10 राज्यों में ऑपरेशन फ्लड कार्यक्रम प्रारंभ किया गया ऑपरेशन फ्लड के सूत्रधार डॉ वर्गीज कुरियन थे।
ऑपरेशन फ्लड का मुख्य उद्देश्य दुग्ध उत्पादन को बढ़ाना दुग्ध उत्पादकों को दूध का उचित मूल्य दिलवाना तथा उपभोक्ताओं तक अच्छी किस्म के दूध का वितरण सुनिश्चित करना था।
सन 1972-73 में राज्य में डेयरी विकास के तहत जिला दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ की स्थापना की गई। वर्ष 1975 में विश्व बैंक की सहायता से राज्य में राजस्थान राज्य डेयरी विकास निगम की स्थापना की गई। जिसे वर्ष 1977 में राजस्थान सहकारी डेयरी फेडरेशन में स्थानांतरित कर दिया गया
वर्तमान में डेयरी विकास कार्यक्रम का संस्थागत ढांचा त्रिस्तरीय है।
शीर्ष स्तर – RCDF (राजस्थान सहकारी डेयरी फेडरेशन)- राजस्थान में पशु पालकों के दूध का उचित मूल्य दिलाने व उपभोक्ताओं को शुद्ध दूध उपलब्ध करवाने हेतु शीर्ष संस्थान 1977 में स्थापित
मुख्यालय जयपुर राज्य में दुग्ध विकास कार्यक्रम के संचालन का दायित्व इसी पर है। इसके द्वारा सरस ब्रांड के दूध व दुग्ध उत्पाद उपलब्ध करवाए जाते हैं।
जिला स्तर – जिला दुग्ध उत्पादन संघ- ग्रामीण क्षेत्र में डेयरी परियोजना की सुनिश्चित क्रियान्वयन हेतु जिला स्तर पर जिला दुग्ध उत्पादन स्थापित किए गए हैं। राज्य में 23 जिला दुग्ध उत्पादन संघ है। इनके द्वारा प्राथमिक दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियों से दुग्ध संकलित किया जाता है।
प्राथमिक स्तर- प्राथमिक सहकारी दुग्ध उत्पादन समिति दुग्ध उत्पादकों से दूध एकत्रित कर जिला दुग्ध उत्पादन संघ को उपलब्ध करवाती है। इनकी संख्या 16531 है
दूध पाउडर उत्पादक संयंत्र ( रानीवाड़ा, अजमेर, अलवर, जयपुर, हनुमानगढ़, बीकानेर)
पशु आहार केंद्र – 4 लालगढ़ (बीकानेर), नदबई (भरतपुर), तबीजी (अजमेर) एवं जोधपुर
बीज उत्पादक फार्म – रोजड़ी, पाल एवं बस्सी ।
टैट्रापैक दूध संयंत्र – जयपुर
यूरिया मोलासिस ब्रिक प्लांट – 2 (अजमेर व जोधपुर)
फ्रोजन सीमन बैंक – बस्सी (जयपुर), ISO मानक प्राप्त प्रयोगशाला उत्पादन जहां पर कृत्रिम गर्भाधान हेतु देशी व विदेशी नस्ल के सांडों से हिमीकृत वीर्य संचित रहता है।
महिला डेयरी परियोजना- महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार की स्टेप योजना के अंतर्गत 20 जिलों में महिला डेयरी परियोजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है। इस परियोजना के अंतर्गत सबसे पहली महिला दुग्ध उत्पादक सहकारी समिति भोजूसर गांव (बीकानेर) में प्रारंभ की गई।
सरस सामूहिक आरोग्य बीमा योजना – RCDF द्वारा ICICI Lombard Company के सहयोग से संचालित इस योजना के अंतर्गत दुग्ध उत्पादक, उसकी पत्नी व दो बच्चों का स्वास्थ्य बीमा कराया जाता है जिसमें साधारण बीमारी में ₹100000 की सीमा तक के चिकित्सीय खर्चे एवं असाधारण बीमारी की स्थिति में ₹200000 के चिकित्सीय खर्चे का पुनर्भरण किया जाता है।
जिला दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ द्वारा सरस सामूहिक आरोग्य बीमा का 16 वा चरण दिनांक 15 अक्टूबर 2021 से प्रारंभ किया गया।
मुख्यमंत्री दुग्ध उत्पादक सबल योजना- इस योजना अंतर्गत 1 फरवरी 2019 से दुग्ध उत्पादकों को ₹2 प्रति लीटर की दर से अनुदान राशि स्वीकृत की जा रही है। वर्ष 2021-22 के लिए 200 करोड़ का प्रावधान किया गया है।
राजस्थान सरस सुरक्षा कवच बीमा योजना – पांचवा संस्करण 1 जनवरी 2021 से लागू इस योजना के अंतर्गत दुग्ध उत्पादक की दुर्घटना मृत्यु व पूर्ण स्थाई विकलांगता पर 5 लाख आंशिक स्थाई विकलांगता होने पर 2.50 लाख की बीमा राशि देय है।
1957 में जयपुर में पशुपालन विभाग की स्थापना की गई।
1975 में राजस्थान में डेयरी विकास कार्यक्रम आरम्भ किया गया राजस्थान की सर्वाधिक प्राचीन डेयरी अजमेर की पद्मा डेयरी है।
राज्य सरकार का पशु पालन व डेयरी विकास विभाग का नाम ‘पशु पालन विभाग कर दिया गया है। मुख्यमंत्री पशुधन निःशुल्क दवा योजना 15 अगस्त 2012, पशु स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आवश्यक दवा का .
निःशुल्क वितरण योजना प्रारम्भ की।
राज्य की पहली एडवांस मिल्क टेस्टिंग व रिसर्च लैब मानसरोवर जयपुर में 7 अक्टुबर 2014 को उद्घाटन किया जिसमें दुध में होने वाली रसायनिक मिलावट व हानिकारक तत्वों की जांच की जायेगी।
मुख्यमंत्री मोबाइल वेटरनरी यूनिट (पशुधन आरोग्य चल इकाई ) – 15 सितम्बर 2013
शुक्र विकास कार्यक्रम – अलवर व भरतपुर जिलों में ।
राजस्थान पशु चिकित्सा व पशु विज्ञान विश्वविद्यालय – 13 मई 2010 को बीकानेर में स्थापना की गई। यह राज्य का एकमात्र वेटनरी विश्वविद्यालय है।
देश में औसत 394 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन दूध की उपलब्धता है जबकि राजस्थान में 870 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन औसतन दूध उपलब्ध होता है
भारत सरकार के राष्ट्रीय पशुधन मिशन के अंतर्गत राजस्थान में भेड़, बकरी वंश की नस्ल सुधार योजना संचालित की जा रही है। जिसमें केंद्र तथा राज्य का प्रतिशत 60:40 है। यह परियोजना वर्तमान में राजस्थान के अजमेर, जयपुर , सीकर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, चूरू, सिरोही, नागौर जिले में संचालित है।
बकरी विकास एवं चारा उत्पादन केन्द्र – रामसर, अजमेर। केन्द्रीय ऊंट प्रजनन केन्द्र – जोहड़बीड़, बीकानेर ( 1984 में)
भैंस प्रजनन केन्द्र – वल्लभनगर, उदयपुर ।
केन्द्रीय अश्व प्रजनन केन्द्र –
विलड़ा – जोधपुर
जोहड़बड़ – बीकानेर
गाय भैंस का कृत्रिम गर्भाधारण केन्द्र (फ्रोजन सिमन बैंक)
बस्सी, जयपुर
मण्डौर, जोधपुर
Notes